"सर, एक काॅलेज की लड़की से बलात्कार हुआ है उसे हॉस्पिटल में लाया गया है।"-फोन पर किसी ने पत्रकार को सूचना दी।
"चलो यार, एक लड़की से बलात्कार करना है........"
"किसी टाइम तो अपनी जुबान को लगाम लगा लिया करो।"
"हाहाहाहाहा............"- ठहाकों से प्रेस रूम गूंज उठा और सभी पत्रकार उठकर हस्पताल की तरफ चल दिए।
मौलिक और अप्रकाशित
Added by विनोद खनगवाल on November 22, 2014 at 10:08am — 6 Comments
"रमलू की घरवाली कौन हैं ? "
"साब मैं हूँ । "
"हम तेरे पति की मौत पर सरकार की तरफ से मुआवजा देने आये हैं, पढना जानती हैं ? "
"जी नही साब, अनपढ़ हूँ । "
"और कौन -कौन है घर में ? "
"साब मैं, 4 छोरिया 1 बेटो है। रमलू तो मर गयो । ये सारो बोझ मारे ऊपर छोड़ गयो । घर की हालत तो थे देख ही रया हो, खाने के लाले है। साब इतनी सर्दी में भी पहनने को कुछ नही ..." सिसकने लगती है ।
"चल ठीक है, रो मत ये......"
" इक मिनट " बात पूरी भी नही हुई थी की सहायक के कान मेँ वो…
Added by किशन कुमार "आजाद" on November 22, 2014 at 8:30am — 8 Comments
Added by seemahari sharma on November 22, 2014 at 12:30am — 16 Comments
"चाची, तुम्हारी बहू को जापे में खिलाने के लिए घी का इंतजाम नहीं हो पाया है अगर थोड़ी सी मदद कर देती तो...."
"देखो बेटा, इस महीने थोड़ा हाथ तंग है।"- चाची ने बात पूरी होने से पहले ही बहाना बना दिया।
शाम को एक थाली को ढके चाची कहीं जा रही थी। उसने पूछा-"चाची, कहाँ जा रही हो?"
"बेटा, वो अपनी गली की कुतिया ने बच्चों को जन्म दिया है। जापे वाली के लिए देसी घी का हलवा बहुत फायदेमंद होता है इसलिए उसके लिए ले जा रही हूँ। बड़ा पुण्य मिलेगा।"
मौलिक और अप्रकाशित
Added by विनोद खनगवाल on November 21, 2014 at 2:37pm — 10 Comments
२१२ २११ २२१ १२२ २२
चांदनी रात में बरसात अगर हो जाये
मेरे ख्वाबों कि कोई बात अगर हो जाये
यार मेरे तू ज़माने से सदा ही बचना
इक हसीं गुल से मुलाकात अगर हो जाये
काश! सहरा हो नजर जब भी बने दिल दुल्हा
यूं भी अरमानो कि बारात अगर हो जाये
आये हर सिम्त से बस यार महक जूही की
काश धरती पे ये हालात अगर हो जाये
तन ये साँसों से तपे हौले से शब् भर मेरा
काश ऐसी भी कभी रात अगर हो…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on November 21, 2014 at 12:02pm — 18 Comments
"क्या बात, आज क्लास अटेंड नहीं कर रही हो?"
