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भाई बहन के प्यार का प्रतीक है रक्षाबंधन ( लेख - कुछ अदृष्ट्य तथ्य )

मनुष्य स्वभावतः उत्सव प्रिय एवं प्रकृति प्रेमी है । ग्रीष्म ऋतु के अवसान के पश्चात जब आषाढ़ और सावन आकाश मे काले काले घुमड़ते बादल झमझमाती बारिश लेकर आते है तब शुष्क और तपती हुई धरा धीरे धीरे तृप्त होती जाती है । सावन का महीना लगते ही हरियाली हरियाली ही दिखाई देती है । इस ऋतु परिवर्तन पर प्रकृति की मन भावन सुषमा एवं सुंदर परिवेश को पाकर मानव मन आन्नादित हो उठता है और ऋतुओं के अनुसार पर्व एवं त्योहार भी आरंभ हो जाते है । सावन के महीने मे ही तीज , नागपंचमी और सावन का अंत श्रावणी पूर्णिमा यानि…

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Added by annapurna bajpai on August 14, 2013 at 7:30pm — 1 Comment

मेरे वतन

मेरे वतन

------------

देश खड़ा चौराहे पर

मुखिया करते हैं मक्कर

घर घुस हमको मार रहे

प्रेम से बोलते उन्हें तस्कर

सांझ सवेरे युगल गीत सुन

कायर अरि प्रतिदिन बहक रहा

मत टोक मुझे मत रोक मुझे

अंगार ह्रदय में दहक रहा

पिया दूध माँ तेरा हमने

अमृत, वो नही था पानी

आकर तुझको आँख दिखाये

जियूं में व्यर्थ ऐसी जवानी

नभ में तिरंगा फहरेगा

माँ न कर तू दिल मे मलाल

भले शीश गिरे धरती पर

धरा रक्त से हो जाय लाल …

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 14, 2013 at 6:44pm — 7 Comments

कागज़ी आज़ादी

एक बार फिर दिल से, गुस्ताखी माफ़ अगर लगे दिल पे 

 .

आज कल हर कोई  स्वतंत्रता दिवस के रंग में रंगा है, ऐसे में मेरे मन में कुछ विचार आये है ... जो शायद  क्रांति नहीं ला सकते और न ही उनमे कोई बोद्धिकता है | फिर भी लिख रहा हूँ और आप सबके साथ साँझा कर रहा हूँ ....

 .

बात तब की है, जब मैं बचपने की गोद में खेला करता था, दूरदर्शन पर  स्वतंत्रता दिवस के दिन मनोज कुमार की शहीद दिखाई गयी, फिल्म इतनी अच्छी लगी कि मुझे भारत माँ के  सबसे महान और वीर बेटे  भगत सिंह ही नज़र आने…

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Added by Sumit Naithani on August 14, 2013 at 6:00pm — 12 Comments

सदा देश है प्यारा |

सार छंद | १६-१२ पर यति , अंत दो गुरु |

 

पवन वेग से दीप बचाना, छा ना जाये अंधेरा | 
बढ़ते जाओ चढ़ते जाओ, तोड़ो यम का  डेरा |  …
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Added by Shyam Narain Verma on August 14, 2013 at 1:00pm — 12 Comments

कुछ स्वतंत्र लाइनें

आगे बढ़ती भारत माँ के, पैरों में चुभ रहे काँटे !

आओ हम मिल कर उसके, एक एक दर्द को बाँटे !



समता, करूणा, वैभवशाली, भारत माँ की शान निराली !

धर्म ,प्रांत , जाति में बँटकर, हमने इसकी आभा बिगाड़ी !



