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ग़ज़ल : ग़ज़ल पर ग़ज़ल क्या कहूँ मैं

बहर : फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन

बहरे मुतकारिब मुसद्दस सालिम…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 31, 2010 at 4:34pm — 4 Comments

आखरी पन्ने -10 (दीपक शर्मा 'कुल्लुवी')

आखरी पन्ने - 10



 

(दीपक शर्मा 'कुल्लुवी')



गतांक - 10 से आगे...



दोस्तों मैं जाते हुए साल 2010 कि बिदाई और आते हुए नव वर्ष 2011 का स्वागत अपनें कुछ भजनों से करना चाहूँगा . खुदा आप सबको ढेर खुशियाँ प्रदान करे वैसे इसी सप्ताह उड़ीसा के मंदिर में घटित शर्मनाक घटना से मन अत्यंत दुखी है जिसमें एक विदेशी महिला को केवल इस बात के लिए मंदिर से…

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Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 31, 2010 at 4:00pm — No Comments

वर्ष 2011 में आपके भाग्य में क्या है ?

अंक 1

यह वर्ष बिना किसी उल्लेखनीय बदलाव के आपके लिए तटस्थ साबित होने वाला है !



अंक 2

यह वर्ष आपके लिए बहुत ही सुचारू रहने वाला है !



अंक 3

यह वर्ष आपके लिए बहुत ही सुचारू रहने वाला है !



अंक 4

यह वर्ष आपके लिए नवपरिवर्तन, प्रशासनिक, रोमांच, नेतृत्व के कार्यों में नये आयामों की दृष्टि से बड़ा आशाजनक रहने वाला है !   



अंक 5

यह वर्ष आपके लिए नेतृत्व की इच्छापूर्ति, प्रशासनिक अनुग्रह एवं दान इत्यादि के लिए बहुत अच्छा रहने…
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Added by rajni chhabra on December 31, 2010 at 2:55pm — No Comments

युवा मन की उलझन

मन मे हो रही एक…

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Added by Mayank Sharma on December 31, 2010 at 1:59pm — No Comments

स्वागत है इस नए वर्ष का

मित्र मुबारक हो तुम सबको नया वर्ष आगामी

स्नेह रहे कायम हम सबका गुम जाये गुमनामी

नए कीर्तिमानों का फिर से बने नया इतिहास

ख़ुशी असीमित हो हमसबकी मुख में हो परिहास

सोंचें भी न कोई नेता अब घपले की बात

दुश्मन भी कर सकें न कोई आतंकी आघात ...

आओ स्वागत करें सभी मिल नया वर्ष सुखकारी

टीम भावना से होते हैं सभी काम हितकारी



नया ईस्वी वर्ष 2011 मंगलमय हो

ब्रिजेश त्रिपाठी

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on December 31, 2010 at 1:00pm — No Comments

पर वो नहीं है

अपनी हालत क्या बताएं तुझे ऐ जिंदगी

सुकून भी है और दर्द भी

पर वो नहीं है..



नज़रों की तो गर्मी है

दिलदारों की भी नरमी है

अपनी आँखों में छुपाये जो

अपने आगोश में डुबाये जो

वो नहीं है..



चाँद सी तन्हाई है

वीरानों सा सन्नाटा

जिगर की गहराई है

पर इनको शबाबों से भर जाये जो

वो नहीं है..



सितारों की भीड़ है

जिंदगी जन्नत बन के आई है

सफ़र में हूँ हवाओं सा

इस सफ़र में साकी साथ निभाये जो

वो नहीं…
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Added by Bhasker Agrawal on December 31, 2010 at 11:25am — No Comments

एक मासूम से अनोखी मुलाकात

रास्ते से गुजर रहा था

  ख्यालों में खोया हुआ

कुछ सपने बुन रहा था…

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Added by Mayank Sharma on December 30, 2010 at 10:31pm — No Comments

