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चलो अब तो साँसों इसे छोड़कर- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२
*
हमें  एक  नदिया  मिली  नाम की
न थी वो किसी प्यास के काम की।१।
*
जिसे देश कहते  हैं  सब राम का
वहीं  पर  फजीहत  हुई  राम की।२।
*
दुखाती है मन जो  महज याद से
करो अब न  बातें  उसी शाम की।३।
*
बिना उस के ये भी परायी गली
शरण में चलें  कौन  से धाम की।४।
*
मिटायेगी  वाणी  सभी  दूरियाँ
मिठासें रखो बस पके आम की।५।
*
चलो अब तो साँसों इसे छोड़कर
घड़ी आ गयी तन के आराम की।६।
**
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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