यह नवयुग की नारी है, सुमन रूप चिंगारी है।।
अबला औ' नादान नहीं अब।
दबी हुई पहचान नहीं अब।।
खुली डायरी का पन्ना है,
बन्द पड़ा दीवान नहीं अब।।
अंतस स्वाभिमान भरा है, लिए नहीं लाचारी है।।
यह नवयुग की नारी है.....
संघर्षों में तप कर निखरी।
पैमानों पर चोखी उतरी।।*
जितना इसको गया दबाया,
उतना बढ़चढ़ यह तो उभरी।।*
हल्के में मत इस को लो, छिपी हुई दोधारी है।।
यह नवयुग की नारी है.....
इसका साहस जब नभ गाता।
करता…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 7, 2022 at 8:54pm — 8 Comments
देगा हल क्या ये भला, स्वयं समस्या युद्ध
दम्भी इस को ओढ़ता, तजता सदा प्रबुद्ध।१।
*
युद्ध न लाता भोर है, यह दे केवल साँझ
इस के हर परिणाम से, होती धरती बाँझ।२।
*
सज्जन टाले युद्ध को, दुर्जन दे सत्कार
जो झेले वह जानता, कैसी इसकी मार।३।
*
लोग समझते शांति की, यह रचता बुनियाद
लेकिन बचती राख ही, सदा युद्ध के बाद।४।
*
इससे बढ़ता नित्य ही, दुख का पारावार
जाने अन्तिम युद्ध कब, होगा इस संसार।५।
*
सदा प्रगति शान्ति का, युद्ध बना अवरोध
लेकिन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 3, 2022 at 2:36pm — No Comments
भीम, महेश्वर, शम्भवे, शंकर, भोलेनाथ
गंगाधर, श्रीकण्ठ का, सबके सिर पर हाथ।१।
*
गिरिश, कपाली, शर्व ही, शिवाप्रिय, त्रिलोकेश
कृत्तिवासा, शितिकण्ठ का, हिममय है परिवेश।२।
*
वो सर्वज्ञ, परमात्मा, अनीश्वर, त्रयीमूर्ति
हवि,यज्ञमय, सोम हैं, करते इच्छा पूर्ति।३।
*
शूलपाणी , खटवांगी , विष्णुवल्लभ, शिपिविष्ट
भक्तवत्सल, वृषांक उग्र, करते हरण अनिष्ट।४।
*
तारक, परमेश्वर, अनघ, हिरण्यरेता, गणनाथ
शशि को धर शशिधर हुए,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 1, 2022 at 12:26am — No Comments
सामाजिक न्याय दिवस (२० फरवरी) पर
जाति धर्म के फेर से, मुक्त नहीं जब देश
तब सामाजिक न्याय का, मिले कहाँ परिवेश।।
*
कत्ल अपहरण रेप की, बलशाली को छूट
है सामाजिक न्याय की, यहाँ आज भी लूट।।
*
चन्द यहाँ खुशहाल है, शेष सभी गमगीन
सामाजिक समता नहीं, देश भले स्वाधीन।।
*
धनवानों को न्याय हित, घर आता आयोग
न्याय न्याय चिल्ला मरे, लेकिन निर्धन लोग।।
*
सज्जन को करना क्षमा, एक बार है न्याय
दुर्जन को बस दण्ड ही, केवल शेष…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 19, 2022 at 11:00pm — 10 Comments
माघ पूर्णिमा जन्म ले, कहलाए रविदास
जीवन जीकर आम का, बातें की हैं खास।१।
*
देते जीवन भर रहे, नित्य सीख अनमोल
सबके हितकारक रहे, सच है उनके बोल।२।
*
रहो प्रेम से कह गये, जातिवाद को त्याग
जिसमें जले समाज ये, यह तो ऐसी आग।३।
*
दिया नित्य रविदास ने, केवल इतना ज्ञान
छोड़ो पद या जाति को, करो गुणों का मान४।।
*
निर्मल मन भागीरथी, करता कह निष्पाप
जनसाधारण जन्म ले, आप हो गये आप।५।
*
रहे न लालच द्वेष जब, मिटे बैर का भाव