जिस किसी ने भारत माँ पर, बुरी निगाह गड़ाई है ।

हमारे सपूतों ने हिम्मत से, उन्हें गर्त दिखाई है।



हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई, इन नामों को बदलो भाई।

हम सब तो बस बन्दे है, इस झंझट में क्यूं पड़ते हैं।



कोई ना रहेगा पराया तब, सब अपने बन जायेंगे…

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Added by D P Mathur on August 14, 2013 at 12:00pm — 11 Comments

संस्कार (लघुकथा )

संस्कार 
********
महीमा जी पर बहू  को प्रताड़ित करने का मामला न्यायालय में चल रहा था . 
आज एक महत्वपूर्ण गवाही थी . 
श्रीमती उषाकिरण ने अपनी गवाही में बताया -
महीमा जी मेरी बहू  की माँ है और मै अपनी बहू  को बेटी की तरह रखती हूँ . 
इनकी बेटी भी मुझे माँ से कहीं बढ़कर स्नेह देती  है. 
जिस बहू में ऐसे सुंदर संस्कार हो भला उसकी माँ अपनी बहू को कैसे प्रताड़ना का शिकार 
बना सकती है !!!!
बातों में…
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Added by AVINASH S BAGDE on August 13, 2013 at 11:00pm — 9 Comments

ग़ज़ल : न गाँधी से न मोदी से न खाकी से न खादी से

बह्र : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२

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न गाँधी से न मोदी से न खाकी से न खादी से

वतन की भूख मिटती है तो होरी की किसानी से

 

ये फल दागी हैं मैं बोला तो फलवाले का उत्तर था

मियाँ इस देश में सरकार तक चलती है दागी से

 

ख़ुदा के नाम पर जो जान देगा स्वर्ग जायेगा

ये सुनकर मार दो जल्दी कहा सबने शिकारी से

 

ये रेखा है गरीबी की जहाजों से नहीं दिखती

जमीं पर देख लोगे पूछकर अंधे भिखारी से

 

चुने जिसको, सहे उसके…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 13, 2013 at 11:00pm — 40 Comments

!!! बृज की बाला श्याम पुकारे !!!

बृज की बाला श्याम पुकारे, पिउ ज्यों रटे चकोर।

सावन है मन भावन अब तो,आजा मन के चोर।

बदरा बरसे रिमझिम हरषे, मन सरसै तन मोर।।

मेरी  करूण  सुने  बनवारी, मेह  बड़े  चितचोर।

बृज की बाला श्याम पुकारे, पिउ ज्यों रटे चकोर।।1

गोरी का साजन मन झूठा, कैसा यह परदेश।

जग के बन्धन-संशय भरते, तू सत्य अनमोल।।

तन की माटी तुझे बुलाए, भ्रम में करता शोर।

बृज की बाला श्याम पुकारे, पिउ ज्यों रटे चकोर।।2

जीवन बड़ा जुगाड़ु पग-पग, निश-दिन करता…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 13, 2013 at 10:30pm — 10 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
मै शापित पत्थर कलजुग में राम कहाँ से लाऊँ

गीत

*********              

मै शापित पत्थर कलजुग में राम कहाँ से लाऊँ

मै दरिद्रता से दरिद्र हूँ

तुम नृप के भी हो नृपराज

पूर्ण चन्द्र की दीप्ति तुम्हारी

मै हूँ अमा की काली रात  …

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Added by गिरिराज भंडारी on August 13, 2013 at 7:30am — 13 Comments

जो मै नेता होती ( हास्य कविता )

यदि होती नेता मै  

सिंहासन पर बैठती

अगल बगल प्यादे

लंबी मोटर कार होती

तिजोरी भर धन होता

यहाँ कुछ वहाँ होता  

षटरस व्यंजन खाती

गिनती एक न करती

देना तो दूर की बात

सब छीन ले आती

भूखे कितने भी भूखे

दो रोटी की थाली

बनवाती संग मे

चावल , कटोरी दाल

बोनस कह कद्दू देती

उन्नति का ठेंगा

पड़े रहते सब नेता

जो बिचारे फिरते है

वोट मांगते रहते है

अंत मे मौन रहे साध

आँख…

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Added by annapurna bajpai on August 12, 2013 at 10:30pm — 15 Comments

