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यह घर तूम्हारा है

यह घर तुम्हारा है

1

फूलों के हिंडोले में बैठ कर

घर आयी पिया की ,

तमाम खुशियों और सपनों को ,

झोली में भर कर .

दहलीज़ पर कदम रखते ही

मेरे श्रीचरणों की हुई पूजा

चूल्हे पर दूध उफ़न कर कहा –

‘’ बधाई हो ! लक्ष्मी का घर में आगमन हुआ है ‘’

सबने शुभ शकुन का स्वागत किया .

बड़े जनों ने कहा – ‘’ आज से यह घर तुम्हारा है .’’

कुछ दिनों बाद -

मेरी कल्पनाओं ने उड़ान भरनी चाही

सपनों ने अपने पंख फैलाये

तब –

उड़ने को मेरे पास आकाश…

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Added by coontee mukerji on June 27, 2013 at 5:24pm — 19 Comments

तुम्हारे लिए

तुम्हारे लिए

 

खुद हो के बेरंग, क्यों दुनिया के लिए रंग लाती हो ?

अपनी मंज़िल भूलकर, क्यों दूजे की राह सजाती हो ?

जो बीत गया वो फिर लौट के न आनेवाला

यकीन कर लो मेरा, क्यों अपनी जान जलाती हो ?

सच तुम…

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Added by Dr Babban Jee on June 27, 2013 at 2:30pm — 9 Comments

मेरी विचार यात्रा ....2--वाक् -युद्ध

वाक् -युद्ध

वाक् युद्ध याने शब्दों की लड़ाई। बिना शस्त्र या अस्त्र के लड़ा जाने वाला ऐसा युद्ध जिसमें कोई भी ख़ून खराबा नहीं होता और जिसमें किसी भी तरह के युद्ध क्षेत्र की आवश्यकता नहीं होती। इस वाक् युद्ध में कोई भी आपका शत्रु या मित्र आपके सामने हो सकता है।



वाक् युद्ध में किसी भी तरह के बचाव के लिए ढाल की जरुरत नहीं होती। शब्दों द्वारा लड़ी जाने वाली इस लड़ाई में जब स्वर की प्रत्यंचा पर शब्द रूपी बाण से किसी पर वार किया जाता है तो वह ख़ाली नहीं जाता। वैसे भी कहा जाता है…

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Added by Veena Sethi on June 27, 2013 at 1:30pm — 11 Comments

महानायक !

उत्तराखंड की आपदा हो ,या देश के दुश्मनो के काले कारनामो  मे लाखो लोगो का  एक मात्र सहारा भारतीय सेना, उसका एक हेलीकाप्टर दुर्र्घटना ग्रस्त हुआ और हमारे नायक सहीद हुए ! घटना स्थल के निकट होने के कारण , मन मे कुछ भाव उठे जो लिख रहा हु ! मंच के प्रबुद्ध भागीदार त्रुटियों को माफ़ करते हुए |सभी को भगवान सुरक्षित करे शांति दे यही इच्चा है !

मेरी भावना समझने की क्रपया करे 

तंग हालात मे जो हस के गुजर जाते है |

मुसीबतों मे  जो सोना सा निखर जाते…

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Added by aman kumar on June 27, 2013 at 12:52pm — 20 Comments

यूँ ही चलकर

साधन में, सुधि में, समाधि ,संवाद में, ढूंढता हूँ संजोये नाम

कागज में, पाती में, दीये की बाती में, खोजा है बेसुध  अविराम,

गैर की निगाहों में, पराजायी बाँहों में, या दिन हो या कोई शाम

जख्मों में, टीसों में,आहों में, शीशों में, हो मेरा शायद गुमनाम  

 

डॉ. ललित

मौलिक और अप्रकाशित 

Added by Dr Lalit Kumar Singh on June 27, 2013 at 5:28am — 8 Comments

चीखती हैं सरहदें

चीखती हैं सरहदें और जागते जवान हैं|

रक्त से शहीदों के अब लाल आसमान है||

शहीद होते पूतों की माताएँ सिसक रही|

बिछुड़ के अपने पति से पत्नियाँ बिलख रही||

 

पित्रहीन बच्चों का भी चेहरा रंगहीन है|

परिवार था खुश कभी आज दीनहीन है||

 

मुआवजे की भीख दे नेता जी उबर लिए|

चेतावनी जो बदले की उससे वो मुकर लिए||

 

सो रहे नेताओं से मेरा एक सवाल है|

जो काटे सिर हेमराज का किसलिए मेहमान है||

 

सर के बदले सर…

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Added by Harish Upreti "Karan" on June 26, 2013 at 11:43pm — 14 Comments

अशआर

मुखतलिफ़ शेर .... 

