जीना ,
जीने से बढ़ कर
जीने की इच्छा ,
इच्छा के साथ
और इच्छायें ,
आशायें , उम्मीदें।
एक आस , हर
आनेवाले दिन से ,
वर्ष से .........
स्वागत नव् वर्ष का .......
कुछ अर्पण के लिए
कुछ समर्पण के भाव लिए
कुछ नये वादों के साथ ,
कुछ दृढ़ इरादों के साथ ....
स्वागत नव् वर्ष का .......
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on December 30, 2016 at 8:43pm —
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सपने देखने में
कुछ नहीं जाता है ,
टूट जाएँ तो कुछ
रह भी नहीं जाता है।
इसलिए सपने देखें नहीं ,
हमेशा दूसरों को दिखाएं ,
सुन्दर , लुभावने , बड़े-बड़े ,
पूरे हों तो वाह , .. न हों ,
आपका कुछ नहीं जाता है ,
लेकिन इलेक्शन अकसर
इसी फार्मूले पे जीता जाता है।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on December 28, 2016 at 10:55am —
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बदले-बदले लोग
============
बहुत दिन हो गए,
हमने नहीं की फिल्म की बातें।
न गपशप की मसालेदार,
कुछ हीरो-हिरोइन की।
न चर्चा,
किस सिनेमा में लगी है कौन सी पिक्चर?
पड़ोसी ने नया क्या-क्या खरीदा?
ये खबर भी चुप।
सुनाई अब न देती साड़ियों के शेड की चर्चा।
कहाँ है सेल, कितनी छूट?
ये बातें नहीं होती।
क्रिकेटी भूत वाले यार ना स्कोर पूछे हैं।
न कोई जश्न जीते का,
न कोई…
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Added by मिथिलेश वामनकर on December 21, 2016 at 3:00pm —
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हुकूमतें लाजवाल
हाकिम कामयाब
जनता त्रस्त बेहाल ,
अपने अपने नसीब हैं।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on November 7, 2016 at 7:57am —
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हिट हिटा हिट हिट
पिट पिटा पिट पिट
ये भी एक अज़ब दौर है
क्या हो जाए कब हिट
क्या जाये कब पिट
पब्लिक की च्वॉइस
मीडिया की वॉयस।
जिस नेता की जयंती बरसी
दो दिन उसकी बातें हिट।
जिससे हो अपना भला ,
हो अपना मामला फिट
वही हिट, वही हिट, वही हिट ,
बाकी सब गिटपिट गिटपिट।
ये बड़ी ख़बर , वो ख़बर हिट ,
गाना हिट , पिक्चर हिट ,
विचार हिट , डायलॉग हिट
मेकियावली हिट , चाणक्य हिट ,
ये नेता हिट ,उसका घोर विरोधी भी हिट…
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Added by Dr. Vijai Shanker on October 4, 2016 at 9:15am —
4 Comments
पुरानी किताबें ........
पुरानी किताबें
कुछ भी तो नहीं
सिवाय पुरानी कब्रों के
जिनमें दफ़्न हैं
चंद सूखे गुलाब
कुछ सिसकते हुए
मुहब्बत के ख़ुश्क से हर्फ़
कुछ पुराने पीले
टुकड़े टुकड़े से
अधूरे प्रेम के
प्रेम पत्र
पुरानी किताबें
जिनमें सो गयी
जीने की आस लिए
कई आकांक्षाएं
घुटी हुई सांसें
मोटी सी ज़िल्द की
अलमारी में
कैदियों से जीते
मौन कई अफ़साने
जंज़ीरों में…
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Added by Sushil Sarna on September 28, 2016 at 3:00pm —
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तंत्र को नैये-नैये मंत्र मिल रहे हैं ,
सफलता और विकास के नैये-नैये
शब्दकोष रचे जा रहे हैं ,
शब्द , नैये-नैये अर्थ पा रहें हैं ,
अर्थ , पुरुषार्थ में पुरोधा बन रहे हैं।
पा लें , सब पा लें की होड़ लगी हैं ,
क्या खो रहें हैं , देख नहीं पा रहें हैं।
सत्ता , मद - यामिनी ,
सिंहासन , पद - वाहिनी ,
जब डोलता है तो ,
डोलता हुआ नहीं लगता है ,
झूला झुलाता हुआ लगता है ,
जागो , जागते रहो , कहनेवाला ,
खुद नींद में सोया-सोया लगता है।
आगे…
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Added by Dr. Vijai Shanker on September 25, 2016 at 7:35am —
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श्रद्धांजलि
राज पथ पर अवस्थित
शहीद चौक ..