आदर्श पुलिस की संकल्पना अब भी अधूरी

छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण को दस साल हो गए हैं और प्रदेश ने विकास के कई आयाम गढ़े हैं, लेकिन पुलिस की चुनौती कहीं से कम नहीं हुई हो, नजर नहीं आती। प्रदेश के हालात को देखें तो पुलिस की जवाबदेही पहले से अधिक और बढ़ गई है। बढ़ते औद्योगीकरण के कारण अपराध में वृद्धि हो रही है, दूसरी ओर साइबर अपराध से निपटने राज्य की पुलिस के पास तकनीक का अभाव है। लिहाजा ऐसा कोई मामला आने के बाद पुलिस उस तरीके से छानबीन नहीं कर पाती, जिस तरीके से वे अन्य अपराधों के सुराग तलाशते हैं। छत्तीसगढ़ पुलिस में निश्चित ही इन बीते… Continue

Added by rajkumar sahu on December 30, 2010 at 4:53pm — No Comments

बस उड़ो..





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Added by Lata R.Ojha on December 30, 2010 at 4:00pm — No Comments

हम चलते गए

ख्वाबों में हमने देखी एक दुनिया थी
हमराही थे वहां पे सारी खुशियाँ थीं
उम्मीद भरी इस आँखों से उनके लिए मचलते गए
हम चलते गए

अनजाने उस हमसफ़र की तलाश थी
होगा जहाँ से प्यारा दिल में आस थी
ढूँढने को उसे छोड़ा सब राहों में
गिर गिर के भी सम्हलते गए
हम चलते गए

सफ़र में इन राहों से पहचान हो गयी
अनजान जिंदगी आखरी अरमान हो गयी
तसवीरें टूट गयीं जो अपने सपनो की
हकीकत में ही ढलते गए
हम चलते गए

Added by Bhasker Agrawal on December 30, 2010 at 12:42pm — 6 Comments

भ्रष्टाचार

आजकल इस शब्द का क्रेज कुछ इस कदर बढ़ गया है की गावं के चौक चौराहे से लेकर दिल्ली के संसद भवन तक यह शोर शराबे के साथ गूंज रहा है !कोई इस शब्द से अपनी राजनीती के तलवार को धार दे रहा है तो कोई अपनी छवि बचने में जुटा हुआ है !अर्थात अगर साफ़ शब्दों में कहा जाये तो यह भ्रष्टाचार शब्द काफी लोकप्रियता हासिल कर चुकी है साल २०१० में .मैंने अपनी कलम उठाई और सोचा कुछ लिखू इस भ्रष्टाचार पर लेकिन मेरी चल नहीं रही थी.क्योकि मुझे खुद पता नहीं है की यह भ्रष्टाचार है क्या?कुछ सवाल में मस्तिस्क में गूंज रहे थे… Continue

Added by Ratnesh Raman Pathak on December 30, 2010 at 12:38pm — No Comments

नव वर्ष पर नवगीत: महाकाल के महाग्रंथ का --संजीव 'सलिल'

नव वर्ष पर नवगीत: महाकाल के महाग्रंथ का --संजीव 'सलिल'

नव वर्ष पर नवगीत





संजीव 'सलिल'



*

महाकाल के महाग्रंथ का



नया पृष्ठ फिर आज खुल रहा....



*

वह काटोगे,



जो बोया है.



वह पाओगे,



जो खोया है.



सत्य-असत, शुभ-अशुभ तुला पर



कर्म-मर्म सब आज तुल… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on December 30, 2010 at 10:10am — 3 Comments

बिदाई गीत: अलविदा दो हजार दस... संजीव 'सलिल'

बिदाई गीत:

अलविदा दो हजार दस...

संजीव 'सलिल'

*

अलविदा दो हजार दस

स्थितियों पर

कभी चला बस

कभी हुए बेबस.

अलविदा दो हजार दस...

*

तंत्र ने लोक को कुचल

लोभ को आराधा.

गण पर गन का

आतंक रहा अबाधा.

सियासत ने सिर्फ

स्वार्थ को साधा.