.

लाख कोशिश कर ले इंसा कुछ नहीं कर पाएगा

मौत की जद में किसी दिन जिंदगी आ जाएगी

इबादत करना चाहो गर खुदा की तुम हकीकत में

मुहब्बत के चिरागों को कभी बुझने नहीं देना ...

आधे अधूरे रह गए हैं ख्वाब इस लिए 

इल्ज़ाम दे रहे हैं वो अपने नसीब को .....

 

रायगां बहने नहीं देता इन्हें 

अपने अशकों से वुजू करता हूँ मैं ....

 

दिया मुझ को मेरी किस्मत ने सब कुछ

मगर तेरी कमी अब भी है…

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Added by Ajay Agyat on June 26, 2013 at 8:00pm — 8 Comments

ग़ज़ल-1

खुशबू समेटने से किसका  हुआ भला   है   

जब-जब चिता जली है, चन्दन वहाँ  जला  है 

 

बैठा रहा तो मुझको खुद से गिला था यारों 

जब चल पड़ा तो सबको हर पल बहुत खला है 

 

अब है किसे पता भी, माहौल कब ये बदले 

हर शख्स देखने में लगता मुझे भला है

 

सुन वो कहाँ रहे थे, चर्चा चली जो मेरी 

बेचैन  हो गए, जब, उनका कहा  भला है  

 

जिसको अजीज़ माना, यूँ दूर ही रहे सब 

जब काम आ पड़ा तो फिर से खलामला…

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Added by Dr Lalit Kumar Singh on June 26, 2013 at 7:30pm — 12 Comments

तनाव...

तनाव की लिखावटें...

अक्सर अजीब होती हैं ...

काँपती सी और कुछ उलझी हुई..

उनमें कहीं कहीं शब्द छुट जाते हैं ..

कटिंग होती है..

और सहायक क्रिया नहीं होती है

सबसे अजीब होता है ..

सपनों का मरना ..…

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Added by Amod Kumar Srivastava on June 26, 2013 at 4:30pm — 7 Comments

कैसे होंय प्रसन्न, सन्न हैं भक्त भगीरथ-

रथ-वाहन हन हन बहे, बहे वेग से देह । 

सड़क मार्ग अवरुद्ध कुल, बरसी घातक मेह । 

बरसी घातक मेह, अवतरण गंगा फिर से । 

कंकड़ मलबा संग, हिले नहिं शिव मंदिर से । 

 करें नहीं विषपान, देखते मरता तीरथ ।

कैसे होंय प्रसन्न, सन्न हैं भक्त भगीरथ ॥

मौलिक / अप्रकाशित

Added by रविकर on June 26, 2013 at 3:58pm — 6 Comments

ग़ज़ल : अब बगावत जिंदगी से मौत है करने लगी

बहरे रमल मुसमन महजूफ

2122, 2122, 2122, 212

पापियों के पाप से देखो धरा भरने लगी

अब बगावत जिंदगी से मौत है करने लगी,

ढोंगियों की भीड़ है अपराधियों का राज है,

सत्यता इंसानियत इंसान में मरने लगी,

रंग बदला रूप बदला और…

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Added by अरुन 'अनन्त' on June 26, 2013 at 2:43pm — 20 Comments

शिव गंगा का रार, झेल के जग यह रोता-

रुष्ट-त्रिसोता त्रास दी, खोले नेत्र त्रिनेत्र |
बदी सदी से कर गए, सोता पर्वत क्षेत्र |


सोता पर्वत क्षेत्र, बहाना कुचल डालना |
मरघट बनते घाट, शांत पर महाकाल ना |


शिव गंगा का रार, झेल के जग यह रोता |
नहीं किसी की खैर, त्रिलोचन रुष्ट त्रिसोता ||

त्रिसोता= गंगा जी

मौलिक/ अप्रकाशित

Added by रविकर on June 26, 2013 at 12:00pm — 6 Comments

चुनावी साल में नेता जी

आज हर ओर खुदी है सड़क

खड्डों मिट्टी की है भरमार

क्योंकि चुनाव को रह गया है एक साल



इसलिए हरेक नेता जी को

सड़क अब टूटी नज़र आने लगी है

अपनी बेरूख़ी जनता अब भाने लगी है

अब सफाई वाला ,कूड़ा उठाने वाला हाज़िरी लगाने लगे…

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Added by Sarita Bhatia on June 26, 2013 at 10:00am — 22 Comments

क्या विधि लिखूँ सत्य वह …!

