शादी की दावत -1
स्टेशन से सीधे हम अजय भईया के घर पहुँचे |मड़वा में स्त्रियाँ उन्हें हल्दी-उबटन मल रही थीं |बड़े बाउजी यानि की मानबहादुर सिंह परजुनियों को काम समझाने में व्यस्त थे |बीच-बीच में वे द्वार पर आ रहे मेहमानों से मिलते उनकी कुशल-खैर पूछते और आगे बढ़ जाते |
“अरे सीधे ,स्टेशन से आ रहे हो क्या ?” हमारा समान देखकर शायद उन्हें अंदाज़ा हो गया था |
“जी,हमनें आपस में बात कर ली थी |गाड़ी आने के समय में भी ज़्यादा फ़र्क नहीं था इसलिए हम सब स्टेशन पर ही - -- “बारी-बारी से…
ContinueAdded by somesh kumar on March 2, 2015 at 11:03pm — 7 Comments
बहिष्कार
“क्यों री आंनद की अम्मा ?अपनी देवरानी को शादी में नहीं बुलाईं क्या ?”निमन्त्रण पत्र पकड़ते हुए भोली की अम्मा यानि मायादेवी ने पूछा
“आपकी भी तो जेठानी लगती हैं |आपहि कौन उन्हें रामायण में बुलाई रहीं !” बिंदियादेवी ने मुँह बनाते हुए कहा
“हमार कौन सगी है,ऊपर से काम ही ऐसा करी हैं कि उन्हें बिरादरी से बहिरिया देना चाहिए |अपनी लड़की ही काबू में नहीं |पता नहीं कहाँ से मुँह काला कर आई |”
“हाँ दीदी ,सुना है चौका बाज़ार में बदरी बनिया के बेटे का काम था |जात-बिरादरी…
ContinueAdded by somesh kumar on March 1, 2015 at 11:14am — 10 Comments
(१)
"मुई मई जान लेने आ गई"। मनफूला ने पंखा झलते हुए कहा। सुबह के दस बज रहे थे और दस बजे से ही गर्म हवा बहनी शुरू हो गई थी। गर्मी ने इस बार पिछले सत्ताईस वर्षों का रिकार्ड तोड़ दिया था। उनकी बहू राधा आँवले के चूर्ण को छोटी छोटी शीशियों में भर रही थी। उसका ब्लाउज पसीने से पूरी तरह भीग चुका था। उनका बेटा श्रीराम बाहर कुएँ से पानी खींचकर नहाने जा रहा था। घर के आँगन में दीवार से सटकर खड़ी एक पुरानी साइकिल श्रीराम का इंतजार कर…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 28, 2015 at 6:30pm — 16 Comments
आवाज़ का रहस्य (कहानी )
प्रशिक्षु चिकित्सक के रूप में दिनेश और मुझे कानपुर देहात के अमरौली गाँव में भेजा गया था |नया होने के कारण हमारी किसी से जान-पहचान ना थी इसलिए हमने अस्पताल के इंचार्ज से हमारे लिए आस-पास किराए पर कमरा दिलाने को कहा |उसने हमे गाँव के मुखिया से मिलवाया |
“ किराए पे तो यहाँ कमरा मिलने से रहा |तुम अजनबी भी हो और जवान भी | परिवार भी नहीं है !ऐसे में कोई गाँव वाला - - - “
“ ऐसे में ये लड़के चले जाएंगे |फिर गाँव वालों का ईलाज - - - - कितनी बार लिखने…
ContinueAdded by somesh kumar on February 20, 2015 at 11:12am — 4 Comments
“शुभम|”
“यस सर|”
“ज्ञानू|”
“यस सर|”
“दुर्योधन|”
“हाजिर सSड़|”
यूँ तो पंचम ब वर्ग का ये अंतिम नाम था |परंतु परम्परा से परे प्राचीन महाकाव्य खलनायक का स्मरण
कर और हाजिरी देने के उसके लहजे से ध्यान बरबस ही उसकी तरफ टिक गया |
“दुर्योधन मेरे पास आओ|” मैंने आदेशात्मक लहजे में कहा |
लंबे चेहरे वाला वो लड़का सकुचाता सा मेरे सामने खड़ा हो गया |मैंने अपनी तीसरी कक्षा और पंचम के छात्रों को कार्य दिया |इस बीच वो गर्दन झुकाए ,जमीन को देखता…
ContinueAdded by somesh kumar on February 19, 2015 at 10:00am — 12 Comments
समुद्र में मछली
