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All Blog Posts (19,138)

जिसे दिल ने चाहा, मिला ही नहीं...

जिसे दिल ने चाहा, मिला ही नहीं
सिवा इसके कोई गिला ही नहीं

नसीबों में उनके बहारें लिखीं
इधर तो कोई सिलसिला ही नहीं

कहां से महकतीं ये फुलवारियां
कोई फूल अब तक खिला ही नहीं

जड़ें उसकी मजबूत थीं इसलिए
शज़र आंधियों में हिला ही नहीं

यहां भीड़ में भी अकेले हैं सब
मुहब्बत का वो काफ़िला ही नहीं।।  # अतुल कन्नौजवी

                                    (मौलिक व अप्रकाशित)

Added by atul kushwah on June 1, 2021 at 8:31pm — 1 Comment

लावणी छन्द,संपूर्ण वर्णमाला पर प्रेम सगाई

(सम्पूर्ण वर्णमाला पर एक अनूठा प्रयास)

.

अभी-अभी तो मिली सजन से,

आकर मन में बस ही गये।

इस बन्धन के शुचि धागों को,

ईश स्वयं ही बांध गये।

उमर सलोनी कुञ्जगली सी,

ऊर्मिल चाहत है छाई।

ऋजु मन निरखे आभा उनकी,

एकनिष्ठ हो हरषाई।

ऐसा अपनापन पाकर मन,

ओढ़ ओढ़नी झूम पड़ा,

और मेरे सपनों का राजा,

अंतरंग मालूम खड़ा।

अ: अनूठा अनुभव प्यारा,

कलरव सी ध्वनि होती है।

खनखन चूड़ी ज्यूँ मतवाली,

गहना…

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Added by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on June 1, 2021 at 8:30am — 10 Comments

माधव मालती छन्द, नारी शौर्य गाथा

कष्ट सहकर नीर बनकर,आँख से वो बह रही थी।

क्षुब्ध मन से पीर मन की, मूक बन वो सह रही थी।



स्वावलम्बन आत्ममंथन,थे पुरुष कृत बेड़ियों में।

एक युग था नारियों की,बुद्धि समझी ऐड़ियों में।

आज नारी तोड़ सारे बन्धनों की हथकड़ी को,

बढ़ रही है,पढ़ रही है,लक्ष्य साधें हर घड़ी वो।



आज दृढ़ नैपुण्य से यह,कार्यक्षमता बढ़ रही है।

क्षेत्र सारे वो खँगारे, पर्वतों पर चढ़ रही है।

नभ उड़ानें विजय ठाने, देश हित में उड़ रही वो,

पूर्ण करती हर चुनौती…

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Added by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on May 31, 2021 at 5:00pm — 4 Comments

करने को नित्य पाप जो-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



करने को नित्य  पाप  जो  गंगा नहायेंगे

हम से अधिक न यार कभी पुण्य पायेंगे।१।

**

तन के धुलेंगे पाप न पावन जो मन हुआ

अंतस में ग्लानि होगी तो गंगा को आयेंगे।२।

**

कोसेेंगे एक दिन तो स्वयं अपने आप को

अपनी नजर से बोलिए क्या क्या छिपायेंगे।३।

**

हम को भले ही भाव न तुम दो अभी मगर

घन्टी बजा कलम  से  तो  हम ही जगायेंगे।४।

**

जिनको शऊर आया न दीपक जलाने का

कहते  हैं  रोशनी  को  वो  सूरज  उगायेंगे।५।…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 31, 2021 at 10:00am — 8 Comments

कोई बिका तो लाया है कोई खरीद कर -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२

कोई बिका तो लाया है कोई खरीद कर

दुनिया में आज हो रही शादी खरीद कर।१।

**

हम हर गली या चौक पे चर्चा में व्यस्त हैं

लाला चलाता  देश  है  खादी खरीद कर।२।

**

पाया अधिक तो हो गया दुश्मन की ओर ही

किसका हुआ  वकील  है  वादी खरीद कर।३।

**

रखता बचा के  कौन से जीवन के हेतु वो

बच्चों को लोभी देता न टाफी खरीद कर।४।

**

खुद खाके भूख माँ ने खिलाया था कौर इक

कमतर उसे जो दें  भी  तो  रोटी खरीद कर।५।

**

कर्मों से जो…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 30, 2021 at 10:05am — 4 Comments

