For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल : झूठ से इसको नफरत सी है

गज़ल : झूठ से इसको नफरत सी है

झूठ से इसको नफरत सी है सच्चाई को प्यार कहे ,

मेरा दिल तो जब भी बोले दो और दो को चार कहे |

 

मर खप कर  एक बाप जुटाता बेटी का दहेज ,

लेने वाले की बेशर्मी वो इसको उपहार कहे |

 

भ्रष्टाचार घोटालों के पहियों पर रेंग रही ,

लानत है उस शख्स पे जो इसको सरकार कहे |

 

जैसी करनी वैसी भरनी अब नहीं दीखता है ,

हम कैसे इस बात को माने कहने को संसार कहे |

 

मूंगे मोती मेवे से चाहे  भर दो जितना ,

 सागर से आयी हर मछली जार को जार  कहे |

 

हमें आईना दिखलाते हैं गिनती के अशआर ,

यूं तो बीते एक दशक में हमने शेर हज़ार कहे |

 

 मोबाईल इंटरनेट के युग में सब बदल गया ,

नहीं रहा वो दौर डाकिया आया तार कहे |


{ये गज़ल आज - कल ( २४-२५ फरवरी २०११ को ) तरही -०८ के लिये लिखी थी , पर लगा गज़ल के व्याकरण के हिसाब से वहाँ के लिये उपयुक्त नहीं अतः यहाँ दे रहा हूँ }

 

 

Views: 358

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on February 27, 2011 at 9:28pm
shukriya vivek jee !! वैसे मैंने कभी गज़ल के व्याकरण को गंभीरता से नही लिया सिर्फ लिखना अपना धर्म समझता हूँ | लेकिन यहाँ इस बात की बहुत चर्चा देखी तो मेरी भी इच्छा हुई कि जानने की कोशिश करूँ | कई बड़े रचनाकारों ने मुझे रुक्न ,बहर ,गिनती , मात्र से बचने की भी सलाह दि | फिर भी देखिये ........
Comment by विवेक मिश्र on February 27, 2011 at 9:10pm

अरुण जी,

मुझे भी ग़ज़ल में बहर आदि का ज्ञान नहीं. आपके साथ मैंने भी आदरणीय तिलक राज जी की पाठशाला में एडमिशन ले लिया है. बाकी, मेरे हिसाब से तो किसी भी काव्य रचना के लिए (चाहे ग़ज़ल हो या कोई कविता), 'मज़बूत ख़याल' पहली प्राथमिकता होनी चाहिए और आपकी रचनाओं में यह हमेशा मिलता है. यूँ ही लिखते रहें हमेशा.

Comment by Abhinav Arun on February 27, 2011 at 8:11pm

एक शेर और जो इसे सात शेरो वाली ग़ज़ल बना देगा -

हमें आईना दिखलाते हैं गिनती के अशआर ,

यूं तो बीते एक दशक में हमने शेर हज़ार कहे |

 

Comment by Abhinav Arun on February 26, 2011 at 1:12pm

आदरणीय वंदना  जी मेरा उत्साह बढाने का शुक्रिया !! श्री बागी जी मुझे भी कुछ शेर इसके पसंद आये मगर खुद को ही लगा कहीं कोई कमी सी है सो वहाँ देना उचित नहीं लगा !!! आप सब का स्नेह बना रहे , कलम चलती रहे यही काफी है |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 26, 2011 at 10:34am
अरुण भाई बढ़िया ग़ज़ल बन पड़ी है आपको मुशायरा में पढनी चाहिये थी , बहर में नहीं है तो क्या, धीरे धीरे हम सभी सिख ही तो रहे है |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service