लोगो का हुजूम
मिडिया वालों का आवागमन
चकमक करते कैमरे
चमकते-दमकते चेहरे
फोटो खिंचाने की होड़
हाथों में मोमबत्तियाँ
नहीं-नहीं, कैंडल....
साथ में लकदक पोस्टर, बैनर
जिनपर अंकित था -
'शहीदों को
अश्रुपूरित श्रद्धांजलि' !!
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 25, 2016 at 12:00am —
11 Comments
( नवीन मुद्रा के आगमन पर स्वागत सहित, अचानक प्रस्तुत )
कैसे गायब हो जाते हैं छोटे सिक्के ,
पाई , अधेला , धेला , दाम ,
छेदाम , पैसा , दो पैसा ,
इक्कनी , दुअन्नी , चवन्नी ,
गला कर उन्हें तांबे ,
पीतल में ढाल लेते हैं।
कहते हैं , उनकी खरीदने की
ताकत ख़तम हो जाती है ,
या उनकीं अपनी कीमत बढ़ जाती है ?
हमारी समझ घट जाती है ,
तभी तो वे पुराने सिक्के
चलन में आज मिलते नहीं ,
कहीं मिल जायें तो
सौ, दो सौ , हजार , दस हजार…
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Added by Dr. Vijai Shanker on September 16, 2016 at 11:10pm —
12 Comments
अपनों से ही जुदा
अपनों से ही लुटता
बहुचर्चित एक देश।
एक देश का ग़ुलाम
हथियार पाकर है बदनाम
ख़ुद बेलगाम एक देश।
ख़ुद को ख़ुद से भुलाता
मज़हब की आड़ लेता
कट्टरों का ग़ुलाम एक देश।
आतंक की ले पहचान
आतंक की खुली दुकान
पलता, पालता एक देश।
एक देश का है टुकड़ा
'आधा' खाकर, 'आधे' पर अकड़ा
छोटे से छोटा होता एक देश।
**
[2]
अपनों से ही संवरता
अपनों को ही उलझाता
बहुचर्चित…
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Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 5, 2016 at 11:45pm —
10 Comments
अमीर उम्र भर रोता रहा
हाय ये भी मिल जाता ,
हाय वो भी मिल जाता ,
ये ये मिलने से रह गया ,
वो चाहा बहुत मिला नहीं।
बस एक गरीब ही है ,
जिसे यही पता नहीं ,
उसने क्या खोया ,
उसे क्या मिला नहीं।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on August 28, 2016 at 10:54am —
2 Comments
पहले आप
पहले आप
एक तहजीब थी ,
अंग्रेजी में ,
ऑफ्टर यू ,
एक ही बात ,
आपके बाद।
आपका दौलत खाना ,
ख़ाकसार का गरीबखाना ,
आपके करम ,
बन्दे की खिदमत।
हम कुछ भी हों ,
आपके आगे कुछ नहीं।
वक़्त बदल गया।
पर सब कुछ वैसा ही है ,
तहज़ीब के पैमाने वही।
आपके आगे हम
आज भी कुछ नहीं ,
कुछ नहीं करने में
आप हमसे आगे ,
आपके घोटाले बड़े ,
इतने कि धरती धकेल दें ,
आप आगे , हम बहुत पीछे।
कामचोरी में आप…
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Added by Dr. Vijai Shanker on August 7, 2016 at 10:57am —
2 Comments
पिंजड़ा भी ,
एक अजीब बंधन है ,
दाना भी , पानी भी , बस ,
बंद पंछी उड़ नहीं सकता।
हौसलों से कहते हैं कि
क्या कुछ हो नहीं सकता ,
हो सकता है , बस पंछी ,
पिंजड़ा लेकर उड़ नहीं सकता।
कितने आज़ाद हैं हम ,
फिर भी उड़ नहीं पाते ,
मुक्त हो नहीं पाते ,
उन्मुक्त होकर जी नहीं पाते ,
बाहर से आज़ाद हैं , बस ,
कुछ पिंजड़े हैं हमारे अंदर ,
बाँधे हैं , कुछ ढीले , कुछ कस कर।
रूढ़ियाँ कब बन जाती हैं बेड़ियाँ ,
बंधे रह जाते हैं हम , पता…
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Added by Dr. Vijai Shanker on August 2, 2016 at 9:30am —
17 Comments
हर गुनाह की सजा होती है ,
ये तो पता नहीं ,
पर हर गुनाह पर किसी न किसी का
हक़ होता है , ये पता है।
कभी कोई गुनाहगार मजबूर लाचार भी होता है ,
ये तो पता नहीं ,
पर बड़ा गुनाहगार अक्सर बड़ा ताक़तवर होता है ,
ये सबको पता है।
चोरी तो चौसठ कलाओं में से एक है ,
पता है न ,
पर चोर ताक़तवर हो तो
चोर को चोर कहना गुनाह होता है।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on July 25, 2016 at 10:00am —
10 Comments
विशालता - सूक्ष्मता
का अनूठा संगम हैं प्रकृति,
हाथी भी है , चींटी भी है,
सूक्ष्म जीव , जीवाणु ,
कीट , कीटाणु भी हैं
दोनों का भोजन है ,
भूखा कोई नहीं है ,
इंसान को समझो ,
उसे न्यून मत करो ,
इतना न्यून तो
बिलकुल मत करो
कि वह सूक्ष्म हो जाए ,
और तुम्हें दिखाई भी न दे ,
कीटाणु की तरह ,
रोगाणु की तरह ,
रहेगा तब भी वह समाज में,
सोचो , क्या करेगा ?
