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All Blog Posts Tagged 'गीत' (163)

प्रीत की रीत न कोई जाने [गीत ]

ऊद्धव कन्हैया से जाकर सिर्फ इतना बता दीजियेगा ।

हे कृष्ण प्रेमी जनों की अब कुछ तो खबर लीजियेगा ।

उनकी खातिर दिलों जाँ लुटाया ।

और ज़माने को दुश्मन बनाया ।

उनके पीछे ये दुनिया भुलायी ।

उनकी राहों में पलकें बिछायी ।

उनके बिन बृज में क्या हो रहा है हाल सारा सुना दीजियेगा ।

हे कृष्ण प्रेमी जनों की अब कुछ तो खबर लीजियेगा ।

उनके बिन अपनी हालत न पूछो ।

कैसी है दिल में चाहत न पूछो ।

हम तो मर मर के जीने लगे हैं ।…

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Added by Neeraj Nishchal on July 6, 2013 at 8:00am — 4 Comments

!! वो कौन था !!

!! वो कौन था !!

 

आये तो कई लोग, ज़िन्दगी मे मेरी मगर ।

वो कौन था जो सीधे, दिल मे समा गया ।।…

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Added by बसंत नेमा on July 1, 2013 at 10:00am — 20 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
मेरे द्वारा हल्द्वानी आयोजन में प्रस्तुत की हुई नज्म/गीत

जख्म कांटो से खायें  हैं हमें फूलों को सताना नहीं आता 

इश्क़े सफीने  बचाए हैं हमे तूफाँ में डुबाना नहीं आता 

 

तुम   बुजदिली कहलो या समझो शाइस्तगी मेरी  

 हुए सब अपने पराये हैं हमे  सच्चाई  छुपाना नहीं आता 

 

किसी ने दिल से निकाला ,  किसी ने राह में फेंका 

सर पे हमने बिठाए हैं हमे ठोकर से हटाना नहीं आता    

 

 कभी  ना  बेरुखी भायी   कभी ना नफरतें पाली 

दिलों में ही घर …

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Added by rajesh kumari on June 20, 2013 at 7:30pm — 18 Comments

गीत

आज फिर बरसे हैं
बादल जोर से.
मन बहकने सा लगा है ...!!
 …
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Added by भावना तिवारी on June 6, 2013 at 7:30pm — 15 Comments

जीवन में जब से तुम आये [गीत]

नए रंग खिले नए फूल खिले ,

जीवन में जब से तुम आये |

आँखों से घटाएं बरस रहीं ,

ये प्रेम के सागर लहराए |

कभी पत्थर जैसे जीते थे |

बेहोशी में दिन बीते थे |

जीवन को बोझ सा ढोते थे |

तनहाई में अक्सर रोते थे |

मायूस मेरा दिल नाच उठा ,

जब देख हमे तुम मुस्काये |

सूना इस दिल का आँगन था |

कहीं भटका भटका सा मन था |

औरों को अपना कहते थे |

खुद से ही खफा हम रहते थे…

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Added by Neeraj Nishchal on May 27, 2013 at 3:00pm — 9 Comments

वो कुछ ना कह पाती |

जब कली ही मुरझाने लगी ,  फूल कहाँ से आयेगा |
फिर निर्जन विरान मरूस्थल में , फूल कहाँ से लायेगा | 
सब तोड़ते रहेंगे कली ,  पौधा कौन बनाएगा  | 
वो दिन भी ऐसा आयेगा , जब गुलशन…
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Added by Shyam Narain Verma on May 14, 2013 at 4:23pm — 7 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
गीत : चन्दन हमें बबूल लगे..................

तुमको जो प्रतिकूल लगे हैं

वे हमको अनुकूल लगे

और तुम्हें अनुकूल लगे जो

वे हमको प्रतिकूल लगे...............

हम यायावर,जान रहे हैं…

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Added by अरुण कुमार निगम on May 2, 2013 at 10:27am — 41 Comments

बहते अश्कों ने दिल दुखाया है |

बहते अश्कों ने दिल दुखाया है |
गम की  गली में  कोई आया है |
गमगीन चेहरे की क्या कहिये   ,
किसी ने हँसते को रुलाया है |
खिला फूल मुरझाया है   अब तो ,…
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Added by Shyam Narain Verma on April 23, 2013 at 5:52pm — 4 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
सखी री मोरे अंगना में धूप खिली आज

सखी री मोरे अंगना में धूप  खिली आज 

मन की प्रणय पाती साजन को मिली आज 

हुआ यकायक मुझे अंदेशा 

भेजा उसने कोई संदेशा 

नेह नीर बिना  शुष्क हुई थी 

देह प्रीत बिना  रुष्ट हुई थी 

लिपट पवन  संग  हिय तरु की डारि  हिली आज 

सखी री मोरे अंगना में धूप  खिली आज 

आह्लादित  मन लहका- लहका

प्रीत  उपवन  है   महका- महका  

मिले गले जब भ्रमर औ कलिका   

हया दीप संग  जलती   अलिका    

विरहाग्नि से हुई विक्षत चुनरिया…

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Added by rajesh kumari on April 15, 2013 at 11:54am — 33 Comments

होली गीत / मंजरी पाण्डेय

   

रंग गई रंग गई हे री सखी

मैं तो फाग के रंग में रंग गई।

1 - रंग ना गुलाल मै तो शर्म से लाल हुई

पिया घर आये मै आप गुलाल हुई

छेड़ो न छेड़ो न हे

मोहे छेड़ो न छेड़ो न छेड़ो सखी

मै तो अपने पिया रंग रंग गई।

रंग गई .........................

