For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ''s Blog (137)

सरदार लाज़मी हो असरदार तो जनाब (३८ )

++ग़ज़ल ++(221 2121 1221 212 /2121 ) 

सरदार लाज़मी हो असरदार तो जनाब 

जो चुन सके अवाम के कुछ ख़ार तो जनाब 

****

ऐसा भी क्या शजर जिसे फूलों से सिर्फ़ इश्क़ 

कोई हो शाख शाख-ए-समरदार* तो जनाब (*फल से लदी डाली )

***

होगा नसीब में कि न हो बात और है 

ता-ज़ीस्त रहती प्यार की दरकार तो जनाब 

***

जज़्बात बर्ग-ए-गुल* से ही होते हैं क़ल्ब…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 20, 2019 at 10:51pm — 2 Comments

उम्र भर जो भी ग़रीबी के निशाँ देखेगा (३६)

उम्र भर जो भी ग़रीबी के निशाँ देखेगा 

कैसे मुमकिन है वो बाँहों में जहाँ देखेगा 

** 

कितना बारूद भरा होगा बताना मुश्किल 

लफ्ज़ से कोई निकलता जो धुआँ देखेगा 

**

दिल की रानाई का अंदाज़ा लगाए कैसे 

जो फ़क़त हुस्न कि फिर शोला-रुख़ाँ* देखेगा 

**

दर्द महसूस भला ग़म का उसे हो क्यों कर 

ज़िंदगी…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 8, 2019 at 1:00am — 1 Comment

मिला न जो हिज़्र इश्क़ में तो कहाँ मुक़म्मल हुई मुहब्बत (३५)

मिला न जो हिज़्र इश्क़ में तो कहाँ मुक़म्मल हुई मुहब्बत 

डरे फ़िराक़-ओ-ग़मों से उसको न इश्क़ फरमाने की ज़रूरत 

**

सफ़र मुहब्बत की मंजिलों का हुज़ूर होता कभी न आसाँ 

यहाँ न साहिल का कुछ पता है न तय सफ़र की है कोई मुद्दत

**

न जाने कितने हैं इम्तिहाँ और क़दम क़दम पर बिछे हैं कांटे 

रह-ए-मुहब्बत पे है जो चलना तो दिल में रक्खें ज़रा सी हिम्मत 

**

रक़ीब गर मिल गया कोई तो बढ़ेंगी…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 5, 2019 at 10:30am — 4 Comments

खिजाँ ने गुलशनों में दर्द यूँ बिखेरे हैं (३४ )

खिजाँ ने गुलशनों में दर्द यूँ बिखेरे हैं 

चमन के बागबाँ के बच्चे आज भूखे हैं 

**

बहार तुझ पे है दारोमदार अब सारा 

कि फूल कितने चमन में ख़ुशी के खिलते हैं 

**

अजीब शय है तरक़्क़ी भी लोग जिस के लिए 

ज़मीर बेच के ईमान बेच देते हैं 

**

क़ुबूल कर ली खुदा ने हर इक दुआ जब भी 

दुआ में ग़ैर की खातिर ये हाथ उट्ठे…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 3, 2019 at 7:30pm — 4 Comments

मुख़्तलिफ़ हमने यहाँ सोच के पहलू देखे (३३ )



मुख़्तलिफ़ हमने यहाँ सोच के पहलू देखे

अक़्ल हैरान है,ऐसे मियाँ जादू देखे

**

आदमी शह्र में हैरान परेशाँ देखा

जब कि जंगल में बिना ख़ौफ़ के आहू देखे

**

जब अमावस को गया चाँद मनाने छुट्टी

नूर फ़ैलाने को बेताब से जुगनू देखे

**

दिल में इंसान के अल्लाह नदारद देखा

और हैवान बने आज के साधू देखे

**

प्यार अहसास है,महसूस किया जाता है

कैसे मुमकिन है कोई चश्म से ख़ुशबू देखे

**

रोटियाँ थोक में मिलती हैं…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 1, 2019 at 7:00pm — 4 Comments

ये दुआ है कि ख़ुशी आपके घर में आये (३२)

(२१२२ ११२२ ११२२ २२/११२ )

.

ये दुआ है कि ख़ुशी आपके घर में आये

हादिसा पेश न जीवन के सफ़र में आये

**

अश्क आँखों में अगर हों तो ख़ुशी के हों बस  

और सैलाब न अब दीदा-ए-तर में आये 

**

प्यार की राह को आसाँ न समझना कोई

हौसला हो वही इस राह-गुज़र में आये

**

कोशिशें लाख  करे तो भी नहीं है मुमकिन 

ताब-ए-ख़ुर्शीद तो हरगिज़ न क़मर में आये 

**

ग़ैर के ऐब को आसाँ है नज़र में रखना

ऐब ख़ुद का न किसी की भी नज़र में आये

**

अपने…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 24, 2019 at 7:00pm — 4 Comments

कभी सदा-ए-दिल-ए-यार जो सुनी होती (३१)