समाज को ही रोगी करेगा।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on July 15, 2016 at 10:15am —
12 Comments
दो शब्द चित्र
1-
दरकिनार हुए...
अनुभव, योग्यता
कार्य-कुशलता,…
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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 8, 2016 at 9:30am —
8 Comments
सदैव सचेत ,जाग्रत ,
रहने वाले प्रबुद्ध हैं हम ,
बस अपने से ही दूर ,
अनन्त अंजान हैं हम।
जागते रहो , नारा है ,
लक्ष्य-आदर्श नहीं ,
दृश्य है , वो दीखता नहीं ,
अदृश्य , लक्ष्य है , और
पहुँच से बहुत दूर दीखता है ,
फिर भी अति प्रसन्न हैं हम ,
सुसुप्त-सुख से ग्रस्त हैं हम ,
जगा दे कोई किसी में दम नहीं।
फिर भी कोई दुःसाहस करे ,
जागते नहीं , उखड़ जाते हैं हम ,
भड़क जाते हैं हम ,
ज्ञान बोध से नहीं ,
अज्ञान के उद्भव से ,…
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Added by Dr. Vijai Shanker on July 2, 2016 at 10:00am —
8 Comments
काम नहीं
परिणाम चाहिए।
तथ्य नहीं ,
प्रमाण चाहिए ,
शिक्षा नहीं ,
डिग्री चाहिए ,
डिग्री भी क्या ,
अर्थ तो पद से है ,
फलदार , रौबदार ,
सार्थक पद चाहिए।
पद पर हों तभी तो
सेवा कर पाएंगे ,
मार्गदर्शन कर पाएंगे।
इच्छित , सही दिशा में
ले जा पाएंगे ,
भगीरथ नहीं , अब
सिर्फ रथ के भागी दार हैं ,
रथ पर सवार होंगे
तभी तो महारथी कहलाएंगे।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on June 25, 2016 at 7:53am —
8 Comments
मैं बड़ा ,
तू बड़ा ?
तू कैसे बड़ा ?
मैं सबसे बड़ा।
हर बड़े से बड़ा ,
बड़ों बड़ों से बड़ा।
मैं बड़बड़ा , मैं बड़बड़ा,
मैं सबसे बड़ा बड़बड़ा .
********************
हमको मालूम है कि
बातों से कुछ नहीं होता है ,
बस इसीलिये तो
हम बातें करते हैं , क्योंकि
बातों से किसी पक्ष को
कोई फरक नहीं पड़ता।
**********************
अच्छे को अच्छा कहने से
अपना क्या अच्छा होगा ,
अपने को अच्छा कहने से
अपना वो अच्छा न…
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Added by Dr. Vijai Shanker on June 20, 2016 at 9:46am —
6 Comments
तालाब की दुर्गन्ध
दूर दूर तक फ़ैली थी ,
वो कुछ मछलियों
के भाग जाने का
हवाला दे रहे थे।
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लोग जितने नासमझ होगे
उतनी आप की बात मानेंगे।
लोग जितने टूटेंगे ,
आप उतने मजबूत होंगे।
आप जितनी रोटियां बाटेंगे ,
लोग उतने आपके होंगे।
***********************
राम का नाम सत्य है ,
कभी राम का निर्वासन हुआ ,
आज सत्य का हुआ है।
कारण तब भी राजनैतिक थे ,
अब भी राजनैतिक है।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on June 14, 2016 at 11:03am —
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