ट्रेन से उतरकर उसने चिट को देखा और बोला –“थैंक्यू भईया |”और फिर हम दोनों पुरानी दिल्ली स्टेशन के विपरीत गेटों की तरफ सरकने लगे |मुझे दफ्तर पहुंचने की जल्दी थी|फिर भी एक बार मैंने पलटकर देखा पर स्टेशन की भीड़ में,दिल्ली के इस महासमुद्र में वो विलुप्त हो चुका था |
दफ्तर पहुंचते ही बॉस ने मुझें मेरे नए टारगेट की लिस्ट थमा दी और मैं एक सधे हुए शिकारी की तरह अपने सम्भावित कलाइन्ट्स के प्रोफाइल पढ़ते हुए निकल पड़ा |
शालनी बंसल पेशे से अध्यापिका हैं |दो साल…
ContinueAdded by somesh kumar on February 17, 2015 at 10:30am — 4 Comments
“मम्मी मैं किटी पार्टी में जा रही हूँ , आप हेमा को कह दो वह विवान को दूध दे देगी ...वैसे भी विवान मेरे पास नहीं उसी के पास रहता है |” अपने लहराते हुए बालों को झटका देते हुए फाल्गुनी ने कहा ||स्टाइल में रहना, फैशनेबल कपड़े पहनना, सहेलियों के बीच अपनी सुन्दरता की प्रशंसा सुनना, यही तो मनपसंद कार्य है फाल्गुनी का | जन्म तो दिया बच्चे को मगर ममता नहीं लुटा पाई |
इसके विपरीत हेमा जो कि अपने से अधिक चिंता करती है घर परिवार की...अपनी जेठानी के पुत्र पर जान से भी अधिक स्नेह लुटाती है मगर…
ContinueAdded by डिम्पल गौड़ on February 14, 2015 at 3:30pm — 14 Comments
अब तक आदित्य को लगता था कि पति-पत्नी क रिश्ते में पति ज्यादा अहम होता है | उसे ज्यादा तवज्जो, मान सम्मान मिलना चाहिए | शायद इसमें उसका कोई दोष भी नही था जिस समाज में वह पला-बढ़ा वह एक पितृ-सत्तात्मक समाज है जहाँ पिता भाई व पति होना ही बहुत बड़ी उपलब्धि है |माँ-बहन व पत्नी ये हमेशा निचले पायदान पर ही रही हैं, बेशक वो समाजिक तौर पर कितनी भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करें |
बालक के जन्म लेने पर उसके स्वागत में उत्सव और कन्या जन्म पर उदासी |बालक को हर चीज़ में तरजीह और आज़ादी जबकि…
ContinueAdded by somesh kumar on February 8, 2015 at 11:30pm — 10 Comments
रात के ९ बजे थे |खाना खाकर विनीत बिस्तर पर लेट गया और radio-mirchi on कर दिया- “चूड़ी मजा ना देगी,/कंगन मजा ना/देगा, तेरे बगैर साजन /सावन मजा ना देगा"
तभी खिलखिलाती हुई मुग्धा ने कमरे में घुसकर ध्यान भंग किया –“ चाचा-चाचा, अदिति दीदी कुछ कहना चाहती है
“ हाँ बेटा बोल ,” विनीत ने कहा |
“ चाचा मुझे चाची के चूड़ीदान से कुछ रंग-बिरंगी चूड़ियाँ लेनी है वो सहमते हुए बोली |”
विनीत ने अदिति को देखा, एकबार आलमारी की तरफ देखा जहाँ निम्मा का चुड़ीदान रखा था | कुछ देर चुप…
ContinueAdded by somesh kumar on January 24, 2015 at 11:30am — 14 Comments
भंडारा
मास्टर जी ,आप भी चलिए ना भंडारे में - - - “ साथियों ने आग्रह किया|
‘” भाई तुम तो जानते ही हो ,मुझे लाईनों में लगना और याचकों की तरह मांगना पसंद नहीं है “ मा.भोलेराम ने सपाट सा जवाब दिया |
“ अरे!आप भी,भाईसाहब,भंडारे की लाईनों में लगने में कौन सी ईज्जत घट जाती है बल्कि ये तो आपकी भक्ति-भावना की परीक्षा होती है ,प्रसाद के लिए आप जितना ईंतज़ार कर सकते हैं उतना ही पुण्य बढ़ता है “`राजीव बोल पड़ा |
“भाई मैं ऐसी भक्ति-परीक्षा नहीं देना चाहता…
ContinueAdded by somesh kumar on December 25, 2014 at 10:57pm — 5 Comments
