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 वृद्धाश्रम के द्वार पर विधवा माँ को छोड़कर जाते समय बेटे ने उसका मोबाइल अपने कब्जे में किया और जाते हुए बोला, ‘तुम यहाँ आराम से रहना. इसकी अब तुम्हें जरूरत ही क्या. मैं आकर हाल लेता रहूँगा ‘

बेटा चला गया तब माँ की आँखों के रुके आंसू बाहर निकलने को बेताब हुए .

’तुम्हारी कोई बेटी नही है क्या ?’- अचानक व्यवस्थापिका ने आकर उससे पूछा .

‘नही, पर क्यों ?’- उसने धीरे से कहा.

‘इसलिए कि आज तक कोई बेटी अपनी माँ को वृद्धाश्रम छोड़ने नही आयी’

‘सच कहती हो बहन, मैंने दो बार अपना एबॉर्शन सिर्फ इसलिए कराया था, कि एक बेटा मेरी गोद में आये. उसका प्रायश्चित तो मुझे करना ही होगा ‘

(मौलिक/अप्रकाशित )

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 8, 2018 at 1:36pm

आदरणीय डा. साहब..बहुत खूबसूरती से एक मर्मान्तक भाव रचना पेश की है आपने..नमन करता हूँ..

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 6, 2018 at 10:45pm

वाह.. आपने एक बार फिर से साबित कर हमें सिखाया है कि कितना भी चिर-परिचित/पुराना कथानक/कथ्य क्यों न हो, लेखक अपने शिल्प, कहन और परिकल्पना के सुनियोजित चतुर संयोजन से एक नवीनतम प्रभावोत्पादक और विचारोत्तेजक सृजन कर सकता है प्रवाहमय और दिलचस्प। हमारे समाज में आज भी ऐसे वाक्यात हो रहे हैं। मध्यम वर्गीय परिवार बेटियों से आस लगाए बैठे हैं या बेटियां ही उनका सहारा बनती हैं। लेकिन विपदा यह है कि या तो उन्हें जन्म ही लेने नहीं दिया जाता है या जन्म के बाद उनके साथ अन्याय होता रहता है। बेहतरीन सारगर्भित सृजन के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव साहिब।

Comment by Sushil Sarna on April 6, 2018 at 1:33pm

वाह आदरणीय डॉ गोपाल जी भाई साहिब वाह .... एक यथार्थ को बड़े ही मार्मिक ढंग से आपने इस लघु कथा में दर्शाया है जिसका असर दिल में दूर तक हुआ है। इस सन्देश को कोई समझ ले तो भ्रूण हत्या , पुत्र मोह , लिंग भेद आदि समस्त समस्याओं का निदान हो सकता है और एक सुंदर समाज का निर्माण हो सकता है। फिर शायद किसी वृद्धाश्रम का निर्माण न हो। हार्दिक बधाई स्वीकार करें सर।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 5, 2018 at 4:23pm

सुंदर लघु कथा 

Comment by Samar kabeer on April 5, 2018 at 11:40am

जनाब डॉ.गोपाल नारायण जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on April 5, 2018 at 10:52am

हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी । बेहतरीन लघुकथा।

Comment by surender insan on April 5, 2018 at 8:40am

 बहुत खूब ।लघुकथा का बहुत अच्छा प्रयास बहुत बहुत बधाई हो।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 5, 2018 at 6:56am

बहुत खूब आ. डॉ गोपाल नारायण जी,
समाज के कडवे सच को दर्शाती इस लघुकथा पर बधाई  

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