ऐसे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 16, 2022 at 3:13am — 6 Comments
शुक्ल पंचमी माघ की, लायी यह संदेश
सजधज साथ बसंत के, बदलेगा परिवेश।।
*
कुहरे की चादर हटा, लगी निखरने धूप
दुल्हन जैसा खिल रहा, अब धरती का रूप।।
*
डाल नये परिधान अब, दिखे नयी हर डाल
हर्षित इस से सज रही, भँवरों की चौपाल।।
*
तरुण हुईं हैं डालियाँ, कोंपल हुई किशोर
उपवन में उल्लास है, अब तो चारो ओर।।
*
गुनगुन भँवरों ने कहे, स्नेह भरे जब बोल
मार ठहाका हँस पड़ी, कलियाँ घूँघट खोल।।
*
नहीं उदासी से …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 5, 2022 at 9:00am — 8 Comments
मन्थन कर के सिन्धु का, बँटवारे में कन्त
राजनीति को क्यों दिए, बहुत विषैले दन्त।१।
*
दुख को तो विस्तार है, सुख में लगा हलन्त
ऐसी हम से भूल क्या, कुछ तो बोलो कन्त।२।
*
वैसे कुछ तो बाल भी, कहते सत्य भदन्त
मन छोटी सी कोठरी, बातें रखे अनन्त।३।
*
आया है उत्कर्ष का, यहाँ न एक बसन्त
केवल पतझड़ में जिये, यूँ जीवन पर्यन्त।५।
*
सुख तो मुर्दा देह सा, केवल दुख जीवन्त
जाने किस दिन आ स्वयं, ईश करेंगे अन्त।४।
*
कहलाने की होड़ में,ओछे लोग…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 27, 2022 at 8:43pm — 2 Comments
ठण्ड कड़ाके की पड़े, सरसर चले समीर।
नित्य शिशिर में सूर्य का, चाहे ताप शरीर।१।
*
दिखे शिशिर में जो नहीं, गजभर दूरी पार।
लगता धरती से हुआ, अम्बर एकाकार।२।
*
धुन्ध लपेटे भोर तो, विरहन जैसी साँझ।
विधवा लगते वृक्ष हैं, धरती लगती बाँझ।३।
*
घना कुहासा ढब घिरे, झरे हवा से नीर।
बदली जैसी भीत भी, धूप न पाये चीर।४।
*
देती है हिम खण्ड सा, शीतलहर अहसास।
चन्दा जैसा दीखता, सूर्य क्षितिज के पास।५।
*
हुए वृक्ष सब काँच से, हिम की ओढ़…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 19, 2022 at 7:16am — 4 Comments
आया है जन पर्व जो, मकर संक्रांति आज।
गंगा तट पर सब जुटे, छोड़ सकारे काज।१।
*
आज उत्तरायण हो चले, मकर राशि पर सूर्य।
हर घाट शंखनाद अब, बजता चहुँदिश तूर्य।२।
*
निशा घटे बढ़ते दिवस, बढ़ता सूर्य प्रकाश।
भर देते हैं इस दिवस, कनकौवे आकाश।३।
*
विविध प्रांत, भाषा यहाँ, भारत देश विशाल।
विविध पर्व भी हैं मगर, मनें सनातन चाल।४।
*
गंगा में डुबकी लगा, करते हैं सब स्नान।
करते पाने पुण्य फिर, अन्न धन्न का दान।५।
*
कहो मकर संक्रांत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 14, 2022 at 10:39am — 3 Comments
रह कर अपनी मौज में, बहना नित चुपचाप
सीख सिन्धु से सीख ये, जीवन पथ को नाप।।
*
जन सम्मुख जो दे रहे, आपस में अभिशाप
सत्ता को करते मगर, वो ही भरत मिलाप।।
*
शासन भर देते रहे, जनता को सन्ताप
सत्ता बाहर बैठ अब, करते बहुत विलाप।।
*
बचपन से ही बन रहे, जो गुण्डों की खाप
राजनीति की छाँव में, रहे नोट नित छाप।।
*
दुख वाले घर द्वार पर, सुख देता जब थाप
उड़ जाते हैं सत्य है, बनकर आँसू भाप।।
