For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चढ़े प्रेम का रंग (दोहे)-लक्ष्मण लडीवाला

चढ़े प्रेम का रंग                                            

-लक्ष्मण लडीवाला

                        

                                                                                                                                                                                

प्यार बिना नहि जिन्दगी,जीवन मृतक समान,

सतरंगी  बनकर  रहे,  करे  प्यार का  मान। 

                                                           

चले प्रीत की नर्सरी चुने प्यार का रंग,

भर पिचकारी नयन सेजीत प्रेम का जंग|

 

मन मेरा फागुन हुआउड़े पवन के संग,         

फागुन बरसाने लगा,  प्रेम प्रीत के रंग ।        

                                                            

मन की कलियाँ खिल उठीफागुन आया देह 

खुशबू  से मन झूमताअखियाँ बरसे नेह ।   

                                                             

साजन ऐसा प्यार दे,  कभी न छूटे रंग,           

सात जनम का साथ है,इक दूजे के संग ।      

                                                             

मन के बादल बरसतेघुले सांस में भंग,      

थिरके पाँव रुके नहीं ,  पूरे अंग मृदंग ।        

                                                            

भर पिचकारी रंग से,  करे प्रेम की  मार,      

तन चंगा मन बावरासहते रस की धार।     

                                                            

महँगाई की मार ने, महँगा किया  गुलाल,      

कर में नेह अबीर ले, साजन के कर लाल|      

                               

होली उत्सव है भलालोक पर्व का अंग 

रंग बिरंगे झूमते,  बजे ढोल ढप चंग । 

                                                              

दस्तक दी होलास्ट नेथिरके सबके अंग 

थिरके पाँव रुके नहींजैसे पी हो भंग । 

                                                              

होली के त्यौहार मेंचढ़े प्रेम का रंग,

भेद भाव को छोड़कर,होली खेले संग । 

                                                     

छंदों में भी दिख रहाहोली का सत्संग,

भंग चढ़ा कर लिख रहे,प्रेम भरे सब छंद ।

                                                           

 -लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला  

                                                                  

Views: 1025

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 31, 2013 at 11:27am

हार्दिक आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी, क्षमा मांगे की तो कोई बात ही नहीं है, हर कार्य आवश्यक है,

और फिर आजकल नेट की समस्या कुछ ज्यादा ही अड़चन दे रही है | आपकी दोहों के प्रति सापेक्ष टिप्पणी 

मेरे लिए प्रमाण-पात्र से कम नहीं है | पुनः आभार सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 31, 2013 at 11:00am

मन मेरा फागुन हुआउड़े पवन के संग,         

फागुन बरसाने लगा,  प्रेम प्रीत के रंग ।        

       

आदरणीय लक्ष्मण जी पहले तो देर से पढने के लिए क्षमा मांगती हूँ नेट आज ठीक से चल रहा है सभी दोहे शानदार हैं काफी कसे हुए
और ये दोहा तो बहुत ही पसंद आया बार बार पढ़ा बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 30, 2013 at 9:49am

आपको दोहे बहुरंगी लगे, यह मेरे लिए संतोष की बात है, हार्दिक आभार श्री राम शिरोमणि पाठक जी 

Comment by ram shiromani pathak on March 29, 2013 at 8:58pm

आदरणीय लडीवाला  जी, सादर  आपने अपनी रचन में सब कुछ समेट लिया है! बधाई!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 29, 2013 at 4:17pm

दोहे पढ़कर फाग की उमंग तरोताजा हो गयी, यह मेरा सौभाग्य है, आपकी इस सुन्दर टिपण्णी से मेरा उत्साहवर्धन करने करने के लिए हार्दिक आभार स्वीकारे श्री एस के चौधरी जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 29, 2013 at 3:57pm

जब रसीले प्रभु ने बसंत ऋतू में फागुन माह और उसमे ही रंगीन और पवित्र होली महोत्सव की रास लीलाए रची
है,तो संग भरी श्याही से रचे दोहे ही कागज़ को रंगेंगे | उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार
श्री सत्यनारायण शिवराम सिंह जी

Comment by Satyanarayan Singh on March 29, 2013 at 3:49pm

आदरणीय लडीवाला  जी, सादर अभिवादन!

आपके दोहे होली के अनोखे  रंग और अनमोल प्रेम का  मिश्रित  परिपाक है

बधाई व हार्दिक शुभकामनाएँ

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 29, 2013 at 3:14pm

आदरणीय श्री सौरभ पाण्डेय जी, आपका हार्दिक आभार एवं रंगीन और पवित्र पर्व की शुभ कामनाए-

 

अनुशासन पर्याय है,सार्थक हो कोशिश,
दोहे रंग जमाय ले, तभी मिले आशीष । 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 29, 2013 at 2:06pm

होली में भी छंद है, अनुशासन पर्याय

लक्ष्मण फागुन टेरते, दोहा रंग जमाय.. .. वाह !

बधाई व हार्दिक शुभकामनाएँ

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 28, 2013 at 8:37am

होली की शुभ कामनाओं सहित रचना पर सापेक्ष टिपण्णी हेतु सादर आभार श्री जवाहर लाल सिंह जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
5 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान…"
8 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक भाई , प्रवाहमय सुन्दर छंद रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई "
28 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय बागपतवी  भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक  आभार "
32 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ, गुणीजनों की इस्लाह से ग़ज़ल…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
10 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"   आदरणीय सुशील सरना जी सादर, लक्ष्य विषय लेकर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई…"
10 hours ago

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service