क्या विधि लिखूँ  सत्य वह …!

जिसका विधान न हो!

न अनुनय के शब्द रहे 

तेरी प्रार्थना रिक्त रहे 

और प्रार्थी का तुझ

सम्मुख; कोई मान न हो 

क्या विधि लिखूँ  सत्य वह…

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Added by वेदिका on June 26, 2013 at 2:30am — 26 Comments

कविता--सबको बरसात अच्छी लगती है

सबको बरसात अच्छी लगती है

किन्तु कब तक ये अच्छी लगती है।

कम दिनों के लिये सुहानी है

थोडी-थोडी पडे तो पानी है

ज्यादा तो मौत की कहानी है

इसकी कुछ बात अच्छी लगती है

सबको बरसात अच्छी लगती है .......।

सब नदी-नाले ये चलाती है

रास्ते भी यही बनाती है

हमको चलना यही सिखाती है

हर मुलाक़ात अच्छी लगती है

सबको बरसात अच्छी लगती है........

पेड-पौधों का सबका कहना है

साथ इसके सभी को रहना…

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Added by सूबे सिंह सुजान on June 25, 2013 at 11:30pm — 14 Comments

प्रतीक्षा / कविता

पुष्प से सुन्दर,कोमल हृदय में 

लिए एक मधुर-सी- आकांक्षा।

सुन्दर होंगे क्षण प्रिय-मिलन के ,

 सदा करती हूँ तुम्हारी प्रतीक्षा।

मेरे इस जीवन का एकमात्र

सुन्दर-मधुर स्वप्न हो तुम।

जिसे अब तक नहीं जानती मैं,

मेरे वो अज्ञात प्रियतम हो तुम।

तुम्हारे दर्शन को व्याकुल आत्मा।

सदा करती हूँ तुम्हारी प्रतीक्षा। 

तुम स्वप्न हो मेरे जीवन का,

अनुपम आनंद देती ये कल्पना।

पर उस क्षण मैं जाती हूँ काँप,

जब पाती हूँ तुम्हें केवल सपना।

कैसे…

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Added by Savitri Rathore on June 25, 2013 at 9:03pm — 10 Comments

दोहा (हास्य )

खा खाकर मोटी हुई,जैसे मोटी भैंस !

मै दुबला होता गया ,मेरे धन पे ऐश !!

सुबह शाम गाली सुनूँ ,हरदम करती चीट !

धोबी का सोटा उठा ,अक्सर देती पीट !!

मै घर का नौकर बना ,झेलूँ बस उपहास !

रूठ विधाता भी गये,जाऊं किसके पास !!…

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Added by ram shiromani pathak on June 25, 2013 at 8:30pm — 48 Comments

कुंडलिया छंद

सत्ता मद में चाहिए, येन केन बस वोट,

गधे तो कहे बांप तो,उसमे क्या है खोट |                                                                                                                                                              

उसमे क्या है खोट, जो नित भार ही ढोता

सत्ता का वह मीत, बोलता  जैसे  तोता    

जीत पर बदल आँख,बता जनता को धत्ता,

नेता की क्या साख, मिले कैसें भी सत्ता |

(२)

गंगा जल में छुप गये,झट से भोले नाथ,

केदारनाथ धाम में,…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 25, 2013 at 4:00pm — 19 Comments

ज़िंदा लेते लूट, लाश ने जान बचाई

खानापूरी हो चुकी, गई रसद की खेप ।

खेप गए नेता सकल, बेशर्मी भी झेंप ।

बेशर्मी भी झेंप, उचक्कों की बन आई ।

ज़िंदा लेते लूट, लाश ने जान बचाई ।…

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Added by रविकर on June 25, 2013 at 3:30pm — 13 Comments

!! मेरी लाडो !! एक प्रयास शक्ति को जगाने का

!! मेरी लाडो !!

 “ मेरी लाडो ” समर्पित है उन तमाम बहन बेटियो को जो किसी न किसी हादसो के कारण से अपने वजूद अपने अस्तिव को भुला चुकी है या फिर हार मानके अपनी किस्मत को दोष दे रही है । ये एक प्रयास है…

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Added by बसंत नेमा on June 25, 2013 at 2:30pm — 18 Comments

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