For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

क्या है तू ऐं ज़िन्दगी ?
मैं तुझे पहचान न सकी।
तेरे तो हैं रूप अनेक ,
कभी तुझे जान  न सकी।
क्या है तू ऐं ज़िन्दगी ?
देखा है मैंने तुझे कभी ,
 फूलों की तरह खिलते हुए।
और कभी देखा है मैंने तुझे,
शोलों की तरह जलते हुए।
तेरी कोई पहचान न रही,
कभी तुझे जान न सकी।
क्या है तू ऐं ज़िन्दगी ?
कहीं है तू पुष्प-सी-कोमल
तो कहीं काँटों-सी-कठोर।
कहीं पर है प्यार तेरा,
तो कहीं है अन्याय घोर।
तेरी कभी कोई शान न रही,
कभी तुझे जान न सकी।
क्या है तू ऐं ज़िन्दगी ?
कहीं पर तू बनी है रानी,
तो कहीं है आँखों का पानी।
कहीं मौत की चाहत में,
तुझसे है आत्मा अकुलानी।
तेरी कम आन हो न सकी,
कभी तुझे जान न सकी।
क्या है तू ऐं ज़िन्दगी ?
मैं तुझे पहचान न सकी।
तेरे तो हैं रूप अनेक,
कभी तुझे जान न सकी।
क्या है तू ऐं ज़िन्दगी ?
'सावित्री राठौर'
[मौलिक एवं अप्रकाशित ]

Views: 701

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 31, 2013 at 11:20am

आदरणीया सावित्री जी,

अपनी टिप्पणी के माध्यम से जो कुछ आपने साझा किया उससे यही प्रतीत हो रहा है कि आपने मेरे कहे का बड़ा ही अलहदा रूप समझ और स्वीकार कर लिया है. पुरानी रचनायें नहीं भेजनी हैं क्या यह मेरी टिप्पणी में लिखा हुआ है, आदरणीया ?

इस मंच के उद्येश्य के अंतर्गत किसी पुरानी किन्तु प्रारम्भिक अवस्था की रचना को हतोत्साहित करने और पुरानी किन्तु समृद्ध रचना को स्थान देने में बहुत अंतर नहीं है यदि उक्त रचना नेट के किसी माध्यम में प्रकाशित नहीं हुई है ?

रचनाएँ भावना, स्वाध्याय, आत्म-मंथन के साथ-साथ समय और तार्किकता की चाहना भी रखती हैं. यह रचनाकार के सतत प्रयासों से ही संभव होता है. आपने स्वयं कहा है जिसका आशय यही है कि प्रस्तुत यदि रचना आज लिखी गयी होती तो उसका स्वरूप अधिक संयत और विधा के लिहाज से अधिक समृद्ध होता. मैं आपकी इसी बात को रेखांकित कर रहा हूँ.

आप इस मंच पर हैं, प्रयासरत रहें और अपनी रचनाओं के प्रस्तुतिकरण और संप्रेषणीयता में अनवरत सुधार हेतु आग्रही रहें.

रचनाओं का प्रकाशन की अनुमति ऐडमिन तथा प्रधानसंपादक के दायरे में आता है जहाँ कई-कई विन्दुओं के सापेक्ष निर्णय लिये जाते हैं. अतः इस हेतु कोई निवेदन इस थ्रेड में अप्रासंगिक ही होगा.

आदरणीया, आप अन्य रचनाकारों की प्रस्तुतियाँ देखें और अध्ययन करें. बहुत कुछ स्पष्ट होता जायेगा.