ग़ज़ल: सुख दुख जीवन के हैं साथी क्यों रोता है तू यार

22 22 22 22 22 22 22 1

कोई करता है उद्धार कोई करता अत्याचार  

इस रंगमंच दुनिया में है सबका अपना किरदार

सुख दुख जीवन के हैं साथी क्यों रोता है तू यार

मिट ही जायेंगे सारे दुख जब छूटेगा संसार

जी भर के जीले हर इक पल ज़िद करना है बेकार

तन्हाई में कितने मौसम गुजरे हैं कितनी बार

कोई तो मिल जाये दिल कस्ती वाला इस पार

बैठे हैं साहिल पर कब से लेकर खाली पतवार

ऐसे भी तो ना घूमा कर लेकर दुख का…

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Added by Aazi Tamaam on May 28, 2021 at 9:00am — 2 Comments

वरना पीठ दिखाने से तो अच्छा है तुम मर जाओ

रणभेरी बजने से पहले अच्छा है तुम घर जाओ

वरना पीठ दिखाने से तो अच्छा है तुम मर जाओ

कितनी ही आशाएं तुमसे लगी हुई है, टूटेंगीं

कितनी ही तकदीरें तुमसे जुड़ी हुई हैं, रूठेगीं



तेरे पीछे मुड़ जाने से कितने सिर झुक जाएंगे

कितने प्राण कलंकित होंगे कितने कल रुक जाएंगे



उतर गए हो बीच समर तो कौशल भी दिखला जाओ

हिम्मत के बादल बन कर तुम विपदाओं पर छा जाओ

तप कर और प्रबल बनकर तुम शोलों बीच सँवर जाओ

वरना पीठ दिखाने से तो अच्छा है तुम…

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Added by आशीष यादव on May 28, 2021 at 12:11am — 7 Comments

अहसास की ग़ज़ल : मनोज अहसास

2×11

बदहाली का एक समंदर सर पर है।

शहर की हालत वीरानों से बदतर है।

जिद पर तो बेशक मैं भी आ सकता हूँ ,

लेकिन मुझको बात बिगड़ने का डर है।

जो आँखों की भाषा समझ नहीं पाते,

उन लोगों से कुछ ना कहना बेहतर है।

लूट लिया जिसने आपस के रिश्तों को,

तुम लोगों की आँखों मे वो रहबर है?

नीव हिलाकर चीख रहे हैं झूठे लोग,

उनके पास योजना सबसे बढ़कर है।

एक इमारत है बनने की कोशिश में,

उसकी खातिर मुश्किल…

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Added by मनोज अहसास on May 27, 2021 at 11:44pm — 8 Comments

आँसू हमारी आँखों में लाने का शुक्रिया-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



मीठी सी बात कर के लुभाने का शुक्रिया

फिर गीत ये विकास के गाने का शुक्रिया।१।

***

हमको दुखों से एक भी शिकवा नहीं भले

होते हैं सुख के दिन ये बताने का शुक्रिया।२।

**

वादे सियासती  ही  सही  हम को भा गये

फिर से दिलों में आस जगाने का शुक्रिया।३।

**

खातिर भले ही वोट की आये हो गाँव तक

यूँ पाँच साल  बाद  भी  आने  का शुक्रिया।४।

**

पथरा गयीं थी देखते पथ ये तुम्हारा जो

आँसू हमारी आँखों में लाने का शुक्रिया।५।…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 27, 2021 at 8:15pm — 6 Comments

कामरूपछन्द_वितालछन्द, माँ की रसोई

माँ की रसोई,श्रेष्ठ होई,है न इसका तोड़,

जो भी पकाया,खूब खाया,रोज लगती होड़।

हँसकर बनाती,वो खिलाती,प्रेम से खुश होय,

था स्वाद मीठा,जो पराँठा, माँ खिलाती पोय।

खुशबू निराली,साग वाली,फैलती चहुँ ओर,

मैं पास आती,बैठ जाती,भूख लगती जोर।

छोंकन चिरौंजी,आम लौंजी,माँ बनाती स्वाद,

चाहे दही हो,छाछ ही हो,कुछ न था बेस्वाद।

मैं रूठ जाती,वो मनाती,भोग छप्पन्न लाय,

सीरा कचौरी या पकौड़ी, सोंठ वाली चाय।

चावल पकाई,खीर लाई,तृप्त मन हो जाय,…

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Added by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on May 25, 2021 at 8:30pm — 2 Comments

