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गज़ल/ अनजान रहा अक्सर

दीदार का बस तेरे अरमान रहा अक्सर

इस प्यार से तू मेरे अनजान रहा अक्सर

 

बाजार में दुनिया के हर चीज तो मिलती है

तेरे हबीबों में भी धनवान रहा अक्सर

 

जिस वक्त दुनिया में था घनघोर कहर बरपा

उस…

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Added by बृजेश नीरज on March 22, 2013 at 11:29am — 12 Comments

फा+गुन का मौसम

फा+गुन का मौसम

 

फा=फाल्गुन खेलते

गुन=गुनगुनाने का मौसम

-लक्ष्मण लडीवाला                   

 

ऋतुओं में ऋतू राज बसंत,

बसंत में फाल्गुन मास-

माह में भी होली ख़ास,  

गाँव गाँव खिलते, महकते 

चहुँ ओर खेतो…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 22, 2013 at 10:00am — 12 Comments

ग़ज़ल : अब तो मक्खी यहाँ कोई भी निगल जाता है

बहर : २१२२ ११२२ ११२२ २२

 ----------------------------------------------

भिनभिनाने से तेरे कौन बदल जाता है

अब तो मक्खी यहाँ कोई भी निगल जाता है

 

यूँ लगातार निगाहों से तू लेज़र न चला

आग ज्यादा हो तो पत्थर भी पिघल जाता है

 

जिद पे अड़ जाए तो दुनिया भी पड़े कम, वरना

दिल तो बच्चा है खिलौनों से बहल जाता है

 

तुझ से नज़रें तो मिला लूँ प’ तेरा गाल मुआँ

लाल अख़बार में फौरन ही बदल जाता है

 

थाम लेती है…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 22, 2013 at 12:14am — 8 Comments

‘‘मैं बाहर थी”

जब तुम बुझा रहे थे अपनी आग,

मै जल रही थी.

मैं जल रही थी  पेट की भूख से,

मैं जल रही थी माँ की बीमारी के भय से,

मैं जल रही थी बच्चों की स्कूल फीस की चिंता से .

जब तुम बुझा रहे थे अपनी आग,

मै जल रही थी.

*******

मैं बाहर  थी

जब तुम मेरे अंदर प्रवेश कर रहे थे

मैं बाहर  थी

हलवाई की दुकान पर.

पेट की जलन मिटाने के  लिए

रोटियां खरीदती हुई.

मैं बाहर  थी ,

दवा की दुकान पर

अपनी अम्मा के…

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Added by Neeraj Neer on March 21, 2013 at 10:31pm — 10 Comments

मृत्यु प्रिया

नश्वर जग
तुम नित्य सदा से
मैंने ये पाया
------------
तुम निष्पक्ष
आज अराजक है
ये जग जब
------------
दयावान तू
उबे,थके,दुखी के
कर गहती
------------
छिद्र बहुत
जग ने कर डाले
गले लगा ले
-------------
नौका पाई थी
भव से तरने को
इसे नसाया
-------------
ये रिश्ते नाते
हैं लक्ष्य मे बाधक
तू मिलवा दे
------------
तुझे दुलारूं
मृत्यु प्रिया जाने क्यूं
सब डरते
-विन्दु

Added by Vindu Babu on March 21, 2013 at 10:13pm — 12 Comments

ग़ज़ल : जी रहे

दोस्तों देखिये ग़ज़ल का मिजाज 

जी रहे डरते डरते,

थक गये मरते मरते।

बात किस्मत की है,

हम गिरे चढ़ते चढ़ते।

खत्म अक्सर होता है,

आदमी लड़ते लड़ते।

है तमन्ना मरने की,

काम कुछ करते करते। 

झड़ गये इक दिन सारे,

बाल ये झड़ते झड़ते।

जिन्दगी इक पुस्तक है,

याद हो पढ़ते पढ़ते।

डूब जाते सागर में,

हम कभी बढ़ते बढ़ते।

वक्त लग जाता…

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Added by rajinder sharma "raina" on March 21, 2013 at 7:30pm — No Comments

हाइकू/ बसंत

1

ऋतु बसंत

उत्सव व उल्लास

मन अनंत।

 

2

अबीर मला

क्लेष की आहुति हो

गुलाल उड़ा।…

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Added by बृजेश नीरज on March 21, 2013 at 6:30pm — 10 Comments