सादर

Comment by Savitri Rathore on March 31, 2013 at 11:05am

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, सादर प्रणाम !
आपका सुझाव मैं भली -भांति न समझ सकी,जिसका मुझे खेद है। आपका कथन बिलकुल सत्य है,कि प्रत्येक लेखक चाहता है कि उसकी रचना को अधिक -से अधिक लोग पढें।किन्तु मैं आपको यह बताना चाहूंगी कि मेरी यह रचना पुरानी अवश्य थी पर पूर्णतया अप्रकाशित है क्योंकि आपकी नियमावली में रचना का मौलिक एवं अप्रकाशित होना आवश्यक हैं,इसलिए मैंने यह रचना प्रकाशनार्थ पोस्ट की थी। संभवतः यह मेरी गलती है कि मैंने आपकी नियमावली का ठीक से अवलोकन नहीं किया,जो मुझे यह पता ही नहीं था कि पुरानी रचना यहाँ नहीं भेजनी है,आगे से मैं इस बात का विशेष ध्यान रखूंगी कि अपनी कोई भी पुरानी रचना मुझे इस ई -पत्रिका में प्रकाशन हेतु नहीं देनी है।मेरा विश्वास कीजिये कि मुझे इस विषय में ज्ञान नहीं था और संयोगवश प्रथम बार ही मैंने अपनी कोई पुरानी किन्तु अप्रकाशित रचना पोस्ट की थी।अपनी इस भूल के लिए मैं क्षमा चाहती हूँ।आगे से मैं कभी दुबारा यह गलती नहीं करूंगी,इसका मैं आपको विश्वास दिलाती हूँ।एक और प्रश्न ,जो मेरे मन -मस्तिष्क में इस समय विद्यमान है,उसके विषय में मैं आपको बताना एवं आपके द्वारा उसका निराकरण करवाना अवश्य चाहूँगी और वह यह कि कल रात भी मैंने अपनी एक नयी कविता,'क्या तुम मुझे भुला पाओगे',जो कुछ दिन पूर्व ही मैंने लिखी थी,आपकी ई पत्रिका [ओ बी ओ] पर प्रकाशनार्थ पोस्ट की थी और वह भी आज प्रकाशित नहीं हो पाई है,क्या उसके मूल में भी यही कारण तो नही कि आपको लग रहा हो कि मैंने फिर से कोई पुरानी रचना तो नहीं पोस्ट कर दी,पर सच यह है कि मेरी यह रचना एकदम नयी है और इसे मैंने अभी कुछ दिन पूर्व ही लिखा है।यदि आपको मेरी बात का विश्वास न हो तो उस रचना को पढ़ कर देखिये ,आपको स्वयं ज्ञात हो जायेगा।कृपया मेरी एक भूल के लिए मेरी अन्य रचनाओं का प्रकाशन मत रोकिये और जो भूल मैंने अपनी पुरानी किन्तु अप्रकाशित रचना को देकर की है,उसे सुधारने का एक अवसर मुझे अवश्य प्रदान कीजिये।आशा है,आप मुझे एक अवसर अवश्य प्रदान करेंगे और मुझे अनुगृहीत करेंगे।यदि इससे भिन्न कोई अन्य कारण ,उस रचना के प्रकाशन को रोकने के लिए है,तो कृपया मुझे अवश्य बताएं,मैं अपनी कमियों को जानने को तत्पर हूँ,और उन्हें बताने हेतु आपकी आभारी रहूंगी।सधन्यवाद !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 31, 2013 at 5:13am

//यदि यह कविता मैंने अब इस समय लिखी होती तो अवश्य यह पूर्णरूपेण छंद -विधान के अंतर्गत होती और अपेक्षाकृत गाम्भीर्ययुक्त होती ,किन्तु मैंने इसे तब लिखा था,जब इंटर पास कर मैं स्नातक की छात्रा बनी थी और उस समय जीवन को इतना न समझती थी,जितना कि आज जानती हूँ//

सावित्रीजी, आपने मेरे कहे का आशय अपने शब्दों में रख दिया.

आदरणीया, इस मंच पर इसीकारण से पूर्व-प्रकाशित या पुरानी दोनों तरह की रचनाओं के प्रकाशन को हतोत्साहित किया जाता है. आप धीरे-धीरे इस ई-पत्रिका (ओबीओ) के होने का अर्थ और उद्येश्य समझती जायेंगी.

