For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल --ज़मीँ थे तुम मुहब्बत की.......(२)

ज़मीँ थे तुम मुहब्बत की तुम्हीँ गर आस्माँ होते 
हमारे ग़म के अफ़साने ज़माने से निहाँ* होते (*छुपे हुए )
***
बने हो गैर के ,रुख़्सत हमारी ज़ीस्त से होकर 
न देते तुम अगर धोका हमारे हमरहाँ* होते (*हमसफर )
***
तुम्हारी आँख  की मय को अगर पीते ज़रा सी हम 
तुम्हीं साक़ी बने होते तुम्हीं पीर-ए-मुग़ाँ* होते(*मदिरालय का प्रबंधक ) 
***
बनाया हिज़्र को हमने सहारा ज़िंदगी का अब 
वगरना हम भी दुनिया  में अभी तक कुश्तगाँ* होते (*मृत )
***
तुम्हारी याद का मंज़र न भूले हैं अभी वर्ना 
भटकते हम बियाबाँ में कि बह्र-ए-बेकराँ* होते (*बिना किनारों का समुन्दर )
***
हमारी ज़िंदगी में तुम क़दम रखते क़सम से फिर 
महकते हम चमन में और बू-ए-ज़ाफ़राँ * होते (*केसर की महक )
***
तुम्हारी बेवफ़ाई ने हमारा हौसला तोड़ा 
नहीं तो हम मुहब्बत के अमीर-ए-कारवाँ* होते (*कारवाँ के सरदार )
***
मुहब्बत की  ज़रा सी आबरू रखते हमारी तो 
हमारे प्यार के किस्से जहाँ भर में बयाँ होते 
***
'तुरंत' इतना भरोसा गर नहीं करते रक़ीबों पर 
मोहब्बत की हसीँ राहों में अपने भी निशाँ  होते 
***
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |

(मौलिक  एवं अप्रकाशित )

नोट:- (इस ग़ज़ल की प्रेरणा जनाब राज नवादवी साहेब की ग़ज़ल में प्रयुक्त काफिया देखकर मिली )

Views: 609

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 27, 2018 at 11:29pm

तह-ए-दिल  से  शुक्रिया  क़बूल  करें    जनाब  बृजेश कुमार 'ब्रज साहेब . ज़र्रा -नवाज़ी  है  आपकी  |  जी ,वैसे तो क़ाफ़िया /रदीफ़ पर किसी का मालिकाना हक़ नहीं है ,लेकिन अगर कोई क़ाफ़िया का गुलदस्ता एक साथ उपहार में दे और उनके आधार पर कुछ अशआर कहने का  मौका मिल जाये तो शुक्राना पेश करना मैं जरूरी समझता हूँ | हालाँकि मफ़हूम अपना होना जरूरी है किसी की नकल नहीं होनी चाहिए | 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 27, 2018 at 7:24pm

वाकई में बड़ी ही खूबसूरती से कही गई ग़ज़ल..पढ़ते हुए लगा मुझे कि नवादवी साहब से प्रेरित है..

Comment by राज़ नवादवी on December 26, 2018 at 7:01am

आपका स्वागत है ब्रदर गहलोत साहब. सादर 

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 25, 2018 at 11:23pm

तह-ए-दिल  से  शुक्रिया  क़बूल  करें  खादिम  का  जनाब राज़ नवादवी साहेब . ज़र्रा -नवाज़ी  है  आपकी  |

Comment by राज़ नवादवी on December 25, 2018 at 4:54pm

आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत साहब, सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति पे दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें. ज़र्रानवाज़ी का ममनून हूँ. सादर.  

Comment by Samar kabeer on December 23, 2018 at 9:24pm

'फ़ुग़ाँ' शब्द स्त्रीलिंग है ।

Comment by Samar kabeer on December 23, 2018 at 9:22pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

तुम्हारे चश्म की मय को अगर पीते ज़रा सी हम '

इस मिसरे में 'चश्म'शब्द स्त्रीलिंग है,इस मिसरे को अगर यूँ कर लें तो गेयता बढ़ जाएगी:-

'तुम्हारी आँख से मय हम अगर पीते ज़रा सी तो'

' वगरना हम भी दुनियां में अभी तक कुश्तगाँ* होते'

इस मिसरे में 'दुनियां' को "दुनिया" कर लें ।

' चमन में हम महकते और बू-ए-जाफ़राँ* होते'

इस मिसरे में 'जाफ़रां' को "ज़ाफ़रां" कर लें,और इस मिसरे को अगर यूँ कर लें तो ऐब-ए-तनाफ़ुर भी निकल जायेगा:-

"महकते हम चमन में और बू-ए-ज़ाफ़रां होते'

ज़रा सी आबरू रखते हमारी गर मुहब्बत की'

इस मिसरे को यूँ कर लें तो गेयता बढ़ जाएगी:-

'महब्बत की हमारी गर ज़रा सी आबरू रखते' 

' न जाते छोड़कर हमको न जीवन में फ़ुग़ा* होते'

इस मिसरे में 'फ़ुग़ाँ '

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
8 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Jul 6
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Jul 6

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Jul 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service