For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,138)

मैंने सारे बंधन तोड़ दिए

मैंने सारे बंधन तोड़ दिए,

भंवर में ही उनको छोड़ दिए|

ऐसा उसने कहा था|



ये है बिलकुल हकीकत,

रहा मै वहीँ तक|

साथ में औरों को जब

वो जोड़ लिए........

मैंने सारे..................



वाकई मै गलत था,

इसका क्या मतलब था?

कुछ कहे ही बगैर

उनको छोड़ दिए............

मैंने सारे......................



नाव फिर कभी न बहती,

भार भी न वो सहती|

साथ दोनों को तन्हा ही

छोड़ दिए..................

मैंने… Continue

Added by आशीष यादव on November 15, 2010 at 10:00am — 6 Comments

गीत: मैं नहीं.... संजीव 'सलिल'

गीत:





मैं नहीं....





संजीव 'सलिल'



*



मैं नहीं पीछे हटूँगा,



ना चुनौती से डरूँगा.



जानता हूँ, समय से पहले



न मारे से मरूँगा.....



*



जूझना ही ज़िंदगी है,



बूझना ही बंदगी है.



समस्याएँ जटिल हैं,



हल सूझना पाबंदगी है.



तुम सहायक हो न हो



खातिर तुम्हारी मैं लडूँगा.



जानता हूँ, समय से पहले



न मारे से… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 15, 2010 at 1:00am — 2 Comments

जागो मेरे स्वामी जागो...

देवोत्थानी एकादशी के अवसर पर मेरे पूज्य पिताजी देवों को जगाया करते थे आज उनकी स्मृति को मन मे संजोए उनकी परंपरा का निर्वाह मै निम्न शब्दों से करता हुआ आप सबको देव- उठानी एकादशी की बधाई देता हूँ.







जागो मेरे स्वामी जागो...



तुम सोए तो सो जाती है...



इस जग की ममता अनजानी,



कहाँ... न जाने खो जाती है,



मेरी भी क्षमता अनचीन्ही..







तुम जागो तो विश्व जागेगा



मानवता..विश्वास जगेगा...



भेद भावना ,…
Continue

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on November 14, 2010 at 9:30pm — 3 Comments

भारत के बेरोजगारों का क्या होगा ?

भारत, दुनिया का एक विशाल देश है और आबादी के लिहाज से देखें तो पूरे संसार में चीन के बाद इसका दूसरा स्थान है। इस तरह भारत में आज की स्थिति में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है, जिसे सत्ता पर काबिज होने के पहले हर पार्टी के नेता खत्म करने की दुहाई देते हैं, मगर हालात में किसी तरह का बदलाव नहीं होता। देश में केवल साल-दर-साल आबादी बढ़ती चली जा रही है और रोजगार का सृजन नहीं हो पा रहा है। ऐसे में देश के करोड़ों युवा, बेरोजगार हो गए हैं और इसका सीधा असर देश के विकास पर पड़ रहा है। यह भी माना जाता है कि पूरी… Continue

Added by rajkumar sahu on November 14, 2010 at 6:13pm — 2 Comments

दस का सिक्का...

`बहुत दिन हुए नहिं देखा दस का सिक्का...



स्कूल के दरवाज़े पर खड़े होकर शांताराम के चने नहीं खाए



बहुत दिन हुए आंगन के चूल्हे पर हाथ तापे..



याद नहीं आखरी बार कब डरे थे अँधेरे से...



कब झूले थे आखरी बार, पेड़ की डाली पर...



कब छोडा था चाँद का पीछा करना..



याद नहीं, कब कह दिया सुनहरी पन्नी वाली चॉकलेट को अलविदा..!!



कहाँ छुट गए कांच की चूडियों के टुकड़े..,



माचिस की डिबिया, चिकने पत्थरों की जागीर..



कब सुना… Continue

Added by Sudhir Sharma on November 14, 2010 at 2:57pm — 5 Comments

क्या फायदा बाल दिवस कहने से ?