ग़ज़ल - मैं कितनों के लिए पुल सा रहा हूँ

दिलों को जोड़कर रखता रहा हूँ -

मैं कितनों के लिए पुल सा रहा हूँ -



मैं लम्हा हूँ, मगर सदियों पुरानी

किसी तारीख़ का हिस्सा रहा हूँ -



हजारों मस'अले हैं ज़िन्दगी में

मैं इक इक कर उन्हें सुलझा रहा हूँ-



ग़मे दौरां में ख़ुशियाँ ढूँढ़ना सीख

तुझे कबसे ऐ दिल! समझा रहा हूँ -



नहीं मुमकिन है मेरी वापसी अब

फ़क़त शतरंज का प्यादा रहा हूँ -



तुम्हारे नाम का इक फूल हर साल

क़िताबे दिल में, मैं रखता रहा हूँ -



किनारे…

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Added by विवेक मिश्र on August 12, 2013 at 10:30pm — 20 Comments

वतन की कौन सोचेगा अगर तुम हम नहीं तो

ल ला ला ला  ल ला ला ला  ल ला ला ला  ल ला ला 

वतन की कौन सोचेगा अगर तुम हम नहीं तो 

पहन लो हाथ में चूड़ी अगर हो दम नहीं तो 

लुटी है आबरू जिसकी वो बिटिया इस चमन की 

वो है जल्लाद गर है आँख किंचित नम नहीं तो 

हसी मंजर हसी रुत ये भला किस काम के हैं 

सफ़र में साथ जब अपने हसी हमदम नहीं तो 

मजा क्या आएगा हम को भला इस जिन्दगी का 

खुशी के साथ थोडा सा कहीं गर गम नहीं तो 

सुखा देती जिगर के घाव तेरी…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on August 12, 2013 at 9:49pm — 8 Comments

सावन गीत (राजेश कुमार झा)

सांवरी सुन सांवरी

आई मधुर मधुश्रावणी



नभ मीत हृद पर दामिनी

नव ताल से इठला रही

या दिगंबर को उमा

अपनी झलक दिखला रही



सुन सौरभे, हर-गौर,…

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Added by राजेश 'मृदु' on August 12, 2013 at 4:00pm — 19 Comments

लघु -कथा - अधूरा काम

बूढी दादी अपने पोते गोलू को लेकर गाँव के प्राथमिक विद्यालय में गई . उनको देखकर मास्टर साहब कहने लगे कि आपने इतना कष्ट क्यों किया . दादी जी बोली -गोलू पढ़ेगा इसी विद्यालय में लेकिन दोपहर का खाना ये घर पर ही खायेगा . बस एक ही बात कहने को आयी हूँ कि इसके पिता ने हमें शहीद की माँ होने का गौरव दिया है और इसे उसके अधूरे काम को पूरा करने के लिए जिन्दा रहना है .

शुभ्रा शर्मा 'शुभ '

मौलिक और अप्रकाशित

Added by shubhra sharma on August 12, 2013 at 1:30pm — 31 Comments

धूप का टुकड़ा.....

दरख़्तों से छुपा-छुपी खेलता हुआ

वो तीखी धूप का एक टुकड़ा

मेरे कमरे तक आने को बेचैन

हवा ज्यों तेज़ हो जाती

वो ताक कर मुझे

वापस लौट जाता

इतना रौशन है वो आज कि

उसके ताकने भर से

अँधेरे से बंद कमरे की

आंखें उसकी चमक से

तुरन्त खुल जाती हैं

बहुत नींद में रहता है कमरा

आंखें मिचमिचाता है

कुछ देर तक यूँही देख

फिर आँखें बंद कर लेता है

हम्म ....मुझे लग रहा है

आज धूप का ये टुकड़ा

बारिश…

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Added by Priyanka singh on August 12, 2013 at 12:13am — 30 Comments

प्यास के मारों के संग ऐसा कोई धोका न हो

दोस्तों, पिछले डेढ़ महीने, मंच से नादारद था  ... एक ताज़ा ग़ज़ल के साथ पुनः हाज़िरी दर्ज करता हूँ ....