होकर भी आउट, न हुआ

भ्रष्टाचार पगबाधा.

बहुत कस लिया

अब और न कस.

अलविदा दो हजार दस...

*

लगता ही नहीं, यही है

वीर…

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Added by sanjiv verma 'salil' on December 30, 2010 at 9:44am — 2 Comments

काश !!!

 

कैसी हो तुम?

वैसी ही शांत, संयमित और अपने को सहेजते हुए  I

 

भाग्यशाली है वह,

जो तुम्हारे साथ है

और सुन सकता है

तुम्हारे मौन द्वारा पुकारे उसके नाम को I 

 

भाग्यशाली है वो हवा,

जो अभी बहुत हल्के से

किरणों के बावजूद तुम्हे छूकर गई है I

 

भाग्यशाली है वो जल,

जो छोड़े जाने से पूर्व

तुम्हारी अंजलि में कुछ देर रुककर

तुम्हारे हाथों का स्पर्श पाता है I

 

भाग्यशाली हैं वो कभी कभी कहे गये…

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Added by Veerendra Jain on December 29, 2010 at 5:30pm — 10 Comments

दस का दम

रोना -हंसना,कभी चिल्लाना,कभी ख़ुशी -कभी गम.
सारी दुनिया दंग रह गई, देख के दस का दम.
उठा खलीफा बुर्ज़ जहाँ में, शाने ईमारत बनकर. 
तो गिरा ईमारत दिल्ली में, एक कयामत बनकर.
भारत के रुपया को दस में, नया रूप-परिधान मिला.
अखिल विश्व की पांचवी मुद्रा, का उसको सम्मान मिला.
कभी किया दिल बाग-बाग,तो कभी किया बेदम.
सारी दुनिया दंग रह गई,देख के दस का दम.
चिकन- गोश्त में प्याज डालते, ये है कल की बात.
आज…
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Added by satish mapatpuri on December 29, 2010 at 3:00pm — 3 Comments

मित्र रुको मै आया

बीत गयीं हो सदियाँ जैसे

ओपन बुक से बिछुड़े ...

मित्र हमारे याद कर रहे

लेकिन उखड़े  उखड़े...

यहाँ एक अनजान शहर में

मै  हूँ  एक बेगाना

साथ मे मेरी रूग्ण संगिनी

मार रही है ताना

कैसे भूल न पाओगे अब

ओ.बी.ओ. की बातें ..?

बैठोगे अब ज़रा पास में

देख… Continue

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on December 29, 2010 at 1:30pm — 4 Comments

जब छोटी सी है दुनिया तुम्हारी

जब छोटी सी है दुनिया तुम्हारी

तो अनंत संसार में तुम्हारा क्या



जब मेंडक हो तुम कूंए के

तो दरिया क्या और किनारा क्या



जब भूल चुके हो अपनों को

तो संसार में तुमको प्यारा क्या



जब कूंद चुके हो दंगल में

तो दुश्मन क्या और यारा क्या



जब बाँट रहे खुले हाथों से

तो थोड़ा क्या और सारा क्या



जब धुल लिखी है किस्मत में

तो ज़मीन से ज्यादा न्यारा क्या



जब दुनिया का है इश्वर वो

तो मेरा क्या और तुम्हारा… Continue

Added by Bhasker Agrawal on December 29, 2010 at 12:44pm — 4 Comments

Ek aur Gazal aap ke liye

ग़ज़ल 

अज़ीज़ बेलगामी 

मेरा असासा सुलगता हुवा मकाँ है अभी 

अगरचे आग बुझी है  धुवाँ धुवाँ  है  अभी

यकीं की शम्मा जलाता रहा हूँ सदियौं…

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Added by Azeez Belgaumi on December 29, 2010 at 10:53am — 3 Comments

चलते गए ..



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Added by Lata R.Ojha on December 29, 2010 at 2:30am — 5 Comments

कैसे ???????

मेरी…

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Added by Lata R.Ojha on December 29, 2010 at 2:00am — 3 Comments

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