For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दिव्य-कृति(कहानी )

“सर,इस सेम की बेल को खंबे पर लिपटने में मुश्किल आएगी |” मैंने सुरेंदर जी की तरफ़ देखते हुए कहा

“हाँ,मैं सोच रहा था की सामने वाली इमली में कील ठोककर बेल को उधर मोड़ दिया जाए |”

“ पेड़ में कील ! क्या यह पेड़ के लिए जानलेवा नहीं होगा |” मैंने कुछ परेशान होकर पूछा

“लोग पेड़ों में पूरा का पूरा मन्दिर बना देते हैं और तुम कहते हो की कील से पेड़ को नुकसान होगा |” उन्होंने मेरी तरफ़ मुस्कुराते हुए कहा

“सर ,मैंने पेड़ों से मार्ग की बात तो सुनी है पर क्या हमारे देश में कोई ऐसा पेड़ भी है जिसमें मन्दिर हो !”

“देखों,मैं इस कथन की सत्यता की पुष्टि नहीं करता पर कानपुर स्कूल में मेरा दंतिया जिले का एक साथी था भानु और उसने अपने जिले में एक ऐसा मन्दिर होने की बात कही थी |ये कहानी जिस मन्दिर के बारे में है उस जगह की दतिया का रोम भी कहा जाता है |”

मैं विस्मय से उनकी बात सुन रहा था |

“अच्छा ,तुमनें दिल्ली विश्वविद्यालय परिसर के नीम पेड़ से बीयर निकलने वाली खबर तो सुनी होगी |”

“हाँ,दाँवों के मुताबिक उस पेड़ से 3 महीनें तक प्रतिदिन 10 लीटर तक बियर जैसा द्रव निकलता रहा  जिसे लोग बड़े चाव से पीते थे |” मैंने गूगल करके कहा

“क्या तुम्हारें हिसाब से यह कुदरती घटना है या मानवीय ?”

“पेड़ों की छाल कटने-फटने पर ऐसे द्रवों का निकलना तो कुदरती है |इस क्रिया से पेड़ अपने घाव भरते हैं |पर इतनी अधिक मात्रा में द्रव का निकलना असाधारण है |”

“और अगर किसी पेड़ पर साक्षात शिवाकृति उभर जाए और पेड़ के भीतर से त्रिशूल निकले तो ?”

“मैं तो इसे अलौकिक घटना कहूँगा |” मैंने हाथ जोड़ते हुए कहा

वो मुझे इशारे से अपने साथ चलने को कहते हैं और स्कूल-परिसर के गूलर के पेड़ का तना दिखाते हैं |

“कुछ दिखा ?”

“हाँ,तने पर कई कीले हैं जो की तीन साल पहले स्कूल में काम करने आए मजदूर गाड़ गए थे |”

“एक और चीज़ है जिधर तुम्हारा ध्यान नहीं गया |समय के साथ यह कीलें पेड़ के कुछ और भीतर चली गयीं हैं |”
“क्या इस इशारे में कहानी का रहस्य है ?” मैंने परेशान होकर पूछा

“अच्छा पेड़ों की उम्र कैसे निकालते हैं ?” बिना मेरा जवाब दिए उन्होंने अगला सवाल दाग दिया

“तने के छल्लों को गिन कर |”

“बिल्कुल सही |पेड़ जैसे-जैसे बढ़ते हैं उनका तना मोटा होता जाता है और समय के साथ उनकी पुरानी छाल हट जाती है और नई मोटी छाल आती जाती है |”

“सर ! आप कहानी सुना रहे हैं या मुझें पेड़ों के विकास का विज्ञान पढ़ा रहे हैं |” मैंने उबते हुए कहा |

वो ज़ोर से हँसे और बोले –अविष्कार की बुनियादी आवश्कता है की ज्ञान को सही व अभिनव तरीके से इस्तेमाल किया जाए |बढ़ई लीलाधर शर्मा ने भी ऐसा ही किया और मज़ाक-मज़ाक में उसने एक भव्य शिव-मन्दिर की नीव रख दी |लीलाधर शर्मा एक नम्बर का गंजेड़ी और निठल्ला था |गाँव में लोगों की टोका-टाकी से बचने के लिए वो पशु चराने के बहाने पास के जंगल में निकल जाता और पूरा दिन वहीं गाँजा पीता रहता |एक शाम को वह गाँव के मन्दिर के चबूतरे पर बैठा गांजा पी रहा था |तभी मन्दिर के पुरोहित वहाँ आ गए |उन्होंने लीलाधर को डाँटा |

“काहे भोले बाबा भी तो गांजा-भाँग पियत हैं |”

“तू बढ़ई क जात ,भगवान के मामले में कुतर्क करता है |”

