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ये विष ही उगलते हैं - लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’

1222   1222   1222 1222

*****************************

सितारे  चाँद  सूरज  तो  समय से ही निकलते हैं
दियों  की  कमनसीबी  से   अँधेरे  रोज  छलते हैं

****
किसी को देखकर गिरता  सँभल जाते समझ वाले
जिन्हें लत ठोकरों की हो  कहाँ  गिरकर सभलते हैं

****
खुशी  घर  में उन्हीं  से है  खुदा  की नेमतें वो तो
न डाँटा  कर  कभी उनको अगर बच्चे  मचलते हैं

****
कहा  है  सच   बुजुर्गों  ने  करें  सब  मनचली रूहें
किए बदनाम तन जाते कि कहकर ये फिसलते हैं

****
अगर है पालना विषधर बनाओ यार खुद को शिव
पिलाया दूध  भी  जाए  तो ये  विष  ही  उगलते हैं

****
कहो  क्या दीन  है उनका  कहो  ईमान है कैसा
जरा सी  बात पर  जो देवता  अपना  बदलते हैं

****
बहुत  मीठी   करें   बातें   दिखें  भेले  सियासतदाँ
‘मुसाफिर’ ये वो अजगर जो बिना चाबे निगलते हैं

मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 22, 2015 at 10:57am

आ0 भाई श्यामनारायण जी, गजल का अनुमोदन कर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 16, 2015 at 5:28pm
अच्छे अश’आर हुए हैं आ. लक्ष्मण जी, बधाई स्वीकारें

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 16, 2015 at 11:32am

आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत सुन्दर गज़ल हुई है , हार्दिक बधाइयाँ कुबूल करें ॥

दिखें  भेले  सियासतदाँ   ----      शायद आप भोले कहना चाहते हैं , टंकण ट्रुटि सुधार लीजियेगा ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 15, 2015 at 9:06am

आदरणीय लक्ष्मण धामी सर जी, बहुत बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल हुई है, गज़ब की सादगी है इस ग़ज़ल में, बड़ी ही सहजता से आपने बेहतरीन अशआर निकाले है, ये अशआर पढ़कर झूम गया हूँ -

किसी को देखकर गिरता  सँभल जाते समझ वाले
जिन्हें लत ठोकरों की हो  कहाँ  गिरकर सभलते हैं.... बहुत सुन्दर 


खुशी  घर  में उन्हीं  से है  खुदा  की नेमतें वो तो
न डाँटा  कर  कभी उनको अगर बच्चे  मचलते हैं..... वाह वाह बढ़िया 

अगर है पालना विषधर बनाओ यार खुद को शिव
पिलाया दूध  भी  जाए  तो ये  विष  ही  उगलते हैं.... बेहतरीन शेर 


कहो  क्या दीन  है उनका  कहो  ईमान है कैसा
जरा सी  बात पर  जो देवता  अपना  बदलते हैं.... उम्दा शेर 

इस ग़ज़ल पर दिल से दाद हाज़िर है 

Comment by gumnaam pithoragarhi on March 14, 2015 at 8:22pm
****
कहो क्या दीन है उनका कहो ईमान है कैसा
जरा सी बात पर जो देवता अपना बदलते हैं वाह! क्या बात है बहुत बहुत बधाई आपको!
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 14, 2015 at 8:13pm
बहुत मीठी करें बातें दिखें भेले सियासतदाँ
‘मुसाफिर’ ये वो अजगर जो बिना चाबे निगलते हैं
वाह, बहुत सुन्दर , आदरणीय लक्षम धामी जी , बधाई, सादर।
Comment by Shyam Mathpal on March 14, 2015 at 8:01pm

Aadarniya Laxam Dhami Ji,

Hamesa ki tarah aapki ye rachna bhi dil ko chune wali hai.Hriday se mubarakbad.

अगर है पालना विषधर बनाओ यार खुद को शिव
पिलाया दूध  भी  जाए  तो ये  विष  ही  उगलते हैं - Bahut Khub.

Comment by maharshi tripathi on March 14, 2015 at 4:40pm

कहो  क्या दीन  है उनका  कहो  ईमान है कैसा
जरा सी  बात पर  जो देवता  अपना  बदलते हैं

****विशेष दाद ,,,बहुत सुन्दर आ laxman dhami जी |.

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on March 14, 2015 at 4:16pm

किसी को देखकर गिरता  सँभल जाते समझ वाले
जिन्हें लत ठोकरों की हो  कहाँ  गिरकर सभलते हैं

अगर है पालना विषधर बनाओ यार खुद को शिव
पिलाया दूध  भी  जाए  तो ये  विष  ही  उगलते हैं

उम्दा ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई....

बहुत खूब --भ्रमर ५

Comment by Hari Prakash Dubey on March 14, 2015 at 4:14pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत प्रभावशाली रचना है, साधुवाद ! सादर

अगर है पालना विषधर बनाओ यार खुद को शिव
पिलाया दूध  भी  जाए  तो ये  विष  ही  उगलते हैं...सुन्दर 

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