For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,930)

तू अकेला है (दीपक शर्मा कुल्लुवी)

तू अकेला है


किस किस की खातिर तू रोता रहेगा
दिल में…
Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on March 25, 2011 at 3:30pm — 2 Comments

दिलों का वास्ता कैसा सवालों के जहां साए ?

तेरे दीदार की हसरत, हमारे दिल में पलती है



हुई मुद्दत मेरी नज़रें, तुम्हारी राह तकती हैं



यही ख्वाहिश थी बस दिल में, मैं तेरे दर पे आ बैठा



और उसपे पूछना तेरा, बताओ क्यों यहां आए ?





अनूठे यार हो तुम भी, गज़ब के प्यार हैं हम भी



भले मझधार हो तुम भी, सुनो पतवार हैं हम भी



सवालों से तेरे घबरा गया तो ख़ाक याराना



दिलों का वास्ता कैसा सवालों के जहां साए ?





यही इल्ज़ाम है तुम पर, कि दिल बर्वाद करते… Continue

Added by Aakarshan Kumar Giri on March 25, 2011 at 12:07pm — 4 Comments

KHEL

खेल खेले जाते है

विश्व भर मै.लिए सद्भावना
 और सहकारिता का आधार
जीवन भी तो खेल है,
आईए इस पर करें विचार
शबनमी धुप पाने से पहले
गुजरना पड़ता है
सर्द हवाओं के दौर से
जीत हासिल करने से पहले
गुजरना पड़ता है
कठिन श्रम के दौर से
हारे गर आज तो 
जीतेंगे कल 
यही विचार 
बढाए रखता है मनोबल
लिए श्रम ओर विश्वास का सम्बल
हार जाओ तो भी…
Continue

Added by rajni chhabra on March 24, 2011 at 11:06pm — 4 Comments

पानी बहाने के फायदे बनाम मेरा वाटर बैंक

होली के रंग उतारने में बड़ी मशक्‍कत करनी पड़ी। अब रंग तो उतर गया लेकिन चेहरे पर हल्‍की जलन व खिंचाव अभी भी है। नाते रिश्‍तेदारों को दोष न दूंगी, मैं इतनी सभ्‍य नहीं कि होली पर तिलक लगाकर फोटो खिंचवाऊं और खुद को जागरुक नागरिक घोषित करूं। क्‍योंकि असभ्‍य नागरिक होने का खामियाजा तो चेहरे का रंग उतारने पर भुगत ही रही हूं। सोचती हूं मैंने असभ्‍य होने के लिए कितना पानी बहाया होगा?



कोई तीस लीटर जितना। जो कि तीन व्‍यक्तियों के लिए तीस दिन की प्‍यास बुझाने के लिए  काफी हो। पृथ्‍वी पर उपलब्‍ध… Continue

Added by praveena joshi on March 24, 2011 at 10:53pm — 5 Comments

जन्म मृत्यु के लिए..



कितना अजीब सत्य है न! हम सभी आखिर जन्मे हैं मरने के लिए ही तो,कोई भी तो अमर नहीं है यहाँ.किन्तु चिरनिद्रा में विलीन होने से पहले,हम…
Continue

Added by Lata R.Ojha on March 24, 2011 at 1:24pm — 4 Comments

ग़ज़ल ( बार बार ) दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'

ग़ज़ल ( बार बार ) दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'

हमनें तो ख्वाव के सहारा पे घर बनाया था

बूटा काँटों का अपनें हाथों से लगाया था…

Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on March 24, 2011 at 1:15pm — 2 Comments

गीत- भर आए परदेशी छालों से पाँव, चलो लौट चलें.

            गीत

 

                   भर आए परदेशी छालों से पाँव, चलो लौट चलें.

                   दुखियारे तन-मन से गीतों के गाँव, चलो लौट चलें.   

                …

Continue

Added by राजेश शर्मा on March 23, 2011 at 7:17pm — 2 Comments

अहमद फ़राज़ शायरी/गजल

फराज के कुछ बेहतरीन शेर -

ढूँढ उजडे हुए लोगों में वफ़ा के मोती

ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें



तू ख़ुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा

दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें…



Continue

Added by Tapan Dubey on March 23, 2011 at 4:20pm — No Comments

गजल

गजल



हमें धर जमाने में जमाने लगे ।

मिटाने में उन्हें चंद बहाने लगे ।।



मसीहा उस वक्त वो बन गये मेरे ।

जहाॅ के गम जब भी सताने लगे ।।



बचपन की यादें ताजा हो गई ।

जब छत पे पतंग उडाने लगे ।।



होश उस दम फाख्ता हो गए मेरे ।

वो जब मुझको मुझसे चुराने लगे ।।



जिनको अपने दर रहने को जा दी।

अफसोस वो हमें दरबदर कराने लगे।।



जिनको हमने जीने के लिए जिया दी।

अफसोस वो अंधेरे में घुमाने… Continue

Added by nemichandpuniyachandan on March 23, 2011 at 1:30pm — 1 Comment

कुछ तो में खोया सा हूँ..

