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लक्ष्मण रामानुज लडीवाला's Blog (188)

कुंडलिया छंद-लक्ष्मण लडीवाला

महाराणा प्रताप की जयंती पर समर्पित -कुंडलिया छंद

रचते है इतिहास ही,राणा जैसे वीर

माँ वसुधा के लाल ये,ये ही असली पीर 

ये ही असली पीर, युद्ध से जिनका नाता 

दुश्मन को दे…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 31, 2014 at 11:00am — 14 Comments

कुंडलिया छंद - लक्ष्मण लडीवाला

गांधी जी की कल्पना, हो सकती साकार, 

राम राज्य इस देश में, ले सकता आकार |

ले सकता आकार, करे सब मिल तैयारी

मन में हो संकल्प,नहीं फिर मुश्किल भारी

लक्ष्मण कर विश्वास,चले अब ऐसी आंधी

भ्रष्ट तंत्र हो नष्ट, तभी खुश होंगे गांधी ||…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 23, 2014 at 10:00am — 15 Comments

कुंडलिया छंद - लक्ष्मण लडीवाला

आँचल में ममता लिए, भरा ह्रदय में प्यार

क्या कोई भी दे सका,माँ सा प्यार दुलार

माँ सा प्यार दुलार, जिसे पाने को तरसे,

सर पर माँ जब हाथ,रखे तो प्रभु भी हरषे

कह लक्ष्मण मत टोक, लगाती टीका काजल

जीवन हो आबाद, मिले जब माँ का आँचल |

(2)

दोहा देखो छंद में,  सबका है  सरताज,

सभी शब्द हो शिल्प मय, तभी सजेगी साज

तभी सजेगी साज, छंद को गाकर देखे

मन में भरते भाव, सूर तुलसी के लेखे

लक्ष्मण ले आनंद, कबीर रचे वह…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 14, 2014 at 10:00am — 14 Comments

विश्वासों की बढती डोर- लक्ष्मण लडीवाला

जयकारी/चोपई छंद (१५ मात्राओं के इस छंद में चरणान्त गुरु लघु से)

राष्ट्र सृजन में जिनका योग, उनको कहे पुरोधा लोग

जनता का मिलता सहयोग, खुशहाली का होता योग |

कानूनन जन हित का भान, सफल प्रशासक उसको मान

योग्य प्रशासक का सम्मान, तभी देश का हो उत्थान ||

 

जड़ चेतन का जिसको भान, उसमे ही आध्यात्मिक ज्ञान

परम पिता ने डाले प्राण, इसके मिलते बहुत प्रमाण |

जिसमे हो सेवा का भाव, मन में वह रखता सद्भाव

जिसमे भी जिज्ञासा जान, गुरुवर का वह…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 3, 2014 at 10:00am — 12 Comments

दूर करे अभाव (कामरूप छंद) - लक्ष्मण लडीवाला

दूर करे अभाव (काम रूप छंद 9-7-10 पर यति)

निर्भय रहे सब, वोट देकर,  करे सही चुनाव |

सही चुनाव से,  देश में हो, दूर करे अभाव ||

अच्छे को चुने, करे न लोभ, हो तभी कुछ काम 

ऐसा क्यों चुने, चुनकर वही, वसूले सब दाम ||

 …

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 23, 2014 at 7:53pm — 13 Comments

कुंडलिया छंद-लक्ष्मण लडीवाला

माँ की छोटी कोख में, पूत रहा नौ माह,

माँ को आश्रम भेज कर, मिली पूत को राह |

मिली पूत को राह, नहीं माँ वहां अकेली |

घरको से थी दूर, बहुत पर मिली सहेली

कह लक्ष्मण कविराय, पूत करले चालाकी

उसका ही सम्मान, करे जो पूजा माँ की |

(२)

परछाई भी दिख रही, अपने बहुत करीब

हाथ बढ़ा कर छू सकूँ, ऐसा नहीं नसीब |

ऐसा नहीं नसीब, भ्रमित मन होता इतना

स्वप्न मात्र संयोग, मिले नसीब में जितना

कह लक्ष्मण कविराय, स्वप्न में फटी बिवाई

उसे…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 21, 2014 at 6:36pm — 8 Comments

कुण्डलियाँ छंद - लक्ष्मण लडीवाला

बेशर्मी को ओढ़कर कायर हुआ समाज

चीखे अबला द्रोपदीकौन बचाए लाज

कौन बचाए लाजखुले घूमे उन्मादी

अपराधी आजादमिली ऐसी…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 15, 2014 at 5:30pm — 6 Comments

कुछ चुनावी दोहे-लक्ष्मण लडीवाला

पहन मुखौटा घूमते, आया पास चुनाव,

खेती बो विश्वास की, तापे खूब अलाव । 

 

छलियाँ बनकर लूटने, करे प्रेम की बात,

सबकी बाते मानते,  दिन हो चाहे रात ।

 

मीठा मंतर मारते, मन में रखते खोट,

बंजर को उर्वर कहे, लेने इनको वोट । 

 

