For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम निष्ठुर हो …

तुम निष्ठुर हो …

तुम निष्ठुर हो तुम निर्मम हो
तुम बे-देह हो तुम बे-मन हो
तुम पुष्प नहीं तुम शूल नहीं
तुम मधुबन हो या निर्जन हो
तुम निष्ठुर हो …

तुम विरह पंथ का क्रंदन हो
तुम सृष्टि भाल का चंदन हो
तुम आदि-अंत के साक्षी हो
तुम वक्र दृष्टि की कंपन्न हो
तुम निष्ठुर हो …
तुम  नीर  नहीं समीर नहीं
तुम हर्ष नहीं तुम पीर नहीं
तुम हर दृष्टि  से ओझल हो
तुम रखते कोई शरीर नहीं
तुम निष्ठुर हो …
तुम चलो तो सांसें चलती हैं
तुम रुको तो सांसें जलती हैं
आखिर समय  तुम हो कैसे
तुममे तो  सदियाँ पलती हैं
तुम निष्ठुर हो …

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 716

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on November 19, 2015 at 12:46pm

आदरणीय सतविंदर कुमार जी रचना पर आपके स्नेहासक्त शब्द बरखा का दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on November 19, 2015 at 12:45pm

आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा से मेरे सृजन में एक नयी ऊर्जा का संचार हुआ है। इस मान के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on November 19, 2015 at 12:43pm

आदरणीय  लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी रचना को आपके स्नेहिल शब्दों ने जो मान दिया है उसके लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 18, 2015 at 11:22pm
बहुत सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय
Comment by pratibha pande on November 18, 2015 at 10:35pm

एक और खूबसूरत रचना आपकी कलम से ,नमन आपके रचना कर्म को आदरणीय 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 18, 2015 at 3:50pm

रचना में बहुत सवेदना झलकती है | जो या तो समय के लिए या स्त्री के लिए | इस भावपूर्ण रचना के लिए बधाई 

Comment by Sushil Sarna on November 18, 2015 at 1:10pm

आदरणीय सौरभ सर प्रस्तुत रचना के प्रति आपका इतना स्नेह मेरे भावों को आंतरिक नेह नीर से सिंचित कर रहा है। प्रस्तुति पर इतनी गहन समीक्षा ने उसे एक नया आयाम दिया है। आपकी प्रखर सोच पर मैं नत मस्तक हूँ। किन शब्दों में आपका आभार व्यक्त करूँ , निःशब्द हूँ। आपके इस नेह का दिल की असीम गहराईयों से हार्दिक आभार। आपके आने से एक पुराना गीत याद आ गया :
कौन आया मेरे रचना के द्वारे
अपनी मीठी से झंकार लिए
पागल रचना इट उत देखे
नैनों में शृंगार किये

मेरे मनोभावों को कृपया अन्यथा न लेवें। अपना स्नेह बनाये रखें। सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 18, 2015 at 12:35am

कविताओं में भाव प्रवाह का सुन्दर उदाहरण है यह प्रस्तुति, आदरणीय सुशील सरनाजी.  प्रस्तुति में आत्मीय उलाहनों का जो स्वरूप उभर कर सामने आया है और जैसी लयात्मकता इसे प्रवहमान कर रही है, वह आपके संवेदनशील हृदय से ही संभव था.

स्त्री संज्ञा मात्र न हो कर एक प्रवृति भी है जो वस्तुतः टूट कर प्रेम करने का बर्ताव है. इस बर्ताव में जितनी आत्मीयता हुआ करती है उतना ही अधिकार हुआ करता है. इस अधिकार में कोई समझौता स्वीकार्य नहीं. अन्यथा, आत्मीय की निष्ठुरता को इंगित कर अपनी अंतर्मुखी विवशता को जिस तरह से एक स्त्री प्रस्तुत कर सकती है वह अन्यत्र असंभव है. वह अन्यतम हुआ करता है. प्रेम की यह अत्यंत उच्च अवस्था हुआ करती है जहाँ स्त्री का एकाधिकार है ! पुरुष का क्यों नहीं ? क्यों कि पुरुष, ऐसी मान्यता है, अभिव्यक्ति का पर्याय हुआ करता है. जबकि स्त्रियाँ मुखर अभिव्यक्ति में जैसी गोपनीयता बरतती हैं वह काव्य-कौतुक और काव्य-चमत्कार का कारण हो जाया करती है. 

आपकी प्रस्तुत रचना इसी तथ्य को सदयता से प्रस्तुत कर रही है, ऐसा मुझे प्रतीत हो रहा है.  काश मैं ग़लत न होऊँ..

आदरणीय आपकी हालिया कविताओं में मानवीय अपनापन बोलने लगा है. यह एक शुभ संकेत है.  हार्दिक शुभकामनाएँ 

Comment by Sushil Sarna on November 17, 2015 at 7:41pm

आदरणीय डॉ गोपाल जी भाई साहिब प्रस्तुति पर आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। सर वस्तुतः ''समय'' के भाव को शब्दों में चित्रित करते समय जो विचार आये उन्हें मैंने प्रस्तुत करने का प्रयास किया। समय के इस चित्रण में मुझे इसका विरोधाभास भी प्रिय लगा। इसमें व्याखित इसका हर गुण चित्रण में निहित है फिर चाहे वो सकारात्मक हो या नकारात्मक हो। इस बाबत ये मेरा निजी विचार है। कृपया मेरे कथन को अन्यथा न लेवें। बहरहाल आपने रचना को आदर दिया ,सृजनकर्ता से प्यार किया आपका हार्दिक हार्दिक आभार।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 17, 2015 at 2:54pm

आ० सरना जी - विरोधाभासी कविता है - तुम मधुबन हो या निर्जन हो--------------तुम चलो तो सांसे चलती है , फिर भी निष्ठुर , तुममे तो सदिया  पलती हैं , फिर भी निष्ठुर -----------------मेरा आशय समझ गए होंगे सरना जी आखिर आप मनोरम कविता के धनी जो हैं . सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, अवश्य इस बार चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के लिए कुछ कहने की कोशिश करूँगा।"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"शिज्जू भाई, आप चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के आयोजन में शिरकत कीजिए. इस माह का छंद दोहा ही होने वाला…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब "
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आप हमेशा वहीँ ऊँगली रखते हैं जहाँ मैं आपसे अपेक्षा करता हूँ.ग़ज़ल तक आने, पढने और…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. लक्ष्मण धामी जी,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..दो तीन सुझाव हैं,.वह सियासत भी कभी निश्छल रही है.लाख…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..बधाई स्वीकार करें ..सही को मैं तो सही लेना और पढना…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी साहिब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, हार्दिक आभार, मेरा लहजा ग़जलों वाला है, इसके अतिरिक्त मैं दौहा ही ठीक-ठाक पढ़ लिख…"
2 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service