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जब अन्धियारा संग संग है,

सब रंगों का एक रंग है।

एक लड़ाई है बाहर तो,  

ख़ुद के अन्दर एक जंग है।

शहरों की गलियों से जादा,

गली दिलों की और तंग है।

कुछ करने की चाहत लेकर,

आगे आया वो अपंग है।

गांव छोड़ जो बाहर निकला,

कटी जानिये वो पतंग है।

बाहर बाहर रौशन है सब,

अपना जीवन तो सुरंग है।

नये दौर मे ऐलानों के,

आम जनों मे फिर उमंग है।

     *********

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 17, 2014 at 12:37am

एक लड़ाई है बाहर तो,  

ख़ुद के अन्दर एक जंग है।

बहुत सुन्दर ... बधाई..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 14, 2013 at 8:59pm

आदरणीय सौरभ भाई , नमस्कार ,

                 आपकी सलाह का हज़ार बार स्वागत !!  मुझे मात्रा गिनना बिल्कुल नही आता , बिल्कुल शून्य हूँ ! मै गुनगुना के लिख देता हूँ ! आप लोगों के मार्ग दर्शन की बहुत ज़रूरत है ! अभी मै गज़ल की बातें  पढ़ना शुरू किया हूँ , कुछ समझ आ रहा है और कुछ कठिनाई भी हो रही है ! मुझे प्रौढ शिक्षा का विद्यार्थी समझिये , अगर मात्रा ठीक भी है तो धोखे से अनजाने मे, मै ग्यान शून्य हूँ !

मुझे लगातार , विस्तार से मार्ग दर्शन की आवश्यकता है , आप स्वीकार करें तो आपसे ही कठिनाई पूछ लिया करूंगा ! आपका हर सुझाव सर आंखो पर ! नौकरी से अवकाश प्राप्त करने वाला हूँ , गज़ल कहना सीख्नना मेरा अब मुख्य ध्येय है !! सुझाव के इंतिज़ार मे रहूंगा !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 14, 2013 at 3:50pm

आदरणीय गिरिराज भण्डारी साहब, फेलुन फेलुन के विन्यास पर आपने संयत बातें साझा की हैं.  आपसे अपेक्षा है कि आप अपनी ग़ज़ल के मिसरों के विन्यास अवश्य लिख दिया करें.

यों, ऐसे में मिसरे में गाफ़ की कुल गिनती फूट रखी जाती है. आपने आठ यानि सम संख्या में गाफ़ गिन लिये हैं. 

एक संयत और सुन्दर कोशिश के लिए बधाई.

निवेदन

======

यदि मेरी सलाह आपको आपके संप्रेषण पर अतिक्रमण लगे तो अवश्य कहियेगा.  मैं अपनी प्रतिक्रिया हटा लूँगा. यहाँ कोई मठाधीशी नहीं करता. जैसा कि सोच लेने वालों ने मान रखा है.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 13, 2013 at 3:12pm

शुक्रिया , विजय भाई , मात्राओं( बहर ) की  गलती मुझसे होती है , अगर ऐसा लगे तो अवश्य अवगत करायें , पुनः धन्यवाद !!

Comment by विजय मिश्र on August 13, 2013 at 12:56pm
"कुछ करने की चाहत लेकर,
आगे आया वो अपंग है। "

चिंतन और सोच उच्च स्तर का है ,सरल शब्दों का गहन समीकरण . बधाई गिरिराजजी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 12, 2013 at 10:38am
अन्नपूरणा जी शुक्रिया , मै नया सदस्य हूँ और ग़ज़ल विधा के ज्ञान मे शून्य हूँ , ग़लतिया ज़रूर बताये मै सुधारने का भरसक प्रयत्न करूंगा , सभी वरिष्ठ सदस्यों से भी मेरी यही प्रार्थना है !
Comment by annapurna bajpai on August 12, 2013 at 12:06am

शहरों की गलियों से जादा,

गली दिलों की और तंग है।............ye panktiyan prabhav chodti hain . hardik badhai apko adarniy .

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