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अमर गंध …

पी के संग सो गयी
पी के  रंग हो गयी
प्रीत  की  डोर  की
मैं  पतंग  हो गयी
दीप   जलता  रहा
सांस  चलती  रही
पी की  बाहों में  मैं
इक उमंग हो गयी
हर  स्पर्श  देह  में
गीत  भरता   रहा
नैनों की झील की
मैं  तरंग  हो गयी
निशा  ढलती  रही
आँखें  मलती  रही
होठों  की  होठों से
एक  जंग  हो गयी
कुछ  खबर  न हुई
कब सहर हो गयी
साँसों में पी की मैं
अमर गंध हो गयी

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on November 7, 2015 at 4:48pm

आदरणीय  Abid ali mansoori  जी रचना की इस आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Abid ali mansoori on November 6, 2015 at 11:09pm

हर  स्पर्श  देह  में 
गीत  भरता   रहा 
नैनों की झील की 
मैं  तरंग  हो गयी 

कुछ  खबर  न हुई 
कब सहर हो गयी 
साँसों में पी की मैं 
अमर गंध हो गयी

आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है वधाई आपको!

Comment by Sushil Sarna on November 6, 2015 at 1:09pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी रचना की में निहित भावों को सहमिति देती आपकी इस आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on November 6, 2015 at 1:08pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी रचना की भाव समीर ने  आपको छुआ , मेरा सृजन सफल हुआ। इस  आत्मीय स्नेह का हार्दिक आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 6, 2015 at 12:11pm

आदरणीय सुशील सरना सर बहुत सुन्दर प्रस्तुति हुई है हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 6, 2015 at 10:24am

लाजवाब !! आ. सुशील भाई बहुत सुन्दर गीत रचना हुई है , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ।

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