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दस्तक

आदरणीय सम्पादक जी,

सादर नमस्कार.

OBO हेतु मेरी स्वरचित,अप्रकाशित,अप्रसारित एक ताज़ा रचना आपकी सेवा में प्रेषित कर रहा हूँ.कृपया निर्णय से अवगत करावें.

भवदीय--

-- अशोक पुनमिया.

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आहट है किसी की,

कोई दस्तक दे रहा है…

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Added by अशोक पुनमिया on June 16, 2011 at 5:29pm — 6 Comments

जब इच्छा हो मदिरा पी लूँ, प्रतिपग मधुशालायें है.

जब इच्छा हो मदिरा पी लूँ, प्रतिपग मधुशालायें है,

किन्तु सुलभ सुरा का पान, मन का मद भी जाये है.

 

नैनो में प्राण बसे तू ही है मनमीत मेरा,

बनके बजती तू सरगम तू ही है संगीत मेरा,

तुझको दिवास्वप्न में देखूँ , देखूँ भोर के तारों में,

तेरी काया होती निर्मित, हिम पर्वत जलधारो में,

तू ही अतिथि अंर्तमन की दूजा कोई न भाये है

कथित चहुँ लोक में कोटि आकर्षक बालायें हैं

जब इच्छा हो मदिरा पी लूँ, प्रतिपग मधुशालायें हैं

किन्तु सुलभ सुरा…

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Added by इमरान खान on June 16, 2011 at 1:33pm — No Comments

तेरी आँखों से लड़ गयीं आँखें !

तेरी आँखों से लड़ गयीं आँखें !

कितनी उलझन में पड़ गयीं आँखें !!



आँख से जब बिछड़ गयीं आँखें !

आंसुओ में जकड़ गयीं आँखें !!



तू जो आया बहार लौट आयी !

तू गया तो उजड़ गयीं आँखें !!



तेरे आने की इन्तेज़ारी में !

घर की चौखट पे जड़ गयीं आँखें !!



आज फिर ज़िक्र छिड गया उसका !

आज फिर से उमड़ गयीं आँखें !!



रौशनी… Continue

Added by Hilal Badayuni on June 15, 2011 at 10:30pm — 1 Comment

उसके लिए मैंने कई कलाम लिख दिए....

वसीयत मे इमरोज़-ओ-अय्याम लिख दिए,

उसके लिए मैंने कई कलाम लिख दिए.

 

न रंज ही होता न दर्द ओ अलम था,

वो आ गया होता तो बेज़ार कलम था,

एहसान, ये उसी के तमाम लिख दिए.

उसके लिए मैंने कई कलाम लिख दिए.

 

मेरी ख्वाहिशें मुलजिम मेरी रूह गिरफ्तार,

मशकूक कर दिया हालात ने किरदार,

झूटी दफा के दावे मिरे नाम लिख दिए,

उसके लिए मैंने कई कलाम लिख दिए.

 

लिखूं अगर ग़ज़ल तो वो जान-ए-ग़ज़ल है,

अलफ़ाज़-ओ-एहसास मे उसका ही दखल…

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Added by इमरान खान on June 15, 2011 at 6:44pm — 2 Comments

व्यंग्य - बाबागिरी का कमाल

बाबागिरी का कमाल अभी चहुंओर छाया हुआ है। अब लोगों को समझ में आ गया है, गांधीगिरी में भलाई नहीं है, बल्कि बाबागिरी से ही तिजोरी भरी जा सकती है। गांधीगिरी से केवल आत्मा को संतुष्ट किया जा सकता है, मगर बाबागिरी में करोड़ों कमाए बगैर, मन की धनभूख शांत नहीं होती। जब से इस बात का खुलासा हुआ है कि देश का एक बड़ा बाबा महज कुछ बरसों में करोड़पति बन गया तथा अभी अरबों की संपत्ति का और राज खुलना बाकी है, उसके बाद तो हम जैसे लोग बाबागिरी की तिमारदारी में लगे हुए हैं। बरसों कलम खिसते रहो, लेकिन इतना तय है कि इन… Continue

Added by rajkumar sahu on June 15, 2011 at 4:37pm — No Comments

द्रोण दक्ष

जीर्ण है शीर्ण है

मंद है मलिग्न है

सोच से ओत प्रोत

सुस्त है

त्रस्त है

दुर्भिन है

दुर्भिक्ष है

अकाल जब

समक्ष है

कम्पशील

अशील

देह आज

प्राणहीन

रूपविहीन

रिक्त रिक्त कक्ष है

भयतीत

अन्तशील

शिला सम

भारी तन

पंख प्राण

पवन मन

घोर घोर घुर्र घुर्र

अंधकार

तेज़ रार

दीघर कृष्ण पक्ष है

अति दूर

स्वप्न पथ

डगर डगर

अग्नि पथ

समेट… Continue

Added by Raj on June 15, 2011 at 2:00pm — No Comments

नवगीत/दोहा गीत: पलाश... संजीव वर्मा 'सलिल'

नवगीत/दोहा गीत:

पलाश...