चल आज मिल के दोनों.....( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

221 2121 1221 212



चल आज मिल के दोनोंं क़सम ये उठाएँ हम

तुम हमको भूल जाओ तुम्हें भूल जाएँ हम (1)

इह तरह तो हमारा गला बैठ जाएगा

कब तक असम को अपनी कहानी सुनाएँ हम (2)

पीछा न अपना छोड़ेंगी यादों की बिल्लियाँ

चल यार इनको दूर कहीं छोड़ आएँ हम (3)

तेरे ख़िलाफ़ फिर से न आवाज़ उठ सके

लोगों के साथ अपना गला भी दबाएँ हम (4)

मुद्दत से आरज़ू है हमारी ऐ जान-ए-मन

इक शाम तेरे साथ कभी तो बिताएँ हम…

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Added by सालिक गणवीर on May 25, 2021 at 10:30am — 5 Comments

रसाल_छन्द, प्रकृति से खिलवाड़

सुस्त गगनचर घोर,पेड़ नित काट रहें नर,

विस्मित खग घनघोर,नीड़ बिन हैं सब बेघर।

भूतल गरम अपार,लोह सम लाल हुआ अब,

चिंतित सकल सुजान,प्राकृतिक दोष बढ़े सब।

दूषित जग परिवेश, सृष्टि विषपान करे नित।

दुर्गत वन,सरि, सिंधु,कौन समझे इनका हित,

है क्षति प्रतिदिन आज,भूल करता सब मानव,

वैभव निज सुख स्वार्थ,हेतु बनता वह दानव।

होय विकट खिलवाड़,क्रूर नित स्वांग रचाकर।

केवल क्षणिक प्रमोद,दाँव चलते बस भू पर,

मानव कहर मचाय,छोड़ सत धर्म विरासत…

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Added by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on May 22, 2021 at 5:00pm — 2 Comments

ग़ज़ल: नेकियों का अता नहीं मिलता

2122 1212 22

नेकियों का अता नहीं मिलता

खुल्द से वास्ता नहीं मिलता

क्यों भला दिल दुखाने वालों को

दंड बाद ए ख़ता नहीं मिलता

तुझको मेरा पता नहीं मिलता

मुझको तेरा पता नहीं मिलता

ऐ ख़ुदा है भी तू या फ़िर कि नहीं

तुझसे क्यों राब्ता नहीं मिलता

कौन ऐसा है जो कि मुफ्लिस के

ज़िस्म को नोंचता नहीं मिलता

दिल की मंज़िल भी कोई मंजिल है

आज़ तक रास्ता नहीं…

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Added by Aazi Tamaam on May 19, 2021 at 9:44am — No Comments

कालिख सना समय

जब-जब कालिख सने समय के,

पन्ने खोले जाएंगे

मानवता पर लगे ग्रहण को,

सीधा याद दिलाएंगे।

आफत को जो अवसर मानें,

लाभ कमाने बैठे हैं

अन्तस् को बस मार दिया है,

हठ में अपनी ऐंठे हैं

आज हवा और दवा सब पर,

जिनका पूरा कब्जा है

जान छीनने के कामों को,

ही करने का जज़्बा है।

उनके सारे कर्म आज के,

सदा ही मुँह चिढाएंगे।

जब-जब कालिख सने समय के,

पन्ने खोले जाएंगे।

कुर्सी का लालच कुर्सी का

मद अब जिन पर छाया है

जिनके…

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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on May 18, 2021 at 5:00pm — No Comments

शारदी छंद "चले चलो पथिक"

(शारदी छंद)

चले चलो पथिक।

बिना थके रथिक।।

थमे नहीं चरण।

भले हुवे मरण।।

सुहावना सफर।

लुभावनी डगर।।

बढ़ा मिलाप चल।

सदैव हो अटल।।

रहो सदा सजग।

उठा विचार पग।।

तुझे लगे न डर।

रहो न मौन धर।।

प्रसस्त है गगन।

उड़ो महान बन।।

समृद्ध हो वतन।

रखो यही लगन।।

===========

*शारदी छंद* विधान:-

"जभाल" वर्ण धर।

सु'शारदी' मुखर।।

"जभाल" = जगण  भगण लघु

।2। 2।। । =7…

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Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on May 18, 2021 at 4:01pm — 3 Comments

