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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-134

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 134वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा जनाब अज़हर इनायती साहब की गजल से लिया गया है|

"मुझे वो दे गया इक ख़्वाब देखने के लिए"

   1212        1122         1212               112

 मुफ़ाइलुन      फ़इलातुन           मुफ़ाइलुन             फ़इलुन/फेलुन

 बह्र:  मुज्‍तस मुसम्मन् मख्बून मक्सूर

रदीफ़ :-  देखने के लिए
काफिया :- आब( ख़्वाब, महताब, शादाब, सैलाब,  आब, ताब, तेज़ाब, असबाब, बेताब, आदाब, सुर्खाब, अहबाब आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 अगस्त दिन शुक्रवार  को हो जाएगी और दिनांक 28 अगस्त  दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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जनाब अमीर साहिब आदाब, आपने तो बह्र वाले मिसरे को बे बह्र कर दिया ( खुला - है - सिर्फ़ - वो - इक -बाब - देखने - के - लिए) - - (12-1-21-1-2-21-212-1-12)

तकती करके देखिए, कौन सही है 

जनाब तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब, देवनागरी में वह और वो दोनों अलग-अलग शब्द हैं जबकि उर्दू लिपि में एक ही, आपके उक्त मिसरे में आपने 'वह' शब्द लिखा है, ग़ौर फ़रमाएं। 

दुरुस्त फ़रमाया, 'वह' शब्द में मात्रा पतन नहीं होगा, 'वो' में हो सकता है ।

आदरणीय तस्दीक़ जी, नमस्कार
अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार कीजिए।
मतले के सानी में शायद "मुझे है हर कोई" कहना ठीक हो
सादर।

आ. भाई तस्दीक अहमद जी सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई । 

अच्छी ग़ज़ल कही जनाब तसदीक साहब... मतले ke शेर में गुणी जनों से सहमत हूँ... 

आदरणीय तस्दीक अहमद ख़ान साहिब
सादर अभिवादन

बढ़िया तरही ग़ज़ल कहने के लिए हार्दिक बधाइयाँँ स्वीकार करें.माज़रत चाहूँगा मुहतरम ,मतला मेरी भी समझ से बाहर है. सादर.

आदरणीय तस्दीक अहमद ख़ान जी, अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें।मतले पर मैं भी गुणिजनों से सहमत हूँ।

वह को 1 पर नहीं लिया जा सकता।

आदरणीय तस्दीक जी, अच्छी ग़ज़ल की बधाई स्वीकार करें। मतले में रब्त स्पष्ट नहीं हुई। ऋचा यादव जी का सुझाव अच्छा है।

नदी में मंज़र-ए-नायाब देखने के लिए
कि आओ रक्स-ए-महताब देखने के लिए

अजी ये पीना-पिलाना तो भूल ही जाओ
न मिल रही है मय-ए-नाब देखने के लिए

अकेलेपन की सज़ा मुझ को देने वाले आ
पलट के हाल-ए-सज़ायाब देखने के लिए

कहाँ है मौत मयस्सर, बची है जीस्त अभी
उखड़ती साँसों के गिर्दाब देखने के लिए

चलो ये राज़ बता दूँ बनी हैं क्यों रातें
सुनो कि हुस्न-ए-शबताब देखने के लिए

वतन में आग लगी तो गई कहाँ तक लौ
क़तार में हैं सद अहज़ाब देखने के लिए

नवाब साब चढ़ेंगें या रेल छूटेगी
हैं आये सब हद-ए-आदाब देखने के लिए

निगाहें खोई हिफ़ाज़त में, अब बस एक नज़र
दिला दो बाग़ वो शादाब देखने के लिए

ग़ज़ल लिखो तो समर जी की दाद पाओगे
**मुझे वो दे गया इक ख़्वाब देखने के लिए

#मौलिक एवं अप्रकाशित

कृपया आठवां शेर ऐसे पढ़ा जाए

----

निगाहें जिसकी हिफ़ाज़त में खोईं, एक नज़र
दिला दो बाग़ वो शादाब देखने के लिए

ठीक है ।

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