For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ज़िन्दगी की सच्चाई पन्नों पर

ज़िन्दगी की सच्चाई पन्नों पर

हरकीरत हीर जी कौन हैं -- यह मुझे पता नहीं, मैं उनसे कभी मिला नहीं, परन्तु हरकीरत हीर जी क्या हैं, यह मैं उनकी रचनाओं में ज़िन्दगी की सच्चाई से भरपूर संवेदनाओं के माध्यम बहुत पास से जानता हूँ।

ज़िदगी के उतार-चढ़ाव में गहन उदासी को हम सभी ने कभी न कभी अनुभव किया है, परन्तु भावनाओं को कैनवस पर या पन्ने पर यूँ उतारना कि वह हमें इतनी अपनी-सी लगें ... हम उनके संग बहते चले जाएँ ... यह एक निपुण कलाकार या लेखक ही कर सकता है। 

लिखते-लिखते हर रचना के साथ लेखक का विकास होता है, उसके साथ-साथ उस लेखक को वर्षों तक पढ़ते-पढ़ते, उसकी भावनाओं के साथ बहते-बहते, उस लेखक के प्रति पाठक की सोच का भी विकास होता है। लगता है कि हम उस लेखक को निजि रूप से जानते है, कि जैसे हम उसकी ज़मीन पर स्वयं चल चुके हैं। यही नहीं, जब वह भावनाएँ अपनी-सी दीखती हैं तो लगता है कि वह लेखक भी हमको जानता है। कुछ ऐसा अनुभव हुआ है मुझको हरकीरत जी की रचनाएँ पढ़ कर, कि शायद वह मेरी ही भावनाओं को पन्नों पर उतारती हैं, कि जैसे वह मुझको सचमुच जानती हैं ...

कुछ वर्ष हुए जब हरकीरत जी ने ज़िन्दगी की सच्चाई से भरपूर अपनी तीन पुस्तकें मुझको भेजीं तो मन गदगद ही नहीं हुआ, मुझको गर्व हुआ कि मानो मुझको कोई अमूल्य पुरस्कार मिला हो। यह तीन पुस्तकें ... एक से बढ़ कर एक ... (१) खामोष चीखें, (२) दीवारों के पीछे की औरत, (३) दर्द की महक ... मेरे पुस्तक संग्राहलय में एक विशेष स्थान रखती हैं, क्यूँकि उनके किसी भी पन्ने को खोलता हूँ, पढ़ता हूँ, तो लगता है मैं उस पन्ने पर उतरी भावना को जाने कितनी बार जी चुका हूँ, और उसमें चाहे कितनी भी बार बह चुका हूँ, उसमें और गोते खाने को मन करता है... और मैं उन कविताओं को बार-बार पढ़ता हूँ। यह है एक अच्छे लेखक की खूबी, यह हरकीरत हीर जी की खूबी है।

हरकीरत हीर जी की "खामोश चीखों" से कुछ पंक्तियाँ ...

(१) जब तुम आखिरी बार मिले थे

     तभी यह बूँद पथर बन गई थी

     आ आज की रात इस कब्र पे

     मिट्टी दाल दें

(२) आज की रात

     बड़ी अजीब है

     बारिश की बूँदें 

     कांपती रहीं

(३) अगर तुम्हारे पास सुनहरी धूप है तो

     मैंने भी मिट्टी के बरतन में 

     कुछ किरणें संभाल ली हैं

(४) मैं ही हवाओं का

     मुकाबला न कर सकी

     वह मेरा घर भी उजाड़ गईं

     और तेरा भी ...

(५) ज़िन्दगी भर चलना पड़ता है

     फ़ासलों के साथ

और अब "दीवारों के पीछे की औरत" से छलकते कुछ भाव ...

(१) ज़िन्दगी भर गुलामी की परतों में जीती है मरती है

     एक अधलिखी नज़म की तरह

     ये दीवारों के पीछे की औरत

(२) चूड़ियाँ यहाँ-वहाँ सारी रात

     सर पीटती रहीं ...

     क्या भाव है ! उफ़ !

(३) वह मुस्कुराता है 

     एक खोखली-सी मुस्कराहट

     मैं भी पहन लेती हूँ

     एक नकली-सी हँसी

(४) बेशक वह किसी ईमारत पर खड़ी होकर

     लिखती रहे दर्द भरे नग़में

     पर उसके खत कभी मुहब्ब्त में तजुर्मा नहीं होते

      यह ऊपर की पंक्तियाँ हरकीरत जी की कविता "काला गुलाब" से हैं। यह कविता मेरे लिए एक विशेष महत्व रखती है, 

      क्यूँकि इसी नाम से मेरी परम-प्रिय कवयित्रि अमृता प्रीतम जी की एक रोचक पु्स्तक भी है। सन १९६३ में अमृता प्रीतम जी

      से तीसरे मिलन के अन्तर्गत उन्होंने अपनी इस पुस्तक "काला गुलाब" से कुछ पंक्तियाँ स्वयं पढ़ कर सुनाईं  थीं और बताया था

      कि "काला गुलाब पुस्तक की रचना उनके लिए बहुत कठिन थी .... क्यूँ कठिन थी ?.. यह मैं उनके मुँह से सुने शब्दों में

      फिर कभी बताऊँगा।

      

हरकीरत जी की किसी भी पुस्तक को पढ़ते हुए उसे अचानक बंद करना आसान नहीं है। यह इसलिए कि उनके भाव मन को भींच देते हैं , या खींच लेते हैं, और इन दोनों में से किसी भी स्थिति से बाहर आना आसान नहीं है।

ऐसा ही आभास उनकी पुस्तक "दर्द की महक" को पढ़ते हुए हुआ।  ....