कुछ तो में खोया सा हूँ
कुछ ये शाम खोयी सी है

पहलुओं की आड़ से खुद को बचा के चल दिए
बेखुदी तमाम खोयी सी है

इक ना-काफ़िर के अब ना रहे मुहताज हम
आदत-ए-आम खोयी सी है

खो गयीं वो सूरतें जो बादलों में यों हीं दिखती थीं
तालीम-ए-हाराम खोयी सी है

हज़ार पन्ने भर दिए कैफियत पर ना हुई
सूरत गुमनाम खोयी सी है

Added by Bhasker Agrawal on March 23, 2011 at 10:20am — No Comments

jhamele ho gaye

आसमां के हाथ मैले हो गये
ये महल कैसे तबेले हो गये
 
जो खनकते थे कभी कलदार से 
अब सरे बाज़ार धेले हो गये
 
घूमती थी बग्घियाँ किस शान से
आजकल सड़कों पे ठेले हो गये
 
इस शहर में कौन बोलेगा भला 
लोग ख़ामोशी के चेले हो गये
 
देखिये तो छक्के पंजे जब मिले 
कल के नहले आज दहले हो गये
 
अपनी खुद्दारी…
Continue

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on March 22, 2011 at 10:41pm — 7 Comments

निराशा ने घेरा..

 

 

 

निराशा ने घेरा..

 

निशा का समय है दिशा में अँधेरा,

अज्ञानता में बसाया है डेरा.

चलता हुआ ठोकरें खा रहा है,

रोना जहाँ पर वहीँ गा रहा…

Continue

Added by R N Tiwari on March 22, 2011 at 9:07pm — 3 Comments

जो भी किया मैंने बस जीने के लिए ,

जो भी किया मैंने बस जीने के लिए ,
लोग कहते हैं जीता हैं पीने के लिए ,


कसम से उनकी बात सत्य हैं यारो ,
मगर दो घूँट जरुरी दर्दे जिगर के लिए ,


दिल में बैठे थे वो मालिक बन कर ,
और छोड़ गए तन्हा मरने के लिए ,


पता हैं मैं क्यों पिए जा रहा हूँ ,
आस लगाये बैठा हूँ बेवफा के लिए ,


वो मिले या न मिले मगर ये दिल ,
तू संभल जा बस गुरु के लिए ,

Added by Rash Bihari Ravi on March 22, 2011 at 4:00pm — No Comments

रंग दे मोहे सांवरे रंग दे..

 

रंग दे मोहे सांवरे रंग दे ,
प्रीत के रंग में मोहे रंग दे |
चन्दन संग खुशबु मोहे रंगने आई ,
पी की महक बिन ना कछु भाई |
टेसू गेंदा चाहे मोहे रंगना ,
तेरी छुअन सिवा सब चुभता अंगमा |…
Continue

Added by Veerendra Jain on March 22, 2011 at 11:30am — 5 Comments

मुक्तिका: गलत मुहरा ----- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:                                                                          



गलत मुहरा



संजीव 'सलिल'

*

सही चहरा.

गलत मुहरा..



सिन्धु उथला,

गगन गहरा..



साधुओं पर

लगा पहरा..



राजनय का

चरित दुहरा..



नर्मदा जल

हहर-घहरा..



हौसलों की

ध्वजा फहरा..



चमन सूखा

हरा सहरा..



ढला सूरज

चढ़ा कुहरा..



पुलिसवाला

मूक-बहरा..



बहे पत्थर…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on March 21, 2011 at 6:40pm — 7 Comments

मुक्तिका: मन तरंगित ---- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:                                                                                         



मन तरंगित



संजीव 'सलिल'

*

मन तरंगित, तन तरंगित.

झूमता फागुन तरंगित..



होश ही मदहोश क्यों है?

गुन चुके, अवगुन तरंगित..



श्वास गिरवी आस रखती.

प्यास का पल-छिन तरंगित..



शहादत जो दे रहे हैं.

हैं न वे जन-मन तरंगित..



बंद है स्विस बैंक में जो

धन, न धन-स्वामी तरंगित..



सचिन ने बल्ला घुमाया.…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on March 21, 2011 at 6:39pm — No Comments

कविता :- सच कहना तुम भूली मुझको ?

कविता :- सच कहना तुम भूली मुझको ?…

Continue

Added by Abhinav Arun on March 20, 2011 at 6:30pm — 18 Comments

हर उर भरे रंग हर होली कर संग

हर उर भरे रंग हर होली कर संग 

(मधु गीति सं. १७३३, दि. २० मार्च, २०११) 

 

हर उर भरे रंग, हर होली कर संग;…

Continue

Added by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on March 20, 2011 at 1:49pm — 2 Comments

मुक्तिका: हुई होली, हो रही, होगी हमेशा प्राण-मन की --- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:



हुई होली, हो रही, होगी हमेशा प्राण-मन की



संजीव 'सलिल'

*

भाल पर सूरज चमकता, नयन आशा से भरे हैं.

मौन अधरों का कहे, हम प्रणयधर्मी पर खरे हैं..



श्वास ने की रास, अनकहनी कहे नथ कुछ कहे बिन.

लालिमा गालों की दहती, फागुनी किंशुक झरे हैं..



चिबुक पर तिल, दिल किसी दिलजले का कुर्बां हुआ है.

भौंह-धनु के नयन-बाणों से न हम आशिक डरे हैं?.



बाजुओं के बंधनों में कसो, जीवन दान दे दो.

केश वल्लरियों में गूथें कुसुम, भँवरे… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on March 20, 2011 at 10:24am — No Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

KALPANA BHATT ('रौनक़') replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"इस सफ़ल आयोजन हेतु बहुत बहुत बधाई। ओबीओ ज़िंदाबाद!"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"बहुत सुंदर अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक ईश्वर…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"वैशाख अप्रैल में आता है उसके बाद ज्येष्ठ या जेठ का महीना जो और भी गर्म होता है  पहले …"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"सहृदय शुक्रिया आ ग़ज़ल और बेहतर करने में योगदान देने के लिए आ कुछ सुधार किये हैं गौर फ़रमाएं- मेरी…"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service