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भूले से भी नहीं !!!


तुम मुझसे ज़िन्दगी के गीत सुनना चाहते हो
चाहते हो मैं सबकुछ भूलकर सहज हो जाऊँ
हंसाऊं ... एक गुनगुनाती शाम ले आऊं ...
तुम्हें पता है
ज़िन्दगी मेरे पास है
गुनगुनाती लहरें हैं
हँसी की जादुई छड़ी है
सफ़ेद उड़नेवाले बादल हैं
इन्द्रधनुषी खिली धूप है
तुम्हें पता है-
मैं गीतों की पिटारी हूँ ....
पर तुम हमेशा मुझसे क्यूँ गीत सुनना चाहते हो
गीत तो ईश्वर ने तुम्हें भी दिए थे
वही लहरें
वही छड़ी
वही बादल
वही खिली धूप
........
अनजानी मुद्रा मत अपनाओ
गीतों से पहले एक सच मुझसे जानो -
तुमने अपनी चीजों पर ताला लगा दिया
उसे अकेले में खोलने और जीने के लिए
....
तुम अपनी चालाकी में जान ही नहीं सके
कि सारे गीत पुराने हो गए
लहरों ने अपना अस्तित्व खो दिया
छड़ी में जंग लग गई
बादल स्याह हो गए
धूप में कोई चमक नहीं रही
....
अपने स्व की मद में तुमने सिर्फ चाल चले
इस बात पर गौर ही नहीं किया
कि ईश्वर ने तो टूटी झोपड़ी में भी
सरगम का जादू दिया है
पसीने की बूंदें पोछ
ढोलक की थाप पर
जो ख़ुशी झोपड़ी में थिरकती है
वह बड़ी सात्विक होती है
लहरें वहाँ खुद आती हैं
बादल नृत्य करते हैं
धूप सीधे कमरे में आती है
हर चेहरे में जादुई छड़ी होती है......
खैर ...
सबकुछ उलटकर
हर बार
तुम चाहते हो -
भूलकर सारी उल्टी चाल
मैं गाऊँ
लहरों से कहूँ तुम्हें भी छू लें
बादल तुम्हारे संग भी खेलें
..... सच तो है कि तुम ये चाहते हो
कि मैं अपनी जादुई छड़ी तुम्हें दे दूँ
....
बहुत छला तुमने
या फिर यूँ कहो
स्वभाववश मैं छली गई
पर अब -
ये मुमकिन नहीं
भूले से भी नहीं !!!

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Comment

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Comment by anand pandey tanha on April 4, 2011 at 10:16am
बहुत दिनों बाद एक नैसर्गिक गीत पढ़ा , अत्यंत ही सुंदर गीत के लिए बधाई . तनहा आनंद 
Comment by DR. DINESH BALLABH on March 23, 2011 at 6:48pm
bahut khoob....
Comment by prabhat kumar roy on March 22, 2011 at 6:02am
कि ईश्वर ने तो टूटी झोपड़ी में भी
सरगम का जादू दिया है
पसीने की बूंदें पोछ
ढोलक की थाप पर
जो ख़ुशी झोपड़ी में थिरकती है
वह बड़ी सात्विक होती है
लहरें वहाँ खुद आती हैं
बादल नृत्य करते हैं
धूप सीधे कमरे में आती है
हर चेहरे में जादुई छड़ी होती है......
Beautiful line were written by RASHMI PRABHA. Vary good poem.
Comment by Ajay Singh on March 17, 2011 at 1:14pm
VERYYYYY GoooooooD,,,,,
Comment by rashmi prabha on March 8, 2011 at 11:47am
ji shukriyaa
Comment by neeraj tripathi on March 8, 2011 at 11:43am
Padh kar acchha laga...women's day ke liye upyukt kavita...ek sankalp hai naariyon ke liye..swayam ko pehchanne ka...apne astitva ko garv se jeevit rakhne ka....i liked it.
Comment by seema singhal on March 7, 2011 at 4:03pm
सर्वश्रेष्ठ ब्लॉग चुने जाने पर बहुत-बहुत बधाई .........।
Comment by rashmi prabha on March 6, 2011 at 10:50pm
shukriyaa
Comment by Devi Nangrani on March 6, 2011 at 9:19pm

Bahut hi sakaratmak soch shabdon mein abhivyakt ki hai Rashimji

 

Comment by rashmi prabha on March 5, 2011 at 10:45pm
shukriyaa

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