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क्या आप मुझसे कहकर जाती हैं ?


सरला का छोटा सा सुखी परिवार था. वह बहुत ही अनुशासप्रिय थी. उसके दो बच्चे थे. एक बेटा एक बेटी. बेटा पाँच साल का था और बेटी तीन की. दोनों को अपने काबू में रखती थी सरला.
जब भी कहीं बाहर जाती बच्चों को घर के अंदर रहने की हिदायत देकर बाहर से मुख्य द्वार में ताला लगा देती. बच्चे जब तक बोलने लायक न थे सबकुछ ठीक चलता रहा. एक दिन सरला कहीं बाहर से आयी तो देखा बेटा घर में नहीं है. वह सारा घर छान मारी, आस पास देखा. मगर
बेटा कहीं भी नहीं मिला. वह परेशान होकर अपने पति को जब फ़ोन करना चाही तो देखा उसका बेटा उछलता-कूदता घर में घुस रहा है. सरला को बहुत गुस्सा आया. उसने बेटे का कान पकड़कर कहा – “ कहाँ गया था बिन बताए. मैं कितनी परेशान हो गयी थी. “
बेटे ने बड़ी शांति से कहा, “आप कहीं जाती हैं तो मुझसे कह कर जाती हैं..?”
उसका जवाब सुनकर सरला अवाक रह गयी.

उस दिन के बाद से वह कहीं भी जाती है अपने बच्चों से कहके जाती है.

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Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 10, 2013 at 12:06am
 आदरणीया कुंती जी बहुत सुन्दर सीख ...हम जो चाहते हैं दूसरों से खुद को उस पर अमल करना चाहिये ही ..बच्चे बड़े तेज हैं आज के ...वैसे भी जो देखते हैं वही  सीखते हैं ..भारत में आप का स्वागत है ...
..जय श्री राधे आभार प्रोत्साहन हेतु 
भ्रमर ५ 
Comment by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on April 3, 2013 at 10:06am

बहुत बढ़िया

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on March 31, 2013 at 11:31pm

बढ़िया !!!  आज के समय में व्यस्त माता-पिता को एक अनोखी सीख...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 31, 2013 at 5:50pm

बच्चों के मनोविज्ञान के अनुसार ही उनका पालन पोषण होना चाहिए... वो हर एक छोटी से छोटी बात को भी नोटिस करते हैं, और उसी का अनुसरण करने लगते हैं जैसा बड़ों को देखते हैं.... इस सुन्दर लघुकथा के लिए बधाई कुंती मुखर्जी जी 

Comment by vijay nikore on March 31, 2013 at 4:26pm

आदरणीया कुंती जी:

 

सरल शब्दों में महत्वपूर्ण संदेश देती लघु-कथा के लिए बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 31, 2013 at 3:04pm

आदरणीया, कुन्ती मुखर्जी जी, सबसे पहले आपको सपरिवार प्रेम एवं सद्भावना का प्रतीक होली के पावन त्योहार पर हार्दिक शुभकामनाएं।  वास्तव में हम बच्चों से अनुशासन बध्य होने की अपेक्षा रखते हैं। किन्तु जहां हमारी बारी आती है, हम सदैव शिथिल ही रहते है। बहुत सुन्दर सीख। बधाई स्वीकार करें, सादर।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 31, 2013 at 10:50am

बच्चे वही सीखते है जो हम सिखाते है, वास्तव में बच्चे कहने से ज्यादा हामारे व्यवहार को देखते है, हम अपने आचरण से ही 

उन्हें अच्छे संस्कार दे सकते है | सुन्दर सन्देश देती रचना के लिए बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 31, 2013 at 9:04am

बच्चे हमेशा बडों का अनुसरण करके बड़े होते हैं यदि उनको अच्छे संस्कार देने हैं तो सर्वप्रथम अपने आचरण को ठीक रखना होगा बहुत बढ़िया संदेश देती हुई लघु कथा के लिए कुंती जी बधाई आपको |

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on March 31, 2013 at 7:25am

छोटी सी लघुकथा प्रेरणादायक है !

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