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राजनीति के पेड़  से, लिपटे  बहुत भुजंग।
जिनके विष से हो गये, सब आदर्श अपंग।१।
*
बँधकर पक्की डोर से, छूना नहीं अनंग।
सबके मन की चाह है, होना कटी पतंग।२।
*
शिव सा बना न आचरण, होते गये अनंग।
लील रहे  जीवन  तभी, ओछे  प्रेम प्रसंग।३।
*
क्षीण,हीन उल्लास अब, शेष न कोई ढंग।
हालातों ने कर दिया, जीवन अन्ध सुरंग।४।
*
बेढब फीके  हो  गये, जब  से जीवन रंग।
कितनों ने है कर लिया, अपनी साँसें भंग।५।
*
तन की गलियाँ बढ़ गयीं, मन का आँगन तंग
सिमटे निज  में  लोग तो,  बदला  जीवन रंग।६।
*
सुविधाओं का ही रहा, नगर गाँव पासंग
वरना दोनों  रच  गये, एक  आचरण रंग।७।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 24, 2021 at 6:13am

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। दोषपूर्ण दोहों में सुधार किया है देखिएगा। सादर..

बुरी दशाओं ने किया, जीवन अन्ध सुरंग

'कितनों ने ही की यहाँ, अपनी साँसें भंग'

Comment by Samar kabeer on December 22, 2021 at 2:34pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मिसाफ़िर' जी आदाब, अच्छे दोहे रचे आपने, बधाई स्वीकार करें ।

'हालातों ने कर दिया, जीवन अन्ध सुरंग'

इस पंक्ति में 'हालातों' शब्द ग़लत है, 'हालत' का बहुवचन "हालात" होता है,देखियेगा ।

'कितनों ने है कर लिया, अपनी साँसें भंग'

इस पंक्ति में 'कर लिया' पर विचार करें,क्योंकि 'साँसें' शब्द स्त्रीलिंग है ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 17, 2021 at 8:50pm

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और स्नेह के लिए हार्दिक धन्यवाद। 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 16, 2021 at 8:15pm

जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, बहुत सुंदर दोहा सप्तक, और सभी दोहे सम तुकांत, बहुत ख़ूब।

राजनीति के पेड़ से, लिपटे बहुत भुजंग।

जिनके विष से हो गये, सब आदर्श अपंग।   ...लाजवाब दोहा ।  हार्दिक बधाई। 

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