पाखण्डी कुछ आ गए, देख हमारे गाँव,

आकर लूटे  कारवाँ,  बोझिल से है पाँव ।

 

देख हवा के रूख को, झट पलटी खा जाय, 

अपने दल को छोड़कर, दूजे दल में जाय |

 

होड़ लगी है मंच पर, फिसला…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 8, 2014 at 9:43am — 12 Comments

बना खूब सरताज (दोहे) -ओबीओ की चौथी वर्षगाँठ के शुभ अवसर पर

1 अप्रैल 2014 को ओबीओ की चौथी वर्षगाँठ है। चार वर्षो में इस मंच ने मुझ जैसे सैकड़ों लेखको को तैयार किया है | इस अवसर पर दोहों के रूप में सभी सदस्यों में सहर्ष पुष्प समर्पित है ।-

 

 

मना रहे सब साथ में, उत्सव देखो आज

चार वर्ष कर पूर्ण ये, बना खूब सरताज |

 

बागी की ही सोच से, बिछ पाया यह साज

योगराज…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 31, 2014 at 3:30pm — 15 Comments

कुंडलिया छंद - लक्ष्मण लडीवाला

बागी ठोके ताल यूँ, दल को देने चोट

टिकिट मिले दागी खड़े, किसको डाले वोट

किसको डाले वोट, नहीं कुछ समझ में आता

खूब जताए प्यार, निकाले  रिश्ता  नाता

कह लक्ष्मण कविराय, देख अब जनता जागी

दागी की हो हार, भले ही जीते बागी |

(२)

योगी भोगी तो नहीं, उसके मन में टीस,

सुनो अरज माँ शारदे,दो अपना आशीष 

दो आपना आशीष,यही है बस अभिलाषा 

भारत रहे अखंड, रहे न एक भी प्यासा  

कह लक्ष्मण कविराय, रहे सब यहाँ निरोगी

करो सभी का…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 27, 2014 at 2:30pm — 6 Comments

जुड़े रहे सम्बन्ध (दोहे)

जुड़े रहे सम्बन्ध (दोहे)- लक्ष्मण लडीवाला 

==============

संस्कारी बच्चे बने,बुजुर्ग बने सहाय,

चले राह सन्मार्ग की, वैभव बढ़ता जाय |

 

मान बढे सहयोग से, सबका हल मिल जाय,    

सद्गुण अरु सम्पन्नता, प्रतिदिन बढती जाय |         

 

साथ रहे तो लाभ है, युवा समझते आज,

आजादी भी चाहते,  ये तनाव का साज |

 

बंधिश इतनी ही रहे, टूटे नहि तटबंध   

वीणा जैसे तार ये, जुड़े रहे सम्बन्ध |

 

मन में भरे विकार…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 25, 2014 at 2:00pm — 14 Comments

कुंडलिया छंद-लक्ष्मण लडीवाला

 होली का तौहार ये, रंगों का तौहार,

प्रेम भाव बढ़ता रहे, माने सब आभार 

माने सब आभार, प्रकृति की छटा निराली 

मिटा कर भेद भाव, चखे प्रेम भरी प्याली

मित्रो से अनुरोध, बना रसियों की टोली 

टेसू का हो रंग, प्रेम से खेले होली  |

(मौलिक व् अप्रकाशित)

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 17, 2014 at 12:30pm — 4 Comments

कुण्डलिया छंद-लक्ष्मण लडीवाला

जज्बा रख यदि ठानले, लगे सफलता हाथ,

काम करे उत्साह से, मिले सभी का साथ

मिले सभी का साथ, सभी उत्साहित रहते

रखकर ऊँची सोच, मदद आपस में करते

करे सोच कर काम, लगे न कभी भी धब्बा

संकट जाता हार, जब हो कर्म का जज्बा |

(२)

यात्रा जैसे आइना, ज़रा गौर से देख 

सुन्दरता वर्णन करे, विद्वानों के लेख 

विद्वानों के लेख,से बहुत सा ज्ञान मिले

पढ़े जब शिलालेख,संस्कृति संज्ञान मिले

बिन यात्रा के आप, ले न सके ज्ञान वैसे

कही न मिलता…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 8, 2014 at 11:30am — 11 Comments

कुंडलिया छंद-लक्ष्मण लडीवाला

एनजीओ खूब बने, करे न सेवा ख़ास 

टैक्स बचे इज्जत बढे,धन की करते आस

धन की करते आस,नहीं कुछ सेवा करते 

फैशन बना विशेष, ओट में पीया करते 

करके बन्दर बाट, खूब लूटकर जीओ

धन अर्जन की प्यास लिए बने एनजीओ |

(२)

लोहा मनवाते रहे, करते वे अभिमान 

गर्व रहा नहीं स्थाई,रखे न इसका भान 

रखे न इसका भान,ज्ञान न चक्षु के खोले 

जीवन का है मोल,सोच समझ के न बोले

कहते है कविराय,  शिल्प में सोहे दोहा  

करते जो सम्मान, मान उसका ही लोहा…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 22, 2014 at 11:00am — 4 Comments