2 - धानी चुनर सरक सरक जाय रही

कान्हे से माथे की दौड़ लगाय रही

पकड़ो न पकड़ो न हे

अरे पकड़ो न पकड़ो न हे री सखी

मैं अपने पिया संग हो ली।

रंग गई…

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Added by mrs manjari pandey on March 11, 2013 at 12:00am — 4 Comments

गीत : ... सच है संजीव 'सलिल'

*

कुछ प्रश्नों का कोई भी औचित्य नहीं होता यह सच है.

फिर भी समय-यक्ष प्रश्नों से प्राण-पांडवी रहा बेधता...

*

ढाई आखर की पोथी से हमने संग-संग पाठ पढ़े हैं.

शंकाओं के चक्रव्यूह भेदे, विश्वासी किले गढ़े है..

मिलन-क्षणों में मन-मंदिर में एक-दूसरे को पाया है.

मुक्त भाव से निजता तजकर, प्रेम-पन्थ को अपनाया है..

ज्यों की त्यों हो कर्म चदरिया मर्म धर्म का इतना जाना-

दूर किया अंतर से अंतर, भुला पावना-देना सच है..



कुछ प्रश्नों का कोई भी औचित्य…

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Added by sanjiv verma 'salil' on February 16, 2013 at 7:30pm — 10 Comments

गीत : आशियाना ... संजीव 'सलिल'

गीत :

आशियाना ...

संजीव 'सलिल'

*

धरा की शैया सुखद है, 

नील नभ का आशियाना ...

संग लेकिन मनुज तेरे 

कभी भी कुछ भी न जाना ...

*

जोड़ता तू फिर रहा है,

मोह-मद में घिर रहा है।

पुत्र है परब्रम्ह का पर 

वासना में तिर रहा है।

पंक में पंकज सदृश रह-

सीख पगले मुस्कुराना ...

*

उग रहा है सूर्य नित प्रति,

चाँद संध्या खिल रहा है। 

पालता है जो किसी को, 

वह किसी से पल रहा…

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Added by sanjiv verma 'salil' on February 6, 2013 at 5:00pm — 8 Comments

उल्लाला गीत: जीवन सुख का धाम है -संजीव 'सलिल

अभिनव प्रयोग-

उल्लाला गीत:

जीवन सुख का धाम है

संजीव 'सलिल'

*

जीवन सुख का धाम है,

ऊषा-साँझ ललाम है.

कभी छाँह शीतल रहा-

कभी धूप अविराम है...*

दर्पण निर्मल नीर सा,

वारिद, गगन, समीर सा,

प्रेमी युवा अधीर सा-

हर्ष, उदासी, पीर सा.

हरी का नाम अनाम है

जीवन सुख का धाम है...

*

बाँका राँझा-हीर सा,

बुद्ध-सुजाता-खीर सा,

हर उर-वेधी तीर सा-

बृज के चपल अहीर सा.

अनुरागी निष्काम है

जीवन सुख का धाम…

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Added by sanjiv verma 'salil' on February 1, 2013 at 10:30am — 6 Comments

गणतंत्र दिवस पर विशेष गीत: संजीव 'सलिल'

गणतंत्र दिवस पर विशेष गीत:

लोकतंत्र की वर्ष गांठ पर

संजीव 'सलिल'

*

लोकतंत्र की वर्ष गांठ पर

भारत माता का वंदन...



हम सब माता की संतानें,

नभ पर ध्वज फहराएंगे.

कोटि-कोटि कंठों से मिलकर

'जन गण मन' गुन्जायेंगे.

'झंडा ऊंचा रहे हमारा',

'वन्दे मातरम' गायेंगे.

वीर शहीदों के माथे पर

शोभित हो अक्षत-चन्दन...



नेता नहीं, नागरिक बनकर

करें देश का नव निर्माण.

लगन-परिश्रम, त्याग-समर्पण,…

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Added by sanjiv verma 'salil' on January 26, 2013 at 8:00am — 12 Comments

षटपदियाँ

सामयिक षटपदियाँ:

संजीव 'सलिल'

*

मानव के आचार का स्वामी मात्र विचार.

सद्विचार से पाइए, सुख-संतोष अपार..

सुख-संतोष अपार, रहे दुःख दूर आपसे.

जीवन होगा मुक्त, मोहमय महाताप से..

कहे 'सलिल' कुविचार, नाश करते दानव के.

भाग्य जागते निर्बल होकर भी मानव के..

***

हार न सकती मनीषा, पशुपति दें आशीष.