*
कह लो चाहे तो बुरा, चाहे अच्छा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 4, 2022 at 8:47pm — 8 Comments
खूब आशीष दो रब नये वर्ष में
सिर्फ सुख में रहें सब नये वर्ष में/१
*
सुन जिसे पीर मन की स्वयं ही हरे
गीत ऐसा लिखें अब नये वर्ष में/२
*
छोड़कर द्वेष बाँटें सभी में सहज
प्रेम की सीख मजहब नये वर्ष में/३
*
नीति ऐसी बने जिससे आगे न हो
बन्द कोई भी मकतब नये वर्ष में/४
*
काम आये यहाँ और के आदमी
सिर्फ साधे न मतलब नये वर्ष में/५
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2021 at 10:39am — 2 Comments
आने वाले साल से, कहे बीतता वर्ष
मुझ सा दुख मत बाँटना, देना केवल हर्ष।।
*
वर्ग भेद जग से मिटा, मिटा जाति संधर्ष
कर देना कर थामकर, निर्धन का उत्कर्ष।।
*
पहले सा परमार्थ भी, वह फिर गुणे सहर्ष
स्वार्थ साधना ही न हो, सत्ता का निष्कर्ष।।
*
घर आँगन है जो बसा, झाड़ पोंछ सब कर्ष
भर देना सौहार्द्र से, अब के भारतवर्ष।।
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर'
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 30, 2021 at 7:30am — No Comments
सूरज यूँ है गाँव में, बहुत अधिक अँधियार।
नगर-नगर ही कर रही, किरणें हर व्यापार।।१
*
बन जाती है देश में, जिस की भी सरकार।
जूती सीधी कर रहे, नित उस की अखबार।।२
*
कैसे ये बस्ती जली, क्यों उजड़ा बाजार।
किस से पूछें बोलिए, जगी नहीं सरकार।।३
*
गमलों में फसलें उगा, खेतों में हथियार।
इसी सोच से क्या सुखी, होगा यह संसार।।४
*
कोई जब हो छीनता, थोड़ा भी अधिकार।
आँखों से आँसू नहीं, निकलें बस अंगार।।५
*
बातें व्यर्थ सुकून की,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 26, 2021 at 6:02am — 6 Comments
लेता है भुजपाश में, बढ़चढ़ ज्यू ही काम।
एक हवेली प्यार की, होती नित नीलाम।।१
*
कर लो ढब ऐश्वर्य को, चाहे इस के नाम।
दुधली की दुधली रहे, हर जीवन की शाम।।२
*
सिलता रहा जुबान जो, बढ़चढ़ यहाँ निजाम।
शब्दों ने झर आँख से, किया कहन का काम।।३
*
निर्धन को जिसने दिये, हरदम कम ही दाम।
धनी उसे ठग ले गया, पैसा नित्य तमाम।।४
*
रमे यहाँ व्यापार में , सब ले उसका नाम।
महज भक्ति के भाव से, किसको प्यारे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 23, 2021 at 10:00am — 4 Comments
लघु से लघुतम बात को, जो देते हैं तूल।
ये तो निश्चित जानिए, मन में उनके शूल।१।
*
बनते बाल दबंग अब, पढ़ना लिखना भूल।
हुए नहीं क्यों सभ्य वो, जाकर नित स्कूल।२।
*
करती मैला भाल है, मद में उठकर धूल।
करे शिला को ईश यूँ, न्योछावर हो फूल।३।
*
साक्ष्य समय विपरीत पर, तजे सत्य ना मूल।
ज्यों नद सूखी पर हुए, एक नहीं दो कूल।४।
*
जलने को पथ काल का, तकना होगी भूल।
हवा कभी होती नहीं, सुनो दीप अनुकूल।५।
*
कड़वी बातें तीर सी,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 20, 2021 at 10:28pm — 8 Comments
