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April 2013 Blog Posts (245)

हास्य घनाक्षरी

भारी भरकम काया,है बड़ी विचित्र माया ,

खुद खाती ठूसकर ,मुझपे चिल्लाती है !

हुआ वजन सौ किलो ,फिर भी दम ना लेती ,

गुंडई तो देखो इसे ,डाइटिंग बताती है !!

खर्राटे जब लेती है,मानो भूकंप आ गया ,

पड़ोसियों की भी तब ,नींद टूट जाती है !

अपने को…

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Added by ram shiromani pathak on April 18, 2013 at 4:00pm — 18 Comments

सभी के दिल मे बसना चाहता है

लो पत्थर इश्क़ करना चाहता है
मेरी मानिंद जलना चाहता है

लगा के हौसलों के पर युवा अब
बड़ी परवाज़ भरना चाहता है

फलक में जा भुला बैठा जो सबको
ज़मीं पर क्यूँ उतरना चाहता है

सहारे की ज़रूरत है उसे क्या
जो गिर के अब सँभलना चाहता है

बना हमदाद दुनिया में वही जो
सभी के दिल मे बसना चाहता है

संदीप पटेल "दीप"

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 18, 2013 at 2:57pm — 7 Comments

एक प्रयास,,,,,

एक प्रयास,,आप सबकॆ चरणॊं मॆं सादर समर्पित है,,,

======================================

(१) मदिरा सवैया =

==============

मारति गॆंद गिरी यमुना जल, बीचहिँ धार बहात चली !!

भाषत राज गुनीजन जानहु, मानहुँ कुम्भ नहात चली !!

त्रॆतहिँ कॆवट की तरिनी जसि, राम चढ़ॆ  उतिरात चली !!

आनहुँ गॆंद अबै मन-मॊहन, ग्वालन ग्वालन बात चली !!

(२) मदिरा सवैया =

==============

भूल हमारि भई मनमॊहन, खॆल खॆलाइ लियॊ तुम का !!

दाँव हमारि रहै  तबहूँ हम, दाँव  दिलाय दियॊ…

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Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 18, 2013 at 2:30pm — 18 Comments

सोने का काजल

स्वतंत्रता के 66 वर्ष  बाद, जन सामान्य को क्या मिला? आज भी सोने की चिड़िया के बचेखुचे पंख, भक्षक बन कर रक्षक ही नोच रहे हैं, अल्पसंख्यकों का एक वर्ग असुरक्षा के नाम पर बहुसंख्यकों पर अविश्वास कर रहा है- राजनेताओं की दादुरनिष्ठाओं से सभी हतप्रभ हैं: - संस्कारहीन समाज अपनी दिशाहीन यात्रा के उन मील के पत्थरों पर नाज कर रहा है जिनके नीचे शोषितों की आहें दफन हैं। ऐसे में, भारतीय लोकतन्त्र का चेहरा किस स्वर्णिम आभा से चमक…

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Added by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on April 18, 2013 at 1:30pm — 6 Comments

दिन अब बीते कैसे |

मेरे साजन घर ना आये , सूना सूना लागे |  
जब से छोड़ कर गये विदेश , घर में मन ना लागे |
दिन में कहीं चैन ना आये ,  रतिया बीते जागे |
उनके बिना कुछ ना सुहाये , नैनन निद्रा भागे |
आकर…
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Added by Shyam Narain Verma on April 18, 2013 at 1:11pm — 3 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
आज कृष्ण कहाँ ?(लघु कथा )

नीर के बापू ये तुम ठीक नहीं कर रहे हो एक ही तो रोजी रोटी का सहारा है ये बकरी उसे भी बेचना चाहते हो गोमती ने कलुवे के हाथ से रस्सी छुडाते हुए कहा कलुआ गुस्से में लगभग चीखता हुआ बोला बकरी तो फिर आ जायेगी भागवान देश का इतना बड़ा मंत्री एक गरीब के झोंपड़े में रोज थोड़े ही आता है आएगा तो चार आदमियों के खातिरदारी का बंदोबस्त तो करना ही पड़े है न  तभी तो हमारा भी कुछ उद्धार हो पायेगा । अगले दिन सुबह से कलुवे के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे मंत्री जी का स्वागत सजी धजी…

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Added by rajesh kumari on April 18, 2013 at 12:19pm — 13 Comments

भूत को क्यों याद करूँ

भूत को क्यों याद करूँ

 

क्यों याद करूँ भूत को,

क्या दिया,

क्या सोचा था मेरे बारे में,

क्या रखा था भविष्य के लिए,

क्या अच्छा किया की,भूत को,

मैं याद करूँ ।

 

देखूंगा अपने भविष्य को,

सोचूंगा अपने भविष्य को,

कर्म करूँगा भविष्य के लिए,

संघर्ष करूँगा जीवन में,

सफल बनूँगा भविष्य में,भूत को क्यों,

मैं याद…

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Added by akhilesh mishra on April 18, 2013 at 10:30am — 6 Comments

"शुभ प्रभात"

             "शुभ प्रभात"

उदय सूर्य हुआ , नभ मंडल में , सब दुनिया मे उजियारा हो ,

मन भाव  उठे  , संग शब्द सजे , तब मन का दूर अंधियारा हो .



