For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जब बेटी घर से विदा हो जायेगी..

जब बेटी घर से विदा हो जायेगी..

   - शमशाद इलाही अंसारी "शम्स"

 

ये घर दरो दीवार सब तरसेंगे

जब बर्तन खन खन खनकेंगे

सारे पकवान फ़ीके पड़ जायेंगे

जब बेटी घर से विदा हो जायेगी.

बात बात पर उसका नाम

मेरी जुबां पे कभी तेरी जुबां पे

सांसें बहन की अटकी रह जायेगी

जब बेटी घर से विदा हो जायेगी.

वो जो दिन भर लडता था भैय्या

पापा जिसको धमकाते थे

ताकेगा दीवारों को चुपचाप

जब बेटी घर से विदा हो जायेगी.

फ़ूलों की रंगत तब कैसी होगी

खुश्बू भी फ़िर न सुहायेगी

चिड़ियों की चहक भी रुलायेगी

जब बेटी घर से विदा हो जायेगी

बागीचे की गिलहरी क्या भूखी होगी

गमलों में डालेगा अब कौन पानी

क्यारी अब सूखी हो जायेगी

जब बेटी घर से विदा हो जायेगी.

दादा की चाय की प्याली

भरी भी लगेगी अब खाली

दादी गुम सुम हो जायेगी

जब बेटी घर से विदा हो जायेगी.

तेरी सहेलियों की वो सारी बातें

कमरे से आती हंसने की आवाज़ें

मुंडेर की बुल बुल चुप हो जायेगी

जब बेटी घर से विदा हो जायेगी.

घर से दफ़्तर अब दूर होगा

मेरा सेहन अब सूना होगा

शायद ज़हन भी अब गीला होगा

जब बेटी घर से विदा हो जायेगी.

रख कर सिर पर बेटी के हाथ

बस बाप दुआ देता रह जायेगा

माँ बिलखती हुई रह जायेगी

जब बेटी घर से विदा हो जायेगी.

=========================

रचनाकाल: फ़रवरी १६,२०११

Views: 9937

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on March 1, 2011 at 2:06am
Ashvani ji...shukriya aapka.
Comment by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 28, 2011 at 11:57pm
BAHUT SUNDAR BADHAI AAP KO
Comment by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on February 28, 2011 at 10:21pm
Bagi, ji..bus aapki du'a hai...bahut bahut shukriya..!!!

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 28, 2011 at 10:09pm

शम्स भाई एक एक शब्द तोल तोल कर रखा है आपने, विदाई के समय का दर्द तो वही समझ सकता है जो एक बेटी का पिता,  माता , भाई बहन हो , सच मैंने सहा है इसको , अजीब उलझन है , एक गीत याद आ रही है .....

 

ये  कैसी घडी आई है , मिलन है जुदाई है ....

 

बेहद संजीदा काव्य कृति पर बहुत बहुत आभार ...

Comment by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on February 28, 2011 at 8:59pm
Admin Saheb...meherbaani aapki..photo ek taraf laga kar...aapne kavita ke pravah ko ek jut kar diya..Shukriya.
Comment by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on February 28, 2011 at 8:58pm
Jain Saheb...bahut bahut shukriya aapaka..
Comment by अमि तेष on February 28, 2011 at 8:48pm

dil ko chu gyi

dhanyabaad

Comment by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on February 28, 2011 at 7:11pm
योगराज जी, बिना संवेदनाओं के आदमी इंसान नहीं बनता..कामरेड होना थोडा और आगे की बात है, बिना प्रेम के क्रांति कैसे संभव..खैर यह एक अलग मौजू है..यह कविता आपको पसंद आयी, और आपने आपने कीमती वक्त का एक हिस्सा अपनी प्रतिक्रिया देने में किया है..इसके जरुर कुछ मायने होंगे...मैं आपका आभार ही व्यक्त कर सकता हूँ. अभिनव जी मैं आपको भी शुक्रिया अदा करता हूँ, बस प्रेम छैय्या बनाये रखिये..सादर
Comment by Abhinav Arun on February 28, 2011 at 2:13pm
मर्म स्पर्शी रचना !! बिलकुल मनोभावों का यथार्थ परक चित्रण !! 

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 28, 2011 at 9:57am
शम्स भाई, एक "कामरेड" की कलम से इतनी भावुक कविता का सृजन मेरे लिए वाकई एक सुखद आश्चर्य रहा ! आपकी यह मर्मस्पर्शी काव्यकृति मैंने बेटी की शादी से पहले भी देखी थी, मगर जानबूझ कर पढी नहीं थी ! दरअसल मैं चंद आँसू बेटी की विदाई के लिए महफूज़ रखना चाहता था !  बेटी की शादी को मद्देनज़र रख आपने को काव्यांजली का "शगुन" पेश किया, मैं उसके लिए दिल से ममनून हूँ , सादर !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
1 hour ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा षष्ठक. . . . आतंक
"ओह!  सहमत एवं संशोधित  सर हार्दिक आभार "
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"जी, सहमत हूं रचना के संबंध में।"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"शुक्रिया। लेखनी जब चल जाती है तो 'भय' भूल जाती है, भावों को शाब्दिक करती जाती है‌।…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, नए अंदाज़ की ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपके संकल्प और आपकी सहमति का स्वागत है, आदरणीय रवि भाईजी.  ओबीओ अपने पुराने वरिष्ठ सदस्यों की…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपका साहित्यिक नजरिया, आदरणीय नीलेश जी, अत्यंत उदार है. आपके संकल्प का मैं अनुमोदन करता हूँ. मैं…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"जी, आदरणीय अशोक भाईजी अशोभनीय नहीं, ऐसे संवादों के लिए घिनौना शब्द सही होगा. "
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . उल्फत
"आदरणीय सुशील सरना जी, इन दोहों के लिए हार्दिक बधाई.  आपने इश्क के दरिया में जोरदार छलांग लगायी…"
10 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"माननीय मंच एवं आदरणीय टीम प्रबंधन आदाब।  विगत तरही मुशायरा के दूसरे दिन निजी कारणों से यद्यपि…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा षष्ठक. . . . आतंक
"आप पहले दोहे के विषम चरण को दुरुस्त कर लें, आदरणीय सुशील सरना जी.   "
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service