पांच दोहे - लक्ष्मण लडीवाला

झूठ सत्य की ओट रख, दे दूजे को चोट,

कडुवापन आनंद दे, जब हो मन में खोट |

 

मीठा लगता झूठ है, सनी चासनी बात 

पोल खुले से पूर्व ही, दे जाता आघात |

 

जैसी जिसकी भावना, वैसा बने स्वभाव 

मन में जैसी कामना, मुखरित होते भाव |

 

जितनी सात्विक भावना, तन में  वैसी लोच

पारदर्शी भाव बिना, विकसित हो ना सोच |

 

हिंसा की ही सोच में, प्रतिहिंसा के भाव,

सत्य अहिंसा भाव का, सात्विक पड़े प्रभाव |

(मौलिक व्…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 20, 2014 at 9:30am — 8 Comments

कुंडलियाँ छंद-लक्ष्मण लडीवाला

टिकती है क्या झूठ पर, रिश्ते की बुनियाद

झूठ बोल हर बात में, करते सदा विवाद |

करते सदा विवाद, सवाल पूछ कर देखे

मुखड़ा करे बयान, होंठ व ननन जब निरखे 

कहते है कविराय. कभी न सत्यता छिपती

रिश्ते की बुनियाद कभी न झूठ पर टिकती ||

(2)

डाली डाली में जहाँ,फूलों की मुस्कान,

मेरा देश अखंड वह, भारतवर्ष महान 

भारतवर्ष महान,छटा है मोहक न्यारी  

दुल्हन जैसा रूप,जहां खिलती हर क्यारी 

लक्ष्मण…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 11, 2014 at 7:30pm — 11 Comments

पांच दोहे – लक्ष्मण लडीवाला

हम है क्या कुछ भी नहीं, ईश अंश ही सार,

मन के भीतर रोंप दे, सद आचार विचार |

 

त्याग और सहयोग का, जिसके दिल में वास

माली जैसा भाव हो, उस पर ही विश्वास |

 

समय नहीं करुणा नहीं, बाते करते व्यर्थ,

भाव बिना सहयोग के, साथी का क्या अर्थ |

 

समीकरण बैठा सके, बहिर्मुखी वाचाल,

संख्या उनके मित्र की, होती बहुत विशाल |

 

घंटों उठते बैठते, कछु न मदद की आस,

समय गुजारे व्यर्थ में, दोस्त नहीं वे ख़ास…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 1, 2014 at 11:00am — 29 Comments

कुंडलिया छंद - लक्ष्मण लडीवाला

राज आप का आप पर, पूछ रहे है लोग 

नेताजी क्या आप ने,किया उचित उपयोग ?     

किया उचित उपयोग,लगा क्या जन को ऐसा

जनता करती आस, दिया क्या शासन वैसा.

होती है पहिचान, भला करे जब आम का 

जन का हो कल्याण, तभी है राज आप का |

 (2) 

सुरसा से ये फैलते, प्रचलित बहुत रिवाज

जीना कुंठित कर रहे, छोड़ न पाय समाज |  

छोड़ न पाय समाज, कर्ज में निर्धन डूबे

खिलावे म्रत्यु भोज, प्रतिष्ठा के मनसूबे

स्वार्थ के वशीभूत, भोज का बाँटे पुरसा   …

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 27, 2014 at 7:30pm — 13 Comments

रोज नया त्यौहार (दोहे)- लक्ष्मण लडीवाला

सभी सहह्रदयी सदस्यों को नव वर्ष की हार्दिक मंगल कामनाएँ

 

स्वागत हो नव वर्ष का, दे सुन्दर उपहार,
मधुर गीत रच दे सके, शब्द सुमन मनुहार |
 
नए वर्ष की प्रथम किरण, दे सुन्दर अहसास,
नया जोश संचित करे, रचे नया इतिहास |
 
नवजीवन श्रृंगार से, रच नूतन संगीत,
नयी चेतना दे सके, नया सुगम नवगीत | 
 
सात्विक मन की सोच से,नित नूतन आकार 
नए वर्ष की भोर का, सुधि मन से…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 31, 2013 at 2:30pm — 21 Comments

कुंडलिया छंद - लक्ष्मण लडीवाला

गाली देते लोग जो , बोलें कभी सटीक,

गाली या अपशब्द क्या, लगते प्रेम प्रतीक ?

लगते प्रेम प्रतीक, कूल क्या उन्हें समझना

उनका ही उपहास, समझते जिनको अपना ||

यह तो है अपवाद, कहें सब प्रिय को साली.

स्नेह-प्रीति संवाद, न समझें इसको गाली ||

.

(2)

तू तू मै मै में करे, आपस में जो बात,

समझें इसको सभ्यता, या उनकी औकात |

या उनकी औकात, स्नेह की कहाँ निशानी

निखर सके व्यक्तित्व, अगर दिल हो इन्सानी |

कहे…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 10, 2013 at 7:00pm — 11 Comments

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