आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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बहुत अच्छी रचना बहुत समझदार और हिम्मती बेटी ,, हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको आदरणीया डॉ वर्षा चौबे जी
इस सार्थक कथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया डॉ वर्षा चौबे जी |
आदरनीय वर्षा चौबे जी बेहतरीन प्रस्तुति.
/अब बाप- बेटी दोनों खुश -खुश खाने का अभिनय कर रहे थे।/ बहुत उम्दा लघुकथा कही है आपने आदरणीय वर्षा जी । लघुकथा में एक सहजता है । सादर बधाई ।
हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ वर्षा जी। बेहतरीन प्रस्तुति।
फर्ज़
‘‘पापा, आप कई दिनों से परेशान दिखाई दे रहे थे। मगर, आज आपका चेहरा बहुत खिला खिला दीख रहा है, मानो कोई बहुत बड़ा बोझ आपके सर से उतर गया है। आखिर राज़ क्या है?’’ राहुल।
‘‘हाँ बेटा, आज वो बोझ उतार आया।’’
‘‘कौन-सा बोझ था। मैं भी तो जानूँ।’’ राहुल।
‘‘आज पर्दा हटा ही देता हूँ। हमारे असली हीरों तो हमारे वीर जांबाज सिपाही है। कड़ाके की ठंड और बर्फबारी में सीमाओं की रखवाली करते हैं। प्राणों की आहुतियाँ देते हैं। पिछले दिनों दुश्मन देश ने हमारे अट्ठारह सैनिकों को शहीद कर दिया। शहीदों के परिवारों बाल बच्चों का दुख देखा नही गया। सोचा उनके लिए कुछ करूँ। ‘‘आर्मी रिलीफंड’’ के आॅनलाइन अकाउण्ट में पाँच लाख रूपये जमा करवा के आ रहा हूँ। देख, यह रसीद।’’
राहुल कुछ पल चुप रहा। फिर उसकी आँखों से आँसू झरने लगे। शहर के सारे अख़बार भी मशहूर हीरा कारोबारी सेठ लालचंद घेराणी की देशभक्ति और शहीद परिवारों के प्रति सवंदेना का यशोगान कर रह थे।
"मौलिक व अप्रकाशित"
बहुत बड़ा जिगर और नीयत चाहिए इन सब के लिए आपकी लघु कथा बहुत प्रेरक हुई है सराहनीय इस लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई |
मोहतरम जनाब आरिफ़ साहिब , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुन्दर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
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