तब होके रहेगा गोल...!
---------------------------
पूछा मैंने नन्ही शहरी चिड़िया से
तपती धरती पर तुम क्यों
इस तरह उतर आई .....!
आकाश की ओ स्वछन्द परी,
स्वार्थी इंसानों की दुनिया में
नाहक ही मरने को आयी?
बोली बेचारी मायूस होकर
जहाँ जहाँ था हमारा बसेरा
वहां वहां कट गये वृक्ष के आशियाने
तन गए इंसानों के गगनचुम्बी महल
ये देख हमारी बिरादरी के दिल गए दहल.
अब न मिलती छाँव है
न हवा, न मिलता कहीं जल है.
मैं सोच रही…
Added by dinesh solanki on May 30, 2013 at 8:30am — 11 Comments
“थाम अंगुली जो चलाये वो पिता होता है”
ये पंक्ति तो है हमारी। अब आप इसमें तीन पंक्तियाँ और जोड़ कर चार पंक्तियों का एक मुक्तक बना दीजिये। जिन कवि मित्रों की चार लाइन की रचना हमें पसंद आयेगी, हिंदी की अंतर्राष्ट्रीय ई-पत्रिका “प्रयास” के जून अंक (पिता विशेषांक) में प्रकाशित की जायेंगी। आप अपनी रचना www.vishvahindisansthan.com पर पोस्ट कर सकते हैं या prayaspatrika@gmail.com पर ई-मेल कर सकते हैं…
ContinueAdded by Prof. Saran Ghai on May 30, 2013 at 4:21am — 1 Comment
शार्दूलविक्रीडित छंद
इस छन्द में चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में १९ वर्ण होते हैं। १२ वर्णों के बाद तथा चरणान्त में यति होती है। गणों का क्रम इस प्रकार है - गुरु-गुरु-गुरु (मगण ), लघु-लघु-गुरु (सगण ), लघु-गुरु-लघु (जगण), लघु-लघु-गुरु (सगण ) गुरु-गुरु-लघु (तगण ), गुरु-गुरु-लघु (तगण ), गुरु |
माँ विद्या वर दायिनी भगवती, तू बुद्धि का दान दे |
माँ अज्ञान मिटा हरो तिमिर को, दो ज्ञान हे शारदे ||
हे माँ पुस्तक धारिणी जगत में, विज्ञान विस्तार दे…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on May 29, 2013 at 7:26pm — 10 Comments
पहला प्रयास है ,निसंकोच समझा दीजिए
धरती के चिथड़े हुए ,जल बिन सब बेजान |
खाली बर्तन ले सभी ,भटक रहे इन्सान ||
गर्मी से सूखा बढ़ा , जल की हाहाकार |
अफरा तफरी है मची ,प्यासे है नर नार ||
ताल भये सूखे सभी, पारा बढता जाय |
खाली गागर ले फिरे, पानी नजर न आय ||
मिनरल वाटर कंपनी ,धार रूप विकराल |
पानी सारा ले उडी ,जन जन है बेहाल ||
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Sarita Bhatia on May 29, 2013 at 6:32pm — 18 Comments
मानव दौड़ें राह पर, थकते उसके पाँव
आत्मा नापे दूरियाँ, नगर डगर हर गाँव |
थक जाते है पाँव जब, फूले उसकी साँस,
मन तो अविरल दौड़ता,मन में हो विश्वास |
सार्थक मन की दौड़ है, भौतिकता को छोड़
सही राह को जान ले, उसी राह पर दौड़ |
पञ्च तत्व से तन बना, जिसका होता अंत
बसते मन में प्राण है, जिसकी दौड़ अनंत…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 29, 2013 at 6:17pm — 15 Comments
नाच नचाइ रही सबको अरु ,झूठ फरेब लिए बहु रंगे!
प्रेम क पाठ पढ़ाइ सबै फिर, भाग गयी वह दूसर संगे !!
रूप बिगाड़ फिरे मज़नू बन ,लागत हो जइसे भिखमंगे !
आपन बाल उखाड़ रहे अब ,आवत देखि दया…
Added by ram shiromani pathak on May 29, 2013 at 3:30pm — 12 Comments
जो बीत गयी सो बात गयी ...ये बात किसी ने खूब कहीं
अब क्या सोचे तू ,पड़ा-पड़ा ..उठ जाग जा अब रात गयी
कर तैयारी अब आगे की ,कि रात गयी तो बात गयी
फिर ना कहना ऐ-यार मेरे .. सारी मेहनत बेकार…
ContinueAdded by POOJA AGARWAL on May 29, 2013 at 3:30pm — 10 Comments
..वो मै था .कि......