बाल दिवस पर विशेष







आज का दिन बहुत ही विशेष दिन है क्योकि आज का दिवस उन नन्हे-मुन्नों का है,जो आगे चलकर देश का बागडोर संभालेंगे !ये वही बच्चे है जिन्हें चाचा नेहरु ने देश का भविष्य कहा था .

आज पूरा देश पंडित जवाहरलाल नेहरु को याद कर उनका जन्मदिवस बाल दिवस के रूप में मना रहा है .चाचा नेहरु के देश में आज भी कुछ ऐसे बच्चे रह गए है जो इन… Continue

Added by Ratnesh Raman Pathak on November 14, 2010 at 12:41pm — 4 Comments

अगर सजनी हो दिलदार

जैसे .......
पर्व -त्यौहार,
बना देते हैं,
हमारी जिन्दगी को,
मजेदार,

गरम - मसाले,
बना देते हैं,
सब्जियों को,
लज़्ज़तदार,

खिड़कियाँ,
बना देती हैं,
कमरे को,
हवादार,

ठीक वैसे ही,
अगर बच्चे हों समझदार,
और सजनी हो दिलदार,
तो,
सजन क्यों न बने,
ईमानदार ॥

Added by baban pandey on November 14, 2010 at 10:30am — 2 Comments

रिश्ते बनते हैं बदलते हैं ,

रिश्ते बनते हैं बदलते हैं ,
मगर जीवन चलता रहता हैं ,
कभी बेटा पैदा होने की ख़ुशी ,
तो कभी बाप का मरने का गम ,
कभी ख़ुशी के छलकते आँसू ,
तो कभी गम से होती आँखे नम ,
समय चक्र चलते रहते हैं ,
रिश्ते बनते हैं बदलते हैं ,

रिश्तों की मिठास ,
वो अपने बुआ के आते ही ,
उनकी गोद में चढ़ने के लिए ,
अक्सर मचलता था ,
लेकिन जब से बुआ करने लगी
पुश्तैनी जायदाद में
हिस्से की मांग ,
तब से ख़त्म होने लगी ,
रिश्तों की मिठास ,

Added by Rash Bihari Ravi on November 13, 2010 at 4:30pm — 2 Comments

सुदर्शन का बयान और कांग्रेस का संग्राम

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अर्थात आरएसएस की अपनी एक ऐसी पृष्ठभूमि है, जिसके तहत देश ही नहीं, दुनिया में यह एक अनुशासित संगठन के रूप में जाना जाता है। आरएसएस से जुड़े कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को संयमी माना जाता है और उन्हें संयमित शब्दावली के लिए जाना जाता है, लेकिन आरएसएस द्वारा पूरे देश में भगवा आतंकवाद के खिलाफ मोर्चाबंदी के दौरान मध्यप्रदेश के भोपाल में संघ के पूर्व सरसंघचालक के.एस. सुदर्शन ने जो कुछ यूपीए अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के खिलाफ तीखी टिप्पणी की, उससे देश का राजनीतिक माहौल ही… Continue

Added by rajkumar sahu on November 13, 2010 at 1:06pm — 1 Comment

ग़ज़ल- स्कूल की घंटी

ग़ज़ल

ज़मीर इसका कभी का मर गया है

न जाने कौन है किसपर गया है |



दीवारें घर के भीतर बन गयीं हैं

सियासतदाँ सियासत कर गया है |



तरक्की का नया नारा न दो अब

खिलौनों से मेरा मन भर गया है |



कोई स्कूल की घंटी बजा दे

ये बच्चा बंदिशों से डर गया है |



बहुत है क्रूर अपसंस्कृति का रावण

हमारे मन की सीता हर गया है |



शहर से आयी है बेटे की चिट्ठी

कलेजा माँ का फिर… Continue

Added by Abhinav Arun on November 12, 2010 at 10:43pm — 10 Comments

ग़ज़ल-पुराने दौर का कुर्ता

ग़ज़ल



किताबें मानता हूँ रट गया है

वो बच्चा ज़िंदगी से कट गया है|



है दहशत मुद्दतों से हमपर तारी

तमाशे को दिखाकर नट गया है |



धुंधलके में चला बाज़ार को मैं

फटा एक नोट मेरा सट गया है |



चलन उपहार का बढ़ना है अच्छा

मगर जो स्नेह था वो घट गया है |



पुराने दौर का कुर्ता है मेरा

मेरा कद छोटा उसमे अट गया है |



राजनीति में सेवा सादगी का

फलसफा रास्ते से हट… Continue

Added by Abhinav Arun on November 12, 2010 at 10:30pm — 6 Comments

छोटी सी भूल (रैगिंग)