अपराजेय जिजीविषा, सदा साथ हों ईश..

सदा साथ हों ईश, कैंसर बाजी हारे.

आया है युवराज जीत, फिर ध्वज फहरा रे.

दुआ 'सलिल' की, मौत इस तरह मार न…

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Added by sanjiv verma 'salil' on January 24, 2013 at 3:00pm — 6 Comments

सामयिक गीत: पंच फैसला... संजीव 'सलिल'

सामयिक गीत:

पंच फैसला...

संजीव 'सलिल'

*

पंच फैसला सर-आँखों,

पर यहीं गड़ेगा लट्ठा...

*

नाना-नानी, पिता और माँ सबकी थी ठकुराई.

मिली बपौती में कुर्सी, क्यों तुम्हें जलन है भाई?

रोजगार है पुश्तों का, नेता बन भाषण देना-

फर्ज़ तुम्हारा हाथ जोड़, सर झुका करो पहुनाई.

सबको अवसर? सब समान??

सुन-कह लो, करो न ठट्ठा...

*

लोकतंत्र है लोभतन्त्र, दल दाम लगाना जाने,

भौंक तन्त्र को ठोंकतन्त्र ने दिया कुचल…

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Added by sanjiv verma 'salil' on January 21, 2013 at 4:00pm — 3 Comments

गीत : भूल जा / संजीव 'सलिल'

भूल जा

संजीव 'सलिल'

*

आईने ने कहा: 'सत्य-शिव' ही रचो,

यदि नहीं, कौन 'सुन्दर' कहाँ है कहो?

लिख रहे, कह रहे, व्यर्थ दिन-रात जो-

ढाई आखर ही उनमें तनिक तुम तहो..'



ज़िन्दगी ने तरेरीं निगाहें तुरत,

कह उठी 'जो हकीकत नहीं भूलना.

स्वप्न तो स्वप्न हैं, सच समझकर उन्हें-

गिर पड़ोगे, निराधार मत झूलना.'



बन्दगी थी समर्पण रही चाहती,

शेष कुछ भी न बाकी अहम् हो कहीं.

जोड़ मत छोड़ सब, हाथ रीते रहें-

जान ले, साथ जाता कहीं कुछ…

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Added by sanjiv verma 'salil' on January 20, 2013 at 2:00pm — 6 Comments

गीत संजीव 'सलिल'

गीत 

संजीव 'सलिल'

*

क्षितिज-स्लेट पर

लिखा हुआ क्या?...

*

रजनी की कालिमा परखकर,

ऊषा की लालिमा निरख कर,

तारों शशि रवि से बातें कर-

कहदो हासिल तुम्हें हुआ क्या?

क्षितिज-स्लेट पर

लिखा हुआ क्या?...

*

राजहंस, वक, सारस, तोते

क्या कह जाते?, कब चुप होते?

नहीं जोड़ते, विहँस छोड़ते-

लड़ने खोजें कभी खुआ क्या?

क्षितिज-स्लेट पर

लिखा हुआ क्या?...

*

मेघ जल-कलश खाली करता,

भरे किस तरह फ़िक्र न करता.…

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Added by sanjiv verma 'salil' on December 6, 2012 at 1:00pm — 16 Comments

दिल लगाकर प्रीत बढ़ाकर चल दिये..

दिल लगाकर प्रीत बढ़ाकर चल दिये ।
अपना बनाकर दिल चुराकर चल दिये ।


अब जायेगें कब आयेगें दिल है बेकरार ,
वादा करके , गुल खिलाकर चल दिये ।


भूल ना जाये ये कहीं दुष्यन्त की तरह ,
साथ निभाकर दिल लगाकर चल दिये ।


हर किसी से दिल लगाना कितना मुश्किल ,
कभी ना भूलेगे आस दिलाकर चल दिये ।


दिल कहता रहा अब ना जाओ छोड़कर ,
वर्मा देके दिलासा , हाथ मिलाकर चल दिये ।

  • श्याम नारायण वर्मा

Added by Shyam Narain Verma on November 27, 2012 at 11:30am — 3 Comments

जीवन ज्योतिर्मय करदे (गीत)

दीप-ज्यौति के पावन पर्व पर

मुझको, माँ लक्ष्मी ऐसा वर दे |

उज्जवल वस्त्र, सुरभित तन-मन,

सुगन्धित मधुवन सा घर-आँगन दे |

सरस-मलाई मधुमय-व्यंजन दे |

तिमिर छट जाये जीवन में.

जीवन ज्योतिर्मय हो जाये |

आगंतुक का स्वागत करने

पलक पावडे बिछे नयनों में,

दिल में अपनापन हो,

ऐसा मुझको मन-मयूर दे |

सरस्वती के साधक

"लक्ष्मण" पर माँ शारदे,

तेरा वरदहस्त रखदे ।

ध्यान करू मै तेरा और-

आनंदित करू जन-जन को,

कोकिल कंठी स्वर देकर,

मेरे मन गीतों…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 12, 2012 at 10:00am — 6 Comments

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