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थम रही हैं क्यों नहीं ये सिसकियाँ (२५ )

थम रही हैं क्यों नहीं ये सिसकियाँ 
क्यों परेशां हैं चमन में तितलियाँ 
***
साल सत्तर से भले आज़ाद हैं 
आज भी सजती बदन की मंडियाँ
***
अब घरों में भी कहाँ महफ़ूज़ हैं 
ख़ौफ़ के साये में रहती बेटियाँ 
***
ये बशर कैसी तेरी मर्दानगी 
मार देता क्यों है नन्ही बच्चियाँ 
***
कहते हैं हम बेटा-बेटी एक से 
फ़र्क़ बाक़ी है नज़र के दरमियाँ 
***
गर तरक़्क़ी की डगर पर चल पड़े 
गिरने बेटी पर हैं लगती बिजलियाँ 
**
दुख्त* पर लागू पुराने क़ायदे 
हैं जियादातर वही पाबन्दियाँ 
***
बाप बेटी का परेशां आज भी 
फ़िक़्र की रहती है छाई बदलियाँ 
**
है विदाई का वही मंज़र 'तुरंत '
सिसकियाँ शहनाइयाँ और हिचकियाँ 
***
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी 

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 14, 2019 at 2:36pm

आदरणीय Samar kabeer साहेब , मद्दाह में दुख्त और दुख्तर ही लिखा है | हालाँकि जैसा आपने बताया मद्दाह पर भरोसा करना मुश्किल है | एक और प्रयोग में भी दुख्त =बेटी ही है | (यहाँ नुक्ता यूनिकोड में नहीं आ रहा है )

बे-दुख़्त-ए-रज़بے دخت رز

without daughter of grapes, wine

Comment by Samar kabeer on February 14, 2019 at 11:04am

"दुख़्त" दुख़्तर का मुख़फ़्फ़फ़् नहीं "दुख़" है,देखियेगा ।

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 14, 2019 at 2:08am

आदरणीय Samar kabeer साहेब | आदाब | इतना ध्यान रखा फिर भी एक हैं की गलती रह ही गई | आपकी हौसला आफजाई के लिए शुक्रगुजार हूँ | दुख्त =बेटी /कन्या का अर्थ लिया है जिसे दुख्तर  का लघु माना जाता है | 

Comment by Samar kabeer on February 13, 2019 at 4:31pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'अब घरों में भी कहाँ महफ़ूज़ है '

इस मिसरे में 'है' को "हैं" कर लें ।

'दुख्त* पर लागू पुराने क़ायदे'

इस मिसरे में 'दुख्त' का क्या अर्थ लिया है आपने? 

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