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कहने से डरते हैं आशिक चाह छुपाए होते हैं

कहने से डरते हैं आशिक चाह छुपाए होते हैं
दिल के इक कोने मे अक्सर आह छुपाए होते हैं

दिखते हैं आज़ाद परिंदे पर लौटें दिन ढलते ही
घर औ बच्चों की वो भी परवाह छुपाए होते हैं

हमको है मालूम जमाना छेड़ेगा इन ज़ख़्मों को
प्यारी सी मुस्कान में उनकी थाह छुपाए होते हैं

मजबूरी में जो तुमसे डंडे खाते हैं मूक बने
भूल नहीं वो तूफ़ानी उत्साह छुपाए होते हैं

दर दर भटके खूब युवा थक हार गये चलते चलते
भ्रष्टाचारी मंज़िल की हर राह छुपाए होते हैं

उस्तादी की ओढ़े चादर केवल एब निहारें वो
मेरे इन अश्आरो को पढ़ वाह छुपाए होते हैं

संदीप पटेल "दीप"

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Comment by Ashok Kumar Raktale on April 22, 2013 at 8:17pm

बहुत बढ़िया गजल आदरणीय संदीप जी.

Comment by वेदिका on April 18, 2013 at 9:45pm

बहुत बहुत शानदार गज़ल आदरणीय संदीप जी! बधाई

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 18, 2013 at 9:35pm

आदरणीया डॉ प्राची जी सादर प्रणाम 

आपकी सराहना पाकर मन प्रसन्न हो गया 

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 

सादर आभार आपका 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 18, 2013 at 9:35pm

आदरणीया कुंती जी सादर 

उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार 

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 18, 2013 at 9:34pm

आदरणीय केवल जी सादर 

आपकी सराहना के लिए ह्रदय से धन्यवाद 

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 18, 2013 at 8:22pm

उस्तादी की ओढ़े चादर केवल एब निहारें वो 
मेरे इन अश्आरो को पढ़ वाह छुपाए होते हैं.....हाहाहा 

बहुत खूब गज़ल 

प्रिय संदीप जी पाठकों की छिपी हुई नहीं... मुखर वाह कुबूलिये इस शानदार गज़ल पर 

Comment by coontee mukerji on April 18, 2013 at 2:44am

संदीप जी ,एक एक शेर काबीले तारीफ है . हर लाइन एक दूसरे के पूरक है . मगर आशिक घायल भी होता है और घायल भी करता है..

बहुत खूब . सादर ,

कुंती

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 17, 2013 at 8:12pm

आ0 संदीप कुमार पटेल जी, बहुत सुन्दर अश‘आर ’हमको है मालूम जमाना छेड़ेगा इन ज़ख़्मों को
प्यारी सी मुस्कान में उनकी थाह छुपाए होते हैं’एक नही सारे शेर...। बधाई स्वीकारें। सादर,

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