कभी सदा-ए-दिल-ए-यार जो सुनी होती 

तो दास्ताँ न मेरी दर्द से भरी होती 

**

रक़ीब पर न कभी रहम गर किया होता 

मेरी ये ज़िंदगी सहरा न फिर बनी होती 

**

तुम्हारी ज़िंदगी में ग़म कभी न आते गर 

रिदा-ए-आरज़ू थोड़ी सिकुड़ गई होती 

**

गुहर हयात में तुमको नसीब हो जाते 

ज़रा सी वक़्त से तैराकी सीख ली होती …

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 21, 2019 at 11:00am — 7 Comments

जल रही दिलों में आग हम बुझाएँ किसलिए (३० )



जल रही दिलों में आग हम बुझाएँ किसलिए 

और सब्र बार बार आजमाएँ किसलिए 

**

तोड़ता सुकून-ओ-चैन की हदें अगर कोई 

लोग हिन्द देश के सितम उठाएँ किसलिए 

**

क़त्ल जो करे यक़ीन का हबीब भी अगर 

फिर यक़ीँ उसी पे आज हम दिखाएँ किसलिए 

**

बार बार हो चुके ग़लत वतन के फ़ैसले 

फिर अदू की चाल में हम आज आएँ…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 21, 2019 at 1:30am — 8 Comments

जिस मुल्क में ग़रीब के लब पर हँसी नहीं (२९ )

जिस मुल्क में ग़रीब के लब पर हँसी नहीं 

तो मान कर चलें कि तरक़्क़ी हुई नहीं 

**

जुम्लों के दम पे जीत की आशा न कीजिये 

चलती है बार बार ये बाज़ीगरी नहीं 

**

तहज़ीब क़त्ल-ओ-ख़ून की परवान चढ़ रही 

लगता है आदमी रहा अब आदमी नहीं 

**

उम्मीद रहगुज़र कोई मिलने की मत करें 

मंज़िल के वास्ते है अगर तिश्नगी नहीं 

**

चाहें…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 16, 2019 at 4:30pm — 5 Comments

जब तिरंगे में लिपट गांव वो आया होगा (२८ )

शहीदों को ख़िराजे अक़ीदत 

------------------------------

वो  तिरंगे में लिपट गांव जब आया होगा |

तो हर इक शख़्स ने चुल्हा न जलाया होगा |

******

क्या न गुज़रेगी किसी दिल पे बयाँ हो कैसे 

आख़री फूल तिरे सर पे चढ़ाया होगा |

******

जब गए दोस्त उसे आज सलामी देने 

याद गुज़रा उसे  बचपन भी फिर  आया होगा |…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 15, 2019 at 1:00pm — 5 Comments

जब आपकी नज़र में वफ़ा सुर्ख़रू नहीं (२७ )

(२२१ २१२१ १२२१ २१२ )

जब आपकी नज़र में वफ़ा सुर्ख़रू नहीं 

दिल में हमारे इश्क़ की अब आरजू नहीं 

**

रुसवा किये बिना किसी को हों जुदा जुदा 

गलती से प्यार को करें बे-आबरू नहीं 

**

रिश्तों की सीवनों पे ज़रा ग़ौर कीजिये 

उधड़ीं जो एक बार तो होतीं रफ़ू नहीं 

**

उस मुल्क की अवाम के बढ़ने हैं रंज-ओ-ग़म 

जिस मुल्क में मुहब्बतों की आबजू…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 14, 2019 at 2:00am — 5 Comments

थम रही हैं क्यों नहीं ये सिसकियाँ (२५ )

थम रही हैं क्यों नहीं ये सिसकियाँ 

क्यों परेशां हैं चमन में तितलियाँ 

***

साल सत्तर से भले आज़ाद हैं 

आज भी सजती बदन की मंडियाँ

***

अब घरों में भी कहाँ महफ़ूज़ हैं 

ख़ौफ़ के साये में रहती बेटियाँ 

***

ये बशर कैसी तेरी मर्दानगी 

मार देता क्यों है नन्ही बच्चियाँ 

***

कहते हैं हम बेटा-बेटी एक से 

फ़र्क़…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 13, 2019 at 12:30am — 4 Comments

ज़िंदगी ने कुछ सबक़ हमको सिखाकर दम लिया ( २४ )

ज़िंदगी ने कुछ सबक़ हमको सिखाकर दम लिया
ज़िंदगी जीने के लायक ही बनाकर दम लिया
***
साहिलों से जब मिले तूफ़ान का मुँह मोड़कर
साहिलों से फिर नये तूफाँ उठाकर दम…
Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 8, 2019 at 2:30pm — 7 Comments

रोशनी के सामने ये तीरगी क्या चीज़ है ( २३ )

रोशनी के सामने ये तीरगी क्या चीज़ है 

वक़्त की आंधी के आगे आदमी क्या चीज़ है 

***

जब थपेड़े ग़म के खाता है जहाँ में आदमी

तब उसे मालूम होता है ख़ुशी क्या चीज़ है 

***

एक बच्चे की कोई भी आरज़ू पूरी हो जब 

ग़ौर से फिर देखिये चेहरा हँसी क्या चीज़ है 

***

ग़ुरबतों से लड़ के जिसने ख़ुद बनाया हो मक़ाम 

बस वही तो जानता है…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 7, 2019 at 10:30am — 4 Comments

