For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,927)

ताउम्र...

कुछ आहटें गूंजती रह जाती हैं ..



हम कयास ही लगाते रह जाते हैं..…
Continue

Added by Lata R.Ojha on January 9, 2011 at 10:30pm — No Comments

उनसे हम ये भी सीखें

अधिकतर यह बातें सामने आती रहती हैं कि भारत में पाश्चात्य संस्कृति हावी होती जा रही है और हम पश्चिमी देशों की संस्कृति को आधुनिकता के नाम पर अपना रहे हैं। साथ ही यह भी कहा जात है कि युुवा पीढ़ी में विदेशी संस्कृति का इस कदर बुखार चढ़ रहा है और वे धीरे-धीरे भारत की पुरातन संस्कृति को भूलती जा रही है। स्थिति यह बन रही है कि हमारी युवा पीढ़ी में भटकाव के हालात निर्मित हो रहे हैं। यह बातें भी अक्सर कही जाती हैं कि स्वस्थ तथा सशक्त समाज के निर्माण में युवा पीढ़ी का अहम योगदान होता है। ऐसे में जब हमारी नई… Continue

Added by rajkumar sahu on January 9, 2011 at 7:31pm — No Comments

आप चले ए याद कब जाएगी?

 

आप चले ए याद कब जाएगी?

हमने तो…

Continue

Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on January 8, 2011 at 7:20pm — No Comments

कविता --- ताकत कलम की



Continue

Added by Ajay Singh on January 8, 2011 at 4:29pm — No Comments

अधूरा सच

कभी कभी आधी बात सुनाने के बाद वही स्थिति हो जाती हैं , जो गुरु द्रोणाचार्य की हुई थी , उन्होंने सुना अश्वस्थामा मारा गया बाकि शब्द शंख  के आवाज में दब गए ,  और वह समझे उनका बेटा मारा गया और इसी अघात में वह भी मारे गए , आजकल ऐसा ही हो रहा हैं लोग बाग पूरे शब्द को सुन नही रहे और आधे पे अर्थ को अनर्थ बना दे रहे हैं ! 

 

एक माँ बाप की एक ही लड़की थी , उसकी माँ औलाद (लड़का) नहीं होने के कारण रो रही थी और बेटी उसे सांत्वना दे रही थी , माँ मैं दुनिया की उस सोच को ख़त्म कर दूंगी की…

Continue

Added by Rash Bihari Ravi on January 8, 2011 at 3:00pm — No Comments

कविता ------तेरे साथ हैं हम



Continue

Added by Ajay Singh on January 8, 2011 at 9:46am — No Comments

कश्तियाँ

बहती हैं कश्तियाँ लहरों में
या उन्हें चीर के चली जाती हैं
या किनारे पे खड़ी खड़ी
अकेली मुस्कराती हैं

काश कोई बता देता मुझको
कि ये लहरें कहाँ पे जाती हैं
बहाती हुई ये अपने संग सबकुछ
किनारे पर ही क्यों ले आती हैं

लड़ता हूँ जब थक कर में
लहरों कि इन लपटों से
तब ये क्यों तट पर आते ही
खुद ही ठंडी हो जाती हैं

किनारे पे है अंत इनका
किनारे से प्रारंभ है
काश कोई बता देता मझको
के ये बहती हैं या बहाती हैं

Added by Bhasker Agrawal on January 7, 2011 at 8:52pm — 2 Comments

ओ बावरी हँसी मुझे छोड़ो नहीं

ओ बावरी हँसी मुझे छोड़ो नहीं

रह जाओ मेरे संग

मेरी संगनी बनकर

मुझे छोड़ो नहीं



तुम बिन में क्या

एक बेमतलब का खिलौना

आओ खेलो मेरे संग

मुझे छोड़ो नहीं

ओ बावरी हँसी मुझे छोड़ो नहीं



मेरी साँसों के संग तुम चलो

दिल में मेरे तुम धडको

शांति बनकर विराजो मस्तक कमल पर

मुझे छोड़ो नहीं

ओ बावरी हँसी मुझे छोड़ो नहीं



आओ उड़ चलें गगन के पार

वहां घर बसाएंगे

मिलकर कुछ गुल खिलायेंगे

एक बगिया अपनी भी… Continue

Added by Bhasker Agrawal on January 6, 2011 at 6:12pm — 2 Comments

सीटें बढ़ाने से क्या होगा ?