"नहीं यार, एक नया मुर्गा फसा है आज तो बस रेस्टोरेंट और थियेटर।"
मौलिक और अप्रकाशित
Added by विनोद खनगवाल on November 20, 2014 at 6:20pm — 13 Comments
मेरे पास,
थोडे से बीज हैं
जिन्हे मै छींट आता हूं,
कई कई जगहों पे
जैसे,
इन पत्थरों पे,
जहां जानता हूं
कोई बीज न अंकुआयेगा
फिर भी छींट देता हूं कुछ बीज
इस उम्मीद से, शायद
इन पत्थरों की दरारों से
नमी और मिटटी लेकर
कभी तो कोई बीज अंकुआएगा
और बनजायेगा बटबृक्ष
इन पत्थरों के बीच
कुछ बीज छींट आया हूं
उस धरती पे,
जहां काई किसान हल नही चलाता
और अंकुआए पौधों को
बिजूका गाड़ कर
परिंदो से…
Added by MUKESH SRIVASTAVA on November 20, 2014 at 3:00pm — 14 Comments
22 22 22 22 2
टूटने लगे हैं घर शब्दों से
अब तो लगता है डर शब्दों से
दैर हरम इक हो जाते लेकिन
पड़े दिलों पे पत्थर शब्दों से
हैं मेरे हमराह ज़रा देखो
ग़ालिब ओ मीर ,ज़फ़र शब्दों से
बनती बात बिगड़ने लगती है
ऐसे उठे बवण्डर शब्दों से
फूल अमन के खिलते कैसे अब
दिल आज हुए बन्जर शब्दों से
मेरी हस्ती गुमनाम -रहे पर
छाऊँ सबके मन पर शब्दों से
गुमनाम पिथौरागढ़ी
मौलिक व…
Added by gumnaam pithoragarhi on November 19, 2014 at 8:00pm — 9 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on November 19, 2014 at 5:46pm — 26 Comments
"सुनो माँ, रवि का फोन आया था। कल मुझे लेने आ रहा है और इस बार कुछ ढंग के कपड़े ला देना। वहाँ मेरी बहुत इंसेल्ट होती है।"
'पिछली बार जिससे पैसे उधार लिए थे वो कई बार वापस माँगने आ चुकी थी। अब किससे उधार माँगेगी?'- सोचकर माँ चिंता में डूब गई।
मौलिक और अप्रकाशित
Added by विनोद खनगवाल on November 19, 2014 at 4:10pm — 10 Comments
मुहब्बत का तराना तो बहुत गाया हुआ है
**************************************
1222 1222 1222 122
न आये होश अब यारों नशा छाया हुआ है
सँभल ऐ बज़्म दिल अब वज़्द में आया हुआ है
ज़रा राहत की कुछ सांसें तो लेलूँ मैं ,कि सदियों
बबूलों को मनाया हूँ तो अब साया हुआ है
हथौड़ा एक तुम भी मार दो लोहा गरम पर
यहाँ मज़हब को ले के खून गरमाया हुआ है…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on November 19, 2014 at 10:10am — 18 Comments
धरती माँ की गोद में, फिर आया नववर्ष,
प्यार मिला माँ बाप से, जीवन में उत्कर्ष |
भाई सब देते रहे, मुझको प्यार असीम,
मित्र मिले संसार में, रहिमन और रहीम |
आई बेला साँझ की, समय गया यूँ बीत,
इतने वर्षों से यही, समय चक्र की रीत |
बचपन बीता चोट खा, माँ बापू बेचैन,
पूर्व जन्म के कर्म थे, भोगूँ मै दिन रेन |
मिला मुझे संयोग से,सात जन्म का प्यार,
मेरे घर परिवार से, दूर हुआ अँधियार…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 19, 2014 at 6:00am — 18 Comments
देखो उसे, दार्शनिक बनकर
फिर बैठेगा, नाक में ऊँगली डालेगा
कुछ निकलेगा, गोल –गोल गोलियायेगा
बिस्तर में पोछेंगा, पर कुछ सोचेगा
आँखे बंद करेगा, चिंतन करेगा
इस पर चिंतन, उस पर चिंतन
कर्म पर चिंतन, भाग्य पर चिंतन
शून्य पर चिंतन, अनंत पर चिंतन
चिंतन से निकले हल पर, चिंतन
चिंतन करते –करते, थककर सो जाएगा
इस दर्शन को, कौन समझ पाया है ?