हवा भी दिलजली होगी-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२२/१२२२



जहाँ पर रोशनी होगी

वहीं पर तीरगी होगी।१।

*

गले तो  मौत  के लग लें

खफ़ा पर जिन्दगी होगी।२।

*

निशा  आयेगी  पहलू  में

किरण जब सो रही होगी।३।

*

उबासी  छोड़  दी  उस ने

यहाँ  कब  ताजगी  होगी।४।

*

धुएँ के साथ विष घुलता

हवा भी दिलजली होगी।५।

*

कली जो खिलने बैठी है

मुहब्बत  में   पगी  होगी।६।

*

न आया  साँझ  को बेटा

निशा भर माँ जगी होगी।७।…

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 18, 2021 at 7:36am — 3 Comments

ग़ज़ल-आख़िर

1222     1222     1222      1222

छुड़ाया  चाँद ने  दामन अँधेरी  रात में  आख़िर

परेशां  हूँ कमी  क्या है  मेरे ज़ज़्बात  में आख़िर

उसे कुछ कह नहीं सकता मगर चुप भी रहूँ कैसे

करूँ तो क्या करूँ उलझे हुए हालात में आख़िर

भुलाना  चाहता तो  हूँ मगर  मजबूरियाँ  भी  हैं

उसी की बात आ जाती मेरी हर बात में आख़िर

सुनो अय आँसुओं बेवक़्त का ढलना नहीं अच्छा

जलूँगा कब तलक मैं इस क़दर बरसात में आख़िर

मुख़ातिब हैं सभी मुझसे कि आगे…

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Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 17, 2021 at 2:20pm — 6 Comments

हम होगें कामयाब

आज अपने मकसद को पाने में हम होगें कामयाब

मन में रख विश्वास, महामारी से जंग जीत जायेगें

कुदरत के सिद्धांतों पर जब हम चलना सीख जायेगें

जीवन में हम जैसा फल बोयेगें वैसा ही फल खायेगें

आज नहीं तो कल,लोग अपनी गलती समझ जायेगें

आज अपने मकसद को पाने में हम होगें कामयाब ॥

छल कपट राग द्वेश छोड जब जीना सीख जायेगें

लालच त्याग कर, दूसरों के दुख को समझ पायेगें

जिस दिन हम अपनी कमजोरी को ताकत बनायेगें

तभी कोरोना पर अपनी विजय का जश्न मनायेगें

आज अपने मकसद को…

Continue

Added by Ram Ashery on May 16, 2021 at 8:30am — No Comments

हम होगें कामयाब

लेन देन जगत में, कुदरत रखे सब हिसाब ।

मिलता न कुछ मुफ्त में, हम हो कामयाब ॥

अपने आतीत से सीख लें,

पलटकर देख लो इतिहास

मुसीबतों से कुछ सबक ले,

रख सुखी भविश्य की आस ।

हर बाधा की दिशा मोड दो,

कर जीवन में सतत प्रयास ।

विपत्ती में धैर्य से निर्णय लें,

ह्र्दय जगे सफलता की आस ।

मन में जगा विश्वास, आंखों से देखे ख्वाब !

टूटे न मन से आस, लोग होगें कामयाब !!

वक्त रहते आज तू संवार ले,

कल तेरा होगा न उपहास ।

दुख में हिम्मत हार…

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Added by Ram Ashery on May 15, 2021 at 9:30am — No Comments

पावन छंद "सावन छटा"

(पावन छंद)

सावन जब उमड़े, धरणी हरित है।

वारिद बरसत है, उफने सरित है।।

चातक नभ तकते, खग आस युत हैं।

मेघ कृषक लख के, हरषे बहुत हैं।।

घोर सकल तन में, घबराहट रचा।

है विकल सजनिया, पिय की रट मचा।।

देख हृदय जलता, जुगनू चमकते।

तारक अब लगते, मुझको दहकते।।

बारिस जब तन पे, टपकै सिहरती।

अंबर लख छत पे, बस आह भरती।।

बाग लगत उजड़े, चुपचाप खग हैं।

आवन घर उन के, सुनसान मग हैं।।

क्यों उमड़ घुमड़ के, घन व्याकुल…

Continue

Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on May 13, 2021 at 9:00am — 1 Comment

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