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जब चमन पुरबहार होते हैं

जब चमन पुरबहार होते हैं

खार भी लालाज़ार होते हैं



कौन साथी है दौर-ऐ-ग़ुरबत का

सब बनी के ही यार होते हैं



हम गिला क्या करें जफ़ाओं का

जब सितम बार बार होते हैं



टूट जाते है चन्द बातों से

रिश्ते कम पायदार होते हैं



अजनबी हमसफ़र तो ऐ लोगों

रास्ते का गुबार होते हैं



आज के दौर की अदालत में

बेगुनाह गुनाहगार होते हैं



जिनमे इमरज-ऐ-बुग्ज़-ओ-कीना हो

क़ल्ब वो दाग़ दार होते है



यूँ न अबरू को दीजिये… Continue

Added by Hilal Badayuni on October 25, 2010 at 8:22pm — 8 Comments

सत्य (प्रेरक प्रसंग)

बहुत पुरानी बात है कहीं एक गावं था, जहाँ के अधिकाँश लोग येन केन प्राकरेण धन कमाने में लगे हुए थे | उन सब के लिए पैसा ही भगवान था | लेकिन उसी गावं में एक ब्राह्मण ऐसा भी था जिसने कभी भी कोई बुरा काम नही किया था, सत्य की राह पर चलते हुए जो भी मिलता उसी से गुजारा करता था | गाँव वाले कतई उसकी इज्ज़त नहीं किया करते थे क्योंकि वह बेचारा निर्धन था | एक दिन उस ब्राह्मण ने पूजा पाठ करते हुए भगवान को उलाहना दिया,



"हे ईश्वर, इस पूरे गाँव में एक मैं ही हूँ जो कि धर्म और सत्य की राह पर चल रहा… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on October 25, 2010 at 3:30pm — 8 Comments

शिक्षा (लेख)

शिक्षा का हमारे दैनिक, नैतिक, सामाजिक, व्यावहारिक तथा व्यावसायिक जीवन में बहुत बड़ा महत्व है | जब से मानव सभ्यता विकसित हुई है , तभी से हमारे जीवन में शिक्षा का बहुत बड़ा योगदान रहा है | वैदिक काल में गुरुकुल के माध्यम से शिक्षा प्रदान की जाती थी तथा गुरु शिष्य परम्परा बनाये रखने के लिए दीक्षांत समारोह का आयोजन किया जाता था | जिसमे शिष्य गुरु को गुरु दक्षिणा देता था | पहले वेदों, पुराणों, शास्त्र ग्रंथो तथा राजनीती शास्त्र, तर्क विज्ञान, की शिक्षा दी जाती थी | लेकिन जैसे - जैसे समय बदलता गया… Continue

Added by Pooja Singh on October 25, 2010 at 3:30pm — 3 Comments

कैसे कोई हमको अलग कर पायेगा

क्या पता था राम को, कि ऐसा दिन भी आएगा.

उनकी अयोध्या में ,उन्हें खैरात बांटा जायेगा.

जिस ज़मीं पर ठुमक-ठुमक, भगवान को चलना पड़ा था.

जिस जगह नारायण को, नर रूप में आना पड़ा था.

भावी को भी क्या पता था, ऐसा दिन भी आयेगा.

राम के अस्तित्व को, मुद्दा बनाया जाएगा.

क्या पता था राम --------------------------------

हिन्दू मुस्लिम हैं अलग, ये कब कहा था राम और रहमान ने?

मंदिर मस्जिद है जुदा, क्या यह सिखाया है खुदा भगवान ने?

नींव नफरत है धरम की, है लिखा गीता में या… Continue

Added by satish mapatpuri on October 25, 2010 at 2:54pm — 2 Comments

मुक्तिका: आँख में संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:



आँख में



संजीव 'सलिल'

*

जलती, बुझती न, पलती अगन आँख में.

सह न पाता है मन क्यों तपन आँख में ??



राम का राज लाना है कहते सभी.

दीन की कोई देखे मरन आँख में..



सूरमा हो बड़े, सारे जग से लड़े.

सह न पाए तनिक सी चुभन आँख में..



