For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मौन-संबंध

असीम अँधेरी रात

भस्मीली परछाईं भी जहाँ दीखती नहीं

और न ही कहीं से वहाँ

कोई प्रतिध्वनि लौट कर आती है ...

इस अपार्थ रात में

छज्जे पर बैठी दूर तक तकती

तुम भी अब ऊबकर उकताकर

डरी-डरी-सी सोचती तो होगी

वह सब

जो कभी सोचा न था ...

सवाल ही नहीं उठता था तब

यह सब सोचने का

स्वप्न-सृष्टि में तब

घुमड़-घुमड़ आते

काले घनेरे बादल भी हमको

प्रकृति की दिव्य-छवि-से लगते थे

कि जैसे इस काटे-छंटे मिथ्यात्व में भी

अबूझ सार्थकता थी

एक-दूसरे से बँधे हुए भी

स्वछ्न्द थे हम

और स्नेहिल शब्दों की गुच्छियों में

एक दूसरे को बंदी बनाने की

कोशिश करी थी न तुमने

न मैंने ...

प्रश्न ही कहाँ उठता था तब ?

पर अब कोई काले घने आतंकवादी बादल

उनकी गरजन भयंकर, डरावनी

कि जैसे कोई हिंसक सिहँ

दहाड़ता पास चला आ रहा हो ...

कैसी विचित्रता है यह

या कहूँ कि है यह क्रूरता

कुछ भी ठहरता नहीं सामान्य-सा

है बस अब असाधारण अस्थिरता

तुममें, मुझमें भी

दहल जाता है दिल

काल्पनिक घने बादल-सी तिरती पसरती

अपने ही खयालों की बेसुध धाराओं से

ऐसे में प्राय: अब कुछ ऐसा भी हुआ ...
घूमते-फिरते उढ़ते बगूलों की तरह

लगातार चक्कर खाते खयालों में

आत्मीयता की उष्मा से संवेदित भावनाओं में

हिचकियाँ भरती, आँसू ठुलकाती

तुम धीरे से मेरे पास आ खड़ी हुई

बहुत पास आई, पर हर बार

अंतर-द्वार में आकुलित अनुभवों से सिंची

बिना कुछ बोले ही चली गई

मैं भी तुम्हारे खयालों में आकर

तुम्हारे माथे पर स्नेह का चुम्बन लगा कर

कितनी ही बार बिना कुछ कहे लौट आया

कुछ ऐसे ही सूनेपन में हममें

मौन से मौन का अटूट संबंध रहा

हम कुछ कह न सके कि जैसे ओठों पर हमारे

शब्द शब्दों को खोजते रहे

आँखें आँखों में किसी रहस्य को

ढूँढने का प्रयत्न करती

हर बार खाली, सिकुड़ती

अपनी ही गहराई में लौट आईं

कभी सोते कभी जागते अधूरे हम दोनों

कितनी ही बार तकलीफ़ भरे निज एकान्त में

अनजाने पलकों के पीछे ्मिले ...

दूर थे हम पर दूर हो कर भी दूर हो न पाए

अब जब सभी कुछ दीखता है

धुँधला-धुँधला

काँपते ओठ तुम्हारे अनदेखे अनजाने

कुछ कहने को आतुर तो हैं

पर कोई छटपटाहट घने खयालों में

या, कोई बर्फ़-सा जमा डर है तुममें

यह रोक रहे हैं आ-आकर तुमको कुछ कह पाने से

मानो कोई उलझे शब्द तुम्हारे ओठों तक आते ही

टुकड़े बन कर बिखर-बिखर जाते हैं ...

इस असीम अँधेरे सन्नाटे में सोचता हूँ पूछूँ कर-बद्ध तुमसे

ऐसे लड़खड़ाते मौन-संबंध में बड़े-बड़े दर्द छिपाए

तुमने अब तक, प्रिय, मेरे संग रहना क्यूँ स्वीकार किया ?

                           ----------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 775

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on March 12, 2018 at 11:27am

//वो लेखन सफल है जिसे पढ़ते हुए रौंगटे खड़े हो जाएं.//

ऐसी सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय बृजेश जी।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 8, 2018 at 7:17pm

वो लेखन सफल है जिसे पढ़ते हुए रौंगटे खड़े हो जाएं..वैसे तो सम्पूर्ण कविता ही अद्भुत भावों को समेटे हुए है..लेकिन अंतिम दो पंक्तियाँ बार बार पढ़ी और हर बार ज़िस्म में सिहरन सी दौड़ गई..

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 8, 2018 at 4:20pm

आ. भाई विजय जी, अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by vijay nikore on March 8, 2018 at 11:46am

भाई समर जी, आपकी सुविचारित प्रतिक्रिया सदैव अमूल्य है, और आप यह जानते ही हैं ... बहुत आभारी हूँ आपका। यह रचना पोस्ट करने से पहले मुझको भी इसकी तवालत ठीक नहीं लग रही थी, अत: इसको बार-बार पढ़ा ... देखा कि अभिव्यक्ति में भावों का sequence connected था तो पोस्ट कर दी। अच्छा है कि आपने इस ओर संकेत किया... आपका आभार, भाई समर जी।

Comment by Samar kabeer on March 7, 2018 at 12:07pm

जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,हमेशा की तरह आपकी शानदार कविता पढ़ने को मिली,आप बहुत सोच समझ कर क़लम उठाते हैं,मैं इस बात से वाकिफ़ हूँ,लेकिन एक बात का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है कि कविता बहुत ज़ियादा  तवील न हो,क्योंकि कविता जब ज़ियादा तवील हो जाती है तो कविता नहीं रहती,कहानी हो जाती है,बहरहाल इस शानदार प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by vijay nikore on March 7, 2018 at 7:57am

आपसे मिली यह सराहना अनमोल है, आदरणीय शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी। हार्दैक आभार।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 6, 2018 at 6:02pm

बेहतरीन विशेषण और बिम्बों में सारगर्भित भाव/संदेश सम्प्रेषण। हार्दिक बधाई आदरणीय विजय निकोरे साहिब इस सृजन के लिए।

Comment by vijay nikore on February 22, 2018 at 12:22am

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय नादिर खान जी।

Comment by नादिर ख़ान on February 19, 2018 at 4:53pm

अति उत्तम सृजन बधाई स्वीकारें .....

Comment by vijay nikore on February 14, 2018 at 9:57am

आ० कल्पना बहन, सराहना से मेरा होंसला बढ़ाने के लिए आभार।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service