संजीव वर्मा 'सलिल'

*

बाधा-संकट हँसकर झेलो

मत हो कभी हताश.

वीराने में खिल मुस्काकर

कहता यही पलाश...

*

समझौते करिए नहीं,

तजें नहीं सिद्धांत.

सब उसके सेवक सखे!

जो है सबका कांत..

परिवर्तन ही ज़िंदगी,

मत हो जड़-उद्भ्रांत.

आपद संकट में रहो-

सदा संतुलित-शांत..

 

शिवा चेतना रहित बने शिव

केवल जड़-शव लाश.

वीराने में खिल मुस्काकर

कहता…

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Added by sanjiv verma 'salil' on June 15, 2011 at 1:23pm — 2 Comments

टेसू तुम क्यों लाल हुए......संजीव वर्मा 'सलिल'

नवगीत:-

टेसू तुम क्यों लाल हुए?

संजीव वर्मा 'सलिल'

*

टेसू तुम क्यों लाल हुए?

फर्क न कोई तुमको पड़ता

चाहे कोई तुम्हें छुए.....

*

आह कुटी की तुम्हें लगी क्या?

उजड़े दीन-गरीब.

मीरां को विष, ईसा को

इंसान चढ़ाये सलीब.

आदम का आदम ही है क्यों

रहा बिगाड़ नसीब?

नहीं किसी को रोटी

कोई खाए मालपुए...

*

खून बहाया सुर-असुरों ने.

ओबामा-ओसामा ने.

रिश्ते-नातों चचा-भतीजों…

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Added by sanjiv verma 'salil' on June 15, 2011 at 1:00pm — 4 Comments

पिता जी से सुनी एक कहानी.

पिता जी से सुनी एक कहानी.

 

प्राचीन काल में एक ब्रह्मण देवता थे जो अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करते थे.एक दिन वे गंगा स्नान के लिए जा रहे थे , रास्ते में एक गिद्धिनी मिली जो गर्भिणी थी .उसने ब्राह्मण से कहा कृपया मेरा एक उपकार कर दीजिये. गंगा किनारे गिद्धराज एकांत में बैठे होंगें जो मेरे पति हैं, उनसे कह दीजियेगा की आपकी पत्नी आदमी का मांस खाना चाहती है. ब्राह्मण ने देखा गंगा किनारे बहुत सरे गिद्ध बैठे हुए हैं उसमें एक…

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Added by R N Tiwari on June 15, 2011 at 9:18am — No Comments

यहां होता है तालाब का विवाह !

- 80 बरस बाद दोहराई गई परंपरा

- केरा गांव के लोगों का अनूठा कार्य

- तालाबों के अस्तित्व को बचाने की मुहिम

- जल संरक्षण की दिशा में ग्रामीणों का अहम योगदान

- ‘जल ही जीवन है’, ‘जल है तो कल है’ का संदेश

              

भारतीय संस्कृति में संस्कार का अपना एक अलग ही स्थान है। सोलह संस्कारों में से एक होता है, विवाह संस्कार। देश-दुनिया में चाहे कोई भी वर्ग या समाज हो, हर किसी के अपने विवाह के तरीके होते हैं। मानव जीवन में वंश वृद्धि के लिए भी विवाह का महत्व सदियों से कायम…

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Added by rajkumar sahu on June 15, 2011 at 1:52am — 1 Comment

बरगद का इक बूढ़ा पेड़

 

खिड़की खुलते ही नज़र आता था सोसायटी के पीछे खड़ा 

बरगद का इक बूढ़ा पेड़  

हर मौसम में एक नयी पोशाक पहने |

 

शाखें हिलाकर हाथ की तरह  

जाने किस किसको बुला लिया करता था,

अनजान से चेहरे आते

और कुरेदकर लिख जाते

अपनी ख्वाहिशें और ग़म उसके तनों पर

चाँद जब परेड करता रात…

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Added by Veerendra Jain on June 14, 2011 at 11:50pm — 7 Comments

पीने की और जिद न करो तुम नशे में हो !

पीने की और जिद न करो तुम नशे में हो !

अब मैकदे से घर भी चलो तुम नशे में हो ! !



ये क्या की सिर्फ मुझसे कहो तुम नशे में हो !

तुम भी मुझे पिलाके कहो तुम नशे में हो !!



पीते हो दस्ते ग़ैर से क्यों बज्मे ग़ैर में !

छोड़ो उठो यहाँ से चलो तुम नशे में हो !!



उतरेगा जब नशा तो मुझे भूल जाओगे !