रूप ऊषा का निर्मल कमलवत खिला

मुग्ध सूरज हुआ ले किरन आँख में..



मौन कैसे रहें?, अनकहे भी कहें-

बस गये हैं नयन के नयन आँख में..



ढाई आखर की अँजुरी लिये दिल… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 25, 2010 at 9:34am — 1 Comment

ग्राफो योग

ग्राफो योगा जीवन को गौरवान्वित करने का अत्याधुनिक तकनीक है.मनुष्य के जीवन मे अपार संभावने छीपी होती हैं. प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन को सुखमय बनाना चाहता है. इस सुख की प्राप्ति के लिए किए गये प्रयास के कारण ही आज संसार सुहाना लगता है.

मनुष्य के लिए सर्वाधिक प्रिय है कष्ट विहीन जीवन, सफलता भरी जिंदगी.

यह सफलता या असफलता मनुष्य के अंदर मौजूद शक्ति पर निर्भर करता है. संसार के सभी तत्व मनुष्य के अंदर पाए जाते है. इसलिए कहा गया है- यथा पिंडे तथा ब्रह्माण्डे.

मनुष्य की हर क्रिया उसके… Continue

Added by Sachchidanand Pandey on October 25, 2010 at 4:30am — 2 Comments

एहसान




ऐ जिंदगी !

हम एहसान तुझ पर किये जाते हैं

दिल के टुकड़े होने पर भी

उसको पाकर खोने पर भी

मन ही मन रोने पर भी

दर्द जिगर में होने पर भी

ऐ जिंदगी!

हम जिए जाते हैं

हम एहसान तुझ पर किये जाते हैं

{दीप जीरवी}


Added by DEEP ZIRVI on October 24, 2010 at 9:51pm — 2 Comments

बड़े खामोश रहते हैं अभी हम,



बड़े खामोश रहते हैं अभी हम,

सुना है लोग अब भी बोलते हैं .

बड़े दिल से लगाकर दिल यहाँ पर,

सुना है लोग अब दिल तोड़ते हैं.



कभी अमुआ की अमराई पे कोयल ,

कुहू कुहु के गाती गीत थी पर ,

सुबह की शाख पे बैठी कोयल है ,

नगर में गीत कागा छेडते हैं.



धनक खिलती दिखी थी कल जहां पर ,

आज मरघट सा वो पनघट रुआंसा .

जो बुझाया करे थे प्यास कल तक,

आज वोही क्यों प्यासा छोड़ते हैं



वो सागर रूप के… Continue

Added by DEEP ZIRVI on October 24, 2010 at 9:30pm — 3 Comments

ग़ज़ल

कैसी बहार यह आई मेरे शहर अंदर,

हर कली मुरझाई मेरे शहर अंदर.



खून सफ़ेद हुआ है रिश्ते नातो का,

किस ने ज़हर पिलाई मेरे शहर अंदर.



दूर आप क्या हुए जैसे हर तरफ,

तन्हाई तन्हाई मेरे शहर अंदर.



हम साए का साया नज़र नही आता,

हो गयी पीर पराई मेरे शहर अंदर.



प्यार के बादल उड़ कर कहाँ चले गये,

नफ़रत की घटा है छाई मेरे शहर अंदर.



आँसू पीड़ा दर्द की सौगात नयी,

हर मानव ने पाई मेरे शहर अंदर.



हर पल रोशन करने की वह बात… Continue

Added by Hardam Singh Maan on October 24, 2010 at 8:00pm — 3 Comments

अब तो बस नयन बरसते हैं

सावन की घटा घहराती हैं,

मन में हलचल कर जाती हैं ..

विरही मन छोड़ रूठना अब,

प्रियतम की याद सताती है...

काले पीले बादल आते,

वर्षा की आशा ले आते,

मन हरा भरा हो जाता तब,

प्रियतम फिर से घर को आते,

प्रियतम की यादों को सावन,

फिर घेर घेर ले आता है,

दर्शन की अमित चाह में अब,

जीवन उत्साह बढ़ाता है ...

मन व्याकुल है तन आकुल है,

है कंठ रुद्ध आशा अपूर्ण..

