For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ऐसी ही एक शाम थी

ऐसी ही एक शाम थी
कुछ गुलाबी थोड़ी सुनहरी
सूर्य किरणें जल में तैरती
तरल स्वर्ण सी चमकीली
फैली थी घनी लताएँ
हरित पत्तों बीच गहरी
बैगनी फूलों की छाया
हृदय में थी ठहरी सी

मन झील सा शांत
इच्छाएँ थीं चंचल , अकिंचन
पहेलियाँ कितनी अनबुझी
तैर रही थी मीन सी
गोद में खुला पड़ा था
पत्र एक , किसी अंजान का
उपेक्षित सा यूँ ही
बरसों पहले था पढ़ा
कितनी रातें बीती थी
सपनों में भटकती थी
उपवन में कभी , कभी –
निविड़ वन में अकेली

सुबह थकी थकी पलकें
अनकही कुछ कथा सुनाती
दर्पण भी व्याकुल होकर
मुझसे थी नज़रें चुराती
यादों की बारात निकली
उन भटकते बादलों में
ढूँढ़ती तसवीर किसकी
मैं मचलते ख्यालों में
जीवन सामान्य था
रोज ऊषा जगमगाती
शाम होती थी नित्य
रात्रि भी चुपचाप आती

2
वसंत ऋतु हँसता आया
हँसने लगा लाल गुलमोहर
कुछ डाली पर खिला मनोहर
कुछ धरती पर हुआ न्योछावर

एक दिन छोटी सी प्यारी
लालमुनिया आयी उड़ती
प्रीतम से मिलने को व्याकुल
मीठी सुरीली गीत गाती

खिड़की से रोज़ देखती
बाग में वह उड़ती फिरती
जाने क्या संदेश सुनाती
बावरी मैं समझ न पाती
आयी थी नन्हीं परी वह
सोये मेरे सपने जगाने
इच्छाओं ने ली अंगड़ाई
कल्पनाओं को पंख लगाने

3
बंद कमरे में बरसों से थी
आधी सोयी आधी जागी
दूर तक बिखरे थे तारे
देखती रहती अभागी
कभी उपवन में था घर
बना झाड़ियों का मेला
घने जंगलों को काटता
कौन आया भटका भूला
उलझा और फैला कसभाँवर
किसने अंधेरे में सुलझाया
जो काया थी शाप जड़ित
उसने किसका स्पर्श पाया
अंजान सा रूप एक
आकार में ढलने लगा
धुंधली तसवीर किसी की
दिल में उभरने लगा
भीतर और बाहर निशिदिन
दिये की एक लौ जलाकर
बनाती रही अपनी तकदीर
उस रूप को आलोकित कर

4
प्रियतम को भेजा संदेशा
सपनों के गुलाल उड़े
फागुन के रंग में रंगकर
विरह के दिन हुए पूरे
प्रकृति ने किया नव श्रृंगार
खिलने लगे बहुत से रंग
धरती आकाश मिलन हेतु
आलम्बन बना ऋतु वसंत

Views: 603

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अरुन 'अनन्त' on March 29, 2013 at 5:56pm

बेहद सुन्दर एवं लाजवाब पंक्तियाँ आदरेया हार्दिक बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 29, 2013 at 5:53pm

भीतर और बाहर निशिदिन
दिये की एक लौ जलाकर
बनाती रही अपनी तकदीर
उस रूप को आलोकित कर
4
प्रियतम को भेजा संदेशा
सपनों के गुलाल उड़े
फागुन के रंग में रंगकर
विरह के दिन हुए पूरे
प्रकृति ने किया नव श्रृंगार
खिलने लगे बहुत से रंग
धरती आकाश मिलन हेतु
आलम्बन बना ऋतु वसंत
बहुत सुंदर पंक्तियां शानदार रचना हेतु हार्दिक बधाई कुन्ती जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 29, 2013 at 2:20pm

प्रस्तुत सुन्दर रचना के लिए आपको सादर बधाई,  आदरणीया कुन्तीजी.. .

रचना की पंक्तियों से मन प्रसन्न है.

Comment by vijay nikore on March 29, 2013 at 6:38am

आदरणीया कुन्ती जी:

 

सर्वप्रथम ... आपने शीर्षक "ऐसी ही एक शाम थी" बहुत भावात्मक चुना है।  यह शीर्षक किसी भी

संवेदनशील व्यक्ति को उसकी जी हुई किसी शाम में डुबो सकता है।

 

दूसरा, यह कि आपकी पंक्तियाँ चित्र को अंकित करने में सफ़ल हुई हैँ।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by coontee mukerji on March 28, 2013 at 11:19pm

आदरणिय रक्ताले जी, नमस्कार, आपको बहुतबहुत धन्यवाद. जीवन में सबको वसंत रीतु मिले यही कामना है.

Comment by coontee mukerji on March 28, 2013 at 11:08pm

आदरणिय प्रसाद जी , नमस्कार ,मेरी रचना पढे .आपकी प्रेरणा मिलती रहे .बहुत बहुत ध्न्यवाद.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 28, 2013 at 8:52am

 धरती आकाश का मिलन दूर क्षितिज पर प्रातः भौर में और संध्या में दिखाई देता है, तब मन ऋतुराज बसंत सा हो 

जाता है, ऐसे ही विचार मन में आये आपकी रचना पढ़कर, सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई कुंती जी | साथ ही 

होली की हार्दिक शुभ कामनाए 

Comment by Ashok Kumar Raktale on March 27, 2013 at 9:13pm

प्रियतम को भेजा संदेशा
सपनों के गुलाल उड़े
फागुन के रंग में रंगकर
विरह के दिन हुए पूरे
प्रकृति ने किया नव श्रृंगार
खिलने लगे बहुत से रंग
धरती आकाश मिलन हेतु
आलम्बन बना ऋतु वसंत.............बहुत सुन्दर पंक्तियाँ.

आदरणीया कुंती जी सुन्दर रचना. सादर बधाई स्वीकारें.

 

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"ऐसे😁😁"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"अरे, ये तो कमाल  हो गया.. "
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश भाई, पहले तो ये बताइए, ओबीओ पर टिप्पणी करने में आपने इमोजी कैसे इंफ्यूज की ? हम कई बार…"
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपके फैन इंतज़ार में बूढे हो गए हुज़ूर  😜"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय लक्ष्मण भाई बहुत  आभार आपका "
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । आये सुझावों से इसमें और निखार आ गया है। हार्दिक…"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और अच्छे सुझाव के लिए आभार। पाँचवें…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय सौरभ भाई  उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार , जी आदरणीय सुझावा मुझे स्वीकार है , कुछ…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थति और उत्साहवर्धक  प्रतिक्रया  के लिए आपका हार्दिक…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का रदीफ जिस उच्च मस्तिष्क की सोच की परिणति है. यह वेदान्त की…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, यह तो स्पष्ट है, आप दोहों को लेकर सहज हो चले हैं. अलबत्ता, आपको अब दोहों की…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज सर, ओबीओ परिवार हमेशा से सीखने सिखाने की परम्परा को लेकर चला है। मर्यादित आचरण इस…"
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service