Added by Bhasker Agrawal on December 24, 2010 at 12:04pm — 8 Comments
Added by Bhasker Agrawal on December 22, 2010 at 11:48pm — 1 Comment
Added by Lata R.Ojha on December 22, 2010 at 2:00pm — 9 Comments
Added by Abhinav Arun on December 22, 2010 at 10:30am — 4 Comments
Added by Lata R.Ojha on December 21, 2010 at 11:30pm — 5 Comments
सच्चाई सूरत लेगी एक दिन
माटी मूरत होगी एक दिन
क्यों भागता है यों रूठकर तू मुझसे
मुझे तेरी जरूरत होगी एक दिन
कभी राज अपने भी बतलाऊंगा तुझे
जो सुनने कि फुरसत होगी तुझे एक दिन
क्यों लगाया है मन तूने में चोखट पे
खुद तेरे दर पे आऊंगा बनके जोगी एक दिन
बहुत ठोकरें खाई हैं तूने इन राहों में
कभी मंजिल भी दिखलाऊंगा तुझे एक दिन
बहता पानी है तू चलाती है ये ज़मीं तुझे
बहते बहते समुन्दर बन जायेगा तू एक दिन
गम ना…
Added by Bhasker Agrawal on December 21, 2010 at 3:51pm — 1 Comment
Added by Lata R.Ojha on December 20, 2010 at 12:30am — 2 Comments
सराहे और पूजे जाने के लिए एक सोच है ,
दर्शन है एक ह्रदय है ,
समर्पण है ऐसी कोरी किताब नहीं,
कि गाहे -बगाहे. लिख दे कहानी कोई,
एक अंतर्मन है.जिसमे करते स्वयं प्रभु रमण हैं
उसके सीने में भी ,
दिल है धड़कता उसके जज्बातों में भी है कोई बसता,
एक मुकम्मल सा फ़रिश्ता,
जुड़ा-जुड़ा सा हो जिससे कोई…
ContinueAdded by anupama shrivastava[anu shri] on December 18, 2010 at 2:00pm — 5 Comments
चोर चुरावें मेरी निंदिया ||1
दधक दधक जियरा दधकै
बरसे छम छम बारिश बुंदिया ||2
धडक धडक धड्कावे दिल को
चकवा चितवे है चंदिया .3
डग मग डग मग डोल रही है ;
नय्या के अंग संग ही नदिया…
ContinueAdded by DEEP ZIRVI on December 16, 2010 at 10:30pm — 2 Comments
"मैं"
इक भावुक, बहुत ही भावुक लड़की
किसी ने कहा
भावुकता निश्छलता का प्रतीक है
तो किसी ने कहा पवित्रता का ..
'ना' भावुकता न तो निश्छलता का प्रतीक है
और न ही पवित्रता का ..
ये तो प्रतीक है
हर पल छले जाने की तत्परता का ..
'हाँ'
छली जाती हूँ मैं , हर दम, हर कदम
कभी अपनों के हाथों, तो कभी गैरों के
कभी साहिलों से, तो कभी लहरों से,
कई बार…
Added by Anita Maurya on December 16, 2010 at 7:30pm — 5 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 16, 2010 at 12:30pm — 2 Comments
Added by Julie on December 15, 2010 at 9:00pm — 2 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 15, 2010 at 5:00pm — 2 Comments
जब शब्द पड़ गए कम तो मैंने लिखना छोड़ दिया
जब आँखें न हुई नम तो मैंने लिखना छोड़ दिया
पूछा गया के तुमने महफिल में दिखना छोड़ दिया
हम बोले की हमने बिकना छोड़ दिया
न लडखडाये उस वक्त जब राहों में रुकना छोड़ दिया
उड़ने लगे जो आसमां में हम तो कदमों ने दुखना छोड़ दिया
पीते थे जिस जाम में उस जाम को मैंने तोड़ दिया
लिखते लिखते लिख पड़ी कलम के मैंने लिखना छोड़ दिया
Added by Bhasker Agrawal on December 12, 2010 at 4:31pm — 2 Comments
कविता :- हमें माफ करना स्वस्तिका
हमें माफ करना स्वस्तिका
हमने भुला दी है इंसान होने की संवेदना
अब हमें तुम्हारे…
ContinueAdded by Abhinav Arun on December 10, 2010 at 4:51pm — 14 Comments
Added by Bhasker Agrawal on December 9, 2010 at 5:37pm — 5 Comments
Added by Bhasker Agrawal on December 8, 2010 at 12:00pm — No Comments
कोई बात नहीं सुनता, सब अंदाज़ सुनते हैं
कल तक था जो अनसुना वो आज सुनते हैं
हकीकत ठुकरा देते हैं लोग पर राज़ सुनते हैं
मंजिल पर रहकर भी भीड़ की राह चुनते हैं
ज़हन में छुपी है कब से वही वो बात सुनते हैं
मनाते हैं वो खुद को, क्या खाक सुनते हैं
सब अमृत के प्यासे, जहर बेबाक चुनते हैं
कुछ सुन ले तू मेरी, तेरी तो लाख सुनते हैं
Added by Bhasker Agrawal on December 7, 2010 at 2:30pm — No Comments
Added by Veerendra Jain on December 6, 2010 at 11:26am — 15 Comments
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