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घाव की मौजूदगी में - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122   2122    2122   2122

******************************
मन  किसी  अंधे  कुए  में  नित  वफ़ा  को  ढूँढता है
जबकि तन  लेकर हवस को रात दिन बस भागता है

*****
तार  कर  इज्जत   सितारे   घूमते  बेखौफ  होकर
कह रहे सब खुल के वचलना चाँद की भोली खता है

*****
जिंदगी  भर  यूँ  अदावत  खूब  की   तूने  सभी  से
मौत  के  पल  मिन्नतें  कर  राह  में क्यों रोकता है

****
जाँच  को  फिर  से  बिठाओ आँसुओं कोई कमीशन
घाव   की   मौजूदगी    में    दर्द   कैसे  लापता  है

*****
आप ने  पूछा  कि  पलकें किस लिए  गीली  हमेंशा
गम रहे  हरदम  सलामत  अश्क  इसको  जागता है

*****
मिल  ही  जाते  हैं  अजाने   लोग  अक्सर  दोस्तों  से
कब मिला पर वो ‘मुसाफिर’ स्वप्न जिसको खोजता है

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 857

Comment

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Comment by Shyam Mathpal on January 29, 2015 at 8:03pm

आदरणीय धामी  जी,

काफी सुन्दर् रचना . दिली बधाई .

Comment by विनोद खनगवाल on January 29, 2015 at 6:21pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी। बहुत सुन्दर दिल के अहसासों को शब्दों के रूप में उकेरा है। मुझे बहुत अच्छी लगी।
Comment by gumnaam pithoragarhi on January 29, 2015 at 5:49pm

जाँच  को  फिर  से  बिठाओ आँसुओं कोई कमीशन
घाव   की   मौजूदगी    में    दर्द   कैसे  लापता  है

वाह लक्ष्मण जी वाह ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही है बधाई

Comment by Hari Prakash Dubey on January 29, 2015 at 5:40pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सुन्दर प्रस्तुति ,इन पंक्तियों पर विशेष ध्यान अटकता है .....

जाँच  को  फिर  से  बिठाओ आँसुओं कोई कमीशन

घाव   की   मौजूदगी    में    दर्द   कैसे  लापता  है…… हार्दिक बधाई ! सादर !

Comment by vijay on January 29, 2015 at 2:30pm
1000 लाइक्स
Comment by maharshi tripathi on January 29, 2015 at 2:14pm

वैसे तो आपकी हर रचना सुन्दर होती है ,,पर मुझे ये बहुत ख़ूबसूरत लगी |बधाई हो धामी जी |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 29, 2015 at 12:39pm

बहुत बढ़िया धामी जी i एकदम अलग हटकर नयी स्टाइल में i सादर i

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 29, 2015 at 11:41am
मन किसी अंधे कुए में नित वफ़ा को ढूँढता है
जबकि तन लेकर हवस को रात दिन बस भागता है ।
बहुत खूब आदरणीय लक्षमण धामी जी, बधाई, इस रचना पर, सादर।

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