प्यास के मारों के संग ऐसा कोई धोका न हो

आपकी आँखों के जो दर्या था वो सहरा न हो 

उनकी दिलजोई की खातिर वो खिलौना हूँ जिसे

तोड़ दे कोई अगर तो कुछ उन्हें परवा न हो

आपका दिल है तो जैसा चाहिए…

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Added by वीनस केसरी on August 11, 2013 at 10:30pm — 16 Comments

रूप तुम्हारे -(रवि प्रकाश)

मंदिर-मंदिर सजने वाली,

अक्षत,चंदन-सज्जित थाली।

या तुम कोई दीपशिखा हो,

जिस पर जीवन-जोत लिखा हो।

पूजन कोई नमन पुकारे,

जाने कितने रूप तुम्हारे॥



रात का भीगा अश्रु-कण हो,

नव विहान की प्रथम किरण हो।

तपी दोपहर अलसाई सी,

सन्ध्या थोड़ी सकुचाई सी।

चन्द्रलेख हो पंख पसारे,

जाने कितने रूप तुम्हारे॥



फागुन की मादक बयार भी,

पावस की पहली फुहार भी।

कार्तिक की हल्की सी ठिठुरन,

पौष-माघ की ठण्डी सिहरन।

तुझमें खिलते मौसम… Continue

Added by Ravi Prakash on August 11, 2013 at 9:00pm — 25 Comments

नींद चीज है बड़ी

नींद चीज है बड़ी  उंघते रहिए

बेफिक्री में आंखे मूंदते रहिए

आग लगती है लगे हमको क्‍या

आम दशहरी जनाब चूसते रहिए

मौका मिले तो तंज कर लो

नहीं तो मस्‍ती में झूमते रहिए

आसां नहीं है अ‍हम को तोड़ना

दुनिया अजब है घूमते रहिए

अदाकार आप खूब है जनाब 

सूत्रधार की भूमिका निभाते रहिए

बातें विक्षिप्‍त की है आपसे बाहर

हंसी चेहरे पर कूटिल दिखाते रहिए 

"मौलिक…

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Added by रौशन जसवाल विक्षिप्‍त on August 11, 2013 at 8:00pm — 6 Comments

सूरज के घोड़े

सूरज के घोड़े चलते हैं निरंतर,

इस कोने से उस कोने तक ताकि

प्रकाश फैले कोने कोने में.

लेकिन घोड़ों के घर ही में रहता है अँधेरा.

प्रकाश उनसे ही रहता है दूर.

लेकिन उन्हें बोलने की इजाजत नहीं   

मांगना उन्हें वर्जित है

घोड़े के मुंह में लगा होता है लगाम

उन्हें रूकने, हांफने और सुस्ताने की भी इजाजत नहीं

उन्हें बस चलते रहना है ताकि सूरज चल सके

निरंतर, निर्बाध.

डर है, रुके तो हिनहिना उठेंगे .

उनके आँखों पर लगी होती…

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Added by Neeraj Neer on August 11, 2013 at 7:52pm — 13 Comments

पत्थर

पत्थर चुप हैं

वे ज्यादा बोलते नहीं

ज्यादा खामोश रहते हैं

 

खामोश रहना

जीवन की

सबसे खतरनाक क्रिया होती है

आदमी पत्थर हो जाता है

 

खामोशी का कोई भेद नहीं

कोई वर्गीकरण नहीं

बस,

दो शब्दों के

उच्चारण के बीच का अन्तराल

जहां कोई ध्वनि नहीं,

दो अक्षरों के बीच की

खाली जगह

जहां कुछ नहीं लिखा;

कोरा

 

ऐसे ही पत्थर होते हैं

जहां कुछ नहीं होता

वहां पत्थर…

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Added by बृजेश नीरज on August 11, 2013 at 5:00pm — 28 Comments

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