देश में वैसे ही शिक्षा व्यवस्था के हालात ठीक नहीं है। ऐसी स्थिति में यदि तकनीकी शिक्षा की भी वैसी हालत हो तो फिर समझा जा सकता है कि मानव संसाधन मंत्रालय ने अब तक किस नीति पर काम किया है। तकनीकी षिक्षा के मामले में जो आंकड़े सामने आए हैं और जिस तरह के सवाल खड़े हुए हैं, उससे मंत्रालय की नीतियों पर भी प्रश्नचिन्ह लग गया है। हाल ही में मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने देश में इंजीनियरिंग शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए करीब 2 लाख सीटें बढ़ाने की बात कही है। उनके मुताबिक इससे देश के युवाओं को तकनीकी… Continue

Added by rajkumar sahu on January 6, 2011 at 5:19pm — No Comments

अंधेर नगरी ....

 

 

 
कॉलेज  में एक हमारे प्रोफ़ेसर थे.भारी विद्वान् .अपनी विद्वता के बल पर कई सारे गोल्ड मेडल जुटाए थे उन्होंने. उनके नाम के साथ सदा फलां फलां विषय में " एम् ए, पी एच डी, गोल्ड मेडलिस्ट " लिखा रहता था. हमने कभी पढ़ा तो नहीं पर सुन रखा था कि उन्होंने कई सारी किताबें लिख डाली हैं.. पर जब वे विद्वान् प्रोफ़ेसर साहब हमे पढ़ाने आते तो क्लास में बैठे उनकी ओर दीदे फाड़े हमें अपनी आँखों से नींद भागने के लिए ठीक उतनी ही मसक्कत करनी पड़ती थी जितनी अमेरिका को बिन लादेन को…
Continue

Added by रंजना सिंह on January 6, 2011 at 1:08pm — No Comments

कुण्डलियाँ

चुन-चुनकर भॆजा जिन्हॆं,निकलॆ नमक हराम !

सिसक रही हर झॊपड़ी, मंत्री सब बदनाम !!

मंत्री सब बदनाम, शहद घॊटालॊं की चाटी !

है गंदा इनका खून, नियत गंदी परिपाटी !!

भारत भाग्य विधाता ,भारत की अब सुन !

हॊ परसुराम अवतार, इन्हॆं मारॆ चुन चुन !!

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 6, 2011 at 1:31am — No Comments

कुण्डलियाँ

बापू जब सॆ आपकी,पड़ी नॊट पर छाप !

पड़ॆ-पड़ॆ अब जॆब मॆं,करतॆ रहॊ विलाप !!

करतॆ रहॊ विलाप, तुम बंद तिजॊरी मॆं,

शामिल हॊ गयॆ आप,यहाँ रिश्वतखॊरी मॆं,

सत्य-अहिंसा साधक,हॆ राम नाम कॆ जापू

दॆश हुआ आज़ाद ,क्यूँ बिलख रहॆ हॊ बापू !!

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 6, 2011 at 1:29am — No Comments

कुण्डलियाँ

नॆता खायॆं खीर अरु ,जनता चाटॆ पात !

लॊकतंत्र की छाँव मॆं,अजब निराली बात !!

अजब निराली बात, न अर्थ दिमाग मॆं चढ़तॆ,

है घायल संविधान, अनुच्छॆद संसद मॆं सड़तॆ,

सहनशीलता धन्य लात, गाली, जूतॆ सह लॆता !

निर्लज्ज नमक-हराम भ्रष्ट हैं आज कॆ नॆता !!

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 6, 2011 at 1:27am — No Comments

कुण्डलियाँ

डाला डांका दॆश मॆं ,खुली लूट पर लूट !