कौन समझ पायेगा ?,पर मैं जानता हूँ,
जब वह चिंतन से जागेगा ,समय से तेज…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on November 19, 2014 at 1:00am — 7 Comments
1222 1222 1222 1222
नहीं होता तो क्या होता अगर होगा तो क्या होगा
कभी तुमने बचाया क्या अभी खोया तो क्या होगा
जमाने को सिखाया है हुनर तुमने यही अब तक
वफ़ा करके कभी खुद को मिले धोखा तो क्या होगा
किसी की जिन्दगी में तुम उजाला कर नहीं सकते
अगर खुर्शीद भी दिन में न अब जागा तो क्या होगा
चले हो आबशारों को जलाने आग से अपनी
समंदर ने तुम्हारा रास्ता रोका तो क्या होगा
लिए वो हाथ में पत्थर कभी फेंका…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 18, 2014 at 10:43pm — 25 Comments
एक गमले में रोपा गया पौधा
उसका दायरा क्या है
बस वो गमला
जब तक वो गमले में है
कभी वृक्ष नहीं बन सकता
उस पौधे की जड़ों को
गमले से बाहर आना होगा
परिन्दों को उड़ना हो
तो उनकी सीमा क्या है
कोई नहीं
असीम आकाश फैला हुआ है
उन्हें अपने पर खोलने होंगे
हमें जीना हो तो
पूरी कायनात पड़ी है
हमें
ख़्वाहिशों को परवाज़ देना होगा
सपनो को
उम्मीदों का आकाश देना…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on November 18, 2014 at 9:44pm — 11 Comments
पाकर आभास
अपनी ही कुक्षि में
अयाचित अप्रत्याशित
मेरी खल उपस्थिति का
सह्म गयी माँ !
* * *
हतप्रभ ! स्तब्ध ! मौन !
आया यह पातक कौन ?
जार-जार माँ रोई
पछताई ,सोयी, खोयी
‘पातकी तू डर
इसी कुक्षि में ही मर
मैं भी मरूं साथ
तेरे सर्वांग समेत
धिक् ! हाय उर्वर खेत’
* * …
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 18, 2014 at 6:00pm — 19 Comments
लम्हा महकता … एक रचना
सोया करते थे कभी जो रख के सर मेरे शानों पर
गिरा दिया क्यों आज पर्दा घर के रोशनदानों पर
तपती राहों पर चले थे जो बन के हमसाया कभी
जाने कहाँ वो खो गए ढलती साँझ के दालानों पर
होती न थी रुखसत कभी जिस नज़र से ये नज़र
लगा के मेहंदी सज गए वो गैरों के गुलदानों पर
कैसा मैख़ाना था यारो हम रिन्द जिसके बन गए
छोड़ आये हम निशाँ जिस मैखाने के पैमानों पर
देख कर दीवानगी हमारी कायनात भी हैरान है
किसको तकते हैं भला हम तन्हा…
Added by Sushil Sarna on November 18, 2014 at 2:37pm — 14 Comments
देख रहा था
थकी हुई बस में
थके हुए चेहरे
गाल पिचके हुए
हड्डियाँ उभरी हुई
अवसादित परिणति में
एक सिगरेट सुलगाली
बढते विकारों पर
मैंने किया प्रदान
अपना उल्लेखनीय योगदान
देख रहा था,
लोगों को चढ़ते-उतरते
सीटों पर लड़ते- झगड़ते
शोरगुल के साथ- साथ
पसीने की दुर्गन्ध भरी है
बस अब भी वहीँ खड़ी है
लोग बस को धकिया रहे हैं
ड्राइवर साहब गियर लगा रहे हैं
धीरे धीरे बस चल रही है…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on November 18, 2014 at 12:30am — 13 Comments
Added by pooja yadav on November 17, 2014 at 9:52pm — 18 Comments
स्नेह रस से भर देना …..
कुछ भी तो नहीं बदला
सब कुछ वैसा ही है
जैसा तुम छोड़ गए थे
हाँ, सच कहती हूँ
देखो
वही मेघ हैं
वही अम्बर है
वही हरित धरा है
बस
उस मूक शिला के अवगुण्ठन में
कुछ मधु-क्षण उदास हैं
शायद एक अंतराल के बाद
वो प्रणय पल
शिला में खो जायेंगे
तुम्हें न पाकर
अधरों पर प्रेमाभिव्यक्ति के स्वर भी
अवकुंचित होकर शिला हो जायेंगे
लेकिन पाषाण हृदय पर
कहाँ इन बातों का असर होता है
घाव कहीं भी हो…
Added by Sushil Sarna on November 17, 2014 at 6:49pm — 8 Comments
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