For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भाग 2 से आगे ..

खरीफ की फसल को तैयार कर अनाज को सहेजते और ठिकाने लगाते लगाते रब्बी की फसल भी तैयार होने लगती है. मसूर, चना, खेसारी, और मटर आदि के साथ सरसों, राई, तीसी आदि भी पकने लगते हैं, जिन्हें खेतों से काट कर खलिहान में लाया जाता है. इन सबके दानो/फलों को इनके डंटलों से अलग करने से पहले इन सबको पहले ठीक से सजाकर रखा जाता है, ताकि खलिहान के जगह का समुचित उपयोग हो. आम बोल-चाल की भाषा में इनके ढेर को गांज कहा जाता है. गांज यानी पकी फसल को डंटल सहित इस तरह गुंथ कर रखना ताकि ये अंधड़ में उड़ न जाय तथा वर्षा का असर भी इनपर कम से कम हो! फिर समयानुसार इन्हें सुखाकर दानों को अलग किया जाता है. दानों को अलग करने की प्रक्रिया को दौनी कहते हैं. यह दौनी पहले बैलो के द्वारा कराई जाती थी. आजकल थ्रेसर आदि वैज्ञानिक उपकरण आ गए हैं, जिनसे कम समय में ज्यादा से ज्यादा अनाज और उनके डंटल की भूसी को अलग अलग किया जा सकता है!

गाँव के बाहर परन्तु नजदीक में ही ये खलिहान बनाये जाते है, ताकि इनकी देखभाल भी आसानी से की जा सके. तबतक ठंढा भी कम हो जाता है और अधिकत्तर किसान खलिहानों में ही अपना ज्यादा से ज्यादा समय बिताते है ... रात में भी वे लोग वही सो लेते हैं. कभी कभी मनोरंजन के लिए फाग-चैता आदि का भी आयोजन कर लिया जाता है, जिनमे सभी लोग तन-मन-धन से अपना-अपना सहयोग देते हैं.

भुवन और चंदर खुद तो नहीं गाते हैं, पर सबके साथ बैठते हैं और सुर में सुर मिलाने की कोशिश करते हैं. बसंत पंचमी के बाद से ही फगुए की शुरुआत मान ली जाती है और बीच बीच में ढोलक झाल के साथ फाग का आयोजन गांवों में होता ही रहता है.

ऐसे ही एक दिन फाग का आयोजन चल रहा था, सभी लोग खूब आनंद ले रहे थे. बीच बीच में गांजा खैनी, बीड़ी, आदि तो चलना ही चाहिए. अगर संभव हुआ तो भांग भी आम बात है. हालाँकि ये दोनों भाई किसी भी नशा का सेवन नहीं करते, पर किसी को रोक भी तो नहीं सकते है न!

फाग में ज्यादातर पारंपरिक लोक गीत होते हैं जिनमे आराध्य देव की चर्चा तो होती ही है, भगवान शंकर, भगवान राम, कृष्ण आदि की भक्ति से सम्बंधित फाग गाये जाते हैं. जैसे – “गंगा, सुरसरी जाके नाम लिए तरी जाय” !, “बुढवा भोले नाथ, बुढवा भोलेनाथ बेसुध हो होरी खेले! ...” “सरयू तट राम खेले होली सरयू तट ... “ “होली खेले रघुबीरा, अवध में होली खेले रघुबीरा ....”   कुछ सौंदर्य रस भी भरा जाता है – जैसे – “नकबेसर कागा ले भागा .... सैंया अभागा न जागा .....

आज कल तो फ़िल्मी गाने भी चलने लगे हैं – जैसे – “रंग बरसे भींगे चुनरवाली रंग बरसे ...

लौंग इलायची का बीरा लगाया ..... खाए गोरी का यार .... सजन तरसे रंग बरसे

बस ‘गोरी’ का नाम लोगों ने कई बार लिया और कुछ इशारे भी 'भुवन' की तरफ कर डाले ... फिर क्या था. भुवन-चंदर क्या चुपचाप सुनते रहते ??? एक बाल्टी पानी डाल दी, पूरे समुदाय पर. ठंढा तो था ही और लोग ठन्डे तो हुए, पर कुछ लोग गरम भी हो गए. .... मजा किरकिरा हो गया ....    

थोड़ी नोक झोंक हुई और मामला रफा दफा हो गया.