जब गूँज उठे ,  शंख मंदिर मे , आह्लाद सा…

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Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 18, 2013 at 8:00am — 8 Comments

लघु कथा : ऑनर किलिंग

बेटी के शव को पथराई आँखों से देखते रहे वह.बेटी के सिर पर किसी का हाथ देख चौंक कर नज़रें उठाई तो देखा वह था. लोगों में खुसुर पुसुर शुरू हो गयी कुछ मुठ्ठियाँ भींचने लगीं इसकी यहाँ आने की हिम्मत कैसे हुई. ये देख कर वह कुछ सतर्क हुए आगे बढ़ते लोगों को हाथ के इशारे से रोका और उठ खड़े हुए. वह चुपचाप एक किनारे हो गया.

तभी अचानक उन्हें कुछ याद आया और वह अन्दर कमरे में चले गए. बेटी की मुस्कुराती तस्वीर को देखते दराज़ से वह…

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Added by Kavita Verma on April 18, 2013 at 12:00am — 15 Comments

प्यासा था मैं कुछ बूंदों का ...

प्यासा था मैं कुछ बूंदों का, कब सागर भर पीना चाहा,

बस चाहा था दो पल जीना, कब जीवन भर जीना चाहा,

जग को होगा स्वीकार नहीं, ये अपना मिलन मैं शंकित था,

रिश्तों सा कुछ माँगेगा ये प्रमाण हमसे मैं परिचित था,

पर था मुझको विश्वास कभी छोड़ेगा ये जड़ता अपनी,

लेकिन निकला ये क्रूर बहुत दिखला दी निष्ठुरता अपनी,

तुम क्यों विकल्प हो गयी मेरा तुमको ही क्यों चुनना चाहा,

भावुक मन का मैं बोझ उठा कब तक बोलो चलता रहता,

जो गरल बन गया जीवन रस कब तक बोलो पीता…

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Added by ajay sharma on April 17, 2013 at 11:30pm — 7 Comments

घनाक्षरी

तोहरे दुआरे मात, खड़े दोउ कर जोरे,

अब तो आप आइके, दरस दिखाइए |

तोहरी शरण आया, तेरा ये कपूत मात,

सेवक को मां अपनी, शरण लगाइए |

इक आस तोरी मात, दूजा को सहाई मोर,

अइसे न आप मोरी, सुधि बिसराइए |…

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Added by बृजेश नीरज on April 17, 2013 at 10:30pm — 14 Comments

ये भरत अभागा पापी है प्रभु से वियोग जो सहता है !

हे लक्ष्मण तू बड़भागा है श्री राम शरण में रहता है ,

ये भरत अभागा पापी है प्रभु से वियोग जो सहता है !

 

प्रभु इच्छा से ही संभव है प्रभु सेवा का अवसर मिलना ,

हैं पुण्य प्रताप तेरे लक्ष्मण प्रभु सेवा अमृत फल चखना ,

मेरा उर व्यथित होकर के क्षण क्षण ये मुझसे कहता है !

ये भरत अभागा पापी है प्रभु से…

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Added by shikha kaushik on April 17, 2013 at 10:00pm — 5 Comments

‘‘गजल‘‘

 ‘‘गजल‘‘

एक प्रयास के फलस्वरूप प्रस्तुत है।

वज्न......1222 1222 1222 1222

हमारी जिन्दगी का जब सलीका सादगी नम है।

यहां बन्दे कयामत हैं तभी तो बन्दगी कम है।।1

सुना है शाम से पहले बनायें पाक दामन को।

अभी तो आपका *दम बस यहां शर्मिन्दगी गम है।।2......*अहंकार

कहो तो हम वजू करके नमाजी बन करें सजदा।

खुदा को गर गुनाही का बताओ गन्दगी *थम है।।3.....*रूकना

बने हम पन्च वक्ता पीर समझाए मुहम्मद को।

तभी तो…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 17, 2013 at 7:52pm — 9 Comments