पकड़ॆ गयॆ सुयॊग सॆ,आयॆं फ़ौरन छूट !!

आयॆ फ़ौरन छूट,पहुँच इनकी ऊपर की,

बात-बात मॆं खात कसम झूठी रघुबर की,

एक सॆ बढ़कर एक यहाँ नित नया घॊटाला !

अजब लुटॆरॆ मॆरॆ दॆश कॆ,घर मॆं डांका डाला !!

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 6, 2011 at 1:24am — No Comments

कुण्डलियाँ

राम करे गिर जाय सब, नेताऒं पर गाज !
सिसक रही आवाम अब,रुला रही है प्याज !!
रुला रही है प्याज, गगन चूमे यॆ मँहगाई,
सब्जी शक्कर दाल,और कैसॆ मिलॆ दवाई,
जिन्हे चुना संसद दिया, निकले नमक हराम!
तुम्ही बचाऒ देश अब, हॆ सीतापति राम!!

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 6, 2011 at 1:20am — No Comments

poor mango people

कई दिनों पहले अखबार में एक खबर आई - पोलीथिन पैक का उपयोग करने वालो के खिलाफ कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान ,

आम लोगो कि तरह मैंने भी पढ़ी ,आम लोग जो रोज सिर्फ इसलिए अखबार पढ़ते है कि उन्हें नियमो का भान हो सके मगर मानना न मानना हम mango people के हाथ में रहता है , खैर बात कुछ दिनों पहले कि है , बेटे को स्कूल से लाते समय रास्ते में सब्जी कि दुकान दिखाई दी , याद आया सब्जी नहीं है लेती चलू , 4-5 तरह कि सब्जियों तुलवाने के बाद लेजाने कि समस्या थी , सब्जी वाले से मेरी परेशानी देखी नहीं गयी ,तुरंत… Continue

Added by praveena joshi on January 5, 2011 at 9:01pm — 2 Comments

छिपी हुई दूरियां



अनजान चेहरों में ढूँढता वो चेहरा…

Continue

Added by Devesh Mishra on January 5, 2011 at 8:08pm — No Comments

संकेत

उत्त्पत्ति से निष्पत्ति तक
जीवन के मूल्यों से बंधी
आशाएं ,
भावनाएं ,
वेदनाएं ,
संवेदनाएं .
जीवन के उन्ही आयामों के चरम बिंदु हैं
जो जीवन के होने का संकेत देती है

Added by Devesh Mishra on January 5, 2011 at 8:07pm — No Comments

सॉरी सर (कहानी ) अंक -१

सॉरी सर (कहानी )
लेखक - सतीश मापतपुरी
अंक - १
मनोविज्ञान का ज्ञाता होना अलग बात है,अपनी मनोदशा पर नियंत्रण पा लेना  बिल्कुल  अलग बात.शायद मन का भाव चेहरा पर लिख जाता है अन्यथा प्रो.सिन्हा से   प्रो.वर्मा. यह नहीं पूछ बैठते------"कुछ परेशान दिख रहे हैं
सिन्हा साहेब, क्या बात है?"
"नहीं तो,परेशानी जैसी कोई बात नहीं है." और एक मरियल सी मुस्कान प्रो.सिन्हा के सूखे होठों पर अलसाई
सी पसर गई.संभवत: आदमी ही सृष्टि…
Continue

Added by satish mapatpuri on January 5, 2011 at 5:00pm — 2 Comments

ग़ज़ल :- चार पैसा उसे हुआ क्या है

 

ग़ज़ल :- चार पैसा उसे हुआ क्या है

 

चार पैसा उसे हुआ क्या है

पूछता फिर रहा खुदा क्या है |

 

हर जगह तो यही करप्शन है

रोग बढ़ता गया दवा क्या है |

 

तुम ही रक्खो ये नारे वादे सब

पांच वर्षों का झुनझुना क्या है |

 

तेरे जाने पर अब ये…

Continue

Added by Abhinav Arun on January 5, 2011 at 4:16pm — 12 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
12 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
20 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
21 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service