“ मास्टर जी ,अपने दोस्त से पूछिए अगर मेरे लिए कोई जगह हो तो थोड़ी सिफारिश कर दे |” जब विजय मुझसे ये बात कहता है तो मेरे मन में उसके लिए नैसर्गिक साहनभूति फूटती है |मैं पहले से उसकी नौकरी को लेकर फिक्रमंद हूँ और पहले ही कई दोस्तों से उसके बारे में बात कर चुका हूँ |
कुछ लोग होते हैं जो चुम्बक की तरह अपनी तरफ खींचते हैं |विजय में मुझे वही चुम्बकत्व महसूस होता है | गोरा वर्ण ,5”6’ का कद सुघड़ अंडाकार चेहरा ,घुंघराले काले बालों के बीच में कहीं-कहीं सफ़ेद हो गए बाल ,आत्मीयता और उचित मिठास से…
ContinueAdded by somesh kumar on December 24, 2014 at 11:30am — 4 Comments
डाटा
मैमोरी-कार्ड लगाकर हरीश ने गैलरी खोली |परंतु-वहाँ सब कुछ खाली था |कोई पिक्चर-वीडियो-ऑडियो कुछ भी नहीं |शायद कैमरे का सोफ्टवेयर खराब हो ये सोच कर वो पड़ोसी के पास पहुँचा |
पहले पड़ोसी का मोबाईल ,फिर पी.सी. पर नतीजा वही - - - -
वही संदेश –ये फाईल खुल नहीं सकती या खराब हो चुकी है|
उसकी आँखों के सामने शून्य तैर गया |सब कुछ खत्म हो जाने के अहसास से वो टूट गया |कुछ भी नहीं बचा था अब जगजाहिर करने को |बेशक उसके मन में स्मृतियों का अनंत संरक्षित हो पर बाहरी तौर…
ContinueAdded by somesh kumar on December 8, 2014 at 11:19am — 10 Comments
दो मित्र थे, |शेरबहादुर और श्रवणकुमार | नाम के अनुसार शेरबहादुर बहुत वीर और निर्भीक थे ,अन्धविश्वास से अछूते ,बिना विश्लेषण किसी घटना पर यकीन नहीं करते |दुसरे शब्दों में पुरे जासूस थे |बाल की खाल निकालना और अपनी और दूसरों की फजीहत करना उनका शगल था |श्रवणकुमार नाम के अनुसार सुनने की विशेष योग्यता रखते थे |एक तरह से पत्रकार थे ,मजाल है गाँव की कोई कानाफूसी उनके कानों से गुजरे बिना आगे बढ़ जाए |तीन में तेरह जोड़ना उनकी आदत थी इसलिए नारदमुनि का उपनाम उन्हें मिला हुआ था |पक्के अन्धविश्वासी और डरपोक…
ContinueAdded by somesh kumar on November 27, 2014 at 10:00am — 7 Comments
आज ‘नियति’ व ‘आदित्य ‘ आमने-सामने बैठे थे | सेमिनार के बाद यह उनकी पहली मुलाकात थी |और शायद .....
सेमिनार की उस आखिरी शाम से उनके बीच की बर्फ पिघलने लगी थी| शुरुवात एक चिट्ठे से हुई थी जब उसने बिल्कुल खामोश रहने वाली नियति की डायरी में अपना नम्बर लिखा और लिखा-“शायद हम दोनों का एक दर्द हो| तुम्हारी ये ख़ामोशी खलती है ,तुमसे बात करना चाहता हूँ |”
“ क्यों ?”
“ लगता है तुम्हारा मेरा कोई रिश्ता है शायद दर्द का - - “
पूरे सेमिनार वो चुप्प रही और वो उसे रिझाने अपनी और…
ContinueAdded by somesh kumar on November 16, 2014 at 1:30pm — 11 Comments
आज सुबह पूजा कर के कल्याणी देवी कमरे मे बैठ गयीं | ठण्ड कुछ ज्यादा थी तो कम्बल ओढ़ कर आराम से कमरे मे गूंज रही गायत्री मन्त्र का आनंद ले रही थी | आँखे बंद कर के वो पूरी तरह से गायत्री मन्त्र मे डूब चुकी थीं तभी अचानक खट-खट की आवाज से उन्होंने आँखे खोली | कोई दरवाजा खटखटा रहा था | बहू रसोई मे थी और पतिदेव पूजा कर रहे थे सो उनको ही मन मार कर कम्बल से निकलना पड़ा | अच्छे से खुद को शाल मे लपेटते हुए उन्होंने गेट खोला तो चौंक गईं | एक मुस्कुराता हुआ आदमी सुन्दर सा गुलाब के फूलों का गुलदस्ता लिए खड़ा…
ContinueAdded by Meena Pathak on February 14, 2014 at 5:18pm — 15 Comments
“ पिताजी, वो अपनी नदी के पास वाली जमीन लगभग कितनी कीमत रखती होगी, अगर उसे बेच दिया जाय तो कैसा रहेगा ?