हर लेखक अपने विगत में ऐसा कुछ अवश्य लिख चुका होता है जो उसकी अभी तक की अन्यत्म रचनाओं में से हुआ करता है. अधिक से अधिक पाठकों की दृष्टि से वह लिखा गुजरे इसकी उसके मन में लेखक-सुलभ भावना भी बलवती रहती है. परन्तु, इस मंच पर लेखकों की उस भावना के प्रति सम्मान का भाव होने के बावज़ूद रचनाकर्म में उत्तरोत्तर विकास हो इसे महत्ता दी जाती है.

क्या ही अच्छा होता आप इस ज़िन्दग़ी के प्रति वर्तमान की सुदृढ़ भावनाओं को, जैसा कि आपने साझा किया है, पाठकों के लिए प्रस्तुत करतीं जो पद्य की कई-कई विधाओं, यथा, तुकांत, अतुकांत, छंदबद्ध, छंदमुक्त आदि में आबद्ध होती. 

सादर धन्यवाद.

Comment by Savitri Rathore on March 31, 2013 at 12:13am

आदरणीय राम शिरोमणि जी,सादर नमस्कार!
बहुत -बहुत आभार।

Comment by Savitri Rathore on March 31, 2013 at 12:11am

आदरणीय सौरभ पांडे जी,सादर नमस्कार!
सच में जीवन को समझना बहुत कठिन है।इस विषय पर लेखनी चलाना भी अत्यंत कठिन कार्य है और जीवन को शब्दों में परिभाषित करना मेरे जैसी तुच्छ रचनाकार के लिए अत्यंत दुरूह कर्म।यदि यह कविता मैंने अब इस समय लिखी होती तो अवश्य यह पूर्णरूपेण छंद -विधान के अंतर्गत होती और अपेक्षाकृत गाम्भीर्ययुक्त होती ,किन्तु मैंने इसे तब लिखा था,जब इंटर पास कर मैं स्नातक की छात्रा बनी थी और उस समय जीवन को इतना न समझती थी,जितना कि आज जानती हूँ।आपकी इस अमूल्य प्रतिक्रिया और इस सराहना हेतु मैं हृदय से आभारी हूँ।

Comment by Savitri Rathore on March 30, 2013 at 11:52pm

आदरणीय कुंती जी,सादर नमस्कार!
सच में जीवन को समझना बहुत कठिन है।इस सराहना हेतु बहुत -बहुत आभार।

Comment by Savitri Rathore on March 30, 2013 at 11:50pm

आदरणीय विजय जी,सादर नमस्कार!
ज़िन्दगी को शब्दों में बाँधने का एक छोटा -सा - प्रयास भर किया है मैंने और आप सभी लोगों के आशीर्वाद की बहुत आवश्यकता है मुझे।ऐसे ही स्नेह बनाये रखियेगा।बहुत -बहुत आभार।

Comment by Savitri Rathore on March 30, 2013 at 11:45pm

आदरणीय केवल प्रसाद जी,सादर नमस्कार!
वास्तव में ज़िन्दगी एक रहस्यमयी पहेली है,जिसे कोई नहीं समझ सकता।मेरी रचना पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने हेतु आपका बहुत -बहुत आभार।

Comment by ram shiromani pathak on March 29, 2013 at 8:59pm

आदरणीया सावित्री जी:बहुत सुन्दर रचना, बधाई स्वीकार करें। सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 29, 2013 at 1:50pm

ज़िन्दग़ी के प्रति विस्मय सनातन है. अतः इस भाव दशा पर रचनाकर्म थोड़ा कठिन होता है. कारण कि विभूतियों ने बहुत कुछ कहा हुआ है.  यही रचना यदि छंद शिल्प या ग़ज़ल के लिहाज से प्रस्तुत हुई होती तो अवश्य एक गंभीर प्रयास होता.

आपसे हुई अपेक्षा के लिए बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service