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एक गजल - जानता हूँ चुनाव होना है

रोज ही भाव-ताव होना है

जानता हूँ चुनाव होना है

 

पाँच वर्षों में’ भर गया वो तो

फिर नया एक घाव होना है

 

कूप सड़कों पे’ बन गये अनगिन

उनका अब रखरखाव होना है

 

कौन कितना कहाँ से लायेगा  

जोड़ना है घटाव होना है

 

धर्म के हो गए हैं’ गठबंधन

जातियों का जुडाव होना है

 

शांति हमको कहीं नहीं भाती

हर जगह अब तनाव होना है

 

गाल हैं ये गरीब के, इन पर   

आँसुओं का बहाव होना है

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 3, 2018 at 5:20pm

आदरणीय Dr Ashutosh Mishra जी दिल से शुक्रिया आपका 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 3, 2018 at 5:19pm

आदरणीय  Samar kabeer जी आपका सदैव स्वागत है , सादर नमन 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 3, 2018 at 3:46pm

इस उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय भाई बसंत जी  सादर 

Comment by Samar kabeer on August 2, 2018 at 4:47pm

मेरे कहे को मान देने के लिए धन्यवाद ।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 2, 2018 at 11:46am

आदरणीय  Samar kabeer जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया एवं सुझाव को सादर नमन, उत्तम रहेगा , अभी सुधार लेता हूँ 

Comment by Samar kabeer on August 1, 2018 at 5:04pm

जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

अब उनका रखरखाव होना है'

ये मिसरा लय में नहीं है,यूँ कर सकते हैं :-

'उनका अब रखरखाव होना है'

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 1, 2018 at 12:27pm

आदरणीय  gumnaam pithoragarhi  जी दिल से शुक्रिया आपका

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 1, 2018 at 12:24pm

आदरणीय TEJ VEER SINGH जी दिल से शुक्रिया आपका  

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 1, 2018 at 12:24pm

आदरणीय Shyam Narain Verma जी दिल से शुक्रिया आपका  

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 1, 2018 at 12:23pm

 आदरणीया Neelam Upadhyaya जी दिल से शुक्रिया आपका  

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