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है ज़मी पर शोर कितना [ग़ज़ल]

है ज़मी पर शोर कितना , आसमाँ खामोश है ।

मन में लाखों हलचलें हैं , आत्मा खामोश है ।

ना कभी करता सवाल , ना कभी देता जवाब ,

हमको देकर ज़िन्दगी , परमात्मा खामोश है ।

आदमीयत सड़ रही , लुट रहा बागे जहाँ ,

पर कहीं चुप चाप बैठा , बागबाँ खामोश है ।

चाहतें दुनिया की ज्यादा , देर तक चलती नहीं,

ताज़ की बरबादियों पर , शाहजहाँ खामोश है ।

जो हकीकत थे कभी, बनकर फ़साने रह गए ,

वक्त के हाथों लुटा , हर कारवाँ खामोश है ।

देके अपनी ज़िन्दगी, हमने बनाये थे कभी,
आज मय्यत पर मेरी , वो हर मकाँ  खामोश है ।

देवता जो थे गुनाहों , के सफ़ाई दे रहे ,

उसकी महफ़िल में खडा, हर बेगुनाह खामोश है ।

व्यापार चलते हैं यहाँ , बाज़ार चलते हैं यहाँ ,

पर दिलों में प्यार की, हर दास्ताँ खामोश है ।

मौलिक व अप्रकाशित

नीरज

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Comment

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Comment by Neeraj Nishchal on July 26, 2013 at 6:31pm

आदरणीय वीनस जी
कोशिश कर रहा ग़ज़ल की राह पर सभल कर चलने की ।
अभी तो ग़ज़ल कक्षा भी ज्वाइन कर ली है ........
आगे के प्रयास में ध्यान रखने की कोशिश करूँगा ।
बहुत बहुत आभार ।

Comment by वीनस केसरी on July 26, 2013 at 3:39am

नीरज जी,
किसी रचना को ग़ज़ल होने के लिए रचना में मूल रूप से जिन तत्वों का होना अनिवार्य होता है उनके प्रति आपको और आग्रही होना होगा ...
शुभकामनाएं

Comment by Neeraj Nishchal on July 24, 2013 at 10:14pm

अभिषेक भाई बहुत बहुत आभार ।

Comment by Neeraj Nishchal on July 24, 2013 at 10:12pm

आदरणीय आशुतोष जी तहे दिल से शुक्रिया ।

Comment by Neeraj Nishchal on July 24, 2013 at 10:10pm

केतन परमार जी बहुत बहुत आभार

Comment by Neeraj Nishchal on July 24, 2013 at 9:50pm

आदरणीय राजेश जी
आपके सुझावों के लिए बहुत बहुत अनुग्रह ....
मै पूरी कोशिश करूंगा कि ऐसा कर पाऊं ।

Comment by Neeraj Nishchal on July 24, 2013 at 9:37pm

अनुपमा जी बहुत बहुत धन्यवाद ।

Comment by Neeraj Nishchal on July 24, 2013 at 9:32pm

अमन कुमार जी बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by Neeraj Nishchal on July 24, 2013 at 9:30pm

बहुत बहुत आभार केवल प्रसाद जी ।

Comment by Neeraj Nishchal on July 24, 2013 at 9:28pm

बहुत बहुत अनुग्रह कुन्ती जी ।

कृपया ध्यान दे...

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