“क्यों..? बेटा क्या जरुरत आ पड़ी है ? खुली तिजौरी को बंद करने की..”
“ पिताजी..! ऐसे ही एक प्लान बनाया है, जिससे भविष्य संवर सकता है”
“ अरे बेटा..भविष्य संजोये रखने से संवरता है खोने से नही, वैसे मैंने अपनी नौकरी के रहते तुम्हारी पढाई पर बहुत खर्च किया, यहाँ तक की तुम्हारा घर बसाने में अपना पी.एफ. का पैसा भी झोंक दिया, , मैं तो यहाँ छोटे शहर में अपनी पेंशन से अपना और…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on February 6, 2014 at 12:05pm — 16 Comments
“आज गुरूजी कुछ विचलित लग रहे हैं, जाने क्या बात है? उनसे पूछूं, कहीं क्रोधित तो नहीं हो जायेंगे?” मन ही मन सोचते हुए उज्जवल ने एक निश्चय कर लिया कि गुरु रामदास जी से उनकी परेशानी का कारण पूछना है| वो हिम्मत जुटा कर गुरूजी के पास गया और उनसे पूछ लिया कि, “गुरूजी....! आप इस तरह से विचलित क्यों लग रहे हैं? कृपा करके अगर कोई दुःख हो तो अपने इस दास को बताएं|”
गुरूजी ने दुखी स्वर में कहा, “पुत्र, क्या बताऊँ, आजकल प्रतिदिन…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on September 7, 2013 at 10:45pm — 9 Comments
भाग -5
गतांक से आगे)
भुवन की लड़की पारो (पार्वती) शादी के लायक हो चली थी. एक अच्छे घर में अच्छा लड़का देख उसकी शादी भी कर दी गयी. शादी में भुवन और गौरी ने दिल खोलकर खर्चा किया, जिसकी चर्चा आज भी होती है. बराती वालों को गाँव के हिशाब से जो आव-भगत की गयी, वैसा गाँव में, जल्द लोग नहीं करते हैं.
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चंदर का बेटा प्रदीप शहर में रहकर इन्जिनियरिंग की पढाई कर रहा था.. दिन आराम से गुजर रहे थे. पर विधि की विडंबना कहें या मनुष्य का इर्ष्या भाव, जो किसी को सुखी देखकर खुश नहीं होता…
Added by JAWAHAR LAL SINGH on March 30, 2013 at 8:53pm — 2 Comments
(भाग -३ से आगे की कहानी )
जिस इलाके की यह कहानी है, वह पटना के पास का ही इलाका है, जहाँ की भूमि काफी उपजाऊ है. लगभग सभी फसलें इन इलाकों में होती है! धान, गेहूँ, के अलावा दलहन और तिलहन की भी पैदावार खूब होती है. दलहन में प्रमुख है मसूर, बड़े दाने वाले मसूर की पैदावार इस इलाके में खूब होती है. मसूर के खेत बरसात में पानी से भड़े रहते हैं. जैसे बरसात ख़तम होती है, उधर धान काटने लायक होने लगता है और इधर पानी सूखने के बाद खाली खेतों में मसूर की बुवाई कर दी जाती है. मसूर के खेत, केवाला…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on March 27, 2013 at 4:55am — 6 Comments
खरीफ की फसल को तैयार कर अनाज को सहेजते और ठिकाने लगाते लगाते रब्बी की फसल भी तैयार होने लगती है. मसूर, चना, खेसारी, और मटर आदि के साथ सरसों, राई, तीसी आदि भी पकने लगते हैं, जिन्हें खेतों से काट कर खलिहान में लाया जाता है. इन सबके दानो/फलों को इनके डंटलों से अलग करने से पहले इन सबको पहले ठीक से सजाकर रखा जाता है, ताकि खलिहान के जगह का समुचित उपयोग हो. आम बोल-चाल की…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on March 10, 2013 at 7:30am — 4 Comments
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