छोटी सी भूल (रैगिंग)



'अमन' को आज इन्साफ मिला

हम फिर भी हैं शर्मसार

मेरे हिमाचल के बच्चों ने

ली थी उसकी जान

एक छोटी सी गलती ने

कारागार पहुँचाया

खुद भी हुए कलंकित

हिमाचल को कलंक लगाया

में लेखक हूँ ,मुझको है

अफ़सोस इस घटना पर

विनती है हर नौजवान से

ऐसे कृत्यों से डर

ऐसे कुकर्म से डर



दीपक शर्मा कुल्लुवी

०९१३६२११४८६

११-१०-२०१०.



खबर : मेरी जन्म भूमि काँगड़ा के मेडिकल कालेज टांडा(काँगड़ा)… Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on November 12, 2010 at 1:15pm — 5 Comments

तुम्हीं से सुबहें, तुम्हीं से शामें,

तुम्हीं से सुबहें, तुम्हीं से शामें,

हर एक लम्हा, तुम्हारी बातें,

हैं साथ मेरे, हर एक पल में

तुम्हारी यादें, तुम्हारी बातें I



मेरी निगाहों में तेरा चेहरा,

ये दिल और धड़कन हैं संग जैसे,

तू संग चलता है ऐसे मेरे,

है चलता ये आसमाँ संग जैसे I



हूँ भीगा मैं ऐसे तेरी खुश्बुओं से,

हो बादल कोई डूबा बूँदों में जैसे,

यूँ छाया तेरा इश्क़ है मेरे दिल पे,

हो सिमटी कोई झील धुन्धों में जैसे I



तुझ ही में पाया मैंने ख़ुदा को,

ख़ुदा…

Added by Veerendra Jain on November 12, 2010 at 12:30pm — 3 Comments

वरना छोडो यूं हवा में आप नारे छोड़ना .





सर फिरोशी की तमन्ना है तो सर पैदा करो



वरना छोडो यूं हवा में आप नारे छोड़ना .



गर मुल्क से इश्क है तो दिल जिगर शैदा करो



वरना छोडो यूं हवा में आप नारे छोड़ना .



सब यहाँ का खा रहे पर न यहाँ का गा रहे ;



उस शजर को काटते हैं ,छाया जिस से पा रहे.



छाया से जो इश्क है तो पेड़ से पैदा करो



वरना छोडो यूं हवा में आप नारे छोड़ना .



जो हुए हैं नाम चीन गुलचीं गुलिस्तान के… Continue

Added by DEEP ZIRVI on November 12, 2010 at 6:00am — 4 Comments

गीत: कौन हो तुम? ----- संजीव 'सलिल'

गीत:



कौन हो तुम?



संजीव 'सलिल'

*

कौन हो तुम?

मौन हो तुम?...

*

समय के अश्वों की वल्गा

निरंतर थामे हुए हो.

किसी को अपना किया ना

किसी के नामे हुए हो.



अनवरत दौड़ा रहे रथ

दिशा, गति, मंजिल कहाँ है?

डूबते ना तैरते, मझधार

या साहिल कहाँ है?



क्यों कभी रुकते नहीं हो?

क्यों कभी झुकते नहीं हो?

क्यों कभी चुकते नहीं हो?

क्यों कभी थकते नहीं हो?



लुभाते मुझको बहुत हो

जहाँ भी हो जौन हो… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 11, 2010 at 9:32pm — 2 Comments

मिलना-बिछडना ::: ©







मिलना-बिछडना ::: ©



स्वप्न लोक से तू निकल आ ऐ रूपसी...

