जिन्होंने रास्तों पर खुद कभी चलकर नहीं देखा
वही कहते हैं हमने मील का पत्थर नहीं देखा
.
मिलाकर हाँथ अक्सर मुस्कुराते हैं सियासतदाँ
छिपा क्या मुस्कराहट के कभी भीतर नहीं देखा
.
उन्हें गर्मी का अब होने लगवा अहसास शायद कुछ
कई दिन हो गए उनको लिए मफलर नहीं देखा
.
सड़क पर आ गई थी पूरी दिल्ली एक दिन लेकिन
बदायूं को तो अब तक मैंने सड़कों पर नहीं देखा
.
फ़क़त सुनकर तआर्रुफ़ हो गया कितना परेशां वो
अभी तो उसने मेरा कोई भी तेवर नहीं देखा
.
अभी तो बाबुओं ने ही उसे दौड़ा के रक्खा है
अभी तो उसने ढंग का एक भी अफसर नहीं देखा
.
ये जैसलमेर की जलती ज़मीं कुछ पूछती तुझसे
बता ऐ अब्र तूने क्यूं कभी मुड़कर नहीं देखा
.
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
आदरणीय राणा जी ..एक से बढ़कर एक शेर ..वर्तमान के घटनाक्रम पर चुटीला व्यंग्य करता ..कहीं प्रशासनिक व्यवस्थ पर सवाल उठाता ...बैबिध्य पूर्ण बिषयों को छोटी शानदार ग़ज़ल ..काबिले तारीफ़ इस ग़ज़ल की दिल से तारीफ़ करता हूँ .सादर
सड़क पर आ गई थी पूरी दिल्ली एक दिन लेकिन
बदायूं को तो अब तक मैंने सड़कों पर नहीं देखा -----बहुत कुछ कह दिया इस शेर ने ......शानदार .....जख्म कुरेदता हुआ
ये जैसलमेर की जलती ज़मीं कुछ पूछती तुझसे
बता ऐ अब्र तूने क्यूं कभी मुड़कर नहीं देखा -------सच जहाँ जन्मते थे वो पहाड़ों से भी खफ़ा हो गए ....सामयिक शेर बहुत उम्दा
बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी आ० राणा जी ढेरों दाद कबूलें ..
एक से बढ़कर एक खूबसूरत शेर हैं बहुत बहुत बधाई आदरणीय राणा साहब इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिये
बहुत बेहतरीन गजल हुई आदरणीय राणा साहब, शुरूआती मतले ने ही कहर ढा दिया, दिली बधाई स्वीकार कीजिये
राणा जी आप बहुत दिनों बाद दर्शन देते हैं लेकिन जब भी आते आइना दिखा जाते हैं...आपके शेर की खूबी....
जिन्होंने रास्तों पर खुद कभी चलकर नहीं देखा
वही कहते हैं हमने मील का पत्थर नहीं देखा....इस कटाक्ष में कितना कुछ कह गये.साधुवाद.
फकत सुनकर तआर्रुफ़ ---- बेहतरीन i
शुभ कामना i
लाजवाब .. बेहद उम्दा .. बधाई स्वीकारें
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