ओ कनहइया

ओ कनहइया
----------------

घोर कलियुग आ गया 

बाप बड़ा न भइया 
सारे जग को नाच नचाये 
काला  सफ़ेद रुपइया 
वक्त कभी था जगह जगह 
ज्ञान की बातें होती 
लुटती अस्मत बीच सड़क 
ममता घर घर रोती 
कब बदलेगा ये चलन 
जब' भाई ' बनेंगे भइया
सारे जग को नाच नचाये 
काला  सफ़ेद रुपइया 
हरी भरी  धरती थी अपनी 
कल कल…
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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 21, 2013 at 5:26pm — 2 Comments

ब्रज की होली

ब्रज की होली
---------------

भोला संग चली भवानी 

देखन ब्रज की होली 
नंदी थिरके सब गन थिरके 
देख राधा भोली 
देख राधा भोली भैया देख राधा भोली 
प्रेम से  सब कोई  खेलो 
 है ये ब्रज की होली 
भोला संग चली भवानी 
देखन ब्रज की होली 
संग बाराती जा पहुंचे 
यमुना तट पे भोला 
होली का हुडदंग मचा 
घोंट रहे भंग…
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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 21, 2013 at 3:58pm — 6 Comments

चलिये शाश्वत गंगा की खोज करें- द्वितीय खंड (1)

व्यथित  गंगा ज्ञानि से संबोधित है.

गंगा की व्यथा ने  ज्ञानि के हृदय को झजकोर दिया है. गंगा उसे बताती है मनुष्य की तमाम विसंगतियों, मुसीबतों, परेशानियों   का कारण उस का ओछा ज्ञान है जिसे वह अपनी तरक्की का प्रयाय मान रहा है.

इस ज्ञान ने उसे…

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Added by Dr. Swaran J. Omcawr on March 21, 2013 at 1:30pm — 7 Comments

"होड़"

लूट अकूत मची सगरे अरु ,छोड़त नाहि घरै अपना !
आपस में झगड़ाइ रहे सब ,पावत कौन रहा कितना !!
खीचत छीनत मारत पीटत,धो रहे जइसे पिटना!
होड़ मची इक दूसर से बस ,कौन बनावत है कितना !!

राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on March 21, 2013 at 12:52pm — 8 Comments

सार/ललित छंद

सार/ललित छंद (16+12मात्रायें:- छन्नपकैया की जगह "आई होली छाई होली," का प्रयोग)



आई होली छाई होली, पवन चली मतवारी

रंग लगाते झूम झूम के, मस्त हुए नर नारी



आई होली छाई होली, रंग उड़े सतरंगी

भंग चढ़े है सर पे सबके, होती है हुड़दंगी



आई होली छाई होली, बुरा कोई न माने

रंगों का मौसम ये प्यारा, आता प्रीत बढ़ाने



आई होली छाई होली, भर भर के पिचकारी

कान्हा रंगों को बरसाते, भीगे राधा प्यारी



आई होली छाई होली, यौवन की ले हाला

रंग चटक… Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 21, 2013 at 12:43pm — 6 Comments

कोयल दीदी! (सार छंद)

कोयल दीदी! कोयल दीदी! मन बसंत बौराया।

सुरभित अलसित मधु मय मौसम, रसिक हृदय को भाया॥



कोयल दीदी! कोयल दीदी! वन बंसत ले आयी।

कूं कूं उसकी बोली प्यारी, हर जन मन को भायी॥



कोयल दीदी! कोयल दीदी! बागों में फूल खिले।

लोभी भौंरे कलियों का भी, रस निर्दय चूस चले॥



कोयल दीदी! कोयल दीदी! साजन घर को जाओ।

मुझ विरहा की विरह वेदना, निष्ठुर पिया सुनाओ॥



कोयल दीदी! कोयल दीदी! कू कू करके गाए।

जग में मीठी बोली अच्छी, राग द्वेष मिट जाए॥



कोयल… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 21, 2013 at 12:42pm — 5 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
मैं, तुम और वे क्षण

वातायन निर्वाक प्रहरी था,

बाहर मस्त पवन था

अंदर तो ‘बाहर’ निश्चुप था,

अंतर में एक अगन था.

कितने ही लहरों पर पलकर,

कितने झोंके खाकर

कितने ही लहरों को लेकर,

कितने मोती पाकर –

मैं आया था शांत निकुंज में.

मैं आया था शांत निकुंज में,

एक तूफ़ाँ को पाने

एक हृदय को एक हृदय से,

एक ही कथा सुनाने.

पर निकुंज की छाया में

थी तुम बैठी उद्भासित सी,

थोड़ी सी सकुचायी सी

और थोड़ी सी घबरायी सी.