(१) सामने दो बाँसों के बीच

     जलती हुई रस्सी खामोश है

     अंधा कुआँ और डरावना हो गया है

(२) ये अस्पताल है

     यहाँ पेड़ों पर नहीं उगती हँसी

     सफ़ेद कपड़ों में मौत हँसती है

(३) उसे

     आज भी याद है

     कहाँ से शूरू हुए थे शब्द

     वो बेतरतीब-सी धड़कती धड़कने

     वो खामोशी, वो इन्तज़ार

(४) जज़्बात 

      भीगते रहे बूँदों में

      वजूद मिट्टी के बर्तन-सा

      तिड़कता गया

(५) कुछ दर्द बूँदों में

      बगावत कर उठा

      कुछ ओस की बूँदों में

      फैलता रहा पत्तों पर

इसे कहते हैं न दर्द का बहाव ... जिसमें बह्ते हम पाठक कवि के निकट पहुँच जाते हैं।

कुछ वर्ष हुए मेरी एक दर्द भरी कविता को सराहते हुए एक पाठक डा० गोपाल नारायन श्रीवास्त्व जी ने प्रतिक्रिया में प्रिय अज्ञेय जी की ज़मीन से यह शब्द लिखे, "विजय जी, एक बात पूछूँ, इतना विष कहाँ से पाया?" .... और हरकीरत जी की भावपूर्ण कविताओं की सराहना करते हुए मन करता है कि मैं उनसे पूछूँ, प्रिय हरकीरत जी, इतना विष कहाँ से पाया?" ... और यह भी जानता हूँ मैं कि इस सारी सृष्टि पर इस प्रश्न का कहीं कोई उत्तर नहीं है।

                       --------

--विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

    

     

Views: 699

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on February 7, 2018 at 9:44am

भाई समर कबीर जी, आपने जिस प्रकार सराहना दी है, मन गदगद हुआ। आपका हार्दिक आभार।

Comment by vijay nikore on February 7, 2018 at 9:42am

इस लेख को मान देने के लिए हार्दिक आभार, भाई तस्दीक़ अहमद जी।

Comment by Samar kabeer on February 4, 2018 at 10:41am

जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,यादों के ख़ज़ाने को आपने अपने जादुई क़लम से जो ख़ूबसूरती अता की है वो क़ाबिल-ए-तहसीन है, बहुत ख़ूब वाह, इस शानदार प्रस्तुति पर दिल से ढेरों मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 3, 2018 at 12:13pm

मुहतरम जनाब विजय साहिब ,यादों से रु बरु करती सुन्दर रचना हुई  है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।

Comment by Sushil Sarna on February 2, 2018 at 8:23pm

आदरणीय विजय निकोर जी , सादर प्रणाम , कभी ऐसी पंक्तियों को पत्थर पर बैठकर मत पढ़ना , शब्दों का लावा पत्थर के अस्तित्व को गर्म तरल में बदल देगा , किसी गुलिस्तां में भी मत पढ़ना , गुल खिलने से डरेंगे , रात की तन्हाई में शब्द किताब से निकलकर आँखों को दर्द का अर्थ बताएँगे , साँसों को अश्क में सिमटी ज़िंदगी दिखाएँगे। आदरणीय इस लाजवाब प्रस्तुति के लिए मेरी दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं। चंद शब्दों में दीवान कैसे लिखे जाते हैं , ये इस नायाब प्रस्तुति में नज़र आया। दिल से मुबारकबाद सर। सादर नमन।

Comment by Mohammed Arif on February 2, 2018 at 8:37am

आदरणीय विजय निकोर जी आदाब,

                              संक्षिप्त संस्मरणात्मक शैली में लिखा लेख पढ़कर मन रम गया । शुरू-शुरू में लगा कोई ख़ास नहीं है । लेकिन जब हरकीरत जी के बारे में आपने बताया तो लगा वह शख़्स तीव्र भावनाओं के समंदर में बहुत गहरे उतरे हुए है । भावना का छलकता साग़र है हरकीरत  जी । जब आपने उनकी छोटी-छोटी कविताओं से रू-ब-रू करवाया तो और भी मज़ा आ गया । सच है, कुछ लोग ।भुलाए पर भी नहीं भुलते हैं । वे हमारी चिर स्मृतियों में सदैव बसेरा बना लेते हैं । हार्दिक बधाई स्वीकार करें हरकीरत जी से संवाद करवाने के लिए ।

Comment by vijay nikore on February 1, 2018 at 9:08am

आपका हार्दिक आभार, आ० लक्ष्मण जी

Comment by vijay nikore on February 1, 2018 at 9:08am

आपका हार्दिक आभार, आ० नरेन्द्र्सिहं जी

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 1, 2018 at 7:08am

क्या कहने.. 

आ. भाई विजय जी, सादर अभिवादन ।

Comment by narendrasinh chauhan on January 29, 2018 at 7:10pm

BAHOT KHUB 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
16 hours ago
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service