राजनीति के पेड़ से, लिपटे बहुत भुजंग।
जिनके विष से हो गये, सब आदर्श अपंग।१।
*
बँधकर पक्की डोर से, छूना नहीं अनंग।
सबके मन की चाह है, होना कटी पतंग।२।
*
शिव सा बना न आचरण, होते गये अनंग।
लील रहे जीवन तभी, ओछे प्रेम प्रसंग।३।
*
क्षीण,हीन उल्लास अब, शेष न कोई ढंग।
हालातों ने कर दिया, जीवन अन्ध सुरंग।४।
*
बेढब फीके हो गये, जब से जीवन रंग।
कितनों ने है कर लिया, अपनी साँसें भंग।५।
*
तन की गलियाँ बढ़ गयीं, मन का आँगन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 16, 2021 at 2:26pm — 4 Comments
धनी बसे परदेश में, जनधन सदा समेट।
ढकते निर्धन लोग यूँ, यहाँ पाँव से पेट।१।
*
कीचड़ में जब हैं सने, पाँव तलक हम दीन।
राजन के प्रासाद का, क्या देखें कालीन।२।
*
नेताओं की हर सभा, फिरे बजाती आज।
यूँ जनता है झुनझुना, भले वोट का नाज।३।
*
ऊँचे आलीशान हैं, नेताओं के गेह।
दुहरी जिनके बोझ से, हुई देश की देह।४।
*
गूँगे बहरे लोग जब, भरे पड़े इस देश।
कैसे बदले बोलिए, अपना यह परिवेश।५।
*
सुख के दिन दोगे बहुत,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 15, 2021 at 4:30am — 8 Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
बजेगा भोर का इक दिन गजर आहिस्ता आहिस्ता
सियासत ये भी बदलेगी मगर आहिस्ता आहिस्ता/१
*
सघन बादल शिखर ऊँचे इन्हें घेरे हुए हैं पर
उगेगी घाटियों में भी सहर आहिस्ता आहिस्ता/२
*
हमें लगता है हर मन में अगन जलने लगी है अब
तपिस आने लगी है जो इधर आहिस्ता आहिस्ता/३
*
हमीं कम हौसले वाले पड़े हैं घाटियों में यूँ
चढ़े दिव्यांग वाले भी शिखर आहिस्ता आहिस्ता/४
*
अभी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 8, 2021 at 6:30am — 8 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
मन था सुन्दर तो वदन की हर कमी अच्छी लगी
उस के अधरों ने कही जो शायरी अच्छी लगी/१
*
सात जन्मों के लिए वो बन्धनों में बँध गये
जिन्दगी के बाद जिनको जिन्दगी अच्छी लगी/२
*
आँख चुँधियाती रही जो पास में अपनी सनम
दूर तम में बैठकर वो रोशनी अच्छी लगी/३
*
एक हम ही भागते रंगीनियों से दूर नित
और किसको बोलिए तो सादगी अच्छी लगी/४
*
हाथ में था हाथ उनका दूर तक कोई न…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 3, 2021 at 7:32pm — 8 Comments
बल रहित मैं हूँ भीम कहता है
तुच्छ खुद को असीम कहता है/१
*
जिसकी आदत है घाव देने की
वो स्वयम को हकीम कहता है/२
*
आम पीपल को भूल बैठा वो
और कीकर को नीम कहता है/३
*
राम से जो गुरेज उस को नित
क्यों तू खुद को रहीम कहता है/४
*
धर्म क्या है समझ न पाया जो
धर्म को वो अफीम कहता है/५
*
हाथ जिसका है कत्ल में या रब
वो भी खुद को नदीम कहता…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 29, 2021 at 10:04pm — 4 Comments
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