कहने से डरते हैं आशिक चाह छुपाए होते हैं

कहने से डरते हैं आशिक चाह छुपाए होते हैं

दिल के इक कोने मे अक्सर आह छुपाए होते हैं

दिखते हैं आज़ाद परिंदे पर लौटें दिन ढलते ही

घर औ बच्चों की वो भी परवाह छुपाए होते हैं

हमको है मालूम जमाना छेड़ेगा इन ज़ख़्मों को

प्यारी सी मुस्कान में उनकी थाह छुपाए होते हैं

मजबूरी में जो तुमसे डंडे खाते हैं मूक बने

भूल नहीं वो तूफ़ानी उत्साह छुपाए होते हैं

दर दर भटके खूब युवा थक हार गये चलते चलते

भ्रष्टाचारी मंज़िल की हर राह…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 17, 2013 at 2:59pm — 8 Comments

गरमी आ गई भाईया

 गरमी आ गई भाईया

सूरज आंखे तरेर रहा ले, हाथो मे अग्नि बाण ।

बिना कवच जो निकले बाहर, ये…

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Added by बसंत नेमा on April 17, 2013 at 2:00pm — 6 Comments

माँ के बिना सब कुछ अधूरा |

जो जग में सब को ले आती , जननी महिमा अपरम्पार  |
जग में यदि माँ ही ना होती , चल ना पाता ये संसार |
जलचर थलचर या नभचर हो , माँ सबकी  है पालनहार |
जननी से ही ये दुनिया है , ना  तो सब कुछ है बेकार |…
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Added by Shyam Narain Verma on April 17, 2013 at 11:41am — 3 Comments

एक बार वो लड़की बनकर तो देखे.....

तेरे सपनो की कोई औकात नहीं 

मेरे सपने हैं बहुत बड़े

मुझसे जब यह बात कही उसने 

मेरे दिल ने बस एक बात कही......

एक बार वो लड़की बनकर तो देखे

खुद- ब- खुद समझ जायेगा मेरी मज़बूरी को

क्यों…

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Added by Sonam Saini on April 17, 2013 at 10:30am — 8 Comments

हास्य - व्यंग . " अंगुली पर नचाती थी "

 हास्य - व्यंग

 "अंगुली पर नचाती थी"

मेरे एक दोस्त ने, किस्सा कुछ यूँ सुनाया ,

एक मामले में बीमा अफ़सर ने , घोटाला था पाया |

बात, इस हद तक थी बिगड़ी ,

इसमें लगी, उन्हें साजिश कुछ तगड़ी |

मामला था, कि एक महिला की अंगुली कटी ,

अंगुली थी मानो , हीरे से पटी |

अंगुली का हुआ लाखों भुगतान…

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Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 17, 2013 at 8:00am — 8 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
एक कील, एक तसवीर

हक़ीकत की सफेद दीवार पर

तजुर्बों की भीड़ ने,

अहसास नाम की

नन्हीं सी कील ठोक दी थी.

मैं,

अरमानो की इस टेढ़ी-मेढ़ी गली से

यूँ ही गुजर रहा था –

अटपटा सा लगा

तो सोचा,

क्यों न काँच से मढ़े हुए

इस “ मैं “ को

उस पर टाँग दूँ –

गली में भटकने वालों का

इसे तोड़ने और जोड़ने में

शायद मन बहल जाए.

न जाने उस तसवीर के

कितने ही टुकड़े हो गये होंगे,

कितने ही असावधानी तमाशबीन

उन टुकड़ों की नुकीली धार से,

लहू-लुहान हुए होंगे !

मुझे तो अब…

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Added by sharadindu mukerji on April 17, 2013 at 2:44am — 13 Comments

हमको नवाज़ी ख़ुदा ने मकसूम शख्सियत ,

 

  Thai Massage

फरमाबरदार बनूँ औलाद या शौहर वफादार ,

औरत की नज़र में हर मर्द है बेकार .



करता अदा हर फ़र्ज़ हूँ मक़बूलियत  के साथ ,

माँ की करूँ सेवा टहल ,बेगम को दे पगार .

 

मनसबी रखी रहे बाहर मेरे घर से ,

चौखट पे कदम रखते ही इनकी करो मनुहार .

 

फैयाज़ी मेरे खून में ,फरहत है फैमिली ,

फरमाइशें पूरी करूँ ,ये फिर भी हैं बेजार .



हमको नवाज़ी ख़ुदा ने मकसूम शख्सियत…

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Added by shalini kaushik on April 17, 2013 at 1:36am — 6 Comments

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