प्रिय आँखों में बस जाओ तो,

जीवन हो… Continue

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 24, 2010 at 3:30pm — 4 Comments

दस्तक....

आज सुबह

जब घड़ी की सुइयाँ

हो तैयार

निकल पड़ीं विपरीत दिशाओं को

तभी

हुई दरवाज़े पर दस्तक

बंद आँखों से ही

नींद ने हिलाया मुझे

और ना चाहते हुए भी

आधी सोई आधी जागी आँखों से

दरवाज़ा खोला मैने

फटे होंठों से मुस्कुराते हुए

खड़ी थी ठिठुरती ठंडI



चाय की प्याली की गरमाहट

महसूस करते हुए

दोनों हथेलियों पर

खिड़की से बाहर झाँका मैने

तो आज सूरज ने भी

नहीं लगाई थी

दफ़्तर में हाज़िरी

बादलों की रज़ाई… Continue

Added by Veerendra Jain on October 24, 2010 at 1:09am — 6 Comments

मेरी भारत माँ....

आभार तुम्हारा कैसे माँ, मै व्यक्त करूँ....?

जीवन के बदले बोलो माँ मै क्या दे दूँ....?



तेरी मिट्टी की खुशबू माँ ...

मेरे तन मन मे छाई है.....

तेरी आशीषें ले कर ही...

पुरवाई फिर से आई है....

सुख यश की इन सौगातों का उपकार मै कैसे व्यक्त करूँ...?

जीवन के बदले बोलो माँ मै क्या दे दूँ...?



तेरी मिट्टी से जो उपजा ,

वह अन्न बड़ा बलदायी है...

तुझको छू कर ही पवन आज

शीतल है...व सुखदाई है...

इन सुंदर सुखद बहारों का मै मोल तुम्हे कैसे…
Continue

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 23, 2010 at 8:30am — 3 Comments

नवगीत: नफरत पाते रहे प्यार कर ----- संजीव 'सलिल'

नवगीत:



नफरत पाते रहे प्यार कर



संजीव 'सलिल'

*

हर मर्यादा तार-तार कर

जीती बाजी हार-हार कर.

सबक न कुछ भी सीखे हमने-

नफरत पाते रहे प्यार कर.....

*

मूल्य सनातन सच कहते

पर कोई न माने.

जान रहे सच लेकिन

बनते हैं अनजाने.

अपने ही अपनापन तज

क्यों हैं बेगाने?

मनमानी करने की जिद

क्यों मन में ठाने?

छुरा पीठ में मार-मार कर

रोता निज खुशियाँ उधार कर......

*

सेनायें लड़वा-मरवा

क्या चाहे… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 22, 2010 at 1:30am — 4 Comments

वो छूटीं प्यार की बातें....



जो बातें प्यार की छूटीं हैं अब तक,

आज करनी हैं …

सुनो जी काम छोड़ो , पास बैठो…

शाम की गाड़ी पकड़नी है ….



वो पैंतीस साल पहले रात,

जो आई सुहानी थी…

वो गुजरी रात मे अभिसार की,

प्यारी कहानी थी ….



वो जो छूटीं रहीं इनकार मे थीं …

प्यार की बातें….

वो जो मूंदीं ढकीं इनकार मे थीं ,

प्यार की बातें….



वो जिनके बीच

मुन्नू और चुन्नू का बहाना था…

वो जो…
Continue

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 21, 2010 at 9:30pm — 6 Comments

मौत...

मौत !

तिमिर की गहराईयों सी
भयानक
जीवन को निगलने को
तत्पर
जीवन पर्यंत
लक्षित यह अंत

मौत !!
शारीरिक शक्ति का ह्रास
पोषक तत्वों का विनाश
या
काया का परिवर्तन
पुरातन से नूतन

मौत !!!
आती है चुपके-चुपके
प्राण को निगलने के लिए
मिट्टी को मिट्टी में
मिलाने के लिए

मौत !!!!
नहीं... नहीं... !
मौत नहीं मोक्ष
कष्टों से मुक्ति का
जीवन का अंतिम लक्ष्य

~शशि

Added by Shashi Ranjan Mishra on October 21, 2010 at 8:28pm — 11 Comments

जिंदगी-मौत के बाद .