हर जगह अच्छे-बुरे लोग होते हैं. बिफन और बुधना आवारा और शोख किशम के नौजवान थे. वैसे और भी ऐसे लोग थे, जो भुवन-चंदर की तरक्की से जलते थे. दूसरे दिन इन लोगों ने आपस में राय मशविरा किया, शाम को ताड़ी पी और उल जुलूल हरकत भी करने लगे. रात को जब सब सो गए तो इन दोनों ने बीड़ी सुलगाई. बीड़ी पी और जलती हुई माचिस की तीली को पुआल पर फेंका, पुआल थोड़ा सुलगा और तब उन लोगों ने उसे उठाकर भुवन के गांज के नीचे रख दिया और भाग खड़े हुए. थोड़ी ही देर में गांज में आग लग गयी और उसने भीषण रूप अख्तियार कर लिया! गर्मी का अहसास होने से भुवन की नींद  खुल गयी और उसने चिल्लाना शुरू किया ... “आग! आग! आग लग गयी हो!”   आस पास के लोग भी उठे दौड़े और कुंए से पानी भर-भर कर आग बुझाने का भरपूर प्रयास किया गया. आग तो बुझ गयी पर भुवन के गांज का काफी हिस्सा जल गया! यह मसूर का गांज था ... काफी नुक्सान हुआ. गौरी तो देख रोने लगी और आग लगाने वाले को भरपूर गालियाँ भी देने लगी. कुछ लोगो ने ढाढस बंधाए. पर जो आग भुवन के सीने में लगी थी, उसे कौन बुझा सकता था....

गाँव में बहुत सी बातें छिपती नहीं, तुरंत भेद खुल जाता है. कुछ लोगों ने बिफन और बुधना को शाम के समय ताड़ी पीते और बक बक करते सुना था. आग बुझाने के समय भी लगभग सारा गांव इकठ्ठा हो गया था, पर वे दोनों नहीं दिखे थे. उनसे जब पूछा गया तो कहा – “ताड़ी पीकर सो गए थे .. नींद ही नहीं खुली!”      

जब पक्का बिस्वास गया, तो भुवन और चंदर ने मिलकर उन दोनों को खूब पीटा. वे लोग कान पकड़ कसम खाने लगे – “अब ऐसा नहीं करेंगे, भैया!” फिर उन्हें छोड़ दिया गया!

फिर इन्हें लोगों ने आम घटना मान कर भुला दिया. सभी अपने अपने काम में ब्यस्त हो गए.

(मौलिक व अप्रकाशित)

क्रमश: )

Views: 720

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 3, 2013 at 4:29am

आदरणीय श्री योगी जी, सादर अभिवादन!

मैंने भी गाँव की होली का आनंद उठाया है ... यह घटना भी कहानी का हिस्सा है ... आपकी प्रभ्वी प्रतिक्रिया का आभार!

Comment by Yogi Saraswat on April 1, 2013 at 10:54am

फाग में ज्यादातर पारंपरिक लोक गीत होते हैं जिनमे आराध्य देव की चर्चा तो होती ही है, भगवान शंकर, भगवान राम, कृष्ण आदि की भक्ति से सम्बंधित फाग गाये जाते हैं. जैसे – “गंगा, सुरसरी जाके नाम लिए तरी जाय” !, “बुढवा भोले नाथ, बुढवा भोलेनाथ… बैकट(बैकटपुर-शिव जी का स्थानीय मंदिर जो पटना के बख्तियारपुर में है) में होरी खेले! …” “सरयू तट राम खेले होली, सरयू तट … “ “होली खेले रघुबीरा, अवध में होली खेले रघुबीरा ….” कुछ सौंदर्य रस भी भरा जाता है – जैसे – “नकबेसर कागा ले भागा …. सैंया अभागा न जागा …..
आज कल तो फ़िल्मी गाने भी चलने लगे हैं – जैसे – “रंग बरसे भींगे चुनरवाली रंग बरसे …
लौंग इलायची का बीरा लगाया ….. खाए गोरी का यार …. सजन तरसे रंग बरसे …
आपने हमें अपने गाँव की होली के दिन याद दिला दिए आदरणीय श्री जवाहर सिंह जी ! बहुत बढ़िया सामाजिक लेखन !

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on March 13, 2013 at 4:10am

आदरणीया मंजरी जी, सादर अभिवादन!

आपका बहुत बहुत आभार! जल्द ही कहानी की अगली किश्त भाग-४ पेश की जायेगी! 

Comment by mrs manjari pandey on March 11, 2013 at 7:20pm

जवाहर प्रसाद जी बहुत बहुत बधाई। वैसे आतंकी ऐसा ही तो करते हैं।   

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
5 hours ago
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
21 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service