स्तब्ध रहे कुछ पल

हम दोनों, पलकों…

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Added by sharadindu mukerji on March 21, 2013 at 3:47am — 11 Comments

उलझन

लुढ़क के वहीं आ खड़ी हुई ज़िंदगी

जहाँ थे कभी खड़े,

कदम थे कितने नपे तुले

किस राह पर , कहाँ फिसल के रह गये.

मुड़कर देखना क्या ?

सोच के पछ्ताना क्या ?

हवा भी कुछ ऐसी बही,

चट्टान ढलान में ठहरता क्या ?

दूर दूर तक था रेगिस्तान

नैनों में कितने रेत पड़े,

आँसू किसके बहकर रहे

अतीत के या आने वाले कल के.

फूलों पर चलते थे कभी -

कब पंखुड़ियाँ रह गये मुरझा के,

एक शुष्क पात भी नहीं रहा

देखूँ जिसे कभी नज़र भर के.

जिधर भी गये हाथ…

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Added by coontee mukerji on March 20, 2013 at 9:50pm — 7 Comments

आँसू

आँखों से मेरी छलक पड़ते हैं आँसू।

दिल में ज़ख्म बनकर  हँसते हैं आँसू।।

ग़म से जब दिल बेज़ार होता है,

ऐसे हाल में मुस्कुराना भी बेकार होता है,

तभी मोती बनकर चमकते हैं आँसू।

आँखों से मेरी छलक पड़ते हैं आँसू।।

बुरे वक़्त का दर्द सीने में छुपाया नहीं जाता,

क्या करें,जब किसी को ये बताया नहीं जाता,

यही दर्द के मोती बनकर चमकते हैं आँसू।

आँखों से मेरी छलक पड़ते हैं आँसू।।

इस दर्द को सीने में संभालना होता है मुश्किल,

इस बाढ़ को बढ़ने से रोकना होता है…

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Added by Savitri Rathore on March 20, 2013 at 8:57pm — 13 Comments

!!जय हिन्द!!

!!जय हिन्द!!

दुइ-दुइ आॅख करो तो करो तुम
कायरता में छिपाओ नहिं
नजरिया।


दुइ-दुइ हाथ करो तो करो तुम
घमण्ड में सुनाओ नहिं
बड़बतिया।


दुइ-दुइ कृपाण रखो तो रखो तुम
दो धार रखाओ नहिं
कटरिया।


इक-इक कदम बढ़ो तो बढ़ो तुम
गुमराह कर दिखाओ नहिं
चैारहिया।


सत्यम इक धर्म चलो तो चलो सब
वतन खिलाफ बढ़ाओ नहिं
मजहबिया!
के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 20, 2013 at 8:36pm — 5 Comments

खुली किताब ( OPEN BOOK )

(  ये कविता सूरज को दीपक दिखाने के बराबर है फिर भी मेरी तरफ से  ओबीओ के सम्मान मे एक तुच्छ सी भेट,   )

 

खुली किताब ( OPEN BOOK )

 

ये खुली किताब है बडी अनोखी, है गद्य-पद्य रचना की…

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Added by बसंत नेमा on March 20, 2013 at 5:00pm — 1 Comment


सदस्य कार्यकारिणी
(होली) इक दूजे पर डालिये ,पुष्प रंग के घोल

मौसम में भी मच रही, फागुन की अब धूम|

झूमें हँस-हँस मंजरी, भँवरे जाते  चूम||

 

डाल-डाल पर खिल रहे,केसर टेसू फूल|

आपस में घुल मिल गए ,बैर भाव को भूल||

 

महकी डाली आम की,मादक-मादक भोर|

लिखती पाती प्रेम की,होकर मस्त विभोर||

 

कान्हा को फुसला रही,फागुन प्रीत बयार|

राधा जी को भा रही,स्नेहिल रंग फुहार||

 

चन्दा ने फैला दिया,चाँदी भरा रूमाल|

सूरज ने बिखरा दिया,पीला ,लाल गुलाल||

 

क्यारी-क्यारी दे…

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Added by rajesh kumari on March 20, 2013 at 4:32pm — 10 Comments

dohe

गंगा जमुना  भारती ,सर्व  गुणों की खान
मैला करते नीर को  ,यह पापी इंसान .

सिमट रही गंगा नदी ,अस्तित्व का सवाल
कूड़े करकट से हुआ ,जल जीवन बेहाल .

गंगा को पावन करे  , प्रथम यही अभियान
जीवन जल निर्मल बहे ,सदा करे  सम्मान .
--- शशि पुरवार

Added by shashi purwar on March 20, 2013 at 4:08pm — 12 Comments

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