जो सबके साथ चलना चाहता था ,
पर ये वो थे , अपने को मेरा सहारा समझ बेठे ,
वो मै था , जो प्यार को खुदा मानता रहा ,
पर ये वो थे की मेरे प्यार मे , लालच को तलाशते रहे,
वो मै था, सबसे छोटा बना हुआ था ,
पर ये वो थे सब अपने को बड़े बना बेठे ,
एक मै था कि घर अपना न बना पाया अभी तक
पर ये वो थे सब महल सजा बेठे ,
वो मै था कि बेठा रहा इंतजार मे मौत तक ,
पर ये वो थे कि मुड़ कर भी न देखा रहे गुजर मे…
Added by aman kumar on May 29, 2013 at 2:00pm — 15 Comments
प्रेम के विशाल बटवृक्ष
जिसमें भावनाओं की गहरी
जड़ें और यकीन की
मजबूत साखें
उसमें झूमता है
इठलाता है
सब्ज़ दिल
रिवाजों और रस्मों की
तेज आँधियाँ भी
बेअसर होती हैं इस
विशाल वृक्ष के आगे
जब यकीन के मजबूत तने में
तना होता है…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 29, 2013 at 12:00pm — 9 Comments
मान मान मन मूरख मेरे,
मत फंस विषय जाल मे,
जो सुख चाहे भाग विषयन से,
मत इन फंद फंसे री ।
जनम जनम नहि इनसे उबरें,
ताते ध्यान धरे…
ContinueAdded by annapurna bajpai on May 29, 2013 at 8:30am — 7 Comments
हवा
एक वासंती सुबह
‘’ मैं कितनी खुशनसीब हूँ ,
मेरे सर पर है आसमान
पैरों तले ज़मीन .
मेरी सांसों के आरोह – अवरोह में ,
मेरे रंध्रों में ,
शुद्ध हवा का है प्रवाह .’’
‘’ मैं कितनी खुशनसीब हूँ .’’
कुंजों में एक सरसराहट सी हुई ,
मालती की कोमल पल्लवों पर ,
ठहरी हुई थी हवा ,
मेरे विचारों को भाँप कर ,
मेरे गालों को थपथपा कर
उसने हौले से कहा –
‘’ खुश और नसीब ,
दो अलग अलग है बात .
मुझसे पूछो –
मैं…
Added by coontee mukerji on May 29, 2013 at 1:25am — 14 Comments
तुम्हारा मेरा होना
जैसे न होना एक सदी का
वक्त के परतों के भीतर
एक इतिहास दबा सा |
जैसे पाषाण के बर्तनों मे
अधपका हुआ सा खाना
और गुफा मे एक चूल्हा
और चूल्हे में आग का होना |
तुम्हारा मेरा होना
जैसे खंडहर की सिलाब में
बीती बारिश का रिमझिम होना
और दीवारों की नक्काशियों में
मुस्कुराते हुए चेहरों का होना.............
तुम्हारा होना
जैसे कोयले की अंगार के पीछे
हरियाले बरगद की छाँव का होना
जहाँ सकुन की…
Added by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on May 29, 2013 at 12:21am — 10 Comments
//ॐ//
हंसवाहिनी वाग्देवी शारदे उद्धार कर
अर्चना स्वीकार कर माँ, ज्ञान का विस्तार कर
स्वप्न की साकारता संस्पर्श कर लें उंगलियाँ
ज्ञान की अमृत प्रभा द्रुमदल की खोले पँखुड़ियाँ
नवल सार्थक कल्पना में हौंसलों की धार कर …
Added by Dr.Prachi Singh on May 28, 2013 at 8:00pm — 37 Comments
वाह! तरही मुशायरा के इस अंक में क्या ही शानदार, एक से बढ़कर एक गजलें पढने को मिली...आनंद आ गया... सभी गजलकारों को तहेदिल से मुबारकबाद देते हुए मुशायरा के दौरान व्यस्तता की वजह से पोस्ट नहीं हो सकी 'मिसरा ए तरह' पर गजल प्रयास सादर प्रस्तुत...