मैंने न जाना प्यार क्या है,

रिश्ता ऐ दर्द का अहसाह सा क्यूं है ?

साया-ऐ-दरख्तों पे पहुँच न सकी जो रौशनी,

उस रौशनी का इक अहसास सा क्यों है ?



ता उम्र ना खुल के मिल सकी जो सासें

उस प्राणवायु की कमी पे भी ये सांस क्यूं है ?

सूख चुके है जो धारे नदी से

फिर भी आज ये नयन नम से क्यूं है ?



ता उम्र ढूंढती रही जिस रौशनी को

उस सूरज का अहसास सा क्यों है.

जिंदगी तो जी के भी जी ना पाई ,

फिर भी, मौत के बाद इक -

जिंदगी का इन्तजार सा क्यूं है… Continue

Added by Dr Nutan on October 21, 2010 at 5:30pm — 5 Comments

अर्घ्य

सांझ की पंचायत में..

शफ़क की चादर में लिपटा

और जमुहाई लेता सूरज,

गुस्से से लाल-पीला होता हुआ

दे रहा था उलाहना...



'मुई शब..!

बिन बताये ही भाग जाती है..'

'सहर भी, एकदम दबे पांव

सिरहाने आकर बैठ जाती है..'



'और ये लोग-बाग़, इतनी सुबह-सुबह

चुल्लुओं में आब-ए-खुशामद भर-भर कर

उसके चेहरे पे छोंपे क्यूँ मारते हैं?"



उफक ने डांट लगाई-

'ज्यादा चिल्ला मत..

तेरे डूबने का वक़्त आ गया..'



माँ समझाती थी-

"उगते…

Added by विवेक मिश्र on October 21, 2010 at 1:00pm — 10 Comments

"माँ"



(ये मेरी पहली कोशिश है ग़ज़ल लिखनें की... जहाँ गलती हो कृपया करके बे'झिझक बताएं... शुक्रिया...!!)





सख्त रास्तों पर भी आसान सफ़र लगता है...

ये मुझे माँ की दुआओं का असर लगता है...!!



हो जाती है, बोझिल आँखें जब रोते-रोते...

माँ से फ़िर मुश्किल चुराना ये नज़र लगता है...!!



नहीं आती नींद इन मखमली बिस्तरों पर...

माँ की थपकियों का यादों में जब मंज़र लगता… Continue

Added by Julie on October 20, 2010 at 10:30pm — 12 Comments

कहाँ कहाँ से बचा कर निकालते खुद को

कहाँ कहाँ से बचा कर निकालते खुद को
हरेक मोड़ पै कैसे संभालते खुद को

हमारी आँख से दरया कई रवाँ होते
जो आँसुओं की फ़िज़ाओं मैं ढालते खुद को

किसी पै तंज़ की हिम्मत कभी नहीं होती
ज़रा सी देर कभी जो खंगालते खुद को

बड़े ही ज़ोर से आकर ज़मीन पर गिरते
जो आसमान की जानिब उछालते खुद को

बहुत गुरूर है तुमको चिराग होने पर
कभी मचलती हवाओं मैं पालते खुद को

Added by SYED BASEERUL HASAN WAFA NAQVI on October 20, 2010 at 9:30pm — 2 Comments

"कवि"



((( यूँ तो हूँ साधारण-सी इंसान बस... पर आजकल भावनाओं को शब्द देने आ गया है और लोग मुझे 'कवि' (कवयित्री) के नाम से पुकारने लगे हैं... पर अभी इस उपाधि से हमें नवाज़ा जाए ये हम सही नहीं समझते... अभी ऐसे किसी विषय पर लिखा नहीं... मैं अभी "कवि" नहीं...!! ये रचना बस यही सोचते सोचते बन पड़ी के मैं कवि क्यूँ नहीं और कब होउंगी...!! -जूली )))



मैं "कवि" 'नहीं' हूँ... ...… Continue

Added by Julie on October 20, 2010 at 8:30pm — 5 Comments

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