भले नीम जां मेरा जिस्म हो , अभी रूह इसमें सवार है (२२ )

भले नीम जां मेरा जिस्म हो  अभी रूह इसमें सवार है 

अभी जा क़ज़ा किसी और दर मेरी साँस में भी क़रार  है 

***

है जवाब देती लगे नज़र अभी है ख़याल की रोशनी 

रहे ज़ीस्त मेरी रवाँ दवाँ  ये तुम्हीं पे दार-ओ-मदार है 

***

जो पिलाई तूने थी चश्म से कभी मय जो बन के थी साक़िया

न उतर सका न उतार पर  चढ़ा अब तलक वो ख़ुमार है …

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 4, 2019 at 5:30pm — 7 Comments

हयात में तू मुहब्बत की आन रहने दे (२१)

(1212 1122 1212 22 )

हयात में तू मुहब्बत की आन रहने दे 

कतर न पंख ये दिल की उड़ान रहने दे 

***

न तोड़ सिलसिला तू इस तरह मुहब्बत का

वफ़ा का मुझको जरा सा गुमान रहने दे

****

न खोल राज़ सभी हो न मेरी रुसवाई 

कुछ एक राज़ सनम दरमियान रहने दे

***

मैं जानता हूँ हक़ीक़त में प्यार है मुझसे 

क़फ़स में क़ैद तेरे मेरी जान रहने दे…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 2, 2019 at 6:00pm — 2 Comments

कभी तन्हा अगर बैठें तो ख़ुद से गुफ़्तगू कीजे (२०)

(१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ )

कभी तन्हा अगर बैठें तो ख़ुद से गुफ़्तगू कीजे 

खुदा मौजूद है  अंदर उसी की जुस्तजू कीजे 

***

नुज़ूमी चाल क़िस्मत की क्या हमारी बताएगा 

पढ़ा किसने मुक़द्दर है भला क्या आरजू कीजे 

***

कहाँ तक नफ़रतों का ज़ुल्म सहते जायेंगे यारों 

मुहब्बत के  शरर से रोशनी अब चार सू कीजे 

***

तभी करना मुहब्बत जब निभा…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 30, 2019 at 10:00am — 8 Comments

दस्तूर इस जहाँ के हैं देखे अजीब अजीब (१९)

(२२१ २१२१ १२२१ २१२  )

दस्तूर इस जहाँ के हैं देखे अजीब अजीब

दुश्मन भी एक पल में बने देखिये हबीब

***

बनती बिगड़ती बात अचानक कभी कभी

बिगड़े नसीब वालों के खुल जाते हैं नसीब

***

वादा किया था हम से सजा लेंगे ज़ुल्फ़ में

लेकिन सजा है ज़ीस्त में क्यों आपके रक़ीब

***

नज़दीक आज लग रहा होता है दूर कल

जो दूर दूर रहता वो हो जाता है क़रीब

***

होता है पर कभी कभी ऐसा भी मो'जिज़ा

बनता ग़रीब बादशा और बादशा ग़रीब

***

हैरत है बातिलों…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 27, 2019 at 5:00pm — 4 Comments

समझ न आया कि पत्थर से प्यार कैसे हुआ  ( 18)

समझ न आया कि पत्थर से प्यार कैसे हुआ 

हसीन हादसे का मैं शिकार कैसे हुआ 

***

कहा है तूने कि ये हादसा नहीं है गुनाह 

हुआ गुनाह तो फिर बार बार कैसे हुआ 

***

हुई है कोई ग़लतफ़हमी आपको मुंसिफ़ 

करे जो प्यार कोई गुनहगार कैसे हुआ 

***

करेगा कौन यक़ीं गर मुकर भी जाओ तो 

चला न तीर तो फिर आर पार कैसे हुआ …

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 26, 2019 at 2:30pm — 12 Comments

किसी रिश्ते में हों गर तल्ख़ियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर   (१७ )

किसी रिश्ते में हों गर तल्ख़ियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर 

शजर पर गर हैं सूखी पत्तियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर 

**

बसाने को बसा लो ज़ुर्म की अपनी हसीं दुनिया

मगर बदनाम जो हों बस्तियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर 

***

नुमाइश कर रहे हो जिस्म की अच्छी नज़र चाहो

हुज़ूर ऐसी कभी ख़ुशफ़हमियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर 

***

मुसीबत, मुश्किलें, आफ़ात, चिंता और ग़म भी संग

घरोंदे में घुसी ये मकड़ियाँ हरगिज़ नहीं बेहतर 

***

नहीं फ़र्ज़न्द को हासिल अगर कुछ काम थोड़े दिन  

मिलें  उसको…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 24, 2019 at 12:00pm — 12 Comments

Monthly Archives

2022

2021

2020

2019

2018

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं हम कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२जब जिये हैं दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं हम कान देते आपके निर्देश हैं…See More
2 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service