मत वादा ऐ विसाल करो तुम नशे में हो… Continue

Added by Hilal Badayuni on June 14, 2011 at 10:00pm — 2 Comments

जरा इधर भी करें नजरें इनायत

1. समारू - छग में नक्सली हमले में जवान शहीद हो रहे हैं।

पहारू - यही हाल रहा तो, धान का कटोरा, खून का कटोरा बनते देर नहीं लगेगी।





2. समारू - देश की मिनिस्ट्री पर छग के बाबू भारी पड़ रहे हैं।

पहारू - भारीपन का जलवा अभी दिखा कहां है।





3. समारू - दिल्ली में नक्सली समस्या पर मंथन हो रहा है।

पहारू - फिर दोहराया जाएगा, कड़े कदम उठाए जाएंगे।





4. समारू - बाबा रामदेव ने दो सौ बरस जीने का दावा किया था।

पहारू - नौ दिनों में तो दावे की हवा… Continue

Added by rajkumar sahu on June 14, 2011 at 3:00pm — No Comments

आंच में ही फूलता है

आज उमस में शरीर से कुछ यूँ पसीना बहता है,

जैसे तेरी आँखों से ऐतबार बहा करता था;

मुहं से कुछ न बोलते थे लफ़्ज़ों से लेकिन,

प्यार का इक हल्का सा इकरार बहा करता था;



आज बीती बातों की बूढी कहानी हो गयी है,

लफ़्ज़ों की मासूमियत भी लफ़्ज़ों में ही खो गयी है;

ये पसीना बहते बहते आज मुझसे कह रहा है,

तुम जिसे समझे मोहब्बत, मेहरबानी हो गयी है;



हमने कितना कुछ कहा था, तुमने कितना कुछ सुना था,

फिर भी क्यों पिछला दिखाने, तुमने लम्हा वो चुना था;

उँगलियों… Continue

Added by neeraj tripathi on June 14, 2011 at 11:15am — No Comments

कर दिये फौत ये अरमान हमारे तुमने.......

पंछी ए ख्वाब के पर काट के सारे तुमने,

कर दिये फौत ये अरमान हमारे तुमने।

बेकरारी में ये मदहोश मेरी धड़कन है,

अपना साथी तो फकत टूटा हुआ दरपन है,

बेसदा मेरा तराना हुये अल्फाज भी गुम,…

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Added by इमरान खान on June 13, 2011 at 4:00pm — 1 Comment

पतझड़

                                      पतझड़ 

                      ---------------------------------------
                          पतझड़ के मौसम के बाद 
                          फिर हरियाली छाती है 
                          बुन्दोंके बरसने के बाद 
                          काली फिजा हट जाती है.
                          लाख उजाला देता सूरज 
                          ग्रहण उसे भी लगता है .
         …
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Added by Mohini Dhawade on June 13, 2011 at 10:30am — 1 Comment

चेक गणराज्य के हिन्दी कवि मित्र डा. ओडोलेन स्मेकल

                                                    

               

 …

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Added by MAHENDRA BHATNAGAR on June 13, 2011 at 10:00am — No Comments

मानसरोवर -- एक

ऊपर है नीला आसमान, नीचे विशाल वसुधा ललाम.
सर -सरिता और उत्स भूधर, फैले अरण्य अनुपम सुन्दर.


राकेश -रवि को जेल यहाँ.…
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Added by satish mapatpuri on June 13, 2011 at 2:00am — 9 Comments

‘हमें मालिक बने रहने दीजिए, मजदूर मत बनाइए’

पर्यावरण की चिंता हर बरस शुरू होती है, उसके बाद दम तोड़ देती है। पेड़ों की अंधा-धुंध कटाई के बाद जंगल घटते जा रहे हैं, वहीं प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है। पर्यावरण से खिलवाड़ का खामियाजा हर किसी को भुगतना पड़ रहा है, फिर भी हम चेत नहीं रहे हैं और हरियाली को हर तरह से उजाड़ने में लगे हैं। विकास के नाम पर पेड़ों की बलि चढ़ाई जा रही हैं और यही धीरे-धीरे हमारे जीवन पर आफत बनती जा रही है या फिर दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि पर्यावरण में धीमी मौत घुलती जा रही है, जो प्रदूषण के तौर पर हमें मुफ्त…

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Added by rajkumar sahu on June 12, 2011 at 11:14pm — No Comments

मैं अकेला हूँ प्रिये -

मैं अकेला हूँ प्रिये -

हर दृश्य में, हर श्राव्य में,

हर मूर्त में, हर काव्य में,

जो परे हर सुख से, मैं वो क्लान्त बेला हूँ प्रिये...

मैं अकेला हूँ प्रिये -

[१]   इक संग तेरे जीवन मधुर रसधार बन बहता गया,

   तेरे लिए हर क्लेश दुनिया का सहा, सहता गया,…

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Added by डॉ. नमन दत्त on June 12, 2011 at 6:00pm — 5 Comments

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