For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- ज़िन्दगी है बेरहम बस दौड़ती रफ्तार में

2122    2122    2122    212

अब तो बाहर आ ही जायें ख़्वाब से बेदार में

क़त्ल ,गारत, ख़ूँ भरा है आज के अख़बार में

कोई दागी है, तो कोई है ज़मानत पर रिहा 

देख लें अब ये नगीने हैं सभी सरकार में

 

कोई पूछे , सच बताये, धुन्ध क्यों फैला है ये

उनको छोड़ें जो गवैये हैं किसी दरबार में

 

पेट की खातिर किसी का तन बिका करता है अब

और कोई घर की बेटी नाचती है बार में

 

थक के पीछे रह गया हूँ , हाँफता मैं क्या करूँ

ज़िन्दगी है बेरहम बस दौड़ती रफ्तार में

 

आप कीलें ध्यान से बाहर ज़रा सा ठोकना

प्लासटर तड़का दिखा है भीतरी दीवार में

मन की कड़वाहट मेरे शब्दों को सारे खा रही

बात सच्ची कह रहा हूँ पर कमी है धार में 

.

संषोधित पोस्ट ( गलती सुधार के बाद )

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 1182

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 25, 2013 at 2:00pm

आदरणीया डा. प्राची जी , रचना को आपकी सहमति , सराहना मिलना मेरे लिये अत्यंत हर्ष की बात है !!  आपका बहुत बहुत आभार !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 25, 2013 at 10:11am

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी 

बहुत शानदार ग़ज़ल कही है.. सभी अशआर बहुत धारदार हैं.. सीधे मन को छूते हैं 

ये तीन शेर तो ख़ास पसंद आये 

पेट की खातिर किसी का तन बिका करता है अब

और कोई घर की बेटी नाचती है बार में

थक के पीछे रह गया हूँ , हाँफता मैं क्या करूँ

ज़िन्दगी है बेरहम बस दौड़ती रफ्तार में

 

आप कीलें ध्यान से बाहर ज़रा सा ठोकना

प्लासटर तड़का दिखा है भीतरी दीवार में

बहुत बहुत बधाई

Comment by वीनस केसरी on September 21, 2013 at 10:58pm

बात सच्ची कह रहा हूँ पर कमी है धार में 

अरे नहीं नहीं ऐसा तो बिलकुल भी नहीं है ... मगर ये शेर भी अपने आप में अलग ही लुत्फ़ दे गया ...

यह आपकी बेहतरीन ग़ज़लों में से एक है ... पूरी ग़ज़ल के लिए ढेरो दाद

Comment by वीनस केसरी on September 21, 2013 at 10:56pm

ग़ज़ल में "थक के" का तलफ्फुज़ "थक्के" की तरह आ रहा है,

आदरनीय शिज्जू जी से सहमत हूँ,,, यह ऐब ए तनाफुर है


वैसे मैने ये भी कहीं पढ़ा है कि कई उस्ताद शुअरा इसे कोई बड़ा ऐब नही मानतेl

यहाँ भी आदरनीय शिज्जू जी से सहमत हूँ, मैं खुद इसके कारण अपना शेर ख़ारिज नहीं करता, मगर एब् तो है ही ... इससे बचने के कुछ सूत्र भी  हमको ओ बी ओ पर चर्चा के दौरान मिले हैं ... उन पर गौर करना चाहिए

आपने "पलसतर" लिखा है मैं शंकित हूँ इसका वज्न 122 होगा या 212 जैसा कि आपने किया है, यह अंग्रेज़ी शब्द "प्लास्टर" से लिया गया है।

यहाँ भी आदरनीय शिज्जू जी से सहमत हूँ बोलचाल के अनुसार प लस तर १२२ होना चाहिए या प्ला स टर २१२ होना चाहिए 

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 21, 2013 at 1:59pm

आदरणीय शिज्जू भाई , पलस्तर 122 ही होगा , आदरणीय गणेश भाई जी ने भी कह दिया है अतः अब कोई शंका नही है !! आपका बहुत बहुत आभार ! ऐसे ही स्नेह बनाये रखें  और होने वाली गलतियो पर ऐसे ही ध्यान दिलाते रहें !! मै तदनुसार अपने फाइल मे सुधार कर लूंगा !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 21, 2013 at 1:54pm

आदरणीय गणेश भाई ,आपका बहुत आभार , गलती के ओर ध्यान देने और बताने का !! पलसतर की शंका बची थी सो आपकी सहायता से वो भी दूर हुई !! आपका पुनः आभार !!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 21, 2013 at 1:17pm

पलस्तर / पलसतर = 122 , प्लस्तर / प्लसतर =22 

ऐब-ए-तनाफुर का दोष है, सिज्जू भाई ने सही कहा है । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 21, 2013 at 12:27pm
ऐब-ए-तनाफुर- आपके द्वारा आदरणीय वीनस भाई को किये गये प्रश्न के विषय मे -:
आदरणीय शिज्जू जी , कल रात ऐब-ए-तनाफुर के उपर हुई लम्बी वारता ओ बी ओ मे खोज कर लग भग पूरी पढ ली है , कुल मिला कर आदरणीय वीनस भाई, आदरणीय तिलक राज जी , आदरणीय सौरभ भाई का विचार इसे दोष मानने की तरफ है ऐसा साबित हुआ है !!! अतः इसे दोष माना जाना ही उचित है !! आपका इस दोष की तरफ ध्यान दिलाने लिये पुनः आभार , मै अपरचित था !!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 21, 2013 at 12:02pm
आदरणीय शिज्जू भाई , नीचे मैने स्वीकार किया है , आप सही हो सकते हैं , बस किसी और जानकार के देखेने का इंतिज़ार था !! प लस तर भी सही हो सकता है पर बोलते समय पलस तर उच्चारण हो रहा है ऐसा भी लगता है , पलस कैसे टूटेगा इसमे सच मे शंका मुझे भी है !! आपका बहुत शुक्रिया सही बात सुझाने के लिये !!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 21, 2013 at 10:21am

आदरणीय गिरिराज जी आप सही कह रहे हैं पलसतर शब्द को बोलचाल की भाषा में अपना लिया गया है मगर इसकी तक्तीअ आप करेंगे तो कुछ ऐसा आयेगा प1 लस2 तर2 इस तरह से ये मिसरा बेबह्र हुआ जा रहा है

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
19 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service