माना है जिंदगी चाहत का एक सिलसिला..

मिलना-बिछडना भी है लगा रहता यहाँ...

क्यूँ मांगती है आ सीख ले तू छीन लेना..

बिन मांगे न मिला है न तुझे मिलेगा कभी.. ©



जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh ( 11-11-2010… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on November 11, 2010 at 5:34pm — 6 Comments

हिन्दी कविता का अन्तर्जाल युग और ओबीओ लाइव महाइवेंट - १

हिन्दी कविता एक नए युग में प्रवेश कर चुकी है। इस युग में हिन्दी कविता वैश्विक मंच पर अन्तर्जाल के माध्यम से अपनी पहचान बना रही है । इसलिए इस युग को “अन्तर्जाल युग” ही कहा जाय तो ठीक रहेगा। आज के समय में अन्तर्जाल का प्रयोग करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। इसमें हिन्दीभाषी लोगों की संख्या भी कम नहीं है। धीरे धीरे ही सही अन्तर्जाल के माध्यम से हिन्दी कविता विश्व के कोने कोने तक पहुँच रही है। आज अधिकांश हिन्दी कविताएँ अन्तर्जाल पर उपलब्ध हैं। अब उभरते हुए कवियों को प्रकाशित होने के लिए… Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 11, 2010 at 3:43pm — 3 Comments

बनकर साकी आया हूँ

बनकर साकी आया हूँ मै आज जमाने रंग|

ऐसी आज पिलाऊंगा, सब रह जायेंगे दंग||



अभी मुफिलिसी सर पर मेरे, खोल न पाऊं मधुशाला|

फिर भी आज पिलाऊंगा मै हो वो भले आधा प्याला|

ऐ मेरे पीने वालों तुम, अभी से यूँ नाराज न हो|

मस्त इसी में हो जावोगे, बड़ी नशीली है हाला|



एक-एक पाई देकर मै जो अंगूर लाया हूँ|

इमानदारी की भट्ठी पे रख जतन से इसे बनाया हूँ|

तनु करने को ये न समझना, किसी गरीब का लहू लिया|

राजनीति से किसी तरह मै अब तक इसे बचाया हूँ|



हर बार… Continue

Added by आशीष यादव on November 11, 2010 at 2:30pm — 11 Comments

नवगीत :: शेष धर संजीव 'सलिल'

नवगीत ::



शेष धर



संजीव 'सलिल'

*

किया देना-पावना बहुत,

अब तो कुछ शेष धर...

*

आया हूँ जाने को,

जाऊँगा आने को.

अपने स्वर में अपनी-

खुशी-पीर गाने को.



पिया अमिय-गरल एक संग

चिंता मत लेश धर.

किया देना-पावना बहुत,

अब तो कुछ शेष धर...

*

कोशिश का साथी हूँ.

आलस-आराती हूँ.

मंजिल है दूल्हा तो-

मैं भी बाराती हूँ..



शिल्प, कथ्य, भाव, बिम्ब, रस.

सर पर कर केश धर.

किया देना-पावना… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 11, 2010 at 9:55am — 3 Comments

गज़ल

दुनिया को मेरा जुर्म बता क्यूं नहीं देते?

मुजरिम हूँ तो फिर मुझको सज़ा क्यूं नहीं देते..?



बतला नहीं सकते अगर दुनिया को मेरा जुर्म?

इल्जाम नया मुझपे लगा क्यूं नहीं देते...!



मुश्किल मेरी आसान बना क्यूं नहीं देते ?

थोड़ी सी जहर मुझको पिला क्यूं नहीं देते ?



दिल में जनूं की आग जला क्यूं नहीं लेते ?

इन शोअलों को कुछ और हवा क्यूं नहीं देते ?



यूं तो बहुत कुछ अपने इजाद किया है,

इंसान को इन्सान बना क्यूं नहीं देते ?



दुनिया को… Continue

Added by Rector Kathuria on November 10, 2010 at 10:00pm — 5 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
57 minutes ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
15 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service