क्या पता अच्छा या बुरा लाया।
चैन दे, तिश्नगी उठा लाया।
जो कहो धोखा तो यही कह लो,
अश्क अजानिब के मैं चुरा लाया।
क्यूँ फिजायें धुआँ धुआँ सी हैं,
याँ शरर कौन है छुपा…
ContinueAdded by Sanjay Mishra 'Habib' on May 28, 2013 at 5:21pm — 20 Comments
पछुआ की यह गर्म हवा व्याकुल करती है,
सूरज की भी किरणें हैं ले रहीं परीक्षा।
गर्मी के दिन याद दिलाते हैं गांवों की,
काश! छुअन छू जाती हमकों अमराई की,
गर्मी के दिन याद.........................।
शहरों की यह आपाधापी, कमरे में बंद अपनी दुनिया।…
Added by Atul Chandra Awsathi *अतुल* on May 28, 2013 at 1:00pm — 10 Comments
लो झेलो अब गर्मी
भयानक-विकराल और
शायद असह्य भी..है न ?!!
देखो अब प्रकृति का क्रोध
तनी हुई भृकुटि और प्रकोप...
विज्ञान के मद में चूर
ऐशो आराम की लालच में
भूल बैठे थे कि है कोई सत्ता
तुमसे ऊपर भी,
है एक शक्ति - है एक नियंत्रण
तुम्हारे ऊपर भी...
एसी चाहिये-फ्रिज चाहिये
हर कदम पर गाड़ी चाहिये
लेकिन इन सबकी अति से
होने वाली हानि पर कौन सोचे
किसके पास है समय ?!!!
वैज्ञानिक कर रहे हैं शोध
पर किसके…
Added by VISHAAL CHARCHCHIT on May 27, 2013 at 9:30pm — 17 Comments
!!! गजल !!!
वज्न- 2122, 2122, 2122, 212
अब वतन को लूटकर सिर कांटना क्या पीर है।
आम जनता रोज मरती शापता क्या पीर है।।
घूस खोरी या कमीशन खूब करते ठाठ से।
मुफलिसी का हाथ थामे रास्ता क्या पीर है।।1
जिन्दगी की डोर टूटी बम धमाका जोर से।
आदमी अब आदमी ना वासना क्या पीर है।।2
न्याय भी अब राग गाती या गरीबी-ताज हो।
जन्म का अधिकार कहती आत्मा क्या पीर है।।3
जेठ सूरज की नवाजिश वृक्ष जलकर मर रहे।
आश का पंछी…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 27, 2013 at 7:46pm — 16 Comments
जिंदगी
दर्द है या गम,
कि है नीरस सावन,
या कागज कोरा..
जाती हुयी शाम को ..
आती हुयी रात को ..
खिलखिलाती वो हंसी को,
पंक्षियों के कोलाहल को...
उसको है…
Added by Amod Kumar Srivastava on May 27, 2013 at 4:30pm — 7 Comments
नए रंग खिले नए फूल खिले ,
जीवन में जब से तुम आये |
आँखों से घटाएं बरस रहीं ,
ये प्रेम के सागर लहराए |
कभी पत्थर जैसे जीते थे |
बेहोशी में दिन बीते थे |
जीवन को बोझ सा ढोते थे |
तनहाई में अक्सर रोते थे |
मायूस मेरा दिल नाच उठा ,
जब देख हमे तुम मुस्काये |
सूना इस दिल का आँगन था |
कहीं भटका भटका सा मन था |
औरों को अपना कहते थे |
खुद से ही खफा हम रहते थे…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on May 27, 2013 at 3:00pm — 9 Comments
जो गीत ह्रदय से निकला हो , कागज़ पे लिखो बेमानी है ।
वो गीत ह्रदय पर लिखना, ही जीवन की प्रेम कहानी है |
जब दिल में प्रेम उमड़ता है, आँखों से आंसू बहते हैं ,
मोती हैं समझने वालों को, नासमझो को तो पानी है ।
हर प्रेमी अपने प्रियतम को, हर हाल में पान चाह रहा ,
नासमझ भला ये क्या जाने, प्रेम तो तो एक कुर्बानी है ।
जब प्रेम दिलों में फूटे तो, वो सबके लिए बराबर हो ,
पर प्रेम में भेद भी होता है, इस बात पे ही है…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on May 27, 2013 at 2:35pm — 19 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |