2122 2122 2122 212
अब तो बाहर आ ही जायें ख़्वाब से बेदार में
क़त्ल ,गारत, ख़ूँ भरा है आज के अख़बार में
कोई दागी है, तो कोई है ज़मानत पर रिहा
देख लें अब ये नगीने हैं सभी सरकार में
कोई पूछे , सच बताये, धुन्ध क्यों फैला है…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 18, 2013 at 7:00pm — 40 Comments
2122 2122 2122 212
भूख़ मजबूरी थी,ग़ैरत ना-नुकुर करती रही
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तेज़ से भी छटपटाहट तेज़ जब…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 14, 2013 at 11:30am — 25 Comments
२२१२ १२१ १२२१ २२२१
पीने लगे हैं लोग पिलाने लगे हैं लोग
महफ़िल को मयकदों सा सजाने लगे हैं लोग
दिल में नहीं था प्रेम दिखाने लगे हैं लोग
जब भी मिले हैं, हाथ मिलाने लगे हैं लोग
आयी थी रूह बीच में जब भी बुरे थे काम
अब तो सदाये रूह दबाने लगे हैं लोग
कश्ती बचा ली, खुद को डुबो कहते थे मल्हार
खुद को बचा के नाव डुबोने लगे हैं लोग
रखनी जो बात याद किसी को नहीं थी याद
जो भूलना नहीं था भुलाने…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on September 14, 2013 at 9:00am — 19 Comments
१२२२ १२१२ १२१२ ११२
उठी जो पलकें तीर दिल के आर-पार हुआ
झुकी जो पलकें फिर से दिल पे कोइ वार हुआ
फकत जिसको मैं मानता रहा बड़ी धड़कन
नजर में जग की हादसा यही तो प्यार हुआ
गुलों को छू लें आरजू जवां हुई दिल में
लगा न हाथ था अभी वो तार –तार हुआ
हसीनों की गली में था बड़ा हँसी मौसम
मगर जो हुस्न को छुआ तो हुस्न खार हुआ
किया जो हमने झुक सलाम हुस्न शरमाया
नजर जो फेरी हमने हुस्न…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on September 11, 2013 at 9:00am — 14 Comments
!!! सुख सभी तो चाहते हैं !!!
गजल बह्र - 2 1 2 2 2 1 2 2
प्रेम पूंजी बांटते हैं।
सुख सभी तो चाहते हैं।
दुःख अपना कौन बांटे,
साये पल्ला झाड़ते हैं।
सुख बड़े चंचल भटक कर,
पल में घर से भागते हैं।
रोशनी जब भी निकलती,
चांद - सूरज ताकते हैं।
फिर कभी उलझन न होती,
सांझ सुख मिल बांटते हैं।
चांदनी जब तरू में उलझी,
वृक्ष साया शापते हैं।
गर किसी ने की…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 7, 2013 at 9:26am — 18 Comments
मिल कर आँखे चार करें
आजा रानी, प्यार करें
जग पर तम गहराया है
भेद इसे, उजियार करें
कैसे कैसे लोग यहाँ
छुपछुप पापाचार करें
नया पैंतरा दिल्ली का
भोजन का अधिकार करें
लीडर तेरा क्या होगा
वोटर जब यलगार करें
चलो यहाँ से 'अलबेला'
हम भी कारोबार करें
-अलबेला खत्री
मौलिक / अप्रकाशित
Added by Albela Khatri on August 26, 2013 at 10:00pm — 13 Comments
२१२२ १२२ २१२२
इक नजर इक नजर से मिल रही है
बात जग को भला क्यूँ खल रही है
वो हसी चाल कोई चल रही है
रोज हल्दी वदन पे मल रही है
सर्द मौसम तन्हाई का अलम है
चांदनी शब् भी हमें अब खल रही है
इस तरफ हैं तडपती बाहें मेरी
उस तरफ उम्र उनकी ढल रही है
हो रहा बस अलावों का जिकर् ही
आग कब से दिलों में जल रही है
बाहुपाशो में बंधे हैं वदन दो
अब घड़ी मौत की भी टल रही…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on August 24, 2013 at 2:30pm — 17 Comments
ग़ज़ल -
कहकहों के दायरे में दिल मेरा वीरान है ,
गाँव के बाहर बहुत खामोश एक सीवान है |
उंगलियाँ उठने लगेंगी जब मेरे अशआर पर ,
मान लूँगा मैं कि मेरे दर्द का दीवान है |
वो सुनहरे ख्वाब में है सत्य से कोसो परे ,
आदमी हालात से वाकिफ मगर अनजान है |
छू के उस नाज़ुक बदन को खुशबुओं ने ये कहा ,
ज़िन्दगी से दूर साँसों की कहाँ पहचान है |
बढ़ रहा है कद अँधेरे का शहर में देखिये ,
हाशिये पर गाँव का…
ContinueAdded by Abhinav Arun on August 20, 2013 at 5:04am — 27 Comments
ग़ज़ल -
किसी ने यूँ छुआ सा ,
मुझे कुछ कुछ हुआ सा |
मैं हर शब् हारता हूँ ,
ये जीवन है जुआ सा |
कसावट का भरम था ,
नरम थी वो रुआ सा |
नज़र खामोश उसकी ,
असर उसका दुआ सा |
कहीं कुछ टीसता है ,
कि धंसता है सुआ सा |
मैं हल खींचूँ अकेले ,
ले काँधे पर जुआ सा |
मधुर सी चांदनी है ,
मिला महुआ चुआ सा |
ये माँ का याद आना…
ContinueAdded by Abhinav Arun on August 18, 2013 at 6:30pm — 21 Comments
सहरा में कहीं खो जायें न हम, आवाज़ हमें देते रहना ।
नयी राहों का नयी मंजिल का, आगाज़ हमें देते रहना ।
माना कि उदासी के सायें कभी हमको घेर भी लेते हैं ,
खुश रहकर जीने का अपना, अन्दाज़ हमें देते रहना ।
जब गिरने लगे ये तनहा मन घनघोर निराशा के तल में,
ऐसे में अपनी उल्फत की, परवाज़ हमें देते रहना ।
भावों की लहर जब उठती है, शब्दों के शहर बह जाते हैं ,
वो प्यार सहेजने को अपने, अल्फ़ाज़ हमें देते रहना ।
जो दिल में हमारे रहती…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on August 18, 2013 at 12:00am — 12 Comments
Added by Neeraj Nishchal on August 16, 2013 at 8:42pm — 11 Comments
Added by इमरान खान on August 16, 2013 at 11:55am — 19 Comments
निगाहों ने छुपा रखी समन्दर की निशानी है ।
बहा करता है अश्कों में ये जो खारा सा पानी है ।
ये मानो या न मानो तुम कोई सागर तो है दिल में,
उठा करती यहाँ पल पल जो मौजों की रवानी है ।
हज़ारों दर्द सहकर भी मोहब्बत छोड़ ना पाया ,
अकेला दिल नही मेरा ये हर दिल की कहानी है ।
इश्क से रूबरू होकर नए हर दिल के किस्से हैं ,
मगर ये चीज उल्फत तो यहाँ सदियों पुरानी है ।
भले ही दुनियादारी के बड़े नादान पंछी हम ,
मगर दिल…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on August 11, 2013 at 3:07pm — 12 Comments
जब अन्धियारा संग संग है,
सब रंगों का एक रंग है।
एक लड़ाई है बाहर तो,
ख़ुद के अन्दर एक जंग है।
शहरों की गलियों से जादा,
गली दिलों की और तंग है।
कुछ करने की चाहत…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 11, 2013 at 8:00am — 7 Comments
Added by Neeraj Nishchal on August 9, 2013 at 10:01am — 20 Comments
-एक दुधमुँहा प्रयास-
बहर -ऽ।ऽऽ ऽ।ऽऽ ऽ।ऽऽ ऽ।ऽ
.
पाँव कीचड़ से सने हैं और मंज़िल दूर है।
शाम के साए घने हैं और मंज़िल दूर है॥
तुम मिलोगे फिर कहीं इस बात के इम्कान पे,
फास्ले सब रौंदने हैं और मंज़िल दूर है॥
कौन हो मुश्किलकुशा अब कौन चारागर बने,
घाव ख़ुद ही ढाँपने हैं और मंज़िल दूर है॥
कल बिछौना रात का सौगात भारी दे गया,
अब उजाले सामने हैं और मंज़िल दूर है॥
धड़कनें भी मापनी हैं थामनी कंदील भी,
रास्ते…
Added by Ravi Prakash on July 24, 2013 at 10:30pm — 14 Comments
है ज़मी पर शोर कितना , आसमाँ खामोश है ।
मन में लाखों हलचलें हैं , आत्मा खामोश है ।
ना कभी करता सवाल , ना कभी देता जवाब ,
हमको देकर ज़िन्दगी , परमात्मा खामोश है ।
आदमीयत सड़ रही , लुट रहा बागे जहाँ ,
पर कहीं चुप चाप बैठा , बागबाँ खामोश है ।
चाहतें दुनिया की ज्यादा , देर तक चलती नहीं,
ताज़ की बरबादियों पर , शाहजहाँ खामोश है ।
जो हकीकत थे कभी, बनकर फ़साने रह गए ,
वक्त के हाथों लुटा , हर कारवाँ खामोश है…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on July 20, 2013 at 6:00pm — 18 Comments
जो नजर है कमाल की साहिब
वो नजर क्यूँ झुकी हुई साहिब
.
आज फिर दिल मेरा बेचैन सा है
आज फिर हमने पी रखी साहिब
.
जुल्फ की छाँव तले गुजरे दो पल
दो घड़ी ज़िंदगी ये जी साहिब
.
मरने में आएगा मज़ा हमको
क़त्ल कर दे हंसी नजर साहिब
.
जाम हाथों में इक बहाना है
हम कहाँ करते मयकशी साहिब
.
मैं नहीं बज्म में कभी आया
बात उसको ये खल गयी साहिब
.
डूब जायेंगे हम समंदर में
हो समंदर…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on July 11, 2013 at 3:30pm — 3 Comments
जो जुटाते अन्न, फाकों की सज़ा उनके लिए।
बो रहे जीवन, मगर जीवित चिता उनके लिए।
सींच हर उद्यान को, जो हाथ करते स्वर्ग सम,
नालियों के नर्क की, दूषित हवा उनके लिए।
जोड़ते जो मंज़िलें, माथे तगारी बोझ धर,…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on May 2, 2013 at 8:53am — 34 Comments
22 22 22 22 -
जिस दम सूरज ढल जाएगा
रात का जादू चल जाएगा
-
सँभल के चलना सीख लें वर्ना
कोई तुझको छल जाएगा
-
दुनिया का दस्तूर यही है…
Added by SALIM RAZA REWA on February 3, 2013 at 10:30pm — 9 Comments
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