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1212 1122 1212 112/22

गई तो रंग बदलता ये शह्र छोड़ गई

घटा बहारों में ढलता ये शह्र छोड़ गई

 

सबा चमन से गुज़रते हुये महक लेकर

रविश-रविश* यूँ टहलता ये शह्र छोड़ गई                                    *बाग़ के बीच की पगडण्डी          

 

फ़िज़ा ए शह्र तलक आके यक-ब-यक आँधी

यूँ मस्तियों में उछलता ये शह्र छोड़ गई

 

तमाम रात भटकती वो तीरगी* आखिर                                        *अँधेरा

पिघलती शम्अ पिघलता ये शह्र छोड़ गई

 

रहे हयात में तर्जे हयात* देख बदी                                              *जीने का ढंग

हुदूदे डर से* निकलता ये शह्र छोड़ गई                                        *डर की सीमाओं से

 

-मौलिक व अप्रकाशित

 

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Comment by शिज्जु "शकूर" on April 2, 2015 at 5:16pm

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on April 2, 2015 at 5:15pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर आपका हार्दिक आभार

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 2, 2015 at 4:25pm

फ़िज़ा ए शह्र तलक आके यक-ब-यक आँधी

यूँ मस्तियों में उछलता ये शह्र छोड़ गई      क्या बात है!

दिली बधाईयां आदरणीय शिज्जू सरजी!

Comment by MAHIMA SHREE on April 2, 2015 at 3:03pm

बहुत उम्दा ... बधाई .. शिज्जु जी

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 2, 2015 at 2:13pm

बहुत खूब आ. आपकी ग़ज़ल हमेशा दो चार नए शब्द दे जाती हैं..
सभी शेर शानदार हैं ...बहुत बहुत बधाई 


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Comment by गिरिराज भंडारी on April 2, 2015 at 2:06pm

आदरणीय शिज्जु भाई ,लाजवाब ग़ज़ल कही है , हर शे र कामयाब हुये हैं , आपको दिली मुबारक़ बाद ॥

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 2, 2015 at 12:00pm

आ० शिज्जू भाई

आपने शब्दों के अर्थ् देकर गजल समझने कारास्ता आसान किया . मेरी अधिक समझ नहीं है पर शायद इस रदीफ पर लिखना आसान नहीं है मगर आपने मुश्किलको आसान किया , यह आपकी महारत है . सादर .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 2, 2015 at 11:58am

आ० भाई शिज्जु जी , इस भावपूर्ण ग़ज़ल के लिए कोटि कोटि बधाई .

Comment by Shyam Narain Verma on April 2, 2015 at 10:55am
क्या बात है .... बहुत उम्दा | बधाई आप को 
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 2, 2015 at 8:18am
आदरणीय शिज्जु शकूर जी , सुन्दर प्रस्तुति , बधाई , सादर।

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