“बाबाजी,जब शंकर जी के नाम पर भांग घोटते हो और पूरे गाँव में प्रसादी कहकर पिलाते हो तब –“

“भागता है की नहीं |ये गाँव का मन्दिर है तुम्हारे दादा की बपौती नहीं ” तमतमाए महेश पंडित ने लाठी दिखाते हुए कहा

लीलाधर भाग आया |वह नशे में जरुर था पर मान-अपमान का उसे पूरा बोध था |एक बार तो उसका जी आया की पंडित महेश को पकड़ कर पटखनी दे |पर वह इसके परिणाम से परिचित था |पंडित महेश चौबे का परिवार पिछली तीन पीढ़ियों से इस ग्राम मन्दिर के अविवादित पुरोहित थे |आसपास के गाँवों में भी उनकी अच्छी धाक थी |लोग उनकी बातों पर आँख मूंदकर कर भरोसा करते थे |उनके एक इशारे पर लीलाधर और उनके परिवार को गाँव से बाहर किया जा सकता था |उन्हें बल से नहीं बुद्धि से पराजित करना होगा |कई दिनों तक वह पंडित महेश से बदला लेने की योजना पर विचार करता रहा पर उसे कोई उपाय न सूझा |एक दिन वो अपने दुआरे नींम के पेड़ के तले बैठा था तभी उसका ध्यान नीम में गड़ी कील पर गया |उसी दिन उसने एक छोटा सा लोहे का त्रिशूल गढ़ा और अगली सुबह जंगल में पहुँच गया |उसने जंगल में मध्यम आकर का गोल तने वाला एक पीपल वृक्ष चुना और बड़ी कुशलता से उसमें चीरा लगाकर त्रिशूल उसमें डाल दिया |फिर उसने उसी पीपल के एक पतली टहनी काटी और कुशलता से उसमें टहनी छीलकर चीरे वाली जगह भर दिया|लगभग एक महीने में वह टहनी चीरे में भली प्रकार चिपक गई |उसके बाद उसने त्रिशूल की ठीक नीचे वाली जगह पर आकर शिवाकृति गढ़ने लगा |इस काम में उसे छह माह लग गए |समय के साथ-साथ चीरा पूरी तरह समा गया और शिवाकृति भी ऐसे उभरने लगी मानों वह अपने आप पेड़ में बनी हो |उसने अगले दो वर्षों का इंतजार किया और फिर एक सुबह उठकर ग्राम मंदिर पहुँचा |उस समय महेश चौबे सुबह की आरती करा रहे थे |कुछ और ग्रामीण भी वहाँ उपस्थित थे |

आरती समाप्त होते ही वह शिव प्रतिमा के सामने लोट पड़ा –“अलौकिक,दिव्य,प्रभु सुबह-सुबह आप सपना में आए पर जो रूप आप दिखाए वो इहाँ तो नहीं है |”

“कैसा बड़बड़ा रहा है लीलाधर ?” वहाँ खड़े एक ग्रामीण ने पूछा

“का बताएँ चचा ,आज भोर में सपना देखें,भोले बाबा सपना में कह रहे थे की मैं पास वाले जंगल के एक पीपल में वास किए हूँ |तू मेरी चर्चा चारों और फैला जो मेरा दर्शन करेगा उसका सब दुःख ,संताप मिटेगा |”

“साsला सुबह-सुबह भांग खाया है |शंकर जी को क्या कौनों और काम नहीं है जो तुझ गंजेड़ी-भंगेड़ी के सपने में आएँगे |”महेश चौबे ने उसकी बात काटते हुए कहा

“महाराज !आपहि तो कहते हैं की सुबह का सपना अधिकतर सच्चा हो जाता है |”लीलाधर अपना पक्ष रखते हुए बोला |

“धत,साsला,भंगेड़ी,लोगन को और काम भी हैं |सब तेरी तरह निकम्मा नहीं है |” महेश चौबे ने उसे उलहाना दी

“हम त जा रहे हैं,जिसे भोले बाबा पर विश्वास नहीं वो मत आए |बाद में कौनों विपत्ति संकट आए तो हमें दोष मत देना |” कहता हुआ लीलाधर चल पड़ा |

“ए रुकों हम भी आते हैं |” एक ग्रामीण बोला

“का पता वो सच कह रहा हो |चलकर देखने में का हर्ज़ा है |” दूसरा ग्रामीण बोला

पंडित महेश और एकाध और लोगों को छोड़ सभी लोग उसके पीछे हो लिए

 

तीन-चार घंटे की मशक्कत के बाद लीलाधर ग्रामीनों को उस पेड़ के पास ले आया |

“देखने में तो भोलेनाथ ही लग रहे हैं,नाग भी है,जटा से गंगा भी निकलती लग रही हैं पर त्रिशूल तो नहीं है |” एक वयोवृद्ध ने चित्राकृति का मुआयना किया |

“सपना में जो त्रिशूल दिखा था वह पेड़ के भीतर दिख रहा था |”

“पेड़ के भीतर काहे ----भोले बाबा को किसका डर |” एक ग्रामीण बोला

“जानते नहीं हो का की भोलेबाबा कितने भोले और दयालु हैं |किसी दुष्ट के हाथ वह त्रिशूल लग जाए तो आफत आ सकती है जैसे भस्मासुर के समय में हुआ था |शायद इसीलिए त्रिशूल भीतर छुपा कर रखें हो |” दूसरा ग्रामीण बोला

लीलाधर ने आँख बंद करने का नाटक किया और फिर कहा-इस जगह चीरा लगाओ |नियत स्थान पर चीर लगाने पर त्रिशूल की नोक नजर आने लगी |

“इससे ज़्यादा काटने पर पेड़ को नुकसान होगा और भोले बाबा नाराज हो जाएँगे |“ लीलाधर ने कहा तो आगे पेड़ से छेड़छाड़ नहीं की गयी |

उधर बात आग की तरह आसपास के गाँवों-कस्बों में फ़ैल गई और लोग भोलेनाथ के दर्शन को आने लगे |महेश चौबे ने  जैसे ही सुना दौड़े-दौड़े वहाँ पहुँचे |

“चमत्कार-चमत्कार !यहाँ तो भगवान शिव का मन्दिर बनना चाहिए |” उन्होंने सुझाव दिया

ग्रामीणों ने एकमत से उनका समर्थन किया |

पंडित महेश पूजा की तैयारी करने लगे तो वहाँ खड़े किसी ग्रामीण ने जोर से कहा-भोलानाथ लीलाधर के सपने में आए रहे यानि की लीलाधर को दिव्य-दृष्टि और भोलेबाबा का आशीर्वाद है इसलिए पूजा कराने का हक भी उन्हें ही मिलना चाहिए |

पंडित महेश मन मसोस कर रह गए |

“ऐसे दिव्य स्थान पर नियमपूर्वक पूजा होनी चाहिए अन्यथा अनिष्ट हो सकता है और लीलाधर को पूजा-पद्धति का क्या ज्ञान !” पंडित महेश ने अगला दाँव फैंका
“आपहि त कहते हैं की पूजा के लिए भावना होनी चाहिए,वेद ज्ञान तो बाद में आता है |” फिर भीड़ में से कोई बोला

“हम ग्राम पुरोहित हैं पीढ़ियों से हमारा परिवार भगवान भोले की सेवा में समर्पित रहा इसलिए हमें यहाँ पूजा का हक मिलना चाहिए |” महेश ने इस बार याचनापूर्वक कहा |

“इसीलिए तो कह रहे हैं की आप ग्राम का मन्दिर सम्भालिए और यहाँ पूजा-पाठ की फ़िक्र लीलाधर पर छोड़ दीजिए |”

लाख कोशिशों के बावजूद पंडित महेश की एक न चली और उन्हें ग्राम-मन्दिर की पुरोहिती से संतोष करना पड़ा|समय के साथ मन्दिर के दर्शनार्थी बढ़ते गए और उसके साथ ही बढ़ई लीलाधर शर्मा,पंडित लीलाधर शर्मा हो गए और उनकी दिव्यदृष्टि का लाभ लेने बड़े-बड़े लोग आने लगे और उनके मान-सम्मान में बेतहाशा वृद्धि हुई |समय के साथ मन्दिर बड़ा होता गया ,वहाँ भक्तों के लिए सुविधाएँ बढाई गईं और वह जगह पहले कस्बा और फिर एक उपनगर हो गया |लम्बे समय तक लीलाधर मन्दिर और नगर के अविवादित चेयरमैन रहे |

साठ की उम्र के आसपास लीलाधर को एक भयानक लाईलाज बीमारी ने घेरा  हुए तो उन्हें अपराधबोध हुआ |जब उन्हें अपनी मृत्यु समीप नजर आई तो उन्होंने अपने कुछ बेहद परिचितों को बुलाया और उनसे क्षमा माँगते हुए अपनी दिव्य कृति का सच बताया |

पर मन्दिर कमेटी के अन्य सदस्य लोगों की आस्था और विश्वास को ध्वस्त नहीं करना चाहते थे |इसलिए यह राज़ राज़ ही बना रहा और आज भी लोग पूरी आस्था से दतिया के भोलेनाथ के उस मन्दिर जाते हैं और अपने दुःखों का निवारण प्राप्त करते हैं |

सोमेश कुमार (मौलिक एवं अमुद्रित )

Views: 546

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
4 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
4 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
5 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
8 hours ago
Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
11 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service