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महिला दिवस पर विशेष

सृष्टि की अनमोल कृति
कभी दुलारती मां बन जाती
कभी बहन बन स्नेह जताती
बेटी बन जब पिया घर जाती
आँसू की धारा बह जाती
कभी पत्नी बन प्यार लुटाती
बहु बन घर को स्वर्ग बनाती
नारी तेरे बहुविध रूपों से
यह संसार चमन है
महिला दिवस पर हर नारी को बारम्बार नमन है
दुष्यंत...

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Comment

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Comment by दुष्यंत सेवक on September 13, 2011 at 6:32pm

apki nazr e inayat hui is rachna par...apka aabhari hu Arun ji...hardik dhanyavaad peeth thapthapane ke liye...

Comment by Abhinav Arun on September 6, 2011 at 3:19pm

rachna ki sarthakta uske kaal jayi hone men hai aur abhivyakti ke dharatal par aapki ye rachna safal hai haardik badhai !!

Comment by दुष्यंत सेवक on March 9, 2011 at 12:17pm
shukriya vandana ji.......
Comment by दुष्यंत सेवक on March 9, 2011 at 12:00pm
are bagi ji...bahut dino baad lekhan se najdiki banai aur isi liye OBO se bhi duuri thi halanki bas bhautik doori thi....atmik roop se to ap sabhi se behad kareeb hu....itne dino baad aap sab sudhi jano ke beech aakar behad khush hu...dhanyavad baagi ji.....ye bhi badi khushi hui ki OBO parivaar ab behad bada ho gaya hai ......aasha hai ki hamara yah parivaar aur badhe

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 8, 2011 at 8:16pm

बेटी बन जब पिया घर जाती
आँसू की धारा बह जाती.......

 

यही सामाजिक जाल है भाई, इस परंपरा के ताने में सभी बंधे हुए है , दुष्यंत भाई बहुत दिनों के बाद OBO पर आपका आगमन और वह भी महिला दिवस पर एक हृदयस्पर्शी रचना के साथ सुखकर अनुभूति है |

एक सुंदर काव्य कृति पर बधाई स्वीकार करे और OBO आप का अपना परिवार है